उत्तराखंड की पहाड़ी सड़के हर साल 900 से ज्यादा लोगों की जान ले रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2016 से अब तक यहां 5028 लोगों की मौत हो चुकी है। पहाड़ की सड़कें जानलेवा साबित हो रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खराब फिटनेस वाले वाहनों का पहाड़ों पर चलना, खतरनाक मोड़, शराब पीकर गाड़ी चलाना, ओवर लोडिंग की वजह से हादसे हो रहे हैं। एक हफ्ते पहले भी त्यूणी में जीप के खाई में गिर जाने से 13 लोगों की मौत हो गई थी। जीप में 7 लोगों के बैठने की जगह थी, जबकि उसमें 13 लोग बैठे थे।
पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के अनुसार 2016 से अब तक उत्तराखंड में 7982 दुर्घटनाओं में 5028 लोगों की जान जा चुकी है।
- 2016 में 1591 दुर्घटना 962 मौतें
- 2017 में 1603 दुर्घटना 942 मौतें
- 2018 में 1468 दुर्घटना 1047 मौतें
- 2019 में 1393 दुर्घटना 886 मौतें
- 2020 में 1041 दुर्घटना 674 मौते
- 2021 में 876 दुर्घटना में 674 मौतें
उत्तराखंड में लोक निर्माण विभाग के 576 स्थल ऐसे हैं, जो दुर्घटना संभावित क्षेत्र हैं। इनको सही करने या इन्हें एक्सिडेंटल एरिया जोन की सूची से निकालने के लिए प्रशासन की ओर को कोई कार्य नहीं किया गया है। बताया जा रहा है कि वाहनों के फिटनेस पर आरटीओ ध्यान नहीं दे रहा हैं। ओवर लोडिंग को कंट्रोल करने और शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करने पर इन हादसों से बचा जा सकता है। चकराता त्यूणी मसूरी मार्ग, चमौली लासी मार्ग, गोपेश्वर-घिघ्रण, घाट-रामणी मार्ग ऐसे खतरनाक मार्ग हैं, जिनमें आये दिन हादसे हो रहे हैं। हर रोज तीन लोग पहाड़ों पर एक्सीडेंट में मर रहे हैं, जो कि चिंताजनक है।
सड़क हादसों के आंकड़े रखने वाले अनूप नौटियाल का कहना है कि हजारों करोड़ रु हम सड़कों के निर्माण में लगा रहे हैं, लेकिन हादसों को कम करने के लिए बजट जारी नहीं करते। पहाड़ की कई सड़कों पर पैराफिट नहीं है, सड़कों पर पहाड़ के लोग मर रहे हैं घर के चिराग बुझ रहे हैं। इधर पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार कहते हैं कि सड़क हादसों पर रोक लगाने संबंधित सुझाव PWD को भेजे गए हैं। परिवहन विभाग से भी कहा गया है, पुलिस विभाग भी अपना काम कर रहा है।
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