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ई-कॉमर्स कंपनियों का भ्रष्टाचार से पुराना नाता

WEB DESK by WEB DESK
Sep 26, 2021, 07:49 pm IST
in भारत, मत अभिमत, दिल्ली
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प्रो. अश्विनी महाजन

अमेजन के हाल के वित्तीय दस्तावेजों से पता चला है कि इसकी छह कंपनियों ने पिछले दो वित्त वर्ष में 8,456 करोड़ रुपये कानूनी एवं व्यावसायिक फीस के नाते खर्च किए हैं। कानूनी फीस के रूप में दी गई इतनी बड़ी राशि संदेह पैदा करती है। तो क्या यह पैसा वकीलों के माध्यम से भारतीय नियमों की धज्जियां उड़ाने के लिए रिश्वत देने के काम आया

 

अमेजन के हाल ही में सरकार को दिए गए वित्तीय दस्तावेजों से यह पता चल रहा है कि उसकी 6 कंपनियों ने पिछले दो वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के दौरान 8,456 करोड़ रुपये यानी लगभग 1.2 अरब डॉलर की राशि कानूनी एवं व्यावसायिक फीस के नाते खर्च की। यह कंपनी की कुल प्राप्तियों, 4,2085 करोड़ रुपये का 20.3 प्रतिशत था। सबसे ज्यादा कानूनी और व्यावसायिक फीस 3,417 करोड़ रुपये बेंगलुरु स्थिति अमेजन सेलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने अदा की। इसी तरह से बाकी कंपनियों ने भी अपने वित्तीय दस्तावेजों में दिखाया है कि उन्होंने भी भारी मात्रा में कानूनी फीस दी।

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कोई भी कंपनी यदि अपने दस्तावेजों में इतनी बड़ी मात्रा में कानूनी एवं व्यावसायिक फीस दर्शाती है तो आशंका होती है कि इसकी आड़ में उसने अपने पक्ष में फैसले कराने के लिए अधिकारियों को रिश्वत दी है। व्यापारी संगठन कन्फेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सीधे-सीधे आरोप लगाया है कि अमेजन ने लीगल फीस की आड़ में रिश्वत बांटी है। कैट ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर कहा है कि चूंकि यह मुद्दा देश की अस्मिता के साथ जुड़ा है, इसलिए इसकी तुरंत सीबीआई जांच होनी चाहिए और कंपनी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कारवाई की जानी चाहिए। वहीं अमेजन ने कहा है कि वे इस मामले को बहुत गंभीरता से लेते हैं और उन्होंने इस मामले की आंतरिक जांच शुरू भी करा दी है।

ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा
बहुत दिनों से यह मांग आ रही थी कि ई-कॉमर्स कंपनियों, जो गैरकानूनी तरीके से भारत में प्लेटफार्म की आड़ में ई-कॉमर्स का व्यवसाय करते हुए विदेशी धन के आधार पर भारी डिस्काउंट देते हुए यानी कैश बर्निंग मॉडल के आधार पर देश के बाजारों पर कब्जा कर रही हैं, को बाध्य किया जाए कि वे अपने वित्तीय दस्तावेजों का लेखा परीक्षण (आॅडिट) करवाकर उन्हें सार्वजनिक करें। लेकिन ये कंपनियां अपने दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से बचती रही हैं।

ऐसे में वर्ष 2018 के दिसम्बर माह में वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत डीआईपीपी विभाग ने एक प्रेस नोट-2 जारी कर, इन कंपनियों पर यह अंकुश लगाने का प्रावधान रखा कि वे न तो अपने से डिस्काउंट देकर माल सस्ता कर बेच सकती हैं, और न ही अपने पास माल का भंडारण कर सकती हैं। उन पर यह भी शर्त लगाई गई कि वे किसी एक विक्रेता कंपनी के माध्यम से अपनी कुल बिक्री का 25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बेच सकती। इसके साथ ही साथ प्रेस नोट-2 में यह प्रावधान भी रखा गया कि ये कंपनियां हर साल सितंबर माह तक अपने वित्तीय कार्यकलापों में कानूनों का पालन हो रहा है, इस बाबत आॅडिटर से प्रमाण-पत्र लेकर उसे अपनी वेबसाईट पर लगाकर सार्वजनिक करेंगी।

प्रेस नोट-2, जो सरकार का नीति दस्तावेज था, को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अधिसूचित किए जाने की प्रक्रिया के बाद ही इसे कानून बनना था। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन कंपनियों के आॅडिटर से प्रमाण-पत्र संबंधित प्रावधान के अलावा शेष सब प्रावधानों को अधिसूचित कर दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण था। बाद में जब भारतीय रिजर्व बैंक को इस विषय की गंभीरता से अवगत कराया गया तो उसने इस प्रावधान को दूसरे रूप में अधिसूचित किया कि ये कंपनियां आॅडिटर से प्रमाण-पत्र लेकर तैयार रखेंगी।

कैसे दी जाती है लीगल फीस के रास्ते रिश्वत?
लीगल और व्यावसायिक फीस के रास्ते रिश्वत देने का तरीका बहुत पुराना है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज के वक्त में इसका परिमाण बहुत बढ़ गया है। अमेजन कंपनी ने अपने लीगल व्यावसायिक कार्यों के लिए कई लॉ फर्मों को रखा हुआ है। इन लॉ कंपनियों को अमेजन कंपनी भारी-भरकम लीगल फीस देती है, और उसके उपरांत ये कंपनियां किसी दूसरी कंपनी को वह फीस अंतरित करती हैं और उसके बाद एक कड़ी बनती है और अंततोगत्वा अंतिम लीगल कंपनी अथवा वकील अथवा कोई प्रोफेशनल राशि नकद निकालकर संबंधित अधिकारियों को देता है। यह काम इतनी कुशलता से किया जाता है कि कंपनी के सीधे-सीधे रिश्वत देने का मामला नहीं बनता।

हमें समझना होगा कि यह एक अत्यंत गंभीर मामला है जिससे हमारी पूरी सरकारी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगता है। इससे यह भी साबित होता है कि इस कंपनी ने जो भी लाइसेंस और अनुमतियां प्राप्त की हैं, वे सभी कपटपूर्ण तरीके से या धोखाधड़ी से प्राप्त की गई हैं। ऐसे में शुचिता की मांग है कि इन कंपनियों को दिए गए तमाम लाइसेंसों को रद्द किया जाए और इनके तमाम कार्यों को गैरकानूनी घोषित किया जाए। सीबीआई से पूरे मामले की जांच कराई जाए और जैसे-जैसे सरकारी अफसरों की निशानदेही हो, उन्हें छुट्टी पर भेजकर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो।

क्लाउडटेल का मामला
भारत में ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस का संचालन करने वाले विदेशी खुदरा विक्रेता भारत के खुदरा एफडीआई कानूनों की धज्जियां उड़ाने के लिए नए-नए मार्ग खोजते रहते हैं। हाल ही तक अमेजन इंडिया भारत की जानी-मानी सॉफ़्टवेयर कंपनी इन्फोसिस के मालिक एनआर नारायणमूर्ति और उनके परिवार के स्वामित्व वाली क्लाउडटेल जैसी कंपनियों के साथ समझौते के माध्यम से सामान को कृत्रिम रूप से सस्ता करने (प्रीडेटरी प्राइसिंग और डिस्काउंटिंग) का कार्य करती रही है, जिससे आॅफलाइन खुदरा व्यापारियों का व्यवसाय ध्वस्त होता रहा है। ध्यान दें कि इस संबंध में नारायणमूर्ति की सार्वजनिक आलोचना और अमेजन के विरुद्ध कार्रवाई शुरू होने के बाद नारायणमूर्ति ने क्लाउडटेल और अमेजन के समझौते से किनारा कर लिया है।

कंपनी के दस्तावेजों के अनुसार उसे चालू वर्ष में माल और सेवा कर खुफिया महानिदेशालय से 5,455 लाख रुपये की राशि के साथ-साथ सेवा कर से संबंधित मामलों के लिए ब्याज और दंड के लिए कारण बताओ नोटिस प्राप्त हुआ है। यानी माना जा सकता है कि क्लाउडटेल कम्पनी अमेजन की संगत में ना केवल नैतिक रूप से बल्कि कानूनी रूप से भी गलत कार्यों में संलग्न रही है।

हाल में केन्द्र सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 94 के अंतर्गत उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम प्रस्तावित किए थे। यह नियम उपभोक्ता संरक्षण के संदर्भ में ई-कॉमर्स दिग्गजों, जो खुद को केवल तकनीकी प्लेटफॉर्म कहते हैं और वास्तव में पूर्ण विकसित ई-कॉमर्स चला रहे हैं, पर शिकंजा कसने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

प्रस्तावित नियमों में उच्च छूट के साथ फ्लैश बिक्री को विनियमित करने का प्रस्ताव है और ई-कॉमर्स संस्थाओं के लिए डीपीआईआईटी के साथ पंजीकरण करना अनिवार्य करने का प्रावधान भी प्रस्तावित है। नियमों में कुछ मौजूदा एफडीआई नीति की तुलना में कुछ परिभाषाओं में संशोधनों के साथ-साथ विक्रेता द्वारा डिफॉल्ट के मामले में ई-कॉमर्स संस्थाओं को उत्तरदायी बनाने का भी प्रस्ताव है। इन प्रस्तावित नियमों का स्वाभाविक रूप से ये कंपनियां तो विरोध कर ही रही हैं, लेकिन हैरानी और खेद का विषय यह है कि भारत सरकार के ही कई अफसरशाहों और नीति आयोग ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। यह खुलासा हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेन्सी रॉयटर्स ने किया है। इस संदर्भ में हाल ही में प्रकाश में आई सम्भावित रिश्वतखोरी और-ई कामर्स कंपनियों की तरफदारी के बीच संबंध की भी जांच की जानी चाहिए।
(लेखक स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक हैं)
 

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