अफगानिस्तान के 61 प्रतिशत, तो पाकिस्तान के 34 प्रतिशत मुसलमानों का मानना था कि शरिया कानून गैर-मुस्लिमों पर भी लागू होना चाहिए। ऐसे मुसलमानों में पांचों वक्त नमाज पढ़ने वाले कम हैं जबकि कभी-कभार मस्जिद जाने वाले ज्यादा हैं
दुनिया में कई तरह के सामाजिक सर्वेक्षण करने वाली संस्था प्यू ने दावा किया है कि उसके एक सर्वे में अफगानिस्तान के 99 प्रतिशत मुस्लिम लोग इस्लामी शरिया कानून हिमायती थे। वे शरिया को देश का कानून बनाने के पक्षधर थे। इस संस्था के ही एक और सर्वे का निष्कर्ष था कि 84 प्रतिशत पाकिस्तानियों ने भी शरिया के पक्ष में अपनी स्वीकार्यता दिखाई थी। इस सर्वे में बताया गया था कि अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों में ऐसे लोगों की संख्या अच्छी-खासी रही जिन्होंने शरिया का समर्थन किया।
प्यू रिसर्च सेंटर ने इस सर्वे का नतीजा अप्रैल 2013 में प्रकाशित किया था। इसमें उसके हिसाब से 99 प्रतिशत अफगानी देश के आधिकारिक कानून के रूप में इस्लामिक शरिया कानून चाहते थे। ये वह दौर था जब अफगानिस्तान में अमेरिका के सैनिक तैनात थे। प्यू ने इस सर्वे में 23 देशों में इस्लामिक शरिया कानूनों को लेकर प्रश्न पूछे थे।
शरिया को बनाना चाहते थे देश का कानून
प्यू के सर्वे में अफगानिस्तान के 99 प्रतिशत मुस्लिमों द्वारा शरिया को देश का कानून बनाने के प्रति समर्थन जताया गया था। तो 84 प्रतिशत पाकिस्तानियों ने भी शरिया के लिए हामी भरी थी। इसी सर्वे में यह भी बताया गया था कि ज्यादातर दक्षिण एशियाई देशों की आबादी में ऐसे लोग बड़ी तादाद हैं जिन्होंने शरिया का समर्थन किया।
सर्वे में एक हैरान करने वाला तथ्य भी पता चला कि जो मुसलमान दिन में कई बार नमाज पढ़ते हैं उनसे कहीं ज्यादा शरिया का समर्थन उन्होंने किया था जो उतने मजहबी नहीं हैं। साथ ही, 23 में से 17 देशों में लगभग आधे मुसलमानों ने शरिया को 'अल्लाह का कहा' माना था, इनमें 81 प्रतिशत पाकिस्तानी मुसलमान शामिल थे तो 73 प्रतिशत मुस्लिम अफगानिस्तान के थे।
जो मुसलमान दिन में कई बार नमाज पढ़ते हैं उनसे कहीं ज्यादा शरिया का समर्थन उन्होंने किया था जो उतने मजहबी नहीं हैं। साथ ही, 23 में से 17 देशों में लगभग आधे मुसलमानों ने शरिया को 'अल्लाह का कहा' माना था, इनमें 81 प्रतिशत पाकिस्तानी मुसलमान शामिल थे तो 73 प्रतिशत मुस्लिम अफगानिस्तान के थे।
यह पूछने पर कि क्या शरिया सिर्फ मुस्लिमों के लिए लागू होना चाहिए या गैर-मुस्लिमों के लिए भी? इस सवाल पर अफगानिस्तान के 61 प्रतिशत तो पाकिस्तान के 34 प्रतिशत मुसलमानों का कहना था कि शरिया कानून गैर-मुस्लिमों पर भी लागू होना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में ऐसे लोगों की बहुत ज्यादा संख्या है जो घरेलू मुद्दों को निपटाने के लिए शरिया कानून के पक्ष में हैं।
हैरानी की बात है कि जब अफगानिस्तान में शरिया का राज चाहने वालों की संख्या इतनी बड़ी है तो फिर तालिबान के काबुल को कब्जाने के बाद वहां लोगों में ऐसी भगदड़ क्यों मची? क्यों लोग जान हथेली पर रखकर हवाई जहाज के टायरों से लिपटे, क्यों हवाई अड्डे की दीवार पर चढ़कर तालिबानी हत्यारों की गोली खाई? अरे, अब तो उनके पसंदीदा शरिया को लागू करने वाले आए हैं न वहां, तो यह खौफ कैसा?
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