सीआईए निदेशक विलियम बर्न्स को तालिबान से बातचीत के लिए काबुल भेजा गया था। दौरे की वजह अमेरिकी सैनिकों की वापसी की तारीख आगे बढ़ाना बताया गया है, लेकिन जानकारों का मानना है कि बात इससे कहीं आगे की है
अफगानिस्तान प्रकरण में व्हाइट हाउस की चाल, चेहरा और चरित्र समझ से परे दिखता है। अमेरिका कहता कुछ है, करता कुछ है और परिणाम कुछ और ही होता है। ताजा मामला अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए प्रमुख के काबुल जाकर तालिबानी नेता अब्दुल गनी बरादर से मिलने की खबरों को लेकर गर्माया हुआ है। अमेरिकी दैनिक द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट है कि सीआईए के निदेशक विलियम जे. बर्न्स को तालिबान से बातचीत के लिए काबुल भेजा गया था। दौरे की वजह अमेरिकी सैनिकों की वापसी की तारीख आगे बढ़ाना बताया गया है लेकिन जानकारों का मानना है कि बात इससे कहीं आगे की है।
खुफिया एजेंसी के प्रमुख बर्न्स ने बरादर के साथ काबुल जाकर बात की है। यह एक गुप्त बैठक बताई जा रही है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद, अमेरिका और तालिबानी पक्ष के बीच यह पहली उच्च-स्तरीय बातचीत थी। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने गुप्तचरी प्रमुख तथा विदेश मामलों के जानकार बर्न्स को तालिबान से अफगानिस्तान से लोगों को सही-सलामत निकाल लेने देने के बारे में बातचीत के लिए भेजा था।
दरअसल अपुष्ट खबरें हैं कि अफगानिस्तान में सरकार के स्वरूप और पहलुओं को लेकर अमेरिका तालिबान से पर्दे के पीछे बात चलाए हुए है। वह तालिबान पर अपना दबाव बनाए रखना चाहता है। बताते हैं 23 अगस्त को अमेरिका की खुफिया एजेंसी के प्रमुख बर्न्स ने बड़े वाले तालिबानी नेताओं में से एक अब्दुल गनी बरादर के साथ काबुल जाकर बात की है। यह एक गुप्त बैठक बताई जा रही है। मीडिया में अगले दिन यानी 24 अगस्त को ही इस बारे में खबरें आ पाई थीं।
द वाशिंगटन पोस्ट की खबर में किसी अमेरिकी अधिकारी के माध्यम से बताया गया है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा करने के बाद, अमेरिका और तालिबानी पक्ष के बीच यह पहली उच्च-स्तरीय बातचीत थी। इस अखबार के अुनसार, आज की परिस्थितियों में काबुल से लोगों को बाहर निकालना दूभर हो रहा है, इसीलिए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने गुप्तचरी प्रमुख तथा विदेश मामलों के जानकार बर्न्स को तालिबान से इस बारे में बातचीत के लिए भेजा था। बाइडेन स्वयं इस आपरेशन को इतिहास का सबसे चुनौतीपूर्ण अभियान बता चुके हैं।
रिपोर्ट में है कि सीआईए अपनी तरफ से तालिबान के साथ हुई इस बातचीत के बारे में कुछ भी बताने को तैयार नहीं है। लेकिन खबर है कि बाइडेन सरकार पर उसके कुछ सहयोगी दबाव डाल रहे हैं कि वह 31 अगस्त के आगे भी अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान में बनाए रखे ताकि समय रहते तालिबान के आतंक से दूर जाने के इच्छुक लोगों और पश्चिमी सेना के अफगान सहयोगियों को उस देश से बाहर निकाला जा सके।
जबकि दूसरी ओर, तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन पहले कह चुका है अगर अमेरिका 31 अगस्त के बाद भी अपने सैनिकों को अफगानिस्तान में रखता है तो उसके गंभीर नतीजे होंगे। इस चेतावनी का रुख उसने ब्रिटेन की तरफ भी मोड़ा था। रिपोर्ट कहती है कि तालिबान का नेता बरादर तालिबान की नींव डालने वाले मुहम्मद उमर का दोस्त है और तालिबान में काफी असरदार माना जाता है।
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