अरुण कुमार सिंह, फरीदाबाद से
दिल्ली-फरीदाबाद की सीमा पर स्थित अरावली वन क्षेत्र में बसा नई खोरी गांव जमीन जिहादियों, लव जिहादियों, बलात्कारियों, हत्यारों, जेबकतरों और चोरों का अड्डा बन चुका है। जमीन जिहाद का हाल यह है कि 80 एकड़ जमीन के अंदर 16 बड़ी-बड़ी मस्जिदें, आठ मदरसे और चार चर्च बन गए हैं
इस समय ‘जमीन जिहाद’ यानी मस्जिद और मदरसों के नाम पर जमीन कब्जाने का ‘खेल’ देखना हो तो आप नई खोरी गांव की ओर रुख कर सकते हैं। यह गांव दिल्ली और फरीदाबाद की सीमा पर अरावली वन क्षेत्र के अंदर है। सर्वोच्च न्यायालय ने जमीन माफिया द्वारा वन क्षेत्र में बसाए गए इस अवैध गांव को तोड़ने का आदेश दिया है। उम्मीद है कि जल्दी ही इस गांव के सभी घरों को तोड़ दिया जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तोड़-फोड़ में वे ‘बेचारे’ लोग बेघर हो जाएंगे, जिन्होंने एक-एक पाई जोड़कर अपने लिए आशियाना बनाया था। यह अलग बात है कि इनके साथ धोखा हुआ है। जमीन माफिया ने वन क्षेत्र की भूमि इन्हें बेच दी है, जो किसी भी तरह से वैध नहीं है। सरकारी जमीन को, वह भी वन क्षेत्र, कोई बेच नहीं सकता। लेकिन वन विभाग, नगर निगम और पुलिस के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से जमीन माफिया ने लोगों को वन क्षेत्र की जमीन बेच दी। इसलिए जंगलों के बीच एक अवैध गांव बस गया, जिसे नई खोरी कहा जाता है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने गांव के घरों को तोड़कर वहां पेड़ लगाने को कहा है।
दुर्भाग्य से यह अवैध गांव जमीन जिहादियों के लिए ‘स्वर्ग’ बन गया है। सूत्रों ने बताया कि पिछले 15 साल के अंदर नई खोरी गांव में लगभग 10,000 घर बने। इसके अलावा 16 मस्जिदें, आठ मदरसे और चार चर्च बने हैं। गांव में लगभग 20 छोटे-छोटे मंदिर भी हैं और ये किसी न किसी घर की चारदीवारी के अंदर हैं। यानी ये मंदिर व्यक्तिगत हैं। जिसके पास कुछ अधिक जमीन थी, उन्होंने पूजा-पाठ के लिए घर के अंदर ही मंदिर बना लिया है। पर मस्जिदें बड़ी-बड़ी हैं। अकबरी मस्जिद का क्षेत्रफल तो लगभग एक बीघा है। लगभग दो साल से बन रही इस मस्जिद का निर्माण कार्य अभी बंद है। इसका संचालक मौलाना मिनाज है, जो मेवात का रहने वाला है।
यह गांव कई हिस्सों में बंटा हुआ है। एक हिस्से का नाम बंगाली कॉलोनी है। सूत्रों ने बताया कि इसमें लगभग 5,000 लोग रहते हैं। ये सभी बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए हैं। इन दिनों बंगाली कॉलोनी में रमजानी मस्जिद बन रही है। इसका संचालक मोहम्मद ईसा है। गांव के ही एक व्यक्ति ने बताया कि जो बांग्लादेशी रोजी-रोटी के लिए भारत आते हैं, यहां वे झुग्गियों में रहते हैं, पर उनके पास इतना पैसा कहां से आता है कि वे लोग मस्जिद बनाने लगते हैं?
इस गांव में जिस तेजी से मस्जिदें और मदरसे बन रहे हैं, वे यह बताने के लिए काफी है कि जमीन जिहादी इनकी आड़ में अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। अक्सर देखा गया है कि घर तो बाद में बनते हैं, पहले मस्जिद बनती है। लोगों ने बताया कि गांव से लगे वन क्षेत्र में पहले मस्जिद बनती है, फिर उसके आसपास लोगों को बसाया जाता है। इसलिए लोग कहते हैं कि जिहादी ताकतें यहां मस्जिदों का निर्माण करवा रही हैं। गांव में मुल्ला कॉलोनी, इस्लाम चौक, चर्च कॉलोनी, खालसा कॉलोनी भी हैं।
खोरी की कुल आबादी लगभग 70,000 है। इनमें करीब 40 प्रतिशत मुसलमान हैं। यह गांव हत्या, छीना-झपटी, चोरी, लूट, मादक पदार्थों की तस्करी, अवैध हथियारों की बिक्री आदि के लिए बदनाम है। स्थानीय लोगों के अनुसार इन कार्यों में ज्यादातर मुस्लिम शामिल हैं। अली जान, अब्दुल कलाम, अब्दुल सलाम, लुक्का, अमन, कालू— ये कुछ ऐसे नाम हैं, जिनके कारण यह गांव बदनाम है। ये लोग बलात्कार, मार-पीट, लूट-पाट, हत्या जैसे मामलों के आरोपी हैं। फरीदाबाद के सूरज कुंड और दिल्ली के प्रह्लादपुर थाने में इस गांव के अनेक लोगों के खिलाफ मामले दर्ज हैं। यहां के बदमाशों ने तो कई बार पुलिस पर भी हमला किया है। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अनुपम राज कहते हैं, ‘‘बांग्लादेशी घुसपैठिए फरीदाबाद के विभिन्न सेक्टरों के साथ लगे वन क्षेत्रों में भी बस चुके हैं। ये लोग रात में मुहल्लों में आतंक फैलाते हैं। इन्हें पकड़कर वापस बांग्लादेश भेजने की जरूरत है। ऐसा नहीं होगा तो शांति-पसंद लोग फरीदाबाद के अनेक सेक्टरों से निकल जाएंगे।’’
ऐसे बसा खोरी गांव
खोरी गांव दो भाग में बंटा है— पुरानी खोरी और नई खोरी। लोगों ने बताया कि पुरानी खोरी 70 के दशक में अस्तित्व में आया था। उन दिनों खोरी गांव के पास पत्थरों का खनन होता था। अधिकतर खनन मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार के रहवासी थे। जो लोग खनन का कार्य करवाते थे, उन्हीं लोगों ने मजदूरों को रहने के लिए जंगल के बीच जगह दे दी। उसी को बाद में खोरी गांव कहा जाने लगा। पुरानी खोरी के ज्यादातर लोग हिंदू हैं।
लोगों ने बताया कि 2005 के बाद जमीन माफिया सक्रिय हुआ। ये लोग जंगल के बीच ही छोटे-छोटे भूखंड काट कर बेचने लगे, जो अवैध था। इसलिए किसी के पास जमीन के वैध कागज नहीं हैं। इस अवैध कारोबार में ज्यादातर स्थानीय दबंग हिंदू लगे थे। अब इनमें से कुछ लोगों पर सरकारी जमीन बेचने का मामला दर्ज हुआ है। इनके साथ कुछ मुसलमान थे, जो ग्राहक लाते थे। ये लोग ज्यादातर ग्राहक मुसलमान ही लाए। इस तरह जिस हिस्से में मुसलमानों की आबादी अधिक हो गई, उसे नई खोरी के नाम से जाना जाने लगा। जैसे-जैसे मुसलमानों की आबादी यहां बढ़ी, वैसे-वैसे यहां जिहादी तत्व भी आने लगे।
मेवात से संपर्क
गौरतलब है नई खोरी गांव में मेवात के जिहादी तत्वों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कहा जाता है कि यही तत्व मस्जिदों और मदरसों का निर्माण करवा रहे हैं। फरीदाबाद के एक शिक्षाविद् वी.के. शर्मा को आशंका है कि नई खोरी गांव दिल्ली और मेवात को जोड़ने का एक माध्यम बन चुका है। यह आगामी समय के लिए खतरे की घंटी है। दरअसल, अरावली वन क्षेत्र के एक हिस्से में तुगलकाबाद (दिल्ली) पड़ता है, तो दूसरे हिस्से में बड़कल (मेवात) है। कुछ लोगों ने बताया कि बाहर से दिल्ली आने वाले असामाजिक तत्व पहले नई खोरी में शरण लेते हैं और इसके बाद जंगल के रास्ते से मेवात में प्रवेश करते हैं। इन लोगों ने यह भी बताया कि जिहादी तत्व एक षड्यंत्र के अंतर्गत ही अरावली वन क्षेत्र पर कब्जा कर रहे हैं।
वामपंथी हुए सक्रिय
जब से सर्वोच्च न्यायालय ने नई खोरी गांव को तोड़ने का आदेश दिया है, तब से जेएनयू के छात्र वहां जाने लगे हैं। ये लोग मानवाधिकार उल्लंघन के नाम पर स्थानीय लोगों को भड़काते हैं। यही नहीं, पिछले दिनों वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर भी वहां गर्इं। इसके अलावा किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने भी यहां के लोगों को भड़काने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। चढूनी ने तो हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल को लेकर बहुत ही आपत्तिजनक बातें कहीं। पाटकर, चढूनी जैसे लोगों का कहना है कि गांव को उजाड़ना मानवाधिकार का उल्लंघन है, लेकिन ये लोग इस प्रश्न का उत्तर नहीं देते कि 80 एकड़ जमीन के अंदर 16 मस्जिदें बनाने की क्या जरूरत है? बांग्लादेशी घुसपैठ पर भी ये कुछ नहीं बोलते। उधर नई खोरी गांव के अपराधियों के कारण फरीदाबाद के लोग परेशान हैं, इन पर ये लोग कुछ नहीं बोलना चाहते।
नई खोरी गांव में चर्च से जुड़ा निर्मल गोरोना भी सक्रिय है। कहा जाता है कि गांव में निर्मल ने ही चर्च बनवाया है और अभी भी एक चर्च का निर्माण हो रहा है। यह भी माना जाता है कि निर्मल के प्रयास से सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और अपने को मानवाधिकार कार्यकर्ता बताने वाले कोलिन गोन्जावेल्स गांववासियों का मुकदमा लड़ते हैं। कोलिन बड़े और महंगे वकील हैं। इसलिए यह सवाल उठता है कि इतने महंगे वकील के लिए गांव वाले कहां से पैसा लाते हैं!
सर्वोच्च न्यायालय तक कैसे पहुंचा मामला
बता दें कि 2010 में भी नई खोरी गांव को तोड़ने का आदेश हुआ था, लेकिन उस समय कांग्रेस की सरकार के कारण गांव वालों को राहत मिल गई थी। इसके बाद गांव के कुछ अत्युत्साही लोगों ने गांव को नियमित करने के लिए जिला न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया। लोगों ने यह भी बताया कि मुकदमे के नाम पर गांव वालों से लाखों रु. का चंदा इकट्ठा किया गया और जिन लोगों ने यह काम किया, वही पैसा डकार गए। चूंकि गांव जंगल की जमीन पर बसा है, इसलिए इसको नियमित किया ही नहीं जा सकता। यह जानते हुए भी चंदा जमा करने वाले लोग अदालत पहुंच गए। ये लोग पहले जिला न्यायालय, फिर उच्च न्यायालय में मुकदमा हार गए। इसके बाद कुछ मानवाधिकार संगठनों की सलाह पर ये लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए। वहां कोलिन गोन्सावेल्स ने गांव वालों की ओर से बहस करते हुए कहा कि यह मानवाधिकार का मसला है, लेकिन शीर्ष अदालत ने उनकी बात नहीं मानी और आदेश दिया कि छह महीने के अंदर इस वन क्षेत्र को खाली किया जाए। इस मामले में कोलिन की दोहरी नीति पर लोग चुटकी ले रहे हैं। बता दें कि कुछ समय पहले कोलिन ने जंगल बचाने के एक मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में बहस की थी। अब वे जंगल में बसे गांव को बचाने के लिए अदालत में बहस कर रहे थे। इस पर लोग कह रहे हैं, ‘‘कोलिन कभी जंगल बचाने के लिए आते हैं, तो कभी जंगल को उजाड़ने वालों को बचाने के लिए आते हैं। तय करें कि वे किसके साथ हैं!’’
जमीन हरियाणा की, सुविधा दिल्ली की
नई खोरी गांव का ज्यादातर हिस्सा हरियाणा में पड़ता है, लेकिन इसकी सीमा दिल्ली से सटी है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता इस गांव में बिजली और पानी उपलब्ध कराते हैं। प्रतिदिन पानी के सैकड़ों टैंकर दिल्ली से यहां भेजे जाते हैं। यही नहीं, गांव की सड़कें भी आम आदमी पार्टी के नेता ही बनवा रहे हैं। दरअसल, गांव में रहने वाले अधिकतर लोग पहले दिल्ली में रहते थे। इसलिए उनके नाम दिल्ली की मतदाता सूची में दर्ज हैं और ये लोग दिल्ली के तुगलकाबाद विधानसभा क्षेत्र के लिए मतदान करते हैं। यही कारण है कि दिल्ली के नेता इनकी मदद करते हैं। कुछ लोग हरियाणा की बड़कल विधानसभा के लिए भी वोट करते हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।
कन्वर्जन का जोर
नई खोरी गांव में कन्वर्जन का काम भी तेजी से चल रहा है। विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि अब तक 300 लोगों को ईसाई बनाया जा चुका है। इसके लिए ‘बंधुआ मुक्ति मोर्चा’ के कार्यकर्ता लगे हुए हैं। उल्लेखनीय है कि यह संगठन दिवगंत स्वामी अग्निवेश ने खड़ा किया था। गांव के एक व्यक्ति ने बताया कि अग्निवेश भगवाधारी जरूर थे, लेकिन उनका काम कन्वर्जन कराना था। उन्होंने बंधुआ मुक्ति मोर्चा के जरिए कन्वर्जन का ही काम किया था। आज उन्हीं के अनेक चेले इस काम को जारी रखे हैं। अब इस संगठन को निर्मल गोरोना और दाबड़ा प्रसाद (प्रशांत) चला रहे हैं। कन्वर्जन का पूरा काम यही लोग देख रहे हैं।
इन हरकतों और घटनाओं को देखते हुए ही कहा जा रहा है कि अरावली की इस हरित पट्टी को पूरी तरह इस्लामी रंग में रंग देने का षड्यंत्र जारी है। भला हो सर्वोच्च न्यायालय का, जिसके एक आदेश से यह साजिश देश के सामने बाहर आई।
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