डॉ. सोनाली मिश्र
कुछ समय पूर्व तक भारत का हिस्सा रहा बांग्लादेश इन दिनों हिन्दुओं के लिए नरक समान बन गया है। हिन्दुओं पर अफवाह तंत्र के आधार पर जिहादी तत्व हमला कर रहे हैं, साथ ही असंख्य पूजा-पंडालों को तोड़ रहे हैं। एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं बल्कि दसियों वीडियो सोशल मीडिया पर हिन्दुओं की इस पीड़ा को व्यक्त करने के खुद को अपर्याप्त पा रहे हैं। कुछ शब्द तो ऐसे हैं, जो हिन्दुओं को बरसों तक दुखी और आक्रोशित करते रहेंगे।
वे शब्द साधारण नहीं हैं। वे वाक्य हर हिन्दू की आत्मा में जाकर धंसे हैं और जिस विवशता को बताते हैं, उसे अनुभव करना होगा। आत्मसात करना होगा उस पीड़ा को जो उन्हें उन्हीं की धरती पर अवांछित बनाने के भाव से उपजी है। जो इस भाव से उपजी है कि उन्हें उस धरती से समूल मिटाने के लिए हर प्रकार के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं, जहां उनके पुरखे रहते आए थे। जो भूमि उनके देवी-देवताओं की भूमि है।
एडवोकेट डॉ. गोविंदचद्र प्रमाणिक का ट्वीट
ये शब्द हैं अगर बांग्लादेश के मुस्लिमों को पूजा पसंद नहीं है, तो हम नहीं करेंगे, पर हमले रोके जाएं, हमें कम से कम जिन्दा तो रहने दिया जाए! ये शब्द पूरे विश्व को और सम्पूर्ण मानवता को झकझोरने के लिए पर्याप्त होने चाहिए। आखिर उन्हें जिंदा रहने का भी अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा है? बांग्लादेशी हिन्दुओं का दोष क्या है?
मूर्तियां तोड़ी क्यों गईं?
सबसे पहले मामले को जानें। मामला यह है कि कमिला में एक पंडाल में कुरआन के कथित अपमान की अफवाह फैल गई और देखते ही देखते यह अफवाह इतनी तेजी से फैली कि केवल ननुआ दिघी के तट पर पूजा-पंडाल को ही नहीं तोड़ा गया, बल्कि चांदपुर, चट्टोग्राम, चपैनवाबगंज और कॉक्स बाजार के पेकुआ में हिंदु मंदिरों पर हमला कर दिया गया। इतनी हिंसा फैली कि बांग्लादेश हिन्दू यूनिटी काउंसिल ने ट्वीट करके कहा कि हम एक ट्वीट में बता ही नहीं सकते कि पिछले 24 घंटों में क्या हुआ है। बांग्लादेश के हिन्दुओं ने कुछ लोगों का असली चेहरा देखा है और हम नहीं जानते कि भविष्य में क्या होगा। मगर बांग्लादेश के हिन्दू कभी भी दुर्गा पूजा 2021 को नहीं भूलेंगे।
यह एक ऐसा ट्वीट था जिसमें 13 अक्तूबर को जो हुआ, और जो हो रहा था, और जो होने वाला था, उन सभी की आशंकाएं समाई हुई थीं। एक सुनियोजित अफवाह पर हिन्दुओं पर हमलों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया गया, और मामला इस सीमा तक बढ़ गया था कि पुलिस भी नियंत्रित नहीं कर सकी। पंडाल उजड़ते रहे, मूर्तियां टूटती रहीं और हिन्दू घायल होते रहे, यहां तक कि तीन हिन्दू मारे भी गए।
एडवोकेट डॉ. गोबिंद चन्द्र प्रमाणिक के ट्विटर हैंडल से पता चलता है कि मरने वालों में एक मालिक साहा था, जो बांग्लादेश नेशनल हिन्दू यूथ ग्रांड अलायंस की चांदपुर जिला शाखा का पब्लिसिटी सेक्रेटरी था।
बांग्लादेशी हिन्दुओं की व्यथा और पीड़ा दर्शाने वाला एक और ट्विटर हैंडल, स्टोरीज आॅफ बंगाली हिंदूज ने भी इस पूरे घटनाक्रम के विषय में पूरे विश्व को अवगत कराया है और जिहादी चेहरे को स्पष्ट रूप से दिखाया है। और धीरे-धीरे यह पता चल रहा है कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र ही था।
निरंतर घट रही हिन्दू जनसंख्या
वैसे भी बांग्लादेश में हिन्दू कब तक बने रहेंगे, इस पर भी चर्चा होनी चाहिए। क्योंकि बांग्लादेश में हिन्दुओं की जनसंख्या लगातार कम होती जा रही है। ढाका विश्वविद्यालय में शिक्षक बरकत ने अपनी पुस्तक ‘पॉलिटिकल इकोनॉमी आॅफ रीफॉर्मिंग एग्रीकल्चर-लैंड-वाटर बॉडीज इन बांग्लादेश’ में वर्ष 2016 में बताया था कि पिछले 49 वर्षो में बांग्लादेश से हिन्दुओं का जो पलायन हुआ है, वह यही संकेत करता है कि आने वाले 30 वर्षों में बांग्लादेश में एक भी हिन्दू शेष नहीं रहेगा।
हिन्दू नरसंहार कोई नया परिदृश्य नहीं
दरअसल बंगाली हिन्दुओं के साथ नरसंहार आज की बात नहीं है। यह तो नोआखाली से आरम्भ हुआ था। 1946 में जो नोआखाली में हुआ था, उसमें भी सड़कों पर हिन्दुओं की लाशों के ढेर लग गए थे। हजारों की संख्या में हिन्दू जिहादी मानसिकता वाले दंगों का शिकार हुए थे।
बांग्लादेश की हिन्दू जनसंख्या में दो अवधियों में बहुत तेजी से कमी देखी गयी। एक बार 1947 में देश के विभाजन के दौरान और उसके उपरान्त 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान। हालांकि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद भी हिन्दुओं की स्थिति में परिवर्तन नहीं आया, वे पलायन ही करते रहे। जहां 1940 में यह 28% के लगभग थी तो वहीं वर्ष 2011 में वह घटकर मात्र 8.96% रह गयी थी।
1970 के दशक में बांग्लादेश में हुए हिन्दुओं के नरसंहार ने पूरे विश्व को हतप्रभ कर दिया था। पूर्वी पाकिस्तान अर्थात बांग्लादेश में पाकिस्तान से मुक्ति को लेकर जो अभियान चल रहा था, उसमें पाकिस्तानी सेना का शिकार वहां के हिन्दू हो रहे थे। एक प्रश्न यह भी अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय उठाता है कि क्या हिन्दुओं को ही जान-बूझकर निशाना बनाया गया था?
25 मार्च, 1971 की रात को ही ढाका विश्वविद्यालय में हजारों हिन्दू विद्यार्थियों की हत्या कर दी गई थी। आॅपरेशन सर्चलाईट के दौरान न्यूयॉर्क टाइम्स (3/28/71) के अनुसार 10,000 लोग मारे गए थे तो वहीं न्यूयॉर्क टाइम्स (3/28/71) के अनुसार ढाका में 5 से 7 हजार लोग मारे गए थे।
हिन्दू पुरुष मुख्य निशाना थे। रिटायर्ड पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी कर्नल नादिर अली ने कहा था कि उन्हें आदेश दिया गया कि यह मुजीब का होम डिस्ट्रिक्ट है, जितने लोगों को मार सकते हैं, मारें और यह तय किया जाए कि एक भी हिन्दू जिंदा न बचे।’ उस दौरान जो हिन्दुओं के साथ हुआ, वह सिलसिला आज तक थमा नहीं है।
तसलीमा नसरीन की लज्जा
बांग्लादेश की सुप्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन की पुस्तक लज्जा से भी बांग्लादेश में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों का विवरण प्राप्त होता है। बाबरी ढांचे के टूटने के बाद जिस प्रकार वहां पर हिंसा का एक नया दौर आरम्भ हुआ था, उसका विस्तृत वृत्तांत लज्जा उपन्यास में दिया गया है।
पीड़ित को प्रताड़ित करने वाला हैशटैग
इतिहास में हुए नरसंहारों से होते हुए जब हम वर्तमान में आते हैं तो पाते हैं कि इन दिनों कथित धर्मनिरपेक्षता या सेकुलरिज्म के चलते हिन्दुओं का नरसंहार करने वालों को उनके कुकृत्यों से जैसे छूट मिलती जा रही है। ऐसा कई मामलों में हमने देखा है, विशेषकर गौ तस्करों के मामलों में, कि किस प्रकार अपराधियों को अपराध करने की छूट देने का निकृष्ट हठ करते हैं, कुछ कुबुद्धिजीवी या कहें आन्दोलनजीवी, जिनकी आजीविका ही किसी न किसी प्रकार का आन्दोलन है। और आम हिन्दू जहां अच्छे उद्देश्य के लिए आरम्भ किए गए आन्दोलन को पूजा जैसा आदर देता है, इस वर्ग ने पूजा को ही अपने आन्दोलन के लिए प्रयोग कर लिया। इस वर्ग को हम पूजा आंदोलनजीवी नाम से पुकार सकते हैं जिसने दुगार्पूजा को हिन्दुओं से अलग करके हिन्दुओं के विरोध में ही दुर्गा पूजा का प्रयोग करने का पाप किया।
आयातित विचार, छद्म श्रेष्ठताबोध
इस हैशटैग को चलाने वालों का ट्विटर प्रोफाइल जब खंगाला तो एक ऐसा वर्ग उभर कर आया जिसके मन में हिन्दू होने के प्रति घृणा और आत्महीनता है और स्वयं को एक ऐसा कथित हिन्दू बताने की उत्कंठा है, जो केवल ऊपरी हिन्दू है, भीतर से नहीं, और जिसके लिए दुर्गा मां हिन्दू धर्म नहीं, बल्कि कोई ऐसा प्रतीक हैं, जिनका प्रयोग वह अपनी राजनीतिक पहचान वाली कुंठा को तुष्ट करने में कर रहा है।
इस वर्ग को भाजपा से तो घृणा है ही, विकास से भी घृणा है। छद्म हिन्दू नाम वाले इन पूजा आन्दोलनजीवियों ने एक ट्रेंड चलाकर चौदह सौ वर्ष से मंदिरों को तोड़ने वाले कट्टर इस्लामी जिहादी तत्वों को प्रश्रय ही प्रदान नहीं किया बल्कि हिन्दू, उनके मंदिरों के प्रति असहिष्णुता और अस्वीकार्यता को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान कर दिया।
स्टोरीज आॅफ बंगाली हिंदूज ने सही लिखा है कि “#DurgaPuja4All”व एक क्रूर मजाक से बढ़कर और कुछ नहीं है। कई एकाउंट्स, जिन्होंने इस हैशटैग का बहुत गंभीर होकर प्रयोग किया, उन्होंने हिन्दुओं के साथ अन्याय किया है। उन्होंने हमारे लोगों पर इतने वर्षों तक हर वर्ष हुए हमलों और तोड़फोड़ एवं धार्मिक हमलों के पापों को धो दिया है। हमें एक भी वर्ष ऐसा नहीं दिखता, जब हमने बिना हमले के कोई पूजा की हो।
यह दर्द केवल एक हैंडल का दर्द नहीं था, बल्कि कई हिन्दुओं ने इसी पीड़ा को व्यक्त किया। दरअसल इन राजनीतिक पूजा आन्दोलनजीवियों ने स्वयं को ही बंगाली हिन्दुओं के रूप में प्रस्तुत किया और एक ऐसी छवि का निर्माण किया जैसे वही सम्पूर्ण बंगाली हिन्दू समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हों और अपनी राजनीतिक कुबुद्धि से उपजे इसी झूठ पर बार-बार बल दिया कि दुर्गा पूजा को मात्र हिन्दू धर्म से जोड़कर न देखा जाए।
प्रश्न यह उठता है कि भाजपा और आरएसएस के प्रति घृणा के चलते क्या हिन्दू धर्म को जिहादियों के आगे लाचार बनाकर पेश कर देना ही इस वर्ग का अंतिम लक्ष्य है और भाजपा एवं हिन्दुओं के प्रति घृणा के चलते वह हिन्दुओं को उनके वास्तविक शत्रुओं को पहचानने नहीं दे रहा है, या कहें, उन्हें उन लोगों की गोद में ले जाकर बैठा रहा है, जिनका अंतिम लक्ष्य एक-एक हिन्दू की हत्या करना है।
जूतों से सजाया गया मां का पंडाल
वे इस हैशटैग के माध्यम से दुर्गा पूजा को ऐसा पर्व घोषित कर रहे हैं, जिसका धर्म से तो लेना-देना है ही नहीं और जो उत्तर भारत और बंगाल में भिन्न है। पूजा पद्धति में भिन्नता हो सकती है, परन्तु मूल में कैसे भिन्नता हो सकती है? कैसे उस इतिहास से दुर्गा पूजा पृथक हो सकती है, जो सम्पूर्ण हिन्दू धर्म में एक ही है? कैसे महिषासुर मर्दिनी उत्तर भारत के लिए अलग हो सकती हैं और बंगाल के लिए अलग?
क्या यह समझा जाए कि “#DurgaPuja4All” हैशटैग के माध्यम से मां दुर्गा को इस गंदी राजनीति में घसीटा गया और उनका प्रयोग उत्तर भारत के प्रति घृणा उत्पन्न करने के लिए किया गया? जब वे लोग उत्तर भारत के हिन्दुओं को यह कहकर पिछड़ा बता रहे थे कि उत्तर भारत में मां की प्रतिमाओं के साथ प्रयोग नहीं कर सकते, तो क्या वे कलात्मकता के नाम पर मां के पंडाल को जूतों से सजाए जाने को सही ठहरा रहे थे?
इतना ही नहीं, बुर्ज खलीफा वाला पंडाल भी बन जाता है और जिस लखीमपुर खीरी का कोई सम्बन्ध नहीं था, उसे भी इसी जूते वाले पंडाल में बनाया जाता है। परन्तु पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिन्दू हिंसा पर एक भी शब्द नहीं निकाला गया इस “#DurgaPuja4All” ट्रेंड में। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जब किसान आन्दोलन को लेकर सुदूर कोलकता में “#DurgaPuja4All” के नाम पर पाखंडी पंडाल बन रहे थे, तो किसान आन्दोलन के बहाने राजनीति करने वाले आयोजक इस तथ्य से आंखें मूंदे बैठे थे कि इसी पश्चिम बंगाल की एक महिला के साथ इसी किसान आंदोलन में बलात्कार ही नहीं हुआ था बल्कि हत्या हुई थी। और इस विषय में योगेन्द्र यादव को भी पता था। यह शर्मनाक है कि मां दुर्गा को बंगाल के नाम पर अलग करने वाले ये कथित श्रेष्ठ बुद्धिजीवी अपनी बंगाल की ही लड़की के पक्ष में कोई भी बात नहीं रख पाए और “#DurgaPuja4All” व में उसे ट्रेंड नहीं करवा पाए।
पूजा आन्दोलनजीवियों से कुछ गंभीर प्रश्न
अब कुछ मूलभूत प्रश्न उभर कर आते हैं। जो मां दुर्गा को क्षेत्रवादी राजनीति में प्रविष्ट कराने वाले इन पूजा आन्दोलनजीवियों से पूछे जाने चाहिए। सबसे पहले तो क्या वे हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले जिहादी तत्वों को उनके कुकृत्यों से बरी कर रहे हैं? यदि हां, तो किसके इशारे पर वे हिंदुओं के साथ यह घिनौनी हरकत कर रहे हैं? क्या वे चाहते हैं कि हिन्दू अपने साथ हुए हर जिहादी अत्याचार को भूल जाएं और इनका वामपंथी इतिहास याद रखें?
क्या इन्हें यह नहीं पता है कि “#DurgaPuja4All” हैश टैग ने हिन्दुओं को कितना नुकसान पहुंचाया है? जिहादी तत्वों, जो बांग्लादेश में तब से हिन्दुओं पर अत्याचार कर रहे हैं, जब बांग्लादेश तो क्या पाकिस्तान तक का अस्तित्व नहीं था, को हिन्दुओं के नरसंहार के दोष से ससम्मान बरी कर दिया गया है, और उत्तर भारत एवं शेष भारत के उन करोड़ों हिन्दुओं को एक झटके में साम्प्रदायिक करार दे दिया गया है, जो अभी तक जिहादी तत्वों का सामना कर रहे हैं?
क्या वे चौदह सौ वर्षों में इस्लाम के उस खूनी इतिहास को इस ट्रेंड के माध्यम से क्लीन चिट दे देना चाहते हैं, जिस जिहादी मानसिकता ने हिन्दुओं के कटे सिरों की मीनारें भी बना डाली थीं? जब जनेऊ तौलकर गिनती होती थी कि कितने हिन्दू मारे गए?
लखीमपुर खीरी की थीम पर बना पंडाल
यदि इनकी कोई राजनीति है, तो क्या यह राजनीति हिन्दुओं के प्राणों से बढ़कर है? क्योंकि जहां एक ओर “#DurgaPuja4All”व ट्रेंड हो रहा था, वहीं उसी समय बांग्लादेश में कुरआन के अपमान की अफवाह की आड़ में पंडालों को ही नहीं तोड़ा जा रहा था, बल्कि हिन्दुओं को भी मारा जा रहा था।
और इस ट्रेंड को चलाकर दुर्गा पूजा में आन्दोलन का स्वरूप खोजने वाले नव पूजा आन्दोलनजीवी जिहादी तत्वों द्वारा हिन्दुओं को ही कठघरे में खड़ा करवा रहे थे। वे हिन्दू, जो अपनी मां के पंडाल तोड़े जाने से दुखी हैं, उन्हें ही जहरीला कहा जा रहा था।
अपनी राजनीतिक कुंठा को शांत करने के लिए दुगार्पूजा का उपयोग करने वाले ये लोग क्या इस बात का उत्तर दे सकते हैं कि “#DurgaPuja4All” का ट्रेंड चलवाकर हिन्दुओं को ही गाली दिलवाकर, मुगलों को हिन्दू परम्पराओं का रक्षक बताकर और भाजपा, संघ और विहिप आदि को चरमपंथी ठहराकर पूजा आन्दोलनजीवी जिहादी और उन्मादी तत्वों को सहला तो देते हैं, परन्तु उनके पास यह योजना नहीं होती है कि जब यही जिहादी और उन्मादी तत्व सैकड़ों की संख्या में मंदिरों या पंडालों को घेरने आ जाते हैं, तो क्या करना है? क्या पूजा आन्दोलनजीवी इस बात का उत्तर दे पाएंगे कि यदि मंदिर को या पंडाल को जलाने के लिए, नष्ट करने के लिए हिन्दुओं के अस्तित्व तक से घृणा करने वाली सैकड़ों मशालें मन्दिरों को घेर लेंगी तो इस उन्मादी भीड़ का सामना करने के लिए वह क्या करेंगे?
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