सोना भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था का ऐसा विषय है, जिस पर कभी भी चर्चा हो सकती है। दीवाली के ऐन पहले धनतेरस पर क्या खरीदा जाएगा- सोना। अक्षय तृतीया पर क्या खरीदा जाएगा – सोना। सोना भारतीय चेतना में प्रविष्ट है, सिर्फ वित्तीय निवेश के स्तर पर नहीं, सामाजिक रिश्तों में निवेश के स्तर पर भी। ‘बेटी के ब्याह में कितना सोना दिया’ या ‘बहू को कितना सोना दिया’ जैसे सवाल बहुत सहज सवाल हैं भारतीय सामाजिक संदर्भों में। सोना हाल में कई कारणों से चर्चा में रहा।
मोटे तौर पर सोने के भाव एक साल में गिरे ही हैं – करीब 6 प्रतिशत। इस अवधि में मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक सेंसेक्स करीब 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की उछाल दर्ज कर चुका है। सोना गिर गया और सेंसेक्स उछल गया— इससे सिर्फ यह साबित होता है कि सोने को लेकर जो मांग और तेजी दिखाई दे रही थी, वह अब कम हो गई है। अब कोरोना के बाद हालात बेहतर हो रहे हैं। कारोबार जगत की हालत सुध रही है। इसलिए कारोबार और कंपनियों में निवेश जा रहा है।
अनिश्चितता का निश्चित निवेश
सोने की कीमतें तब आसमान छूती हैं, जब अनिश्चितता का माहौल होता है। कोरोना वायरस की वजह से विश्व में एक समय भीषण अनिश्चितता का माहौल था। कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू तो चीन से हुआ, पर इसकी चपेट में धीरे-धीरे पूरी दुनिया आ गई। भारतीय उद्योग जगत भी इसकी चपेट में आया।
ऐसी सूरत में अनिश्चितता और खौफ के चलते तमाम निवेशक शेयर आदि से अपनी रकम निकालकर सोने में डालना शुरू करते हैं। सोने को लेकर एक बात बिल्कुल पक्की है, यह अनिश्चितता के दौर में सबसे महत्वपूर्ण निवेश माध्यम है। इसकी अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता है। अनिश्चितता, तनाव, युद्ध की स्थितियों में सोने के भाव इसीलिए ऊपर उठते हैं। एक दुर्लभ धातु होने से सोना पहले ही महत्वपूर्ण रहा और इसके चिकित्सकीय उपयोग होने से आयुर्वेदिक दवाओं और स्त्रियों के आभूषण बनाने के लिए इसका उपयोग होता आया है। इससे सदियों से इसका मौद्रिक महत्व है। मुद्रा का चलन होने के बाद केंद्रीय बैंक सोने को खरीदकर अपने भंडार में रखते हैं। जिस केंद्रीय बैंक के पास सोने का जितना ज्यादा भंडार होगा, उसकी स्थिति उतनी ही मजबूत मानी जायेगी इसीलिए इसके प्रति इस कदर आकर्षण है कि लोग इसमें रकम लगाते हैं। इस वजह से इसका वैश्विक आकर्षण है। तो कुल मिलाकर सोने की ठोस उपयोगिता को लेकर भले ही बहस होती रहे, पर इसकी निवेशीय महत्ता को लेकर कोई शक नहीं होना चाहिए। खास तौर पर संकट, अनिश्चितता, तनाव के वक्त तो सोने के भाव आसमान छूते हैं। पर अनिश्चितता कभी ना कभी तो खत्म होना ही है।
बढ़ता टीकाकरण और सोने की कमजोरी
हाल के वक्त में सोने के भाव कमजोर हुए हैं। एक साल के हिसाब-किताब से करीब छह प्रतिशत की गिरावट है और साल की शुरुआत से लेकर अब तक सोने के भावों में करीब पांच प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। कोरोना टीकाकरण की स्थिति जैसे-जैसे मजबूत हो रही है, वैसे-वैसे सोने के भाव कम हो रहे हैं, वजह साफ है कि अर्थव्यवस्था में निश्चितता आ रही है। कोरोना टीकाकरण के मामले में भारत ने 100 करोड़ का ऐतिहासिक मुकाम हासिल कर लिया है। फिलहाल भारत की 18+ आबादी का 74.9 प्रतिशत कम से कम एक खुराक ले चुका है और 18+ आबादी का 30.9 प्रतिशत पूरी तरह टीकाकृत हो चुका है। इन आंकड़ों का रिश्ता सिर्फ और सिर्फ सेहत से नहीं है, बल्कि इन आंकड़ों का रिश्ता देश की अर्थव्यवस्था से भी है।
इधर खबरें आ रही हैं कि हवाई जहाज और हवाई अड्डे भरे-भरे से हो गये हैं। भीड़ फिर से जुटने लगी है। लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं, दूसरे शहर, दूसरे देश जा रहे हैं। इस आवाजाही के पीछे एक हिम्मत और आश्वस्ति है, वह है टीकाकरण की आश्वस्ति। जिन लोगों को दोनों ही खुराक लग चुकी हैं, टीके की, वे जाहिर हैं बहुत आश्वस्त हैं और इसलिए दूसरे शहर का पर्यटन भी कर रहे हैं और शापिंग माल में भी जा रहे हैं।
शापिंग माल में जब वे जाएंगे, तो जाहिर है, वहां के रेस्तकांओं का कारोबार भी बेहतर होगा। पर्यटन के लिए जिस शहर में जाएंगे, उस शहर के होटलवाले, बस वाले, आटो वाले भी कुछ कमा जाएंगे। इस तरह से सेवा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को एक नया सहारा मिलेगा, जो कोरोना के कहर में डूबी पड़ी थी। इससे अर्थव्यवस्था में अब आश्वस्ति का भाव आ रहा है। आश्वस्ति का भाव जब अर्थव्यवस्था और समाज में होता है, तो सोने की मांग सामान्य होती है, हाहाकारी नहीं। जाहिर है कि तब इससे हासिल कमाई भी बहुत जबरदस्त नहीं होगी। उधर जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था मजबूती की ओर जाती है, शेयर बाजार ऊपर की ओर जाता है।
सोना बनाम 60,000 पार का सेंसेक्स
24 सितंबर, 2021 भारतीय शेयर बाजार के लिए ऐतिहासिक दिन सिर्फ इसलिए नहीं है कि इस दिन मुम्बई शेयर बाजार कासूचकांक सेंसेक्स तब तक के सबसे ऊंचे स्तर यानी 60,048.47 बिदु पर बंद हुआ। यह ऐतिहासिक इसलिए भी है कि एक हजार के बिंदु से तीस हजार बिंदु तक का सफर तय करने में सेंसेक्स को करीब 25 साल का वक्त लगा परंतु 30 हजार से 60,000 का सफर सेंसेक्स ने करीब छह साल में तय कर लिया। इससे पता चलता है कि इन छह साल में सेंसेक्स ने तूफानी रफ्तार दिखाई। पर यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि कोरोना से ग्रस्त सेंसेक्स मार्च 2020 में 26,000 बिंदुओं पर धराशायी था यानी करीब अठारह महीनों में ही सेंसेक्स दुगुने से ज्यादा के स्तर पर पहुंच गया।
यानी जो निवेशक मार्च 2020 में डरकर बेच रहे थे, वे अब पछता रहे होंगे, जो निवेशक मार्च 2020 के बाजार में हिम्मत से साथ जमे रहे, वे अब खुश होंगे। शेयर बाजार अनिश्चितता का कारोबार है। इस अनिश्चितता को झेलने के लिए कलेजा चाहिए। पर एक आम निवेशक के पास वह कलेजा और ज्ञान दोनों ही नहीं होता। इसलिए सोने को अज्ञानियों का भी निवेश माना जाता है। जिसे कुछ ना आता हो, वह सोने में निवेश कर दे, रकम डूबने के आसार कम हैं लंबी अवधि में। यह अलग बात है कि बहुत ज्यादा रिटर्न मिलने के आसार भी खास नहीं हैं।
वित्तीय निवेश के तौर पर सोना
जिन निवेशकों ने सोने में रकम लगाई है, दस साल में उनका रिटर्न 4.73 प्रतिशत सालाना रहा है। सात साल में यह रिटर्न सालाना करीब सात प्रतिशत का रहा है। पांच साल में बेहतर हुआ है और यह रिटर्न सालाना 8.35 प्रतिशत का रहा है। तीन साल में सोने ने 13.41 प्रतिशत सालाना रिटर्न दिया है। पर एक साल का रिटर्न तो बहुत खराब रहा है – करीब छह प्रतिशत का घाटा। यानी कुल मिलाकर पिछले दस साल से सोने में निवेशित रहने वाले निवेशक सिर्फ 4.73 प्रतिशत सालाना का रिटर्न हासिल कर पाये हैं। यह आकर्षक रिटर्न नहीं है। पर सोना बहुत आकर्षक रिटर्न की गारंटी इसलिए भी नहीं देता कि इसमें निवेश की प्रकृति अलग है। अगर किसी कंपनी के शेयर में निवेश किया जाए, तो वह कंपनी उस निवेश को आगे कारोबार में लगाती है। कारोबार से बिक्री बढ़ती है और लाभ बढ़ता है।
लाभ बढ़ते ही शेयर की कीमत बढ़ जाती है। किसी भी इलाके, कारोबार या शेयर की कीमत बढ़ जाती है, अगर उससे जुड़ी कमाई की संभावनाएं बढ़ जाती हैं तो। कारोबार यानी लाभ की संभावनाएं, पर सोने के साथ ऐसा कोई कारोबार नहीं जुड़ा। इस धातु की मांग तो सिर्फ इसलिए है कि भारत में कई स्त्रियों की इसकी चाहत है और दुनिया भर के केंद्रीय बैंक इसे इस विश्वास पर खरीदते हैं कि इसकी वैल्यू बनी रहेगी। स्वर्ण पर एक जन अटूट विश्वास है, जो सदियों से चला रहा है। सोना तब भी मूल्यवान था, जब शेयर का नाम तक किसी ने नहीं सुना था। जब कंपनी नामक कारोबारी संगठन का आविष्कार भी नहीं हुआ था, तब भी सोना मूल्यवान था। पर मूल्यों में बढ़ोतरी कारोबारी संभावनाओं से आती हैं, जो कंपनियों के पास होती हैं, शेयरों में निहित होती हैं। इसलिए बहुत समझदार किस्म के लोग सोने में बहुत ज्यादा निवेश नहीं करते।
सोना यानी सामाजिक निवेश
पर सोना सिर्फ वित्तीय निवेश नहीं है। सोना सामाजिक निवेश भी है। हर शादी में सोने की मौजूदगी जरूरी है। बिटिया को स्वर्ण का कुछ तो दिया ही जाना चाहिए, यह कुछ कितना हो, यह आर्थिक हैसियत के हिसाब से बदल जाता है, पर सोना तो दिया ही जाना चाहिए शादी में, ऐसी मान्यता लगभग हर भारतीय परिवार में है। तो इसे अगर सामाजिक कारणों से खरीदा जाए, तो फिर उसकी कीमतें देखने का कोई अर्थ नहीं है। अगर किसी को सोने में वित्तीय निवेश करना है, तो यह बेहतरीन रिटर्न देने में असमर्थ है, मध्यम अवधि में। हां! यह है कि सोने में निवेश सुरक्षित अवश्य है।
तो सामाजिक निवेश के इच्छुकों को इसमें निवेश करना चाहिए, बगैर भावों को देखे। परंतु वित्तीय निवेश करने वालों को, इससे कमाने की इच्छा रखनेवालों को जरूर सावधानी बरतनी चाहिए। कुल मिलाकर स्वर्ण लेकर एक संतुलित रुख अपनाना जरूरी है। इसमें ही सारी रकम लगा देना ठीक नहीं है और बिल्कुल उपेक्षित करके छोड़ऩा भी ठीक नहीं है। निवेशकों को अपने निवेश योग्य संसाधनों का एक हिस्सा सोने में या सोने से जुड़े निवेश माध्यमों में जरूर लगाना चाहिए। और उस हिस्से से जल्द बहुत ज्यादा रिटर्न की उम्मीद करने के बजाय उसे अपनी पूंजी की सुरक्षा मानना चाहिए।
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