आलोक गोस्वामी
तालिबान लड़ाकों के राज में अफगानिस्तान के हालात दिन-प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि देश की अर्थव्यवस्था जर्जर है और किसी भी दिन ढह सकती है। कई शहरों की सड़कों पर भूखों मरने के इस दौर में अपने परिवार का पेट भरने के लिए महिलाओं के जत्थे बैठे दिख जाते हैं जो किसी रहमदिल के ब्रेड-नान बांटे जाने का इंतजार कर रही होती हैं। कुछ दिन पहने सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक तस्वीर में काबुल की एक सड़क पर सिर से पांव तक बुर्कों में ढकी महिलाएं एक जगह ब्रेड-नान बांटे जाने का इंतजार करती दिखी थीं। गरीब परिवारों ने गुजारे के लिए कर्जा ले रखा है जिसे बदले हालात में चुकाना भारी पड़ रहा है। हालत यह हो गई है कि मां-बाप परिवार का कर्ज चुकाने के लिए अपने बच्चों को बेचने तक के लिए मजबूर हो गए हैं।
वॉल स्ट्रीट जर्नल में इस संबंध में एक रिपोर्ट छपी है, जिसके अनुसार, अफगानिस्तान के पश्चिमी शहर हेरात में एक घरेलू कामकाज की नौकरी करने वाली एक दुखी महिला के अनुसार, उसके सिर पर 40,000 रुपये का कर्जा है। ये पैसा उसने एक आदमी से अपने परिवार का पेट पालने के लिए लिया था। महिला का नाम है सलेहा। उसका कहना है कि उसको कर्जा देने वाले आदमी का कहना है कि अगर वह उसे अपनी तीन साल की बेटी बेच दे तो वह उसका कर्जा माफ कर सकता है।
हेरात के लोगों को कहना है कि ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपने परिवार की दो वक्त की रोटी के लिए लोगों से पैसा उधार लिया हुआ है। यानी सलेहा अकेली महिला नहीं है जिसके सामने ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति आन खड़ी हुई है कि उसे अपना बच्चा तक बेचना पड़ रहा है। यहां कई ऐसे परिवार हैं जो कर्जा चुकाने के लिए अपने बच्चों को बेचने को मजबूर हो गए हैं।
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट होने की ओर है, यहां की मुद्रा की कीमत लगातार गिर रही है। ऐसे में राशन तक के लाले पड़ रहे हैं, खाने की चीजों की किल्लत है। कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे हालात में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी खतरे के संकेत दिए हैं। इस संस्था ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अफगानिस्तान में खाने की चीजें जल्दी ही खत्म हो सकती हैं।
उधर अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट होने की ओर है, यहां की मुद्रा की कीमत लगातार गिर रही है। ऐसे में राशन तक के लाले पड़ रहे हैं, खाने की चीजों की किल्लत है। कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे हालात में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी खतरे के संकेत दिए हैं। इस संस्था ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अफगानिस्तान में खाने की चीजें जल्दी ही खत्म हो सकती हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने सभी देशों से अपील की है की कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था में नकदी की आमद बढ़ाएं, ताकि कुछ राहत महसूस हो। हालत यह है कि अफगानिस्तान की तीन चौथाई अर्थव्यवस्था तो अंतरराष्ट्रीय सहायता पर टिकी है।
अफगानिस्तान में दिक्कत बढ़ने की एक वजह यह भी है कि यहां तालिबान जिहादियों के बंदूक के दम पर सत्ता में आ धमकने के बाद से, अमेरिका तथा दूसरे देशों में जमा इसकी संपत्तियों को 'जड़' किया जा चुका है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से इस तक पहुंचने वाली मदद भी रोक दी गई है।
वापस सलेहा की बात करें तो उसके पास दो ही विकल्प हैं। एक, वो कर्ज चुका दे या दो, अपनी बच्चों हाथ से गंवा दे।उसका पति बेरोजगार है। सलेहा तो यहां तक कहती है कि जिंदगी ऐसे ही चली तो वो अपनी और अपने बच्चों की जान ले लेगी। उसके पास दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी नहीं है। वह कहती तो है कि उसकी बेटी उससे दूर न हो, इसके लिए वह कहीं से पैसों का इंतजाम करने की कोशिश करेगी। लेकिन कहां, यह उसे भी नहीं पता। उसे कर्ज देने वाले आदमी, खालिद अहमद ने माना कि उसने सलेहा को उसे अपनी तीन साल की बेटी के बदले उसका कर्जा माफ करने को कहा है।
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