सिंघु बॉर्डर पर अब निहंग निशाने पर हैं। उन पर कथित किसान आंदोलन स्थल सिंघु बॉर्डर छोड़ने का दबाव है। जल्दबाजी में निहंगों को बॉर्डर छोड़ने की मांग करने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा अब बैकफुट पर नजर आ रहा है। आंदोलन में किसानों की बजाय निहंगों की संख्या ज्यादा है। यदि निहंग यहां से चले जाते हैं तो निश्चित ही आंदोलन काफी कमजोर हो जाएगा। किसान के नाम पर राजनीति कर रहे लोगों को यही डर सता रहा है। इसलिए एक बार फिर से किसानों को भड़काने की कोशिश हो रही है।
निहंगों की धमकी- सबकी पोल खोल देंगे
निहंगों की नाराजगी से डरे तथाकथित किसान नेता एक बार फिर हरियाणा पंजाब के भोले-भाले किसानों से सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर आने की अपील कर रहे हैं। इस तरह के वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाले जा रहे हैं, जिससे एक बार फिर से किसानों को बहकाया और भरमाया जा सके। लेकिन किसान अब इनकी असलियत को समझ गए हैं। इसलिए अब ज्यादातर किसान इनसे कन्नी काटने लगे हैं। निहंगों की कोशिश है कि उन्हें धरनास्थल से जाना नहीं पड़े। उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चे पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। उनका दावा है कि यदि उन्हें ज्यादा परेशान किया तो वे इनकी पोल खोल देंगे। वे बार-बार धमकी भरी जुबान में बातचीत कर रहे हैं। इस तरह, एक समय निहंग जहां इस तथाकथित आंदोलन की ताकत बने हुए थे, इस वक्त इसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गए हैं। अब इनके आपसी हित टकराने लगे हैं।
आंदोलन की आड़ में समाज को बांटने की कोशिश
जानकारों का मानना है कि यह किसानों का आंदोलन है ही नहीं। बस इसे किसानों के कंधे पर रख कर चलाया जा रहा है। हकीकत तो यह है कि यह एक एजेंडा है, जिसकी आड़ में समाज को बांटने का काम हो रहा है। देश और विदेश में बैठी विदेशी ताकतों के एजेंडे पर यहां के लोग काम कर रहे हैं। ये बात तो किसानों की करते हैं, लेकिन भीतरखाने अलग ही खिचड़ी पका रहे हैं। दरअसल, आंदोलन की आड़ समाज को बांटने और पंजाब में अशांति फैलाने के लिए कट्टरवादी ताकत एकजुट हैं। इसलिए 15 अक्तूबर को दशहरे वाली सुबह सिंघु बॉर्डर पर तरनतारन के लखबीर सिंह की हत्या कर दी गई थी। तालिबानी क्रूरता की इस वारदात का वीडियो बना कर उसे वायरल किया गया।
हर बार मामले को दबाने का प्रयास
इस मामले में फिलहाल निहंग इस बात पर अड़े हुए हैं कि उनकी ओर से कोई गलती नहीं की गई। लखबीर सिंह ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की, इसलिए उसकी हत्या की गई। निहंग बाबा राजाराम सिंह का कहना है कि हम भागने वालों में से नहीं हैं। हमने जो किया, उसे अदालत में हमारे साथियों ने स्वीकार किया है। निहंग यह चेतावनी भी दे रहे हैं कि अब यदि पुलिस ने उनके किसी साथी को गिरफ्तार किया तो वह सर्मपण कर चुके चारों साथियों को भी छुड़ा ले जाएंगे। लेकिन इस नृशंस वारदात के बाद इन लोगों की पोल खुलना शुरू हो गई है। वैसे तो 26 जनवरी को लाल किले पर जो हुआ था, उसी के बाद देश इस आंदोलने के पीछे छिपे मंसूबों को समझ गया था। लेकिन रही सही कसर लखबीर हत्याकांड ने पूरी कर दी।
किसान आंदोलन की आड़ में दिल्ली सीमा पर चल रहे इस आंदोलन में संगीन वारदात की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले 30 अप्रैल को बंगाल की एक युवती की मौत हो गई थी। बाद में पता चला कि इस युवती का बलात्कार किया गया था, जो उसकी मौत की वजह बना। किसान नेताओं ने इस घटना को भी दबा ही दिया था, लेकिन किसी तरह लड़की का पिता पुलिस के पास पहुंच गया। इसी तरही, टिकरी बॉर्डर पर एक किसान को जला कर मार डाला गया। प्रदर्शन स्थल पर हवाई फायरिंग की घटना सामने आ रही है।
स्थानीय लोगों की शिकायत है कि आंदोलन की आड़ में शरारती तत्व बॉर्डर के आसपास का माहौल खराब कर रहे हैं। धरनास्थल पर भिंडरावाला के पोस्टर लगाए गए हैं। इन घटनाओं से अपना चेहरा बेनकाब होता देख कथित किसान नेता लगातार निहंगों से सिंघु बॉर्डर छोड़ने को कह रहे हैं। खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश में उन्होंने निहंगों की आलोचना भी की। अब निहंग इससे खुद को काफी अपमानित महसूस कर रहे हैं।
27 अक्तूबर को निहंग लेंगे फैसला
उन्होंने इस मामले में विचार करने के लिए 27 अक्तूबर को जत्थेबंदियों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। इस बैठक में यह निर्णय होगा कि निहंगों को सिंघु बॉर्डर पर ही रहेंगे या वापस चले जाएंगे। सिंघु बॉर्डर पर बैठी निहंग जत्थेबंदियों के प्रमुखों में शामिल निहंग राजा राम सिंह ने कहा कि 27 अक्तूबर को सिंघु बॉर्डर पर होने वाली पांथिक महापंचायत में संत समाज के सभी लोग, बुद्धिजीवी और संगत हाजिर रहेगी। उस दौरान संयुक्त रूप से जो भी फैसला लिया जाएगा, निहंग जत्थेबंदियां उसे मान लेंगी।
बहरहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या 27 अक्तूबर को निहंग यहां से वापस चले जाएंगे या डटे रहेंगे। यदि वे चले जाते हैं तो तथाकथित किसान आंदोलन खुद व खुद समाप्ति की ओर चल देगा। यदि निहंग नहीं जाते तो निश्चित ही अब उनका तथाकथित किसान नेताओं के साथ टकराव होगा। यानी कुल मिला कर कह सकते हैं कि आंदोलनकारी अब यह अपने ही जाल में फंसते नजर आ रहे हैं, जिससे निकलने का रास्ता फिलहाल इनके पास नजर नहीं आ रहा है।
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