उत्तराखंड ब्यूरो
उत्तराखंड सहित सभी हिमालयी राज्यों में ग्लेशियर इस साल ज्यादा पिघलने की खबरें चिंता करने वाली हैं। कुछ वैज्ञानिक इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग वजह बता रहे हैं जबकि कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि हिमालय में प्रदूषण का दबाव बढ़ रहा है।
उत्तराखंड सहित सभी हिमालयी राज्यों में ग्लेशियर इस साल ज्यादा पिघलने की खबरें चिंता करने वाली हैं। कुछ वैज्ञानिक इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग वजह बता रहे हैं जबकि कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि हिमालय में प्रदूषण का दबाव बढ़ रहा है।
उत्तराखंड के गोमुख, पिंडारी, हेमकुंड और अन्य ग्लेशियर इस साल ज्यादा पिघल रहे हैं। लद्दाख क्षेत्र में चिनाब, व्यास, रावी और सतलुज के उदगम स्थलों की घाटियों में भी गर्मी एवं उमस की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इन हिमालय के पर्वतों के बीच पहले और नई झीलो की सँख्या मिलाकर 1670 से ज्यादा हो गयी हैं। ग्लेशियर से झीलें बनना और उनका पानी रिसकर नदियों तक पहुंचने की वजह से उत्तर भारत की हिमालयी नदियों के जलस्तर में करीब चार फीसदी का इजाफा देखा जा रहा है। सबसे ज्यादा झीलें सतलुज नदी के जल प्रवाह के रास्ते देखी गयी हैं। जिनकी संख्या 770 के आस—पास बताई गयी है। जिनमें कई झीलें 10 से 20 हैक्टेयर की हैं। नई झीलों के बनने से हिमालय प्रदेशों में आपदा का खतरा बढ़ गया है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से मौसम और भू वैज्ञानिक चिंता में हैं और वे अपनी रिपोर्ट में सरकारी एजेंसियों को चेता रहे हैं कि हिमालय से ज्यादा छेड़—छाड़ न की जाए।
साल, 2013 में केदारनाथ आपदा जब आयी थी तो उसके पीछे एक वजह यह भी थी कि चौराबाड़ी झील फटी थी, जिसमें ग्लेशियर से जलभराव बढ़ रहा था और इसकी चेतावनी दस साल पहले वैज्ञानिकों ने दे दी थी। आपदा की रात उस क्षेत्र में बादल फटने से भारी बारिश हुई और तबाही का रौद्र रूप सबने देखा। इस साल चमोली जिले में दो—दो जल विद्युत परियोजनाओं के बह जाने के पीछे भी ग्लेशियरों का टूटना एक कारण बताया गया। इन दोनों घटनाओं में हज़ारों जानें गयी। अरबों की सम्पत्ति बह गई। गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर भी हर साल पिघल कर पीछे की तरफ सरक रहा है।
गोमुख के ऊपर के हिमालय में भी पर्वतों में तापमान बढ़ने से उत्तरकाशी जिले में 2011-12 में आपदा आयी थी। हिमालय में गर्मी बढ़ रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, बादल फट रहे है, पहाड़ भी दरक रहे हैं। इस बारे में एक बार भूगर्भ वैज्ञानिक पदम् विभूषण प्रोफ़ेसर खड़क सिंह वाल्दिया ने कहा था कि दुनिया का सबसे प्रदूषित क्षेत्र दिल्ली और एनसीआर है। यहां जो धुएं का गुब्बार उठता है वो मानसून की हवाओं के साथ हिमालय से जाकर टकराता है। हिमालय में अब प्रदूषित बारिश हो रही है, जिसका असर वहां की जलवायु पर हो रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। क्लाउड ब्लास्ट हो रहे हैं, जिसकी वजह से घटनाएं होती हैं।
हिमाचल प्रदेश पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद के प्रमुख एस एस रंधावा कहते हैं कि हिमालय में बन रही झीलों पर नज़र रखना जरूरी है। इनका आकार बढ़ना आपदा आने का संकेत हो सकता है। वैज्ञानिक निशांत ठाकुर कहते हैं कि इन झीलों पर सेटलाइट के जरिये नज़र रखने की कोशिश हो रही है। उत्तराखंड के भूगर्भ वैज्ञानिक बहादुर सिंह कोटलिया कहते हैं कि सरकारों को चाहिए कि वे हिमालय क्षेत्रों में धुएं का दबाव कम करें। वाहनों के प्रदूषण पर नियंत्रण, हिमालय क्षेत्रों में आवागमन में रोक लगाना जरूरी है।
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