गुजरात के वडोदरा में पिछले सात साल से कुछ युवा एक अनूठा कार्य कर रहे हैं। यह कार्य है पुराने कपड़ों, खिलौनों और अन्य वस्तुओं का संग्रह करना और उन्हें बेचकर गरीब बच्चों की मदद करना। उल्लेखनीय है कि दीपावली से पहले लोग प्राय: घर के पुराने वस्त्र, खिलौने, जूते, फर्नीचर और अन्य वस्तुएं या तो फेंक देते हैं या फिर किसी गरीब को दान दे देते हैं। अधिकतर लोग तो इन्हें कूड़े में डाल देते हैं। इस कारण कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं। शहरों में कूड़ों के पहाड़ खड़े रहे हैं।
पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। इन सबको देखते हुए वडोदरा में एक व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान चलाने वाले 37 वर्षीय व्रजेश पटेल और उनके साथियों ने इन वस्तुओं से गरीबों की मदद करने पर विचार किया। इसके बाद इन लोगों ने ‘खुशियों की अलमारी’ नाम से 2007 में एक संगठन बनाया। उन्होंने यह भी तय किया कि दीपावली से पहले वडोदरा में जितनी भी पुरानी चीजों को लोग घर से बाहर करेंगे उन्हें इकट्ठा करेंगे। इसके लिए शहर की विभिन्न कॉलोनियों में दीपावली से पहले एक जगह तय की गई और लोगों से आग्रह किया गया कि वे जो कुछ भी घर से बाहर फेंकने वाले हैं, उसे कूड़ेदान में न डालकर अमुक स्थान पर रख दें। उनके इस निवेदन का असर हुआ।
लोगों ने उन जगहों पर रखे पात्रों में ही अपने पुराने सामान को रखना शुरू किया। हालत यह हो गई कि हर दिन पात्र भरने लगे और संस्था को प्रतिदिन खाली पात्र रखने पड़े। इस तरह एक सप्ताह में लाखों की संख्या में कपड़े और अन्य वस्तुएं जमा हो गर्इं। इसके बाद संस्था ने उन कपड़ों को धुलवाया और उनकी प्रदर्शनी लगाई। उसमें हर वस्तु 10 रु. में बेची गई। पहले ही वर्ष प्रदर्शनी में रखी गर्इं लगभग 90 प्रतिशत वस्तुएं बिक गर्इं। इससे जो पैसा जमा हुआ, उसे ‘अनंता एजुकेशन ट्रस्ट’ को दे दिया गया। यह ट्रस्ट गरीब बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में मदद करता है। व्रजेश पटेल ने बताया कि हर वर्ष लगभग 5,00,000 रु. का सामान बिकता है और पूरा पैसा ‘अनंता एजुकेशन ट्रस्ट’ को दे दिया जाता है। इससे गरीब छात्रों के लिए कपड़े, पुस्तकें, स्कूल बैग और अन्य सामान खरीदा जाता है।
‘खुशियों की अलमारी’ से जुड़े युवाओं में से अधिकतर उच्च शिक्षित हैं और कुछ न कुछ कारोबार करते हैं। इनमें कई तो विदेश में पढ़कर अपनी कोई कंपनी चलाते हैं। वडोदरा के लोग इन युवाओं की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हैं। इस कारण यह संस्था दिनोंदिन अधिक से अधिक जरूरतमंदों की सेवा कर पा रही है।
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