जिन लोगों के पास मैक कंप्यूटर हैं, वे अक्सर यह दावा करते हुए पाए जाते हैं कि इस आॅपरेटिंग सिस्टम में वायरस नहीं आ सकते। खुद ऐप्पल कंपनी भी कहती रही है कि उसके कंप्यूटरों में एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर इन्स्टॉल करने की कोई जरूरत नहीं है।
पहली नजर में आपको इन बातों पर यकीन भी हो सकता है क्योंकि जहां विंडोज में वायरसों के हमले की खबरें यदा-कदा आती रहती हैं, वहीं मैक कंप्यूटरों के वायरस से प्रभावित होने की खबरें दुर्लभ हैं। तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि मैक कंप्यूटर वायरसों से पूरी तरह सुरक्षित हैं?
जी नहीं। सच्चाई यह है कि विंडोज की ही तरह मैक आॅपरेटिंग सिस्टम भी वायरस-फ्री नहीं है। बल्कि एंटी-वायरस कंपनी बिट-डिफेंडर के विशेषज्ञ बोगदान बोटेजाटू का तो दावा है कि विंडोज के अब तक के तमाम संस्करणों में कुल मिलाकर जितनी जोखिम भरी संवेदनशीलताएं या कमजोरियांहैं, अकेले मैक ओएस एक्स में उनसे ज्यादा संवेदनशीलताएं मौजूद हैं। कुछ साल पहले जावा नामक कंप्यूटर लैंग्वेज में बनाए गए फ्लैशबैक मैलवेयर ने छह लाख से ज्यादा मैक कंप्यूटरों को प्रभावित किया था।
मगर खबरें तो विंडोज के बारे में ही सुनने को मिलती हैं, आप कहेंगे। तो इसके कारणों पर गौर कीजिए। पहली बात तो यह है कि मैलवेयर बनाने वाले विंडोज को ज्यादा निशाना बनाते हैं क्योंकि दुनिया में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग विंडोज का ही इस्तेमाल करते हैं। और अपराधियों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का मौका चाहिए। दूसरी बात यह है कि वायरस बनाने के साधन भी विंडोज के लिए ज्यादा संख्या में उपलब्ध हैं, यानी उन्हें विकसित करने के सॉफ्टवेयर आदि। मैक के लिए वायरस विकसित करने में ज्यादा श्रम लगेगा और वह महंगा भी पड़ेगा। तीसरे, मैक में गेटकीपर सब-सिस्टम की मौजूदगी के कारण ऐसी फाइलों को इन्स्टॉल करना मुश्किल है जो ऐप्पल के द्वारा डिजिटली साइन न की गई हों। फिर वहां पर सिस्टम को रि-कन्फिगर करने के लिए पासवर्ड डालने की भी जरूरत पड़ती है। ऐसा इसलिए कि मैक आॅपरेटिंग सिस्टम यूनिक्स पर आधारित है जिसमें बड़ी संख्या में बिल्ट-इन सिक्यूरिटी फीचर्स उपलब्ध हैं।
मगर इसका मतलब यह नहीं है कि मैक में वायरस पहुंचाना असंभव है। वास्तव में मैलवेयरबाइट्स की मार्च 2018 की रिपोर्ट कहती है कि सन 2017 में मैक के वायरसों की संख्या में 270 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। मैलवेयर बाइट्स नामक सुरक्षा कंपनी की वेबसाइट पर मैक कंप्यूटरों को संक्रमित करने वाले वायरसों की सूची प्रकाशित हुई है। इनमें से कुछ के नाम हैं- मैक आटो फिक्सर, एमएसहेल्पर, क्रॉसराइडर, ओएसएक्स मामी, मेल्टडाउन, स्पेक्टर, डोक, एक्स एजेंट, मैक डाउनलोडर, फ्रूटफ्लाई, पिरिट, के-रेंजर, सफारीगेट, गोटूफेल, हाईसिएरा रूट बग आदि।
कुकीमाइनर वह ताजातरीन मैलवेयर (अवैध गतिविधियां चलाने वाला सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम) है जो क्रोम ब्राउजर में डाले जाने वाले यूजरनेम और पासवर्ड चुरा सकता है। इतना ही नहीं, वह क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों को अनधिकृत रूप से एक्सेस कर सकता है और लोगों की क्रिप्टोकरेंसी चुरा भी सकता है। लेकिन बात अधूरी रहेगी अगर हम आपको यह न बताएं कि अपने मैक को इन हानिकारक तत्वों से बचाने के लिए आपको करना क्या होगा।
ऐप्पल अपने आॅपरेटिंग सिस्टम को समय-समय पर अपडेट करती है और वायरसों जैसी संवेदनशीलताओं के समाधान करती है। इसलिए अपने कंप्यूटर को सदा अपडेटेड रखिए। अपने कंप्यूटर में एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर इन्स्टॉल करना भी अच्छा आइडिया है। मैक के लिए ऐसे कई सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं, जैसे- इन्टेगो मैक इंटरनेट सिक्यूरिटी, बिट डिफेंडर एंटी-वायरस, नॉर्टन सिक्यूरिटी, सोफोस एंटीवायरस, अवीरा, जैप, कैस्परस्की, ईसेट, ट्रेंड माइक्रो और टोटल एवी। एवीजी और अवास्ट नामक अच्छे और दमदार फ्री एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर विंडोज के साथ-साथ मैक के लिए भी उपलब्ध हैं। इन्हें डाउनलोड करने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।
कैसे पता चले कि आपके मैक में वायरस आ गया है? इसके कुछ संकेत इस तरह हैं- स्क्रीन पर ऐसे सॉफ्टवेयर दिखाई देना जिन्हें आपने कभी इन्स्टॉल नहीं किया था, कंप्यूटर का बार-बार बंद पड़ जाना, वेब पेजों पर बहुत सारे पॉप अप एक के बाद एक खुलने लगना और किसी सॉफ्टवेयर को डाउनलोड करने की सलाह देना, कंप्यूटर का गर्म हो जाना, कामकाज की रफ़्तार बहुत कम हो जाना, मैक के भीतर तेज रफ्तार से गतिविधियां चलने का आभास आदि-आदि। तो यह तो साबित हो गया कि दूसरे कंप्यूटरों की तरह मैक भी पूरी तरह वायरस-मुक्त नहीं है। उसे वायरस-मुक्त बनाना अब आपके हाथ में है।
(लेखक सुप्रसिद्ध तकनीक विशेषज्ञ हैं)
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