बांग्लादेश में एक प्रमुख मानवाधिकार समूह, ‘आइन ओ सालिश केंद्रया’ एएसके मानवाधिकारों के उल्लंघन पर वार्षिक रिपोर्ट तैयार करता है, जिसमें हिंदू समुदाय और अन्य अल्पसंख्यक समूहों पर हमलों पर एक विशिष्ट अध्याय शामिल है। एएसके की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2013 से इस साल सितंबर के बीच हिंदू समुदाय पर 3,679 हमले हुए। हमलों में हिंदू समुदाय के 559 घरों और 442 दुकानों और व्यवसाय में तोड़फोड़ और आग लगाना शामिल था। इसी अवधि में हिंदू मंदिरों, मूर्तियों और पूजा स्थलों पर तोड़फोड़ और आगजनी के कम से कम 1,678 मामले सामने आए। इन घटनाओं में हिंदू समुदाय के 11 लोगों की मौत हुई है, जबकि 862 लोग घायल हुए हैं। 2014 में दो हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और चार अन्य का यौन उत्पीड़न किया गया। 2016, 2017 और 2020 में कम से कम 10 हिंदू परिवारों को उनके घर और जमीन से बेदखल कर दिया गया था।
एएसके ने नौ प्रिंट और आॅनलाइन समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार लेखों और अपने स्वयं के शोध के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है। कोमिला, फेनी, नोआखली और अन्य जिलों में हिंदू समुदाय पर हमले की हालिया घटनाओं को रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है। एएसके की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले नौ वर्ष में, हिंदू समुदाय ने 2014 में सबसे अधिक हमलों का सामना किया, जब उन्हें 5 जनवरी के बाद चुनाव के बाद की हिंसा में निशाना बनाया गया था। उस वर्ष 761 हिंदू घरों, 193 व्यवसायों और 247 मंदिरों और पूजा स्थलों पर हमला किया गया था। इनमें एक व्यक्ति की मौत हो गई।
पिछले वर्ष कोरोनावायरस महामारी के बीच 11 घरों और 3 प्रतिष्ठानों पर हमला किया गया। लेकिन मंदिरों में भी हिंसा देखी गई, जिसमें 67 को सांप्रदायिक हमलों का सामना करना पड़ा। 2016 में कम से कम सात हिंदू मारे गए, जो रिपोर्ट में शामिल नौ वर्ष में सबसे अधिक है। पुलिस ने कहा कि इनमें से कई हत्याएं एक 'आतंकवादी हमले' का हिस्सा थीं।
2019 और 2020 में हिंदू समुदाय के अलावा, अहमदिया संप्रदाय के 17 घरों और 4 प्रतिष्ठानों पर हमला किया गया, जिससे संप्रदाय के कम से कम 50 सदस्य घायल हो गए। रिपोर्ट के अनुसार, उपर्युक्त घटनाओं के अलावा, पिछले आठ वर्ष और नौ महीनों में बौद्ध समुदाय पर भी चार हमले हुए हैं।
कॉक्स बाजार के रामू में 29 सितंबर, 2012 को केंद्रीय सीमा विहार या केंद्रीय मठ और बौद्ध समुदाय के घरों को एक गंभीर हमले में जला दिया गया था। हमले के दौरान 250 से अधिक दुर्लभ बुद्ध मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया था और लूट लिया गया था। रामू और उखिया में 18 अन्य मठों और बौद्ध घरों पर हमला किया गया और आगजनी की गई। चूंकि ये घटनाएं 2012 में हुई थीं, इसलिए ये एएसके रिपोर्ट में शामिल नहीं हैं।
हिंसा का वास्तविक दायरा और भी बड़ा
बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के महासचिव एडवोकेट राणा दासगुप्ता ने कहा कि एएसके की रिपोर्ट गलत नहीं है, लेकिन 'हिंदू समुदाय पर की गई हिंसा का वास्तविक दायरा और भी बड़ा है। उन्होंने कहा, ‘पिछले 13 वर्षों में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की हजारों घटनाएं हुई हैं।’
राणा दासगुप्ता ने कहा कि ‘हम 90 के दशक से इन घटनाओं पर गौर कर रहे हैं। 1990 में जनरल इरशाद के शासन के दौरान अल्पसंख्यकों पर तीन दिन हमले हुए और 1992 में जब खालिदा जिया ने सरकार बनाई तो हिंदुओं पर 27 दिन हमले हुए। 2001 से 2006 तक बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी के पूरे शासन के दौरान भी अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया गया था। जब 2009 में अवामी लीग सत्ता में आई, तो हमें उम्मीद थी कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की कोई और घटना नहीं होगी। दुर्भाग्य से, 2011 से अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने की घटनाएं होती आ रही हैं। हम देख सकते हैं कि हाल की घटनाओं तक यह सिलसिला कैसे जारी रहा है। ये हमले वर्ष के दौरान कभी भी हो जाते हैं।’
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