हितेश शंकर
तालिबान से हम हजार सवाल पूछेंगे, इस्लाम पर भी पूछेंगे। परंतु एक सवाल पादरी से भी पूछना चाहिए कि कन्वर्जन की चोट लगती है तो आप तिलमिलाते हैं। कन्वर्जन की यही चोट इस देश को इतने वर्षों से चर्च लगा रहा है तो सोचिए! हिंदू समाज को कितनी तिलमिलाहट होती होगी?
वर्तमान परिदृश्य की दो घटनाओं को बराबर जमाकर देखें तो लगेगा कि महिलाओं के प्रति सोच, महिलाओं की स्थिति को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ सकती है। पहला, अफगानिस्तान में तालिबान का शासन होते ही यह देश फिर से कबीलाई युग में वापस चला गया है। अफगानिस्तान में महिलाओं की बराबरी की बात करना किसी संगीन अपराध से कम नहीं है। तालिबान के प्रवक्ता ने स्थानीय मीडिया, टोलो न्यूज, को हाल ही में बयान दिया है कि महिलाओं का काम बच्चे पैदा करना है। उन्हें यही काम करना चाहिए। सरकार में उनका कोई काम नहीं है। महिलाएं मंत्री नहीं बन सकती हैं। इस असंवेदनशील बयान पर पूरी प्रगतिशील बिरादरी, जो सदा महिला अधिकारों की रट लगाए रहती थी, में आश्चर्यजनक चुप्पी है।
दूसरे, केरल में बिशप जोसेफ कल्लारनगट्ट ने कहा कि ‘लव जिहाद’ और ‘नार्कोटिक जिहाद’ के तहत गैर मुस्लिम लड़कियों को फंसाया जा रहा है। उनका कन्वर्जन कर शोषण किया जा रहा है। उन्हें आतंकवाद में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह लव मैरिज नहीं है बल्कि मुस्लिम चरमपंथियों की युद्ध की रणनीति है। जिहादी अब ये समझ गए हैं कि भारत जैसे देश में हथियारों के बल पर किसी को खत्म नहीं किया जा सकता है। इसीलिए वे लव जिहाद और नार्कोटिक जिहाद का प्रयोग कर रहे हैं। केरल में कैथोलिक लड़कियां इसका शिकार होने लगी हैं।
गौर कीजिए, जब हिंदू समुदाय की ओर से लव जिहाद की बात की जाती है तो हंसकर बात हवा में उड़ा दी जाती है। ऐसी सैकड़ों दर्द भरी कहानियां हैं जिसमें लव जिहाद की शिकार लड़कियों की पीड़ा बेपर्दा हुई। मुस्लिम लड़कों द्वारा अपनी पहचान छिपाने, गैर मुस्लिम लड़कियों से नजदीकी बढ़ाने, लड़कियों पर इस्लाम थोपने और यौन हिंसा की बातें लगातार उजागर होती रही हैं परंतु अब क्योंकि एक 'पादरी' ने चिंता जताई तो यह चर्चा का विषय बन गया है।
ये दो घटनाएं, महिलाओं की वास्तविक स्थिति, महिलाओं को लेकर मुस्लिम सोच तो बताती ही हैं, स्त्री विमर्श के प्रगतिशील रचनाकारों की चुप्पी को भी उजागर करती हैं।
तालिबान ने तो अपने मध्ययुगीन विचार बिना लाग-लपेट के खुलकर सामने रख दिए परंतु केरल में बिशप द्वारा जो बोला गया है, उसका सच क्या है? क्या यह सिर्फ आज का मुद्दा और केवल केरल से उठती आवाज है?
या फिर इस्लाम की महिलाओं के प्रति सोच, गैर मुस्लिम महिलाओं के साथ यौन हिंसा पर केरल से उठी चिंता और काबुल-कंधार के नजारों से इतर भी कुछ कहानी है?
गेटेस्ट वन इंस्टीट्यूट के पोर्टल पर वर्ष 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि यूरोपीय लड़कियां ‘मुस्लिम गैंग’ के निशाने पर रही हैं। आॅक्सफोर्डशायर सीरियस केस रिव्यू मे एक पीड़िता ने बताया कि एक चिल्ड्रेन होम से उसकी तस्करी हुई थी। आरोपी पकड़ा गया, उसे जेल भी हुई, लेकिन जब वह जेल से छूटा तो उसने फिर से पीड़िता को तस्करी के दलदल में डाल दिया।
15 वर्षों में आॅक्सफोर्डशायर की करीब 400 ब्रिटिश लड़कियों ने बयान दिया कि 'मुस्लिम रेप गैंग' ने उनका यौन शोषण किया है। यह समस्या केवल ब्रिटेन में यहीं तक सीमित नहीं थी, बल्कि डर्बी, ब्रिस्टल और रॉदरहम में भी यही सब देखने में आया। आॅक्सफोर्डशायर में ही 2004 से 2012 के बीच 373 लड़कियों का यौन शोषण किया गया। वर्ष 2013 में इस मामले में सात मुस्लिम आरोपियों को दोषी पाया गया था।
ब्रिटेन में 1995 से 1998 के बीच एक बच्ची को हुसैन, मोहम्मद अकरम और तालिश महमूद अकरम शिकार बनाते रहे। उन्होंने बच्ची के साथ स्कूल के प्ले ग्राउंड में भी दुष्कर्म किया।
तालिबान से हम हजार सवाल पूछेंगे, इस्लाम पर भी पूछेंगे। परंतु एक सवाल पादरी से भी पूछना चाहिए कि कन्वर्जन की चोट लगती है तो आप तिलमिलाते हैं। कन्वर्जन की यही चोट इस देश को इतने वर्षों से चर्च लगा रहा है तो सोचिए! हिंदू समाज को कितनी तिलमिलाहट होती होगी? यदि इस तिलमिलाहट को खत्म करना है तो स्त्री को बराबरी का दर्जा और मनुष्य को उसकी मूल आस्था के साथ रहने देना होगा। यदि भारत का यह मूल स्वभाव आपने छोड़ दिया तो यहां रह कर भी आपका व्यवहार आक्रांता का ही रहेगा, कभी एक पर आरोप लगाएंगे, कभी दूसरे पर लगाएंगे… और बदले में पीड़ा ही पाएंगे।
पाकिस्तान के लाहौर में पिछले साल दो ईसाई बहनों को इसलिए मार डाला गया क्योंकि उन्होंने इस्लाम अपनाने और जिहादियों से निकाह करने से इनकार कर दिया था। जिहादियों ने उनके सिर को धड़ से अलग कर सीवर में फेंक दिया था। दोनों बहनें पहले से ही शादीशुदा थीं और उनके बच्चे भी थे। दिसंबर 2020 में ही पाकिस्तान में एक 12 साल की ईसाई लड़की को अगवा कर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इसके बाद उसे इस्लाम में कन्वर्ट कर उसकी शादी करा दी गई।
दिसंबर 2020 में ही पाकिस्तान में ही एक और मामला सामने आया था। एक गैर मुस्लिम लड़की को अपहरण करने वालों से मुक्त कराया गया था। उस समय वह जंजीर से बंधी थी। पांच महीने पहले उसका अपहरण कर दुष्कर्म किया गया था। इसके बाद उसे बंधक बनाया गया। उसने अपने परिजनों को बताया था कि उसे गुलाम की तरह रखा गया था। उससे 24 घंटे पशुओं का बाड़ा साफ कराया जाता था।
वर्ष 2016 में ब्रिटेन की एक अदालत ने पाकिस्तानी मूल के 12 मुसलमानों को 143 साल की सजा सुनाई थी। इन लोगों ने वेस्ट यार्कशायर में 2011-2010 के दौरान 13 साल की ब्रिटिश लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था। एक दोषी बांग्लादेश भाग गया था। वह ड्रग डीलर भी था।
वर्ष 2010 में ब्रिटिश इतिहास के सबसे भयानक दुष्कर्म कांड का खुलासा हुआ। इसे रॉदरहम बाल यौन शोषण कांड कहा जाता है। अस्सी के दशक के आखिरी वर्षों से लेकर 2010 तक करीब 1400 बच्चों का यौन शोषण किया गया। इसके दोषी ब्रिटिश-पाकिस्तानी मुस्लिम थे। वे यह रैकेट चाइल्ड केयर सेंटर के जरिये चलाते थे। लड़कियों को इन केयर सेंटर से टैक्सी से ले जाया जाता था और इसके बाद उनके साथ दुष्कर्म होता था।
ये घटनाएं बताती हैं कि ये सिर्फ अपराधी और पीड़ित का मामला नहीं है। कुछ मजहबी कोठरियों में महिलाओं को लेकर खासी हिंसक पट्टी पढ़ाई जा रही है। महिलाओं को निशाना बनाना वही कबीलाई मानसिकता है जो तालिबान के प्रकरण में दिख रही है। ये मानसिकता महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार बनाने, उन्हें इंसान नहीं इस्लाम का चारा समझने, उन पर अन्य आस्था लादने और महिलाओं को इस्लाम के पिट्ठू के तौर पर इस्तेमाल करने में भरोसा करती है।
अब बात नारकोटिक्स जिहाद की जिसे केरल के ही नेता, टिप्पणीकार ‘कल्पित’ ठहराने में लगे हैं।
यूरोप का उदाहरण यहां भी है जहां कुछ लोग कुछ ऐसा ही ‘नार्कोटिक्स जिहाद’ चला रहे हैं। वे खासकर युवाओं को ड्रग्स का आदी बनाकर कमजोर कर रहे हैं। यूरोपियन मॉनिटरिंग सेंटर फॉर ड्रग्स एंड ड्रग एडिक्शन के जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जिहादी तत्व यूरोपीय युवाओं को गांजा, कोकीन और हेरोइन की सप्लाई करते हैं। ड्रग्स की रेव पार्टियां करते हैं। यूरोपियन यूनियन में 14.1 प्रतिशत युवा भांग और गांजे का सेवन कर चुके हैं। वहीं 1.9 प्रतिशत युवाओं ने कोकीन, जबकि 1.8 प्रतिशत युवाओं ने अन्य प्रतिबंधित ड्रग्स का सेवन किया।
वर्ष 2015 में डेनमार्क में जिहादी ग्रुप मिलातू इब्राहिम से जुड़े मेसा होडजिक को पकड़ा गया था। उसके पास से 48 किलोग्राम गांजा और करीब तीन किलो स्मैक मिला था। उसका लीडर स्पेन में हुए आतंकी हमलों में लिप्त था। ब्रिटिश मुस्लिम पति-पत्नी मोहम्मद रहमान और सना अहमद खान को लंदन में बम धमाकों की साजिश रचने के आरोप में पकड़ा गया था। 7 जुलाई 2005 को लंदन में बम धमाके हुए थे, जिनमें पचास से अधिक लोगों की मौत हुई थी। दोनों पति-पत्नी दस साल बाद इस घटना को फिर से दोहराना चाह रहे थे, लेकिन उससे पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जांच में पता चला कि मोहम्मद रहमान नियमित तौर पर कोकीन और गांजे का सेवन करता था।
ये दोनों पहलू एक साथ रखें तो पता चलेगा कि ये एक जगह की बात या कल्पित बात नहीं है। यदि इन चिन्गारियों को अलग-अलग घटना के रूप में देखेंगे तो चारों ओर फैलती आग से बेपरवाह हो जाएंगे और इन चिन्गारियों को दावानल बनने में देर नहीं लगेगी।
एक बात और है, तालिबान से हम हजार सवाल पूछेंगे, इस्लाम पर भी पूछेंगे। परंतु एक सवाल पादरी से भी पूछना चाहिए कि कन्वर्जन की चोट लगती है तो आप तिलमिलाते हैं। कन्वर्जन की यही चोट इस देश को इतने वर्षों से चर्च लगा रहा है तो सोचिए! हिंदू समाज को कितनी तिलमिलाहट होती होगी? यदि इस तिलमिलाहट को खत्म करना है तो स्त्री को बराबरी का दर्जा और मनुष्य को उसकी मूल आस्था के साथ रहने देना होगा। यदि भारत का यह मूल स्वभाव आपने छोड़ दिया तो यहां रह कर भी आपका व्यवहार आक्रांता का ही रहेगा, कभी एक पर आरोप लगाएंगे, कभी दूसरे पर लगाएंगे… और बदले में पीड़ा ही पाएंगे।
@hiteshshankar
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