रूस सरकार ने कहा है कि 20 अक्तूबर से 'मास्को प्रारूप' को लेकर रूस में होने जा रही बैठक में वह तालिबान के लड़ाकों को आमंत्रित करेगी
रूस के नेता अफगानिस्तान में बंदूक के दम पर चढ़ बैठे तालिबान लड़ाकों के कुछ ज्यादा ही नजदीक आता दिखता है। विशेषज्ञ इस मुद्दे पर उधेड़बुन में हैं कि कट्टर मजहबी उन्मादी तालिबान के साथ रूस के नेताओं की वार्ता और सलाह-मशविरे किस ओर संकेत कर रहे हैं! इस संदर्भ में 7 अक्तूबर को मास्को से आया बयान महत्वपूर्ण है। रूस सरकार ने कहा है कि 20 अक्टूबर से 'मास्को प्रारूप' को लेकर रूस में होने जा रही बैठक में वह तालिबान के लड़ाकों को आमंत्रित करेगी।
एक समाचार एजेंसी ने अफगानिस्तान के मामलों को देखने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खास दूत तथा विदेश मंत्रालय के एशिया विभाग द्वितीय के निदेशक नीतिकार जमीर काबुलोव को उद्धृत करते हुए रिपोर्ट में लिखा कि रूस आगामी 20 अक्तूबर को मास्को में होने जा रही अफगानिस्तान पर प्रारूप बैठक में तालिबान के लोगों को न्योता भेजने वाला है।
उल्लेखनीय है कि पिछले अनेक दिनों से काबुल की परिस्थिति पर लगातार नजर रखते आ रहे काबुलोव ने अभी यह खुलासा नहीं किया है कि किस ओहदे वाले तालिबानी लड़ाके बैठक में बुलाए जाने वाले हैं। यहां बता दें कि यह 'मास्को प्रारूप' 2017 में तय किया गया था। इसका मकसद था रूस, भारत, चीन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा ईरान के विशेष प्रतिनिधियों के माध्यम से क्षेत्र को लेकर सलाह करना।
हाल ही में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने तालिबान को स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह जल्दी ही समावेशी सरकार बनाए, जिसमें सभी लोगों का प्रतिनिधित्व हो। उन्होंने अफगानी जनता के साथ जो वादे किए हुए हैं, उन्हें अंजाम तक ले जाएं। विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने यह भी कहा है कि मास्को अफगानिस्तान में आतंकवाद पर लगाम लगाने, समावेशी सरकार बनाने तथा अफगानी जनता से किए गए वादों को पूरा कराने के लिए अमेरिका, पाकिस्तान तथा चीन के साथ तालमेल बनाकर काम कर रहा है। रूस के विदेश मंत्री ने तालिबान को महिलाओं तथा लड़कियों के अधिकारों का सम्मान करने को भी कहा था, लेकिन अभी तक तो इसके उलट ही होता दिखा है।
यहां याद दिला दें कि तालिबान ने इससे पहले एक बयान में कहा था कि पाकिस्तान तथा दुनिया के अन्य देशों को इस्लामिक अमीरात अफगानिस्तान में एक 'समावेशी' सरकार बनाने को कहने का कोई हक नहीं है। उधर अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों की अंतरिम सरकार के गठन के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कहा था कि अफगानिस्तान में जरूरी है कि समावेशी सरकार का गठन हो। तो अमेरिका भी इस बात पर बल देता आ रहा है। इसी सबके बाद रूस ने स्पष्ट कहा था कि अफगानिस्तान में समावेशी सरकार बनाने के प्रति तालिबान अपनी गंभीरता दिखाए।
रूस ने स्पष्ट कहा था कि अफगानिस्तान में समावेशी सरकार बनाने के प्रति तालिबान अपनी गंभीरता दिखाए। हालांकि आधिकारिक बयानों को देखें तो रूस अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता देखना चाहता है। लेकिन यहां यह भी गौर करने की बात है कि जहां अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद ज्यादातर देशों ने काबुल स्थित अपने दूतावास बंद कर दिए थे, वहीं चीन, पाकिस्तान सहित रूस ने भी अपने दूतावास नहीं बंद किए थे।
हालांकि रूस ने अभी यह साफ नहीं किया है कि वह अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों की सरकार को मान्यता देगा कि नहीं। आधिकारिक बयानों को देखें तो रूस अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता देखना चाहता है। यहां यह भी गौर करने की बात है कि जहां अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद ज्यादातर देशों ने काबुल स्थित अपने दूतावास बंद कर दिए थे, वहीं चीन, पाकिस्तान सहित रूस ने भी अपने दूतावास नहीं बंद किए थे।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अगर मास्को प्रारूप में रूस तालिबान को न्योता देता है और उसके लड़ाके बैठक में भाग लेने आते हैं तब भारत उसमें हिस्सा लेगा कि नहीं, इस पर दुनिया की नजर रहेगी। भारत ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन यह जरूर है कि भारत के दोहा स्थित राजदूत ने तालिबान के राजनीतिक प्रतिनिधि से काबुल पर तालिबान के कब्जे के शुरुआती दिनों में अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकलने देने
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