समान नागरिक संहिता-राष्ट्र की सामाजिक साख
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत दिल्ली

समान नागरिक संहिता-राष्ट्र की सामाजिक साख

by WEB DESK
Jul 25, 2021, 07:36 am IST
in दिल्ली
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

पाञ्चजन्य ब्यूरो


देश में समान नागरिक संहिता बनाने की बात प्रारंभ हुए नौ दशक से ऊपर हो गए। देश के स्वतंत्र होने पर संविधान सभा में भी यह विषय रखा गया। संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों को इससे निजी मजहबी कानूनों में हस्तक्षेप जैसा लगा जिसका उन्होंने विरोध किया। परंतु के.एम. मुंशी जैसे दिग्गजों ने सभी भ्रमों का निवारण किया  

भारत में समान नागरिक संहिता का विचार कोई नया नहीं है। स्वतंत्रता से 20 वर्ष पूर्व ही यह विचार उत्पन्न हो चुका था। इसका पहला लिखित स्वरूप 1928 में नेहरू रिपोर्ट के रूप में आया। इसे मोतीलाल नेहरू ने तैयार किया था। इस संवैधानिक मसौदे में स्वतंत्र भारत में शादी-ब्याह के मामलों को समान राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव किया गया था। तब मुस्लिमों ने इसका विरोध किया था। चूंकि नेहरू रिपोर्ट स्वतंत्र भारत के संविधान का अग्रिम मसौदा थी और इसमें भारत के लिए औपनिवेशिक स्तर की बात कही गई थी, इसलिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। बाद में दिसंबर, 1939 में इस पर विचार करने के लिए कांग्रेस का एक अधिवेशन लाहौर में बुलाया गया। इस अधिवेशन में नेहरू रिपोर्ट को रद्द कर दिया गया।

संविधान सभा
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात जब देश का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बनी तो उसकी बैठक में एक बार फिर समान नागरिक संहिता का विषय उठा। संविधान सभा ने पहले अनुच्छेद 35 के रूप में इसका अनुमोदन किया और बाद में इसे अनुच्छेद 44 में शामिल किया गया। संविधान सभा की बहस के दौरान, केएम मुंशी, अल्लादि कृष्णास्वामी और आम्बेडकर ने समान नागरिक संहिता का बचाव किया, जबकि मुस्लिम नेताओं ने तर्क दिया कि यह असामंजस्य को बढ़ावा देगी। हालाँकि, अल्लादि कृष्णास्वामी का विचार था कि ‘यह लोगों के बीच एकता और एकता की भावना पैदा करेगी।’ केएम मुंशी ने यूसीसी का समर्थन करते हुए यह भी कहा कि ‘राष्ट्र की सामाजिक साख को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।’

समर्थन में मुखर थे डॉ. अम्बेडकर
संविधान सभा की बहस के दौरान अल्लादि कृष्णास्वामी के विचारों का समर्थन करते हुए, डॉ आम्बेडकर ने कहा था कि, ‘समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ भी नया नहीं है। विवाह, विवाह विच्छेद, विरासत आदि निजी क्षेत्रों को छोड़कर देश में पहले से ही एक समान नागरिक संहिता मौजूद है, जो संविधान के ड्राफ्ट में समान नागरिक संहिता के लिए मुख्य आधार के रूप में है।’
हालांकि, आम्बेडकर ने यह भी महसूस किया कि समान नागरिक संहिता वैकल्पिक होनी चाहिए। डॉ बीआर आम्बेडकर ने एक महत्वपूर्ण तर्क यह दिया कि ‘समान नागरिक संहिता की अनुपस्थिति सामाजिक सुधारों पर सरकार के प्रयासों में बाधा उत्पन्न करेगी।’ संविधान सभा के वाद-विवाद के खंड 7 में उन्होंने कहा कि, ‘मैं व्यक्तिगत रूप से यह नहीं समझता कि धर्म को इतना विशाल, विस्तृत अधिकार क्षेत्र क्यों दिया जाना चाहिए ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और विधायिका को उस क्षेत्र पर अतिक्रमण करने से रोका जा सके। आखिर हमें यह आजादी किस लिए मिल रही है ?  हमें यह स्वतंत्रता अपनी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिल रही है, जो असमानताओं से भरी है। इतनी असमानताओं, भेदभावों और अन्य चीजों से भरी है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ नितन्तर टकराव करती रहती है। इसलिए, किसी के लिए भी यह कल्पना करना बिल्कुल असंभव है कि पर्सनल लॉ को राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाएगा।’
संसद ने विवाह, विरासत आदि में समानता की मांग करने वाले विधेयक के अनेक ड्राफ्ट प्राविधान को स्थगित कर दिया था। जिसके परिणामस्वरूप डॉ आम्बेडकर ने 1951 में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस प्रकार, डॉ आम्बेडकर समान नागिरक संहिता के समर्थन में सदैव मुखर रहे।

लोगों की सहमति से बने संहिता : नजीरुद्दीन अहमद
संविधान सभा में समान नागरिक संहिता पर चर्चा के दौरान सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने कहा कि सम्प्रदाय के विशेष धार्मिक कानून होते हैं, विशेष व्यवहार विषयक कानून होते हैं, जिनका धार्मिक विश्वासों तथा आचरण से अखंड संबंध होता है। मेरा विश्वास है कि कोई एकविध कानून बनाते समय इन धार्मिक कानूनों अथवा अर्धधार्मिक कानूनों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि व्यवहार विधि संहिता (सिविल प्रौसिजर कोड) में कई ऐसी बातें हैं जिनसे निजी कानूनों में हस्तक्षेप हुआ है और यह अत्यंत उचित हुआ है। किन्तु अंग्रेजों ने अपने पौने दो सौ वर्ष के शासन काल में कुछ मूल निजी कानूनों में हस्तक्षेप नहीं किया।  उनका उद्देश्य कानूनों में एकरूपता उत्पन्न करना था, यद्यपि वे सम्प्रदाय विशेष के निजी कानूनों के प्रतिकूल हैं। किंतु विवाह प्रणाली तथा उत्तराधिकार के कानूनों को लीजिए। उन्होंने इसमें कभी हस्तक्षेप नहीं किया। उत्तराधिकार के नियमों को भी धार्मिक आदेशों की ही परिणाम माना गया है। मेरा निवेदन है कि इन मामलों में हस्तक्षेप धीरे-धीरे होना चाहिए और समय के साथ इसमें प्रगति होनी चाहिए। मुझे इसमें संदेह नहीं है कि एक समय ऐसा आएगा जब व्यवहार कानून एकरूप होगा।

के.एम मुंशी ने किया मुस्लिम आशंका का निवारण
के.एम. मुंशी ने संविधान सभा में बहस के दौरान कहा कि समान नागरिक संहिता के विरुद्ध जो तर्क प्रस्तुत किए गए हैं, ये यह हैं -प्रथम यह कि यह खंड अनुच्छेद 19 में कथित मूलाधिकार का उल्लंघन करता है और दूसरा यह है कि यह अल्पसंख्यकों के प्रति अन्याय है। जहां तक अनुच्छेद 19 का प्रश्न है, परिषद ने इसे स्वीकार कर लिया तथा सुस्पष्ट कर दिया कि ‘इस अनुच्छेद की किसी बात से किसी वर्तमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव अथवा किसी विधि के बनाने में राज्य को अवरोध न होगा जो (क) धार्मिक आचरण से संबद्ध अथवा अन्य किसी प्रकार की ऐहिक क्रियाओं का आनियम अथवा आयंत्रण करती हो, (ख) सामाजिक कल्याण अथवा सुधार के लिए हो।’ इस अनुच्छेद का समस्त आशय यह है कि यदि तथा जब भी संसद उपयुक्त समझे या बल्कि जब भी संसद में बहुमत उपयुक्त समझे, तब देश के निजी कानूनों को एकरूप बनाने का प्रयास हो सकता है। एक और तर्क प्रस्तुत किया गया है कि एक व्यवहार संहिता का निर्माण अल्पसंख्यकों के प्रति अन्याय होगा। क्या यह अन्याय है? किसी भी उन्नत मुस्लिम देश में प्रत्येक अल्पसंख्यक जाति के निजी कानून को इतना अटल नहीं माना गया है कि व्यवहार संहिता बनाने का निषेध हो। उदाहरणार्थ तुर्की अथवा मिस्र को लीजिए। इन देशों में किसी अल्पसंख्यक को ऐसे अधिकार नहीं दिए गए हैं। किंतु मैं दूर नहीं जाता। जब पुराने साम्राज्य में केंद्रीय विधान मंडल ने शरीयत कानून पारित किया था, तब खोजा और कच्छी मैनन लोग अत्यंत असंतुष्ट थे।
वे उस समय कुछ हिंदू परंपराओं का पालन करते थे, कन्वर्जन के समय से कई पीढ़ियों से वे उनका पालन करते आए थे। वे शरीयत के अनुसार नहीं चलना चाहते थे, किंतु केंद्रीय विधान मंडल के कुछ मुसलमान सदस्यों ने, जिनकी भावना यह थी कि सारी जाति पर शरीयत कानून लागू होना चाहिए, अपनी बात मनवा ली। खोजा और कच्छी मैनन लोगों को अतीव अनिच्छा से इसे मानना पड़ा। उस समय अल्पसंख्यकों के अधिकार कहां थे? जब आप किसी जाति में एकरूपता स्थापित करना चाहते हों तो आपको केवल यही विचार करना होगा कि समस्त जाति को क्या लाभ होगा और उसके एक वर्ग के रीति-रिवाजों का विचार नहीं करना होगा।
एक महत्वपूर्ण विचार है जिसे हमें मस्तिष्क में रखना चाहिए और मैं चाहता हूं कि मेरे मुस्लिम मित्र इसे समझ लें कि जितना जल्दी हम जीवन की इस पार्थक्य भावना को भूल जाएंगे, उतना ही देश के लिए अच्छा रहेगा। धर्म को ऐसे क्षेत्रों में सीमित रखना चाहिए जो न्यायपूर्वक उसके क्षेत्र हों किंतु शेष जीवन को इस प्रकार अनियमित, एकरूपित तथा परिवर्तित करना चाहिए कि हम यथासंभव शीघ्र एक सबल तथा संगठित राष्ट्र का निर्माण कर सकें। हमारी प्रथम समस्या और सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या इस देश में राष्ट्रीय एकता स्थापित करना है। किंतु बहुत सी बातें हैं -जिनसे अब भी हमारी राष्ट्रीय एकता को गंभीर खतरा है। और यह बहुत जरूरी है कि हमारा सारा जीवन- जहां तक कि वह लौकिक क्षेत्रों से संबद्ध है -ऐसे तरीके से एकविध बनाया जाना चाहिए कि यथासंभव शीघ्र ही हम यह कहने योग्य हो जाएं कि हम अपने आपको एक राष्ट्र कहते हैं, इसलिए एक राष्ट्र नहीं हैं अपितु हम वास्तव में भी एक राष्ट्र ही हैं। अपने रहने के तरीके से, अपने निजी कानून से, हम एक प्रबल और संगठित राष्ट्र हैं।

Follow Us on Telegram

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies