चीन खुलकर तालिबान के पाले में उतर आया है। काबुल स्थित अपने दूतावास के जरिए वह तालिबान लड़ाकों को खुश करने की कोशिश में, अपने लोगों से इस्लामिक तौर—तरीकों पर चलने का कह रहा है
तालिबान की मिजाजपुर्सी करने में दो देश लगभग बिछे पड़े हैं। पाकिस्तान और चीन!चीन तो तालिबान को खुश करने में पाकिस्तान को पीछे छोड़ने पर आमादा दिखता है। काबुल स्थित चीनी दूतावास ने चीनी नागरिकों को फरमान जारी कर कहा है कि वे तालिबान के बताए इस्लामिक पहनावे के हिसाब से कपड़े पहनें। इतना ही नहीं दूतावास ने कहा है कि तालिबानियों की तरह सार्वजनिक तरीके से खाना खाएं।
इस संबंध में ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट हैरान करती है। रिपोर्ट में साफ लिखा गया है कि चीनी दूतावास ने अपने नागरिकों को इस्लामिक रीति-रिवाजों का कड़ाई से पालन करने को कहा है।
अफगानिस्तान में तालिबान के चढ़ बैठने से चीन बाग—बाग दिखता है। ड्रेगन अपनी हरकतों से लगातार तालिबान के सामने पलक—पांवड़े बिछाता दिख रहा है। अब उसने 21 अगस्त को काबुल के अपने दूतावास को कहा है कि वह अफगानिस्तान में मौजूद अपने लोगों से इस्लामिक तौर—तरीके से रहने की अपील करे। इसमें इस्लामिक पहनावा, सबसे सामने खाना खाना वगैरह जैसी चीजें शामिल हैं। बेशक, तालिबान के बरादर सरीखे नेताओं ने बीजिंग के अपने दौरों में चीन को इसकी पट्टी पढ़ाई होगी।
अफगानिस्तान में रह रहे चीन के नागरिकों को एक एडवाइजरी जारी की गई है जिसमें चीनी दूतावास ने सलाह दी है कि वे काबुल स्थित हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट जाने से बचें, दूसरे झगड़े वाली जगहों से भी दूरी बना कर रखें। महीने ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी तालिबान के नेताओं से मिले थे।
ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट यह भी बताती है कि अफगानिस्तान में रह रहे चीन के नागरिकों को एक एडवाइजरी जारी की गई है जिसमें चीनी दूतावास ने सलाह दी है कि वे काबुल स्थित हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट जाने से बचें, दूसरे झगड़े वाली जगहों से भी दूरी बना कर रखें। अभी पिछले महीने ही चीन के विदेश मंत्री वांग यी चीन के बंदरगाह शहर त्यानजिन में तालिबान के नेताओं से मिले थे। तब उनका कहना था कि शायद अफगानिस्तान एक उदार इस्लामी नीति अपनाए।
तालिबान भी चीन की तरफ खास झुकाव दिखा रहा है। जिहादी तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने पिछले दिनों कहा भी था कि अफगानिस्तान को फिर से खड़ा करने में चीन मदद करे तो उसका स्वागत किया जाएगा। सुहैल ने यहां तक कहा कि चीन ने अफगानिस्तान में सुकून और सुलह पैदा करने में खास मदद की है।
इतना ही नहीं सुहैल ने चीन के सीजीटीएन चैनल को साक्षात्कार भी दिया जिसमें कहा कि चीन बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था और योग्यता वाला एक बड़ा देश है। वह अफगानिस्तान को फिर से बनाने में बड़ा मददगार हो सकता है।
एक तरफ चीन का ऐसा रवैया है तो दूसरी तरफ उसे ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट की हरकतों का भी खतरा है। इसलिए बीच बीच में वह ऐसे जुमले भी उछालता रहा है कि अफगानिस्तान को फिर से आतंकवाद का अड्डा नहीं बनने देना चाहिए। तालिबान के सत्ता में है तो इस मुसीबत से निपटने में मजबूती से उसका समर्थन करना होगा। असल में चीन को पता है कि ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के सैकड़ों जिहादी तालिबान की उठापटक के चलते अफगानिस्तान में एकजुट होने लगे हैं। ड्रेगन का चिंता है कि कहीं इससे उसके सिंक्यांग प्रांत में उइगर विद्रोह सिर न उठा ले। इसीलिए वह तालिबान की खुशामद करने में पूरी तरह जुटा दिखता है।
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