मुस्लिमों की सबसे बड़ी आबादी वाले देश इंडोनेशिया में युग ने करवट बदली है। इंडोनेशिया की राजकुमारी दीया मुटियारा सुकमावती सुकर्णोपुत्री 26 अक्तूबर, 2021 को वापस हिन्दू धर्म में लौट आईं। कभी उनके कुल की एक राजकुमारी 1267 ई. में धोखे से मुस्लिम बनी थीं। अब इतिहास ने करवट ली है।
राजकुमारी सुकुमावती ने अपने 70वें जन्मदिन पर मंगलवार को इंडोनेशिया के सबसे ज्यादा हिंदू आबादी वाले राज्य बाली में इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म की दीक्षा ली। सुकमावती का यह आधिकारिक हिंदूकरण 26 अक्तूबर को बुलेलेंग जिले के सुकर्णो विरासत केंद्र में सुधी वदानी अर्थ हिन्दू धर्म से शुद्धीकरण समारोह के दौरान हुआ। समारोह में सिर्फ 50 मेहमान ही शामिल हुए। राजकुमारी इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो की तीसरी बेटी और देश की पांचवीं राष्ट्रपति मेघावती सुकर्णोपुत्री की बहन हैं। उनकी दादी न्योमन राय सिरिम्बेन भी एक हिंदू महिला थीं, जो बाली की रहने वालीं थीं। माना जाता है कि सुकमावती के ऊपर बचपन से ही हिंदू धर्म का काफी प्रभाव रहा है।
वे वर्षों से राम लीला और महाभारत आधारित नाटकों का मंचन करा रही थीं। उनके हिंदू धर्म में दीक्षित होने के समर्थन में पूरा राजपरिवार है। सुकमावती सुकर्णोपुत्री ने पहले भी कई हिंदू समारोहों में भाग लिया था और हिंदू धर्म में धार्मिक प्रमुखों के साथ बातचीत की है। हिंदू धर्म में वापसी के उनके फैसले को उनके भाइयों, गुंटूर सोएकर्णोपुत्र, और गुरु सोएकर्णोपुत्र, और बहन मेघावती सुकर्णोपुत्री का समर्थन मिला है। वहीं, उनकी धर्म वापसी के फैसले का उनके पुत्र मोहम्मद ने भी स्वागत किया है।
इससे पूर्व जावा की एक राजकुमारी कंजेंग रादेन अयु महिंद्रनी कुस्विद्यांती परमासी भी 17 जुलाई, 2017 को बाली में सुधा वदानी संस्कार से हिंदू धर्म में दीक्षित हो चुकी हैं। राजकुमारी महिंद्रनी एक निपुण पियानोवादक और संगीतकार भी हैं।
जिहादियों की लाख कोशिश के बाद भी प्राचीन जावा सुमात्रा की धरती पर भारत की संस्कृति की जड़ें बिखरी पड़ी हैं। राजकुमारी का हिन्दू धर्म मे दीक्षित होना परंपरा और अपनी देशज संस्कृति को सहेजने की प्रक्रिया का हिस्सा है। आज इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है।
सनातन संस्कृति से ओतप्रोत था इंडोनेशिया
इंडोनेशिया में पहले हिंदू धर्म ही प्रचलित था। तब इसे जावा और सुमात्रा द्वीपों के नाम से जानते थे। यह भारत की तरह सनातन संस्कृति से ओत-प्रोत था। यहां से निकले अवशेष और प्राचीन दस्तावेज इस बात का जीता-जागता सबूत हैं। चीनी यात्री फाह्यान ने भी अपने लेखों में इसका जिक्र किया है। जावा के शासक ऐरलंग के लेख से पता चलता है कि वह अपनी रानियों के साथ राजसभा में बैठता था। इसी प्रकार विष्णुवर्धन के बाद उसकी पुत्री ने शासन चलाया था। स्त्रियों को पर्याप्त स्वतन्त्रता थी। भारतीय महिलाओं के समान उन्हें भी अपना पति चुनने का अधिकार था। विवाह को यहां भी भारत के समान एक पवित्र धार्मिक संस्कार माना जाता था। समाज के लोगों की वेश-भूषा भी भारतीयों जैसी ही थी।
जावा के साहित्य पर भारतीय असर
जावा के नरेश विद्वान् एवं विद्वानों के आश्रयदाता होते थे। वहां के साहित्य पर कालिदास का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। जावा के निवासियों ने न केवल संस्कृत का अध्ययन किया, अपितु भारतीय साहित्य के आधार पर अपना एक विस्तृत साहित्य निर्मित किया जिसे इण्डो-जावानी साहित्य कहा जाता है। लगभग पांच सौ वर्ष तक इस साहित्य का विकास होता रहा। जावा में महाभारत के आधार पर अनेक गुच्छों की भी रचना हुई जिनमें अर्जुनविवाह, भारतयुद्ध, स्मरदहन, आदि उल्लेखनीय हैं। भारतीय स्मृति तथा पुराणों पर आधारित अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया गया। चातुर्वर्ण के व्यवसायों का उल्लेख भी कई लेखों तथा ग्रन्थों में मिलता है।
13वीं सदी के आखिर में छाया इस्लाम
इंडोनेशिया के लोग अपने राजा को विष्णु का अवतार या ईश्वर मानते थे। वह जैसा करता था, जैसे जीता था, रहता था, उसी का अनुसरण करते थे। समाज धन-धान्य और धर्म-संस्कृति से संपन्न था। वहां पर चारों दिशाओं से वस्तु और विचार पहुंच रहे थे। फलत: भूमध्य सागरीय कुविचार और मानसिकता लेकर व्यापारी के वेश में जिहादी भी पहुंच गए। वे जावा और सुमात्रा की खूबसूरत युवतियों से विवाह करने लगे। इस्लामी व्यापारी जमीन और युवतियों पर कब्जा करने लगे, क्योंकि समाज संगठित नहीं था तो विरोध भी संगठित नहीं हुआ। फिर भी आम इंडोनेशियाई लोग 13वीं शताब्दी तक इस्लाम से दूरी बनाए हुए थे। जिहादियों ने राज परिवार में सेंध लगाना शुरू किया और राज परिवारों की महिलाओं से शादी करना प्रारम्भ किया।
कई स्थानीय रियासतों की राजकुमारियां उनके झांसे में आईं। परन्तु मुख्य राजपरिवार की राजकुमारी से विवाह करके ही समस्त प्रजा को इस्लाम के लिए प्रेरित किया जा सकता था। अंतत: एक मुस्लिम व्यापारी ने सुमात्रा द्वीप की एक मुख्य रियासत समुंदर पसाई, जिसकी राजधानी गंग्गा नगर था, की राजकुमारी से विवाह कर लिया। इसी राजकुमारी के माध्यम से इंडोनेशिया में 1267 ई. में इस्लाम आया। उसके पिता महाराज मारू सीलु महाराज और उनकी पत्नी भी मुसलमान हो गए। यह राजा स्थानीय असेही मूल का था जिनकी आबादी 80-90 प्रतिशत थी और धीरे-धीरे पूरी जनता इस्लाम मजहब अपनाने लगी।
पुजारी की भविष्यवाणी का किस्सा
इंडोनेशिया में प्रचलित और कल्पवृक्ष में वर्णित कहानी के मुताबिक, तत्कालीन पुजारी शब्दपालन ने राजा के दरबार में कहा था कि, ''मैं जावा की जमीन पर देश की रानी और सभी डांग-हयांग (देव और आत्मा) का सेवक हूं और मेरे पूर्वज विकु मनुमानस, सकुत्रम और बबांग सकरी से लेकर हर पीढ़ी के सदस्य जवानीस (जावा के) राजाओं के सेवक रहे हैं।
अब तक दो हजार साल से ज्यादा बीत चुके हैं और उनके धर्म में कोई बदलाव नहीं आया। लेकिन अब, जब राजा अपना पंथ बदल रहा है, तो मैं यहां से लौट रहा हूं। 500 साल के बाद मैं यहां पर वापस हिंदू धर्म को लाऊंगा''। उन्होंने राजा के सामने भविष्यवाणी की कि, ''महाराज! अगर आप इस्लाम को अपनाते हैं, तो आपके वंश का नाश हो जाएगा और जावा में रहने वाले लोग धरती को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे और यहां के लोगों को इस द्वीप को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा''।
दिलचस्प बात यह है कि, 1978 में इंडोनेशिया में फिर से मंदिरों का बनना शुरू हो गया और देश में जीर्ण-शीर्ण हो चुके मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम फिर से शुरू हो गया। जावा में रहने वाले हजारों मुसलमानों ने फिर से हिंदू धर्म को अपनाना शुरू कर दिया।
आज का इंडोनेशिया और हिंदू
इंडोनेशिया एक मुस्लिम बहुल आबादी वाला देश है। इसके बावजूद यहां पर हिंदू धर्म की जड़ें काफी गहरी हैं। वर्ष 2018 की जनगणना के मुताबिक यहां पर हिंदुओं की आबादी 2 प्रतिशत से भी कम है। इस देश में सबसे अधिक हिंदू बाली में रहते हैं। यहां पर आधिकारिक रूप से घोषित किया गया छठा धर्म हिंदू ही है। आज भी यहां रामायण का मंचन होता है। यहां पर रहने वाली हिंदुओं की जनसंख्या की दृष्टि से यह विश्व का चौथा ऐसा देश है जहां हिंदुओं की अधिक जनसंख्या है। इसमें पहले नंबर पर भारत, दूसरे पर नेपाल और तीसरे पर बांग्लादेश का नाम आता है।
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