आदर्श सिंह
भारत और ग्रीस में प्राचीन संबंध हैं। दोनों ही देशों ने समान किस्म का संघर्ष किया है और समान किस्म की चुनौतियां झेल रहे हैं। आतंकवाद, विस्तारवाद के आधार पर बने तुर्की-पाकिस्तान गठजोड़ को भी दोनों समान रूप से खतरा मानते हैं। ऐसे में दुनिया में सकारात्मकता चाहने वाले कई देशों की इच्छा है कि भारत और ग्रीस में परस्पर मजबूत गठबंधन हो। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ग्रीस यात्रा को इन्हीं संदर्भों में देखा जा रहा
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर जून के आखिरी सप्ताह में ग्रीस की यात्रा पर थे। इस दौरान सबकी नजर इस बात पर थी कि तुर्की और पाकिस्तान के गठजोड़ के मद्देनजर दो प्राचीन सभ्यताओं ग्रीस और भारत के संबंध कैसे आकार लेते हैं। तुर्की के आटोमन साम्राज्य को पुनर्जीवित करने और पाकिस्तान के कश्मीर हड़पने और मुगलिया साम्राज्य की पुनर्स्थापना के सपनों के मद्देनजर इन दोनों मजहबी उन्मादी देशों के खिलाफ सभ्यताओं के गठबंधन की जो चर्चाएं चल रही हैं, वे कोई ठोस स्वरूप ले पाएंगी या नहीं। ग्रीस निश्चित रूप से इसका सबसे मुखर पैरोकार है और भारत से खुलकर नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का आग्रह कर रहा है।
दरअसल जयशंकर को पिछले वर्ष ही इस दौरे पर जाना था लेकिन तब ग्रीस में वुहान वायरस की भयावहता के कारण उन्हें यह यात्रा टालनी पड़ी थी। दोनों विदेश मंत्रियों ने हालांकि वर्चुअल तरीके से वार्ता की और रक्षा, आर्थिक व प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए। दोनों देशों ने भारत और एथेंस के बीच सीधी हवाई उड़ान शुरू करने पर भी सहमति जताई। बहरहाल गौर करने वाली बात यह है कि दोनों देशों ने बार-बार इन प्राचीन सभ्यताओं के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध को रेखांकित किया।
भारत-ग्रीस के प्राचीन संबंध
इस वर्चुअल वार्ता के बाद ग्रीस के विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध बहुआयामी, गर्मजोशी से भरे और सौहार्दपूर्ण हैं। दोनों प्राचीन सभ्यताओं में परस्पर मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध हैं। जवाब में भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘सबसे प्रसिद्ध ग्रीक जो भारत आया, वह सिकंदर महान था। वह 326 ईसा पूर्व एक हमलावर सेना के साथ आया और एक मित्र के तौर पर वापस गया। भारत का हर स्कूली बच्चा जानता है कि सिकंदर और पुरु में भयंकर युद्ध हुआ था लेकिन बाद में दोनों मित्र बन गए।’’
निश्चित रूप से दोनों सभ्यताओं में चकित कर देने वाली साम्यताएं हैं। दुनिया में सभी सभ्यताओं की हस्ती मिट गई लेकिन ग्रीक और भारतीय सभ्यता अभी भी न सिर्फ जीवित हैं बल्कि दोनों ही पुनर्जागरण और पुनरुद्धार के मार्ग पर हैं। भारत ने हजार साल तक तुर्कों, अरबों और मुगलों के आक्रमणों का सामना किया। जर्जर और कमजोर हो जाने के बावजूद एक सभ्यता के रूप में हम बचे रहे और 1947 में हमारा फिर एक आधुनिक और स्वतंत्र देश के रूप में उदय हुआ। ग्रीस भी हजार साल तक तुर्क आक्रांताओं का सामना करते-करते खोखला हो गया और आखिर में 1821 में इसका स्वतंत्र देश के रूप में उदय हुआ। पिछले एक हजार वर्ष से दोनों सभ्यताओं के बीच संपर्क के सभी रास्ते बंद हो गए थे क्योंकि बीच में आटोमन और मुगल साम्राज्य थे।
तुर्की-पाकिस्तान का गठजोड़
कह सकते हैं कि समय बदल गया है। लेकिन इतिहास वहीं खड़ा है। भारत और ग्रीस के सामने आज भी वही चुनौतियां हैं जब हम देखते हैं कि तुर्की आटोमन साम्राज्य के और पाकिस्तान नव मुगलिस्तान के सपनों को पुनर्जीवित करने के प्रयास में हैं। दोनों को ही इसके लिए आतंकवाद, मजहबी उन्माद और यहां तक कि इस्लाम में फैली फिरकापरस्ती को बढ़ावा देने और इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से कोई गुरेज नहीं है। ऐसे में दोनो में अच्छे संबंध होना स्वाभाविक है। पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा करने और अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता में बैठाकर उन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के मंसूबे पाले हुए है तो तुर्की की मंशा ग्रीस के पूर्वी एजियन द्वीपों, पूर्वी भूमध्य सागर के जलक्षेत्र और पश्चिमी थ्रेस पर कब्जा करने की है। तुर्की पूरे साइप्रस को निगल जाने की फिराक में है। 1974 में वह इसके उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर ही चुका है। वह एजियन सागर में स्थित ग्रीस के द्वीपों पर भी कब्जा करने के प्रयास में है। 1996 में दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ने की स्थिति आ गई थी। आखिरकार नाटो व यूरोपीय देशों के दखल के बाद तुर्की पीछे हटा।
कश्मीर मुद्दे पर तुर्की फिलहाल संयुक्त राष्ट्र से लेकर सभी मंचों पर पाकिस्तान का सबसे बड़ा पैरोकार बनकर उभरा है। दूसरे देशों की जमीन हड़पने और मध्ययुगीन इस्लामी साम्राज्यों को पुनर्जीवित करने के पुराने प्रयासों में दोनों देश पूरी तरह एकजुट हैं। तुर्की जहां पाकिस्तान को सैन्य साजोसामान की आपूर्ति कर रहा है तो वहीं ये आशंकाएं बल पकड़ रही हैं कि पाकिस्तान अब तुर्की के परमाणु हथियार बनाने के मंसूबे को पूरा करने में सहयोग दे रहा है।
इस खतरे को हल्के में नहीं लिया जा सकता। नागोर्नो-काराबाख को लेकर आर्मीनिया के साथ संघर्ष से यह साबित हो गया है जब तुर्की और पाकिस्तान पूरी तरह से अजरबैजान के साथ हो गए। तुर्की के ड्रोन, भाड़े के जिहादियों और युद्धक्षेत्र में मौजूद तुर्क सैन्य सलाहकारों की रणनीति की वजह से आर्मीनिया को बुरी तरह घुटने टेकने पड़े और इलाके भी गंवाने पड़े।
इसी वर्ष जनवरी में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की इस्लामाबाद में बैठक हुई। इसके बाद जारी ‘इस्लामाबाद घोषणा’ में कहा गया कि तीनों देश किसी भी सीमा या क्षेत्रीय विवाद में एक-दूसरे के रुख का समर्थन करेंगे, विश्व में कहीं भी मुस्लिम अल्पसंख्यकों का समर्थन करेंगे व उनकी सुरक्षा की स्थिति पर नजर रखेंगे। विडंबना यह है कि अल्पसंख्यकों के बारे में चिंता उन्होंने जताई जो अपने देश में उनका सफाया कर चुके हैं। आर्मीनियाई आज भी तुर्कों के हाथों हुए अपने नस्ली सफाए को भूले नहीं हैं। पाकिस्तान एकमात्र देश है जिसने अब तक आर्मीनिया को मान्यता नहीं दी है। वह एकमात्र देश था जिसने उत्तरी साइप्रस पर तुर्की के कब्जे के बाद बनाए गए उत्तरी साइप्रस तुर्क गणराज्य को मान्यता दी थी। तुर्की और पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों के रूप में जाने जाते हैं। अब तो सऊदी अरब भी खुलकर यह मान रहा है।
अराजकता, विस्तारवाद और आतंकवाद तुर्की, पाकिस्तान और अजेरबैजान के इस गठजोड़ के मूल में हैं। इसे चीन की शह भी है। इससे मुकाबले के लिए सभ्यताओं के गठबंधन की मांग जोर पकड़ रही है जिसका विस्तार भारत से लेकर ग्रीस तक हो।
इसी वर्ष जनवरी में रेड लैंटर्न एनालिटिका ने जनवरी में तुर्की-पाकिस्तान गठजोड़ और इससे मुकाबले के लिए भारत व ग्रीस में सहयोग बढ़ाने के मुद्दे पर वेबिनार आयोजित किया था। इसमें ग्रीक अखबार पेंटापोस्टाग्मा के प्रधान संपादक ने पाकिस्तान के तुर्की को परमाणु तकनीक हस्तांतरित करने के खतरे से आगाह करते हुए कहा कि इससे मुकाबले के लिए दोनों देशों में गठबंधन जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत व ग्रीस को हथियारों के साझा निर्माण के बारे में सोचना चाहिए। इसी वेबिनार में ग्रीक नेता व यूरोपीय संसद के सदस्य इमैनोइल प्रैगकोस ने कहा कि भारत को पूर्वी भूमध्य सागर में अपनी नौसेना तैनात करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ग्रीस को भारत से हथियार खरीदने चाहिए और दोनों देशों को हथियारों के साझा निर्माण के बारे में सोचना चाहिए।
निस्संदेह तुर्की एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है। ग्रीस, साइप्रस, सीरिया व इराक की जमीन पर कब्जा करने के बाद वह अब मुस्लिम ब्रदरहुड को सहयोग व समर्थन देकर मिस्र को भी अस्थिर करने के प्रयास में है जबकि लीबिया में उसके भाड़े के सैनिक लूटपाट और हत्या में लिप्त हैं। आर्मीनिया के खिलाफ लगभग खुली जंग हम देख ही चुके हैं। ऐसी स्थिति में भारत, ग्रीस, साइप्रस, आर्मीनिया, सीरिया, इराक और मिस्र के बीच सभ्यताओं के गठबंधन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। ये सभी देश तब से अस्तित्व में हैं जब तुर्की और पाकिस्तान जैसी किसी चिड़िया का लोगों ने नाम तक नहीं सुना था।
बेजोड़ है ग्रीस की नौसेना
ग्रीस इसके लिए सबसे मुखर है। तुर्की के मुकाबले यह आकार में भले ही छोटा हो लेकिन 2018 में इसका रक्षा बजट 5.76 बिलियन डॉलर था। ग्रीक हजारों साल से बेजोड़ समुद्री योद्धा हैं। 1821 में स्वतंत्र होने के बाद से इसकी नौसेना कोई भी लड़ाई नहीं हारी है और वे तुर्की फौज की रग-रग से वाकिफ हैं। इसके लड़ाकू पायलट विश्व में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं और अक्सर नाटो के ‘सर्वश्रेष्ठ योद्धा’ का खिताब जीतते रहे हैं। ये पायलट नियम से ग्रीस सीमा में घुसते ही तुर्की के विमान उड़ा रहे पाकिस्तानी पायलटों को आसानी से खदेड़ते रहे हैं। लेकिन ग्रीस निश्चित रूप से अकेले तुर्की, पाकिस्तान और अजरबैजान के गठजोड़ का मुकाबला नहीं कर सकता। सिकंदर का देश आज सहायता, और सुरक्षा के लिए पुरु के देश की ओर देख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता संभालने के बाद भारत ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं। लेकिन फिलहाल यह ग्रीस और साइप्रस को नैतिक समर्थन देने जैसा ही था। अब 18 साल बाद किसी भारतीय विदेश मंत्री की ग्रीस यात्रा को इस दिशा में एक ठोस कदम माना जा सकता है लेकिन बहुत कुछ करना बाकी है। सिकंदर का देश आज नेतृत्व के लिए भारत की ओर देख रहा है। क्या हम तैयार हैं?
(लेखक साइंस डिवाइन फाउंडेशन से जुड़े हैं और रक्षा एवं वैदेशिक मामलों में रुचि रखते हैं।)
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