उत्तराखंड में सोशल मीडिया में #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून व #uk_needs_landlaw हैशटैग के साथ युवाओं द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के पीछे मूल भावना यह छिपी हुई है कि उत्तराखंड को देवभूमि के स्वरूप में ही बने रहने दिया जाए।
दिनेश मानसेरा
उत्तराखंड में सोशल मीडिया में #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून व #uk_needs_landlaw हैशटैग के साथ युवाओं द्वारा एक व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के पीछे मूल भावना यह छिपी हुई है कि उत्तराखंड को देवभूमि के स्वरूप में ही बने रहने दिया जाए। इस अभियान में युवाओ का साथ देने कांग्रेस भी खुलकर सामने आ गयी है। आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड को आध्यात्मिक राजधानी बनाये जाने की बात कही है। भाजपा में भी इस मुद्दे पर आवाज उठने लगी है।
उत्तराखंड में भू-कानून जैसे गंभीर विषय पर युवाओं द्वारा अभियान शुरू किया गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी भू-कानून को लेकर संवेदनशील है और वो अपनी जड़ों को बचाने के लिए पूरी तरह से जागरूक है। युवाशक्ति देवभूमि की सभ्यता, संस्कृति, परंपरा व इतिहास के संरक्षण के लिए चिंतित है। निःसंदेह युवाशक्ति की इस सक्रियता का परिणाम सुखद हो सकता है, क्योंकि यह एक जन आंदोलन का रूप ले रहा है। युवाओं द्वारा शुरू किया गया, यह अभियान सराहनीय है। उत्तराखंड में बढ़ती मुस्लिम आबादी से हर कोई चिंतित है। भूमि कानूनों के विषय में जानकर भाजपा नेता अजेंद्र अजय कहते हैं कि 2018 में हमारे द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत जी को और केंद्रीय नेताओं को इस विषय पर एक विस्तृत पत्र सौंपा गया था। पत्र में देवभूमि उत्तराखंड के “वैशिष्ट्य” को कायम रखने और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्र को “विशेष अधिसूचित क्षेत्र” (Special Notified Area) करने की मांग उठाई गई थी। पत्र में पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि इत्यादि के क्रय-विक्रय के लिए विशेष प्रावधान किए जाने और समुदाय विशेष के धर्म स्थलों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी उठाई गई थी। इस हेतु हमारे द्वारा एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव दिया गया था, जो इस संबंध में विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर नए कानून के प्रारूप को तैयार कर सके।
श्री अजय कहते हैं कि यह सर्वविदित है कि देवभूमि उत्तराखंड आदिकाल से आध्यात्म की धारा को प्रवाहित करती आई है। हिंदू धर्म व संस्कृति की पोषक माने जाने वाली गंगा व यमुना के इस मायके में संतों-महात्माओं के तप करने की अनगिनत गाथाएं भरी पड़ी हैं। ऋषि-मुनियों ने ध्यान व तप कर देश—दुनिया को यहां से सनातन धर्म की महत्ता का संदेश दिया है। आज भी यहां विभिन्न रूपों में मौजूद उनकी स्मृतियों से दुनिया प्रेरणा प्राप्त करती है। यहां कदम-कदम पर मठ-मंदिर अवस्थित हैं, जिनका तमाम पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। इससे उनकी प्राचीनता, ऐतिहासिकता, आध्यात्मिकता व सांस्कृतिक महत्व का पता चलता है।
इन अनगिनत देवालयों के अलावा यहां श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री जैसे विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल स्थित हैं, जो सदियों से हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था के केंद्र रहे हैं। इस क्षेत्र के आध्यात्मिक महत्व को देखते हुए पौराणिक समय से लेकर आधुनिक काल तक प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधक व श्रद्धालु हिमालय की कंदराओं का रुख करते आए हैं और यही कारण रहा कि यह उत्तराखंड क्षेत्र देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पहाड़ों से पलायन पर आवाज उठाने वाले रतन सिंह असवाल कहते हैं कि पिछले कुछ वर्ष में पर्वतीय क्षेत्रों से रोजगार एवं अन्य कारणों से यहा के मूल—निवासियों द्वारा व्यापक पैमाने पर पलायन किया गया। इसके विपरीत मैदानी क्षेत्रों से एक समुदाय विशेष ने विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के माध्यम से पहाड़ों पर अपनी आबादी में भारी बढ़ोतरी की है। यही नहीं कई बार मीडिया एवं अन्य माध्यमों में बांग्लादेशी व रोहिग्याओं द्वारा घुसपैठ किए जाने की चर्चा भी सुनाई देती है। अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से जुड़े होने के कारण ऐसी परिस्थितियां देश की सुरक्षा की दृष्टि से आशंकित करने वाली हैं। समुदाय विशेष द्वारा तमाम स्थानों पर गुपचुप ढंग से अपने मजहबी स्थलों का निर्माण किए जाने की चर्चा भी समय-समय पर सुनाई देती है। इस कारण कई बार सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है।
उत्तराखंड में पहाड़ों पर सालों से खबरें जुटाने वाले देवेंद्र रावत कहते हैं कि बीते कुछ समय से पहाड़ी कस्बों, गांवों में बिना पहचान व सत्यापन के रह रहे लोगों की वजह से वृद्धि हुई है। विगत समय में सतपुली, घनसाली, अगस्त्यमुनि आदि स्थानों पर हुई घटनाएं, आंखें खोलने वाली हैं। इन घटनाक्रमों में पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों में तमाम तरह की आशंकाएं घर करने के साथ ही भारी आक्रोश भी व्याप्त है। इसके साथ ही “लव जिहाद” जैसी घटनाएं भी समय-समय पर सुनाई देने लगी हैं।
उत्तराखंड में एनडी तिवारी की कांग्रेस सरकार ने उत्तराखंड से बाहर के लोगों के लिए करीब पाँच हज़ार वर्ग फुट ज़मीन खरीदने की सीमा तय की। बाद में बीजेपी की खंडूरी सरकार ने इसे ढाई हजार वर्ग फुट कर दिया। त्रिवेन्द्र सरकार ने शहरी क्षेत्र से इन बंदिशों को हटा दिया और ग्रामीण क्षेत्र में बाहरी लोगों के भूमि खरीदने के नियमों में ढील दे दी। इसके पीछे तर्क ये था कि पलायन की वजह से खाली हो चुके पहाड़ी गांवों में फिर से बसावट के लिए लोग आए, परंतु सरकार के इस कदम की आलोचना इसलिए होने लगी कि गैर हिन्दू लोग पहाड़ों की तरफ रुख करने लगे।जिससे उत्तराखंड के देवभूमि स्वरूप के खंडित होने की चर्चा छिड़ गई।
देहरादून में विश्व संवाद केंद्र से जुड़े हिमांशु अग्रवाल कहते हैं कि सामरिक दृष्टि से उत्तराखंड का यह हिमालयी क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों की विशिष्ट भाषाई व सांस्कृतिक पहचान रही है। अत्यंत संवेदनशील सीमा के निकट लगातार बदल रहा सामाजिक ताना-बाना आसन्न खतरे का कारण बन सकता है। उपरोक्त तथ्य राज्य में असम जैसी परिस्थितियों का कारक भी बन सकते हैं।
श्रीनगर गढ़वाल विश्व विद्यालय में हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ कपिल पवार कहते हैं कि आदिकाल से सनातन धर्म की आस्था और हिंदू मान बिंदुओं की प्रेरणा रहे भूभाग की पवित्रता व उसके आध्यात्मिक, सांस्कृतिक स्वरूप को बरकरार रखने के लिए संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र को विशेष क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाना आज के समय की मांग है। समुदाय विशेष के मजहबी केंद्रों के निर्माण/स्थापना पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ-साथ संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र में भूमि के क्रय-विक्रय के लिए विशेष प्रावधान आवश्यक है। भू-कानून के साथ-साथ भूमि कानूनों में सुधार, चकबंदी आदि जैसे विषयों पर भी ठोस उपाय किए जाने आवश्यक हैं। इस हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाए जो इस संबंध में विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर नए कानून के प्रारूप को तैयार कर सके।
पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के कर्नल अजय कोटियाल ने भी इस बात पर जोर दिया कि उत्तराखंड देव भूमि है। इसको हम देश की आध्यात्मिक राजधानी बनाएंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी भू कानून को लेकर बयान दे चुके हैं कि वो सत्ता में आये तो सख्त भू कानून लाएंगे, हालांकि उनके पिछले शासनकाल में सबसे ज्यादा गैर हिन्दू लोगों की बसावट हुई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी कहते आये हैं कि भूमि सुधार कानूनों के लिए विशेषज्ञ अपनी—अपनी राय दे रहे हैं। सबकी राय लेकर हम जनभावना का सम्मान करेंगे।
बहरहाल, उत्तराखंड के अगले विधानसभा चुनाव में भू—कानून एक बड़ा मुद्दा बनेगा। इस विषय पर सरकार को कोई ठोस निर्णय लेना होगा।
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