प्रवीण सिन्हा
अगर देखना है मेरी उड़ान को, थोड़ा और ऊंचा कर दो इस आसमान को… वास्तव में इसी नई सोच, इसी ताजे दमखम के साथ भारतीय दल टोक्यो ओलंपिक में चुनौती पेश करने गया है। पहली बार हुआ है जब भारतीय दल से दहाई की संख्या में पदकों की उम्मीदें हैं। पदकों के लिए निशानेबाजी, तीरंदाजी, मुक्केबाजी, कुश्ती, जेवलिन थ्रो और बैडमिंटन स्पधार्ओं पर भारतीयों की नजर रहेगी।इससे पूर्व भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2012 के लंदन ओलंपिक में छह पदकों का रहा है। इस बार भारतीय दल में कई विश्व नंबर एक खिलाड़ी भी हैं तो स्वर्ण की चाहत भी बढ़ी है।
खेलों के महाकुंभ का मंच सजकर तैयार हो चुका है। दुनिया के कोने-कोने से शीर्षस्थ खिलाड़ियों के जत्थे टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने के लिए जापान पहुंच चुके हैं। कुछ अब भी पहुंच रहे हैं। इस बीच, विश्व खेल जगत में दावे ठोकने का दौर शुरू हो चुका है। विश्व के कई शीर्षस्थ स्टार खिलाड़ी पदकों की होड़ में सबसे आगे चलने को कमर कस चुके हैं, जबकि इन स्टार खिलाड़ियों को मात देने के लिए कितने ही खिलाड़ियों ने रणनीति तैयार कर रखी है। यही नहीं, सबसे बड़े खेल मंच पर धूमकेतु की तरह उभरने का सपना संजोये कई नए स्टार खिलाड़ी भी 23 जुलाई की उस तारीख का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब 17वें ओलंपिक खेलों का शुभारंभ होना है। यानी, कितने ही सपनों के साकार होने, कितने ही सपनों के टूटने-बिखरने, कितने ही नए युवा खिलाड़ियों के अचंभित कर देने वाले प्रदर्शन और कितने ही इतिहास रचे जाने का दौर अब बस शुरू होने को है।
किसके दावे में कितना है दम, यह तो ओलंपिक शुरू होने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन इस बार भारतीय दावेदारी की चर्चा जोरों पर है। ऐसा नहीं है कि पदक तालिका में भारतीय दल अमेरिका, चीन, रूस और जर्मनी जैसी खेल महाशक्तियों को चुनौती देता दिखेगा। लेकिन इस बार निशानेबाज मनु भाकर, अभिषेक वर्मा, सौरभ चौधरी व रानी सरनोबत सहित भालाफेंक एथलीट नीरज चोपड़ा, मुक्केबाज अमित पंघल, पहलवान बजरंग पूनिया व विनेश फोगट, बैडमिंटन स्टार पी.वी. सिंधू और तीरंदाज दीपिका कुमारी जैसे शीर्षस्थ खिलाड़ी ओलंपिक खेलों में नया आयाम रचने को तैयार दिख रहे हैं। 2012 लंदन ओलंपिक खेलों में भारत ने कुल 6 पदक जीते थे जो भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस बार चूंकि 7-8 भारतीय खिलाड़ी या टीम विश्व में नंबर एक स्थान पर रहते हुए सशक्त दावेदारी पेश करने जा रही हैं तो इतनी तो उम्मीद की ही जा सकती है कि अगर कोई बड़ा उलटफेर न हो तो भारतीय दल लंदन ओलंपिक से बेहतर परिणाम ला सकता है। ओलंपिक खेलों के इतिहास में यह ऐसा पहला मौका है जब भारतीय खिलाड़ी महज भागीदारी के लिए नहीं, बल्कि सशक्त दावेदारी पेश करने जा रहे हैं। इसी क्रम में भारतीय खिलाड़ियों को सरकार की ओर से कुछ इस तरह से प्रोत्साहित किया गया है –
अगर देखना है मेरी उड़ान को
थोड़ा और ऊंचा कर दो इस आसमान को वास्तव में इसी नई सोच, इसी ताजा दमखम के साथ भारतीय दल टोक्यो ओलंपिक में चुनौती पेश करने गया है।
पदकों पर निशाना साधने को तैयार
ओलंपिक खेलों के इतिहास पर गौर किया जाए तो भारत की ओर से पुरुष हॉकी टीम ने सबसे ज्यादा 8 स्वर्ण पदक जीते हैं। लेकिन 2004 एथेंस ओलंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौड के रजत पदक जीतने के बाद भारतीय निशानेबाजों ने विश्व खेल जगत में नई पहचान बनाई। 2008 बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने स्वर्ण पदक जीत भारतीय निशानेबाजी को शिखर तक पहुंचाया, जबकि 2012 लंदन ओलंपिक में विजय कुमार ने रजत और गगन नारंग ने कांस्य पदक जीत ओलंपिक खेलों में पदक जीतने की आदत की परंपरा को आगे बढ़ाया। हालांकि 2016 रियो ओलंपिक में भारतीय निशानेबाज पदकों के लक्ष्य को नहीं भेद पाए, लेकिन 3-4 मौके ऐसे आए जब वे पदक के बेहद करीब आने के बावजूद उससे दूर रह गए। इस बार भारत के 15 निशानेबाजों ने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया है और लंबे समय से चल रहे भारत के विदेशी पिस्टल कोच पावेल स्मिरनोव ने दावा किया है – इस बार सिर्फ 2-3 नहीं, बल्कि भारत के सभी निशानेबाज स्वर्ण सहित अन्य पदकों पर निशाना साधने में सक्षम हैं।
हालांकि ओलंपिक जैसे खेल के महामंच पर इतना बड़ा दावा करना आसान नहीं होता इसलिए स्मिरनोव का दावा ज्यादा उत्साही माना जाएगा। लेकिन पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में अभिषेक वर्मा और सौरभ चौधरी का क्रमश नंबर एक और दो वरीयता के साथ उतरना और मनु भाकर व सौरभ चौधरी का 10 मीटर एयर पिस्टल मिश्रित टीम स्पर्धा में पिछले दो वर्ष में लगातार पांच विश्व चैंपियनशिप मुकाबलों में स्वर्ण पदक जीतना कोई आम बात नहीं है। अगर कहीं कोई भारी उलटफेर न हो तो इन तीनों निशानेबाजों से हम स्वर्ण पदकों की उम्मीद कर सकते हैं। यही नहीं, टोक्यो ओलंपिक में राही सरनोबत महिलाओं की 25 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में, यशस्विनी सिंह देसवाल महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में और ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर पुरुषों की 50 मीटर एयर रायफल थ्री पोजिशन में विश्व के नंबर एक खिलाड़ी के रूप में दावेदारी पेश करेंगे। इनसे अगर भारतीय खेलप्रेमियों को पदक जीतने की उम्मीद है तो वह जायज है। इन सबके अलावा प्रधानमंत्री ने 21 वर्षीय युवा निशानेबाज एलावेनी वलारिवान को शुभकामनाएं देते हुए कहा भी कि— ‘आप पर हमें नाज है और पदक की उम्मीद भी।’ एलावेनी महिलाओं की एयर रायफल स्पर्धा में टोक्यो ओलंपिक की नंबर एक और विश्व वरीयता क्रम की नंबर 2 खिलाड़ी के रूप में चुनौती पेश करेंगी। यही नहीं, अपूर्वी चंदेला, अंजुम मुद्गिल और दिव्यांश सिंह पंवार जैसे निशानेबाजों का दिन सही रहा तो ओलंपिक पदक इनकी जद से दूर नहीं है। हम सभी भारतीयों को 24 जुलाई की तारीख का इंतजार रहेगा जबसे निशानेबाजी की स्पधार्एं शुरू होंगी।
पहलवानों का पदक पर दांव
पिछले तीन ओलंपिक खेलों में कुश्ती एक ऐसी स्पर्धा रही है जिसमें भारतीय पहलवान लगातार पदक जीतते चले आ रहे हैं। सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त जैसे दिग्गजों ने पदक जीतते हुए भारतीय पहलवानों में यह विश्वास जगाया कि कड़ी मेहनत और दमदार तकनीक के बल पर ओलंपिक पदक जीता जा सकता है। इसके बाद 2016 रियो ओलंपिक में साक्षी मलिक कांस्य पदक जीत ओलंपिक में पदक हासिल करने वाली देश की पहली महिला पहलवान बनीं। इस समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी इस बार बजरंग पूनिया और विनेश फोगट के मजबूत कंधों पर है। चूंकि दोनों ही पहलवान विश्व वरीयता क्रम में पहले स्थान पर हैं और निरंतर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो दोनों से ओलंपिक पदकों की उम्मीद लाजमी है।
मुक्के में है दम
टॉप्स (टारगेट ओलंपिक पोडियम) और अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भागीदारियों के अनुभव के बल पर इस पर भारतीय मुक्केबाजों ने भी पदक की उम्मीद बंधाई है। इनमें सबसे ऊपर पुरुषों के फ्लाईवेट (52 किग्रा) वर्ग में अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी महासंघ (आईबा) की वरीयता सूची में नंबर एक स्थान पर चल रहे अमित पंघल का नाम आता है। अमित ने मार्च 2019 में एशिया ओसनिया ओलंपिक क्वालीफायर में फिलीपींस के कार्लो पालम को 4-1 से पछाड़ते हुए टोक्यो ओलंपिक में अपनी जगह पक्की की। अमित पंघल 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के अलावा 2018 राष्ट्रकुल खेलों में भी पदक जीतते हुए न केवल एशिया के शीर्षस्थ मुक्केबाज बने, बल्कि ओलंपिक खेलों में पदक के प्रबल दावेदार के रूप में भी सुर्खियों में आ गए थे। अमित के अलावा लंदन ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता एम सी मैरीकॉम के नेतृत्व में सिमरनजीत कौर, लवलिना बोंगोहेन और पूजा रानी जैसी महिला मुक्केबाज भी चुनौती पेश करने में सक्षम हैं। मैरीकॉम ने तो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के इरादे से टोक्यो के खेलगांव में कदम रखा है।
इन पर भी रहेंगी नजरें
भारत के महानतम एथलीट दिवंगत मिल्खा सिंह ने किसी भारतीय के हाथों में एथलेटिक्स का ओलंपिक पदक जीतने का सपना संजोया था। इस बार पूरी संभावना है कि जेवलिन थ्रो के विश्व वरीयता क्रम में तीसरे स्थान पर मौजूद नीरज चोपड़ा मिल्खा सिंह के अलावा करोड़ों भारतीय खेलप्रेमियों के सपने को पूरा करने में सफल होंगे और टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतकर इतिहास रचने में सफल रहेंगे। बचपन में मोटापा दूर करने के लिए पानीपत (हरियाणा) स्पोर्ट्स स्टेडियम में नीरज ने जो एक बार जेवलिन (भाला) छुआ और बेहतर भविष्य की ओर उछाला कि उनकी ऊंची उड़ान आज भी जारी है। नीरज ने 2018 राष्ट्रकुल खेलों में स्वर्ण पदक जीत इतिहास रचने के अलावा उसी वर्ष जकार्ता एशियाई खेलों में 88.06 मीटर की दूरी तक भाला फेंकते हुए स्वर्ण पदक जीता था। नीरज का यह सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन पिछले रियो ओलंपिक में पदक जीतने के लिए काफी होता। इस बीच, कोरोना और चोटों की वजह से नीरज की ओलंपिक तैयारियों पर थोड़ा असर जरूर पड़ा, लेकिन इन दिनों वह अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के करीब भाला फेंकने में सफल हो रहे हैं। अगर नीरज 90 मीटर से ज्यादा भाला फेंकने में सफल रहे तो उनका पदक जीतना तय होगा।
इसके अलावा बैडमिंटन में पी वी सिंधू भारत की सबसे बड़ी उम्मीद हैं क्योंकि उन्होंने विश्व की कोई भी ऐसी खिलाड़ी नहीं है जिसे हराया न हो। सही ड्रा मिलने पर सिंधू से पदक की काफी उम्मीद की जा सकती है। दूसरी ओर, भारतीय तीरंदाजों से इस बार उम्मीद है कि उनके निशाने ओलंपिक पदक भेदने में सफल होंगे। विश्व की नंबर एक तीरंदाज दीपिका कुमारी से व्यक्तिगत और मिश्रित टीम रिकर्व स्पर्धा में पदक की काफी उम्मीदें हैं। हालांकि विश्व चैंपियनशिप में अक्सर शानदार प्रदर्शन करने के बाद दीपिका के तीर विशेषकर ओलंपिक खेलों में भटक जाते हैं। लेकिन इस बार लंबी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के अनुभव और पति अतानु दास के साथ ने दीपिका को ओलंपिक पदक के प्रबल दावेदारों में शामिल कर दिया है। विश्व वरीयता क्रम में नौवें स्थान पर चल रहे अतानु विश्व के कई दिग्गजों को हराकर काफी सफलताएं हासिल की हैं। .
हीरे तलाशे और तराशे
उत्साह और युवा जोश से भरपूर भारतीय खिलाड़ी आज अगर सशक्त दावेदारी पेश करने में सक्षम हैं तो इसके पीछे सरकार की टार्गेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) और जमीनी स्तर पर से खिलाड़ियों को तलाशने व तराशने के लिए (टैलेंट सर्च स्कीम) खेलो इंडिया प्रतियोगिताओं के आयोजन ने भारतीय खेलों के लिए संजीवनी बूटी का काम किया है। यह अतिशयोक्ति नहीं, एक सच है जो नए भारत के बदलते खेल जगत को नई दिशा और दशा देने वाला कदम साबित होगा।
प्रधानमंत्री की पहल
पिछले 6-7 वर्षों के प्रयास के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत सरकार की नीतियों और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जबरदस्त प्रोत्साहन के बाद भारतीय दल एक खेल महाशक्ति के रूप में चुनौती पेश करने जा रहा है। इस क्रम में इस बात की चर्चा जरूरी है कि – कई बार देखा गया है कि ओलंपिक में पदक जीतते ही कोई भारतीय रातोंरात नायक बन जाता है और उसे पुरस्कार राशि व सम्मान देने की लंबी लाइन लग जाती है। सफलता हासिल करने से पहले ज्यादातर खिलाड़ी हाशिए पर रहते हैं और कई तो गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। कोई राजनेता या शीर्ष पर आसीन प्रधानमंत्री आज तक ओलंपिक खेलों में भाग लेने गए भारतीय दल को उस तरह से शुभकामनाएं या प्रोत्साहन देते नहीं दिखे, जैसी पहल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की है। उन्होंने कई मौकों पर खिलाड़ी विशेष का नाम लेकर उन्हें ओलंपिक में पदक जीतने के लिए प्रेरित किया तो पदक के प्रबल दावेदारों को वे सारी अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं दिलार्इं जिसकी बदौलत वे देश का नाम रौशन करने में सफल हुए।
इस क्रम में प्रधानमंत्री ने वर्चुअल बातचीत के दौरान उन सभी भारतीय खिलाड़ियों को शुभकामनाएं दीं जिनसे टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने की उम्मीद है और ओलंपिक पोडियम पर खड़े होने के लिए खूब प्रोत्साहित किया। उन्होंने बताया कि वे (खिलाड़ी) 130 करोड़ भारतीयों की उम्मीद हैं और देश को खेल महाशक्ति बनाने में सक्षम भी। वास्तव में प्रधानमंत्री की यह पहल विशेष है, अनोखी व प्रेरणादायी है और इतिहास रचने की ओर बढ़ा कदम भी। अपने एक संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा भी – एक खिलाड़ी दुनिया के किसी कोने में हाथ में तिरंगा लेकर दौड़ता है तो सारे हिंदुस्तान में ऊर्जा भर देता है।
खेलप्रेमी होंगे निराश
हर देश का खेल दल टोक्यो पहुंच रहा है, लेकिन इस बार मेजबान देश को छोड़ दुनिया भर के तमाम खेलप्रेमियों की राह टोक्यो तक नहीं जा पा रही है। गगनभेदी शोरशराबे से गुंजायमान स्टेडियमों में दर्शकों का कोना काफी हद तक खाली सा रहेगा जो वर्षों तक उन्हें (खेलप्रेमियों को) सालता रहेगा। खेलों का यह महाकुंभ जब शुरू होगा तो विभिन्न स्टेडियमों में मेजबान जापान के ही चंद हजार खेलप्रेमियों की मौजूदगी रहेगी। यह न किसी खेल मेले के आयोजन के लिए उपयुक्त माहौल कहा जाएगा और न ही दुनिया भर के खेलप्रेमियों का उत्साह बढ़ाने वाली परिस्थिति होगी। कारण – कोरोना की वैश्विक महामारी की मार। वैसे भी, कोरोना महामारी के कारण 2020 टोक्यो ओलंपिक खेलों का आयोजन एक साल के लिए स्थगित करना पड़ा। उस पर से स्टेडियमों में उपस्थित न रहने के कारण दुनिया भर के खेलप्रेमियों को निश्चित तौर पर निराशा होगी। लेकिन संतोष इस बात का है कि पूरे विश्व में करोड़ों खेलप्रेमी खेलों के महाकुंभ का सीधा प्रसारण टीवी या सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर देख सकेंगे। जाहिर है, ओलंपिक खेलों के प्रति उन खेलप्रेमियों का उत्साह कहीं कमतर नजर नहीं आएगा।
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