छत्तीसगढ़ में बाघों की लगातार घटती संख्या पर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 8 हफ्ते में जवाब मांगा है। 4 साल पहले सूबे में बाघों की संख्या 46 थी, जो अब घटकर 19 हो गई है। लेकिन वन विभाग बेखबर है। आलम यह है कि बीते 12 वर्षों से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के दिशानिर्देशों का भी पालन नहीं किया जा रहा है।
राज्य में बाघों की घटती संख्या पर रायपुर के वन्यजीव प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की है। इसमें उन्होंने कहा है कि बाघों को संरक्षण देने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-2006 में नए प्रावधान जोड़े गए। इसके तहत बाघों और वन्यजीवों के संरक्षण, निगरानी और समन्वय के लिए विभिन्न स्तरों पर तीन वैधानिक समितियां गठित की जानी थी।
याचिकाकर्ता का कहना है कि मई 2008 में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली 14 सदस्यीय समिति के गठन की अधिसूचना जारी की गई्। हालांकि छत्तीसगढ़ में इन समितियों का गठन तो हुआ, लेकिन बीते 12 वर्षों के दौरान बैठक ही नहीं हुई। याचिकाकर्ता का कहना है कि सूबे में बाघों का शिकार हो रहा है और बाघों की संख्या लगातार घट रही है। 2014 में सूबे में जहां 46 बाघ थे, 2018 में उनकी संख्या घटकर 19 रह गई। इसके बावजूद कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। इस पर न्यायालय ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, राज्य के वन विभाग सचिव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक और सहित अन्य को नोटिस जारी कर 8 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।
और क्या है याचिका में?
याचिकाकर्ता का कहना है कि 2013 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने एक दिशानिर्देश जारी किया था। इसके तहत रैपिड रिस्पांस टीम गठित की जानी थी। इसके लिए सभी वनमंडलों को बजट भी जारी करने के साथ वन्यप्राणियों को बेहोश करने वाली विशेष बंदूक, दवाएं आदि भी खरीद ली गईं। साथ ही, तीन टाइगर रिजर्व अचानकमार, उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व और इंद्रावती टाइगर रिजर्व के लिए सार्वजनिक न्यास के तहत समितियां गठित कर इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई। खानापूर्ति के लिए इंद्रावती टाइगर रिजर्व में 2016 में और अचानकमार टाइगर रिजर्व में 2019 में पहली और अंतिम बैठक हुई, जबकि उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व में आज तक समिति की बैठक ही नहीं हुई।
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