प्रदीप सरदाना
टोक्यो ओलंपिक से पदक जीतकर लौटे खिलाड़ियों का स्वदेश लौटने पर, दिल्ली सहित देश भर में जिस तरह का स्वागत हो रहा है, वह निश्चय ही सुखद है। ये स्वागत हमारे खिलाड़ियों में तो जोश भरता ही है, साथ ही देशवासियों का ओलंपिक खेलों के प्रति उत्साह और प्रेम भी दर्शाता है।
असल में पिछले कुछ बरसों से हमारे देश में क्रिकेट के प्रति लोगों की दीवानगी जिस तरह बढ़ी है,उससे क्रिकेट एक ऐसा खेल बन गया है जिसकी चकाचौंध में हमारे कुश्ती, भारत्तोलन, मुक्केबाज़ी, निशानेबाजी और भालाफैंक जैसे प्राचीन खेल तो पार्श्व में चले ही गए। साथ ही हॉकी, फुटबाल और बैडमिंटन जैसे खेलों की अहमियत भी, क्रिकेट के सामने फीकी पड़ गयी है। इसलिए अब जब ओलंपिक में क्रिकेट से इतर अन्य खेलों में पदक जीतकर भारत लौटे खिलाड़ियों का शानदार स्वागत हो तो खुशी मिलती है। लगता है देश का एक वर्ग अब ओलंपिक खेलों में भी दिलचस्पी लेने लगा है।
इस बार यह खुशी इसलिए और भी ज्यादा है कि ओलंपिक खेलों में यूं तो भारत 120 बरसों से भागीदारी कर रहा है। लेकिन यह पहला मौका है जब इस ओलंपिक में भारत ने 7 पदक जीतकर सफलता का एक नया अध्याय लिख दिया है। देश को इस बार जहां पहली बार एथलेटिक में भाला फैंक प्रतियोगिता में नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक दिलाकर नया गौरव दिलाया है। वहाँ वह व्यक्तिगत प्रतियोगिता में अभिनव बिंद्रा के बाद, स्वर्ण पदक पाने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी भी बन गए हैं। उधर हमारी पुरुष हॉकी टीम ने भी 40 बरस बाद ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकार फिर से भारत का परचम लहराया है। भारत्तोलन में मीराबाई चानू और कुश्ती में रवि दहिया के रजत जीतने के साथ बैडमिंटन, भारत्तोलन और कुश्ती तथा हॉकी में कांस्य पदक पाकर पीवी संधु, लवलीना बोरगोहन, बजरंग पुनिया और पुरुष हॉकी टीम की सफलता से भारतवासी गदगद हैं।
फिर पिछली बार रियो ओलंपिक-2016 में हमको सिर्फ कुल दो पदकों से संतोष करना पड़ा था। उसके मुक़ाबले इस बार एक स्वर्ण के साथ कुल 7 पदक पाने से भारत का मान बढ़ा है। इससे भारत पदक तालिका में 48 वें पायदान पर पहुँच गया है। इससे पहले भारत को सर्वाधिक 6 पदक लंदन ओलंपिक में मिले थे। इसीलिए टोक्यो ओलंपिक में भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जा रहा है और खिलाड़ियों का खूब स्वागत किया जा रहा हा।
हमारे ये खिलाड़ी निश्चय ही सम्मान के सच्चे हकदार हैं। इनके कारण हमारा तिरंगा ओलंपिक में लहराया, हमारा राष्ट्रीय गान वहाँ गूंजा। लेकिन इस सबके बावजूद एक प्रश्न हमारे मस्तिस्क में भी हमेशा गूँजता है कि आखिर हम कब तक इतने कम पदकों से संतोष करते रहेंगे। यहाँ तक देश आज़ाद होने के बाद हुए ओलंपिक आयोजनों में 1976, 1984, 1988 और 1992 के चार ओलंपिक में तो भारत एक भी पदक न जीतकर खाली हाथ लौटा, इससे हमारी विश्व में बड़ी किरकिरी हुई।
ओलंपिक खेल आयोजन में भारत का 120 साल का लंबा अनुभव है। भारत ने पहली बार 1900 में पेरिस ओलंपिक में हिस्सा लेकर 2 रजत अपने नाम करके विश्व में 17 वें पायदान पर अपना नाम दर्ज करा दिया था। लेकिन उसके बाद 16 साल तक लगातार 3 ओलंपिक आयोजन में भारत हिस्सा नहीं ले सका। 1920 और 1924 के छठे और सातवें ओलंपिक आयोजन में भारत ने हिस्सा तो लिया लेकिन कोई पदक नहीं मिला। लेकिन उसके बाद 1928 के एम्सटर्डेम से हॉकी में स्वर्ण पदक जीतने के साथ एक कांस्य भी जीतकर अपनी ऐसी उपस्थिती दर्ज़ कराई कि 1980 के मॉस्को ओलंपिक तक आते आते भारत हॉकी में 8 पदक जीतकर विश्व विजेता बनता रहा। लेकिन उसके बाद ओलंपिक में भारत हॉकी में तो पिछड़ा ही साथ अन्य खेलों में भी काफी हद तक पिछड़ता रहा।
जबकि भारत विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति करते हुए विश्व में अमेरिका से चीन तक कितने ही देशों को टक्कर देकर नित नए शिखर छू रहा है। खेलों में भी क्रिकेट में भारत विश्व विजेता बनता रहा है। अन्य खेलों में एशियन गेम्स और कॉमनवैल्थ गेम्स तक भारत पदकों से अपने झोलियाँ भर्ता रहता है लेकिन ओलंपिक में दो-तीन या छह-सात पदक तक ही सिमटता जा रहा है। यहाँ तक 7 पदकों तक पहुँचने में भी हमको जिस तरह 120 साल का समय लग गया। तो इस हिसाब से 70 पदक तक पहुँचने में तो न जाने कितनी सदियाँ लग जाएंगी। आखिर वह दिन कब आयेगा जब हम भी 100 नहीं तो 70-80 पदक जीत सकेंगे।
जल्द आ सकता है वह समय
हालांकि इस बार के प्रदर्शन और सन 2014 में मोदी सरकार ने ओलंपिक खेलों को लेकर अपनी जो नयी नीतियाँ बनायीं हैं उससे लगता है कि स्थितियाँ जल्द बदल सकती हैं। बस जरूरत है देश में एक व्यापक खेल संस्कृति की, खिलाड़ियों में अपने खेल के प्रति जुनून की। साथ ही यह भी कि देश में स्कूली स्तर पर ही छोटी उम्र में खेल प्रतिभाओं की पहचान कर उन्हें बचपन से ओलंपिक के अनुरूप प्रशिक्षित किया जाये। जिससे भारत अधिक से अधिक खिलाड़ी ओलंपिक में भेज सके, अधिक से अधिक खेलों में अपनी भागीदारी कर सकें।
ओलंपिक स्पर्धाओं में शिखर पर रहने वाले देश अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और रूस से जो खिलाड़ी ओलंपिक में पहुँचते हैं उनमें से अधिकांश स्कूल स्तर से ही खेलों के लिए तराशे जाते हैं।
जबकि हमारे यहाँ इस बात पर अब गौर किया गया है। यूं भारतीय खेल प्राधिकरण 1984 में अस्तित्व में आ गया था। खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए इस केन्द्रीय संस्थान ने कुछ अच्छे कदम उठाए। लेकिन इसके बावजूद यह प्राधिकरण कई बरसों तक, देश से अधिक खेल प्रतिभाओं की खोज नहीं कर सका। अब इस संस्थान के विभिन्न राज्यों में जिस तरह नए नए खेल केंद्र बन रहे हैं उससे तस्वीर बदलेगी।
फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह व्यक्तिगत रुचि लेकर खिलाड़ियों से समय समय पर सीधे बातचीत करके उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं यह मुहीम भी रंग लाएगी। टोक्यो ओलंपिक के प्रमुख विजेता खिलाड़ियों ने भी साफ कहा कि उनकी इस जीत में प्रधानमंत्री मोदी के प्रोत्साहन का अहम योगदान है।इससे पहले देश के किसी भी पीएम ने खिलाड़ियों से इतने व्यापक स्तर पर सीधे वार्तालाप नहीं किया था।
पीएम मोदी ने सितंबर 2014 में ‘टॉप्स’ यानि ‘टार्गेट ओलंपिक पोडियम स्कीम’ की जो शुरुआत की थी वह तो जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों को खोजने में अहम बनती जा रही है। इससे ऐसे खिलाड़ी तलाशे जा रहे हैं जो अपने अच्छे खेल प्रदर्शन से पदक लेने पोडियम तक पहुँचें। इसके तहत चुने गए खिलाड़ियों को 50 हज़ार रुपए महीने की सहायता के साथ प्रशिक्षण के लिए अनेक संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध कराईं जा रही हैं।
इसी का नतीजा था कि इस बार टोक्यो गए 127 भारतीय खिलाड़ियों में से 55 खिलाड़ी क्वाटर फ़ाइनल तक और 43 खिलाड़ी सेमी फ़ाइनल तक पहुँच सके। जबकि 5 खिलाड़ी फ़ाइनल तक भी पहुंचे। यदि दीपिका कुमारी, मैरी कॉम, अमित पांचाल, विनेश फ़ौगाट, मनु भास्कर, सौरभ चौधरी और पूजा रानी जैसे हमारे स्टार खिलाड़ी अंतिम समय में नहीं चूकते तो भारत 10 से 15 पदक इस बार ही पा लेता।
ऐसी ही योजनाओं के चलते नीति आयोग ने भी 2024 तक 50 पदक प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने या इससे भी आगे जाने में ‘खेलो इंडिया’ योजना तो सोने पर सुहागा सिद्द हो सकती है। इसके अंतर्गत 2028 में भारत को ओलंपिक में एक नया कीर्तिमान दिलाना है। इसके लिए जून 2020 में देश में एक हज़ार खेलो इंडिया केंद्र बनाने की योजना बनाई गयी थी। जिसमें 217 केंद्र खोले जा चुके हैं। अब जल्द ही 7 राज्यों मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मिजोरम, गोवा, मणीपुर और अरुणाचल प्रदेश में 143 खेलो इंडिया केंद्र खोले जाएंगे। इसके बाद जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप में भी दो दो खेलो इंडिया केंद्र खोले जाएँगे। जिससे देश के कोने कोने से कम उम्र की खेल प्रतिभाओं को उन्हीं के रुचि के खेल में प्रशिक्षित करके, ओलंपिक मैदान में उतार पदकों को अपनी झोली में समेटा जा सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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