दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ प्राध्यापकों ने केरल शिक्षा बोर्ड की परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठाया है। इनका कहना है कि केरल शिक्षा बोर्ड किसी राजनीतिक दबाव पर एक विशेष विचारधारा से जुड़े छात्रों को जानबूझकर 100 प्रतिशत अंक देता है, ताकि उनका दाखिला दिल्ली विश्वविद्यालय में कराया जा सके। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकन के लिए केरल के 4,824 छात्रों ने आवेदन किया था। इनमें से 2,365 छात्रों को दाखिला मिल चुका है। कई महाविद्यालयों के राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि विभागों में केवल केरल के छात्रों को ही दाखिला मिला है। इसके पीछे मुख्य कारण है कि इन छात्रों को बारहवीं में 100 प्रतिशत अंक मिलना। इसलिए कुछ शिक्षाविदों ने केरल शिक्षा बोर्ड की परीक्षा प्रणाली पर सवाल उठाया है। इस सवाल का ठोस कारण भी दिख रहा है।
आमतौर पर यह देखा जाता है कि गणित, अंग्रेजी जैसे विषयों में छ़़ात्रों को 100 प्रतिशत तक अंक मिल जाते हैं। इतिहास, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों में 100 प्रतिशत अंक प्राप्त करना आसान नहीं रहता है। लेकिन केरल शिक्षा बोर्ड के छात्रों को इन विषयों में भी 100 प्रतिशत अंक मिल रहे हैं। यही कारण है कि इस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेक महाविद्यालयों में केरल के छात्रों ने अनेक विभागों पर एक तरह से कब्जा कर लिया है।
हिन्दू कॉलेज, रामजस कॉलेज, हंसराज कॉलेज, किरोड़ीमल कॉलेज, मिरांडा हाउस और श्रीराम कॉलेज आफ कामर्स इत्यादि के राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, वाणिज्य आदि विषयों में प्रवेश लेने वाले अधिकतर छात्र केरल के हैं। सबसे दिलचस्प मामला हिन्दू कॉलेज के राजनीतिशास्त्र विभाग में देखने को मिला है। इस विभाग में 150 छात्रों ने नामांकन कराया है। इनमें से 149 केरल बोर्ड के छात्र हैं। ऐसे ही इस कॉलेज में अनारक्षित श्रेणी के अंतर्गत कुल 20 सीटों पर प्रवेश होना था, लेकिन 26 छात्रों को प्रवेश देना पड़ा, क्योंकि सभी के 100 प्रतिशत अंक थे। ये सभी छात्र केरल बोर्ड से 100 प्रतिशत अंक लेकर आए हैं। रामजस कॉलेज में भी 29 छात्र केरल के हैं। मिरांडा हाउस में भी 43 छात्र केरल के हैं। ये सभी राजनीतिशास्त्र में हैं।
इसलिए इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय में यह चर्चा जोरों पर है कि दाल में कुछ काला है। इस तरह की बातें करने वालों में सबसे प्रमुख हैं किरोड़ीमल कॉलेज में भौतिकीशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. राकेश पांडे। उन्होंने बताया, ''2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय में केरल के दो—तीन छात्र ही होते थे। 2019 में इनकी संख्या 200 के करीब हुई थी। 2020 में केरल के 300 छात्रों ने नामांकन कराया। अब 2021 में इनकी संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है।'' डॉ. पांडे का मानना है कि यह सब एक साजिश के तहत हो रहा है और इसके पीछे वामपंथी हैं। वे कहते हैं, ''अब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वामपंथियों की पकड़ ढीली हो रही है और शायद यही कारण है कि वामपंथी केरल शिक्षा बोर्ड के जरिए दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी विचारधारा के छात्रों को भर रहे हैं।'' डॉ. पांडे यह भी आशंका व्यक्त करते हैं कि केरल शिक्षा बोर्ड पर कोई राजनीतिक दबाव है और उसी के कारण छात्रों को 100 प्रतिशत अंक देकर दिल्ली विश्वविद्यालय भेजा जा रहा है।
बता दें कि इस वर्ष केरल शिक्षा बोर्ड के 234 छात्रों ने 100 प्रतिशत अंक और 18,510 छात्रों ने उच्चतम 'ए ग्रेड' प्राप्त किया है, जबकि वहां सीबीएसई के केवल एक छात्र को 100 प्रतिशत अंक मिले हैं। इससे एक सवाल तो खड़ा होता है कि जो बोर्ड राज्य सरकार के अधीन है, वहां तो सैकड़ों छ़़ात्रों को 100 प्रतिशत अंक मिले हैं, वहीं केंद्रीय बोर्ड में केवल एक छात्र को 100 अंक मिले हैं। ऐसा कैसे हो सकता है!
जब लोगों ने सावल उठाया तो इस मामले की जांच के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति ने एक समिति बनाई है। इस समिति में विश्वविद्यालय के रजिस्टार, तीन महाविद्यालयों की प्राचार्य और कुछ प्राध्यापक शामिल हैं। यह समिति इस बात की जांच कर रही है कि कहीं इस मामले में कोई गड़बड़ी तो नहीं है।
बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय में हर वर्ष लगभग 65,000 छात्र नामांकन कराते हैं। अधिकतर छात्र बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के आसपास के राज्यों के होते हैं। शिक्षा सुविधाओं की दृष्टि से इन राज्यों को केरल की अपेक्षा बहुत पीछे माना जाता है। इसलिए कुछ लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि जो राज्य अपने यहां की शिक्षा सुविधाओं को लेकर ढोल पीटता है, उसके बच्चे 3,000 किलोमीटर दूर दिल्ली में नामांकन क्यों करा रहे हैं! यहां फिर डॉ. पांडे की शंका का ध्यान आता है। अब जब इस मामले की जांच के लिए समिति बन ही गई है तब सबको उम्मीद है कि इसकी सचाई बाहर आएगी।
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