राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग ने सोशल मीडिया प्रचार के लिए 4.5 करोड़ रुपये की निविदा निकाली है। यह पहला मौका है, जब कि विभाग प्रचार पर भारी भरकम राशि खर्च कर रहा है। कहा जा रहा है कि एक चहेते अधिकारी की पारिवारिक कंपनी को ठेका देने के लिए निविदा में मनमानी शर्तें जोड़ी गई है।
राजस्थान की कांग्रेस सरकार अब अपनी छवि सुधारने में जुट गई है। पिछले साल कोरोनाकाल में करोड़ों रुपये का मास्क घोटाला हुआ, लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। इस साल वैक्सीन की बर्बादी हुई, लेकिन फिर भी सरकार ने कुछ नहीं किया। अब सोशल मीडिया प्रचार के जरिए अपनी छवि चमकाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने निविदा निकाली है। इस प्रचार पर सरकार करीब 5.40 करोड़ रुपये खर्च करेगा।
स्वास्थ्य विभाग ने 4.5 करोड़ रुपये की निविदा निकाली है। इसमें जीएसटी मिला दिया जाए तो यह रकम 5.40 करोड़ रुपये बैठती है। यह विभाग द्वारा सोशल मीडिया प्रचार के लिए जारी सबसे बड़ी निविदा है। जानकारों का कहना है कि विभाग का बजट पहले 12 लाख रुपये था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इससे इनकार कर रहा है।
ऐसा पहली बार हो रहा है कि प्रचार में स्वास्थ्य विभाग के अलावा चिरंजीवी योजना, एनएचएम, आरएमएससीएल आदि को भी शामिल किया जाएगा। बताया जा रहा है कि एक आईएएस अधिकारी के परिवार से जुड़ी सोशल मीडिया कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए निविदा में कुछ शर्तें रखी गई हैं। ठेका निम्न बोली के आधार पर नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण सेवा के आधार पर दिया जाएगा। यानी निविदा में निम्नतम बोली की शर्त हटा दी गई है। खुली निविदा की बोली 23 अगस्त को लगनी थी, लेकिन इसे बढ़ाकर 1 सितंबर कर दिया गया है। सवाल यह है कि गुणवत्ता मापने का पैमाना क्या है?
यह पहले ही कैसे तय किया जा सकता है कि सेवा प्रदाता कंपनी शतप्रतिशत मापदंडों पर खरी उतरेगी? विभाग के लोगों का कहना है कि सोशल मीडिया प्रचार के लिए इतना बजट तो केंद्र सरकार के किसी विभाग का भी नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि पिछले दिनों चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा की गोवा की निजी यात्रा के दौरान यह निविदा निकाली गई। मंत्री का कहना है कि वे निविदा का निरीक्षण कराएंगे। अगर कोई गड़बड़ी पाई गई तो इसकी जांच कराई जाएगी। वहीं, विभाग के निदेशक मेघराज सिंह रतनू का दावा है कि निविदा में किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं है।
घोटालों का सिलसिला
पिछले साल कोरोनाकाल में सवाई मानसिंह अस्पताल (एसएमएसएच) के स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मास्क मंगाए गए थे, लेकिन अस्पताल से ढाई लाख से अधिक मास्क गायब हो गए। ये मास्क जिन डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों के लिए खरीदे गए थे, उन्हें नसीब ही नहीं हुए। रेजीडेंट डॉक्टरों को तो खुद ही मास्क खरीदना पड़ा था। यहां तक कि सैनिटाइजर भी उपलब्ध नहीं कराया गया। लेकिन न तो अस्पताल प्रशासन और न ही मेडिकल कॉलेज प्रशासन को मास्क घोटाले की जानकारी थी।
अस्पताल प्रशासन यही कहता रहा कि मास्क की कोई कमी नहीं है। बाद में जब हंगामा हुआ तो मामले की जांच के लिए एक समिति बना दी गई। लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इसी तरह, देशभर में जब कोरोना वैक्सीन की किल्लत को लेकर बखेड़ा खड़ा किया जा रहा था, तब राजस्थान में वैक्सीन कचरे में फेंके जा रहे थे। अभी जयपुर के चांदपोल स्थित जननी केंद्र (जनाना अस्पताल) में दवा खरीद और भवन रखरखाव तथा भुगतान प्रक्रिया में घपले का खुलासा हुआ है। अधिकारियों ने एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए बिना निविदा के जनाना अस्पताल में 7 माह के दौरान लाखों रुपये का काम कराया। दिलचस्प बात यह है कि कंपनी को भुगतान पहले ही कर दिया गया, इसके बाद कोटेशन लिया गया।
घपला केवल भवन के रखरखाव और दवा खरीद तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उपकरणों के रखरखाव और अन्य मदों में भी हुआ है। इस फर्जीवाड़ा का खुलासा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। मामले पर लीपापोती करने के लिए अधिकारियों ने दी गई सूचना में भी मनमाने ढंग से फेरबदल किया। यहां तक कि जिस मद में पैसा खर्च हुआ उसका बिल भी नहीं दिया गया।
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