सुदेश गौड़
कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस कौशिक चंदा ने नंदीग्राम चुनाव के मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र के आधार पर स्वयं को सुनवाई से अलग कर लिया है। परंतु ऐसा करते वक्त उन्होंने अपनी टिप्पणियों में जो सवाल उठाए हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने लिखा है कि हर व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव हो सकता है लेकिन यह सोच बड़ी ख़तरनाक है कि इस आधार पर कोई भी न्यायाधीश निर्लिप्त भाव से फ़ैसला नहीं कर सकता है।
कोलकाता: बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी न्यायपालिका पर बिलकुल भी भरोसा नहीं करती है। यह बात आज उस समय स्पष्ट हो गई जब कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कौशिक चंदा ने ममता बनर्जी के उस याचिका पर सुनवाई करने से अपने को अलग कर लिया जिसमें उन्होंने (ममता बनर्जी ने) हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुवेंदु अधिकारी की नंदीग्राम से हुई जीत को चैलेंज किया था।
जस्टिस कौशिक चंदा ने ममता बनर्जी के आग्रह पर ख़ुद को इस मामले से अलग कर लिया है पर जिस तरीक़े से ममता बनर्जी ने जस्टिस कौशिक चंदा के बारे में जो टिप्पणियाँ कीं, न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह किया, उस तरीक़े को देखते हुए उन पर 5 लाख रुपया की कॉस्ट लगायी है। आज सुबह फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस चंदा ने कहा कि हर व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव हो सकता है लेकिन यह सोच बड़ी ख़तरनाक है कि इस आधार पर कोई भी न्यायाधीश निर्लिप्त भाव से फ़ैसला नहीं कर सकता है।
उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि इस मामले में कॉन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंट्रेस्ट कहां है। आवेदक ममता बनर्जी ने न्यायाधीश की विश्वसनीयता पर अंगुली उठाई है । इस केस को सुनने में मेरी कोई व्यक्तिगत रुचि भी नहीं है, न ही मुझे इस केस की सुनवाई करने में किसी प्रकार का संकोच है। यह मेरा संवैधानिक कर्तव्य है कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा मुझे दिए गए केस की सुनवाई करूं। यद्यपि उन्होंने कहा कि मैं स्वयं को इस केस से अलग करता हूँ। चूँकि इस मामले में राज्य की राजनीति से जुड़े कुछ प्रमुख लोग शामिल हैं। कुछ मौक़ा परस्त लोग, यदि मैं इस केस से अपने को अलग नहीं करूँगा तो समय समय पर समस्याएं खड़ी करते रहेंगे और इस बेंच के द्वारा इस मामले की सुचारु रूप से सुनवाई संभव नहीं हो सकेगी। यदि ऐसा होता है तो ये न्याय हित के विरुद्ध होगा कि सुनवाई के दौरान किसी न किसी प्रकार की बाधाएँ आती रहें। इस प्रकार के किसी भी प्रयास को प्रारंभिक दौर में ही समाप्त किया जाना ज़रूरी है। इस केस को किसी भी आम व सामान्य केस की तरह निरंतर व बग़ैर किसी बाधा के सुनवाई होनी चाहिए। इसी बिन्दु को ध्यान में रखकर मैं अपनी लिस्ट से इस केस को अलग करता हूँ।
याचिकाकर्ता के पूर्वाग्रह जज को केस से अलग करने का आधार नहीं
अपने आदेश में जस्टिस चंदा लिखते हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह मान लिया है कि मुझे पूर्णकालिक जज नियुक्त किए जाने की पुष्टि का उन्होंने विरोध किया था। यह आशंका महत्वपूर्ण नहीं है।
किसी भी जज की नियुक्ति के आधार पर भी कोई याचिकाकर्ता जज को केस से अलग करने का आधार नहीं बना सकता है। याचिकाकर्ता के अपने पूर्वाग्रहों के चलते न्यायाधीश पर संदेह नहीं किया जा सकता है। यदि मेरे बारे में याचिकाकर्ता का यह तर्क स्वीकार कर लिया जाता है तो उनके चुनाव संबंधी कोई भी मामला इस कोर्ट में नहीं सुना जा सकेगा क्योंकि न्यायालय में नियुक्त हर जज के बारे में या तो उन्होंने सहमति दी होगी या विरोध किया होगा।
जस्टिस चंदा ने इस बिंदु पर भी घोर आपत्ति प्रकट की कि ममता बनर्जी ने किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध में अति गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक किया है। ममता बनर्जी ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर जस्टिस चंदा को पूर्णकालिक जज बनाए जाने का विरोध किया था। जस्टिस चंदा का मानना है कि ऐसा जानकारी सार्वजनिक करके ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की जो शपथ ली थी, उसका उल्लंघन हुआ है।
ममता का पत्र परंपरा के विपरीत
उन्होंने कहा कि ये सामान्य परंपरा है कि यदि याचिकाकर्ता चाहता है कि किसी भी न्यायाधीश द्वारा सुनवाई न की जाए तो इसके लिए एक आवेदन दिया जाता है लेकिन ममता बनर्जी ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर प्राशासनिक तरीक़े से मुझे अलग कराने का प्रयास किया है। जब यह मामला 18 जून को पहली बार सुनवाई के लिए प्रस्तुत किया गया था तब मुझे इस केस से अलग करने का कोई आवेदन नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि मैं अधिवक्ता डा सिंघंवी से लगातार पूछता रहा कि इस तरह की कोई जानकारी छिपायी तो नहीं जा रही है। उन्होंने कहा था कि बग़ैर किसी औपचारिक आवेदन के किसी न्यायाधीश पर श़क करना उचित नहीं प्रतीत होता है। लेकिन सिंघवी द्वारा कही गई बातें कोर्ट प्रोसीडिंग के बाद होने वाले घटनाक्रम से मैच नहीं होती हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले को नाटकीयता देने के लिए कोर्ट के बाहर पूरी तैयारी थी। याचिकाकर्ता की ओर से लोग तैयार थे जो मेरी वह फ़ोटो लिये हुए थे जिसमें 2016 में मैं भाजपा के विधि प्रकोष्ठ के एक कार्यक्रम में भाग ले रहा था। उन्होंने कहा कि 18 जून का यह घटनाक्रम स्पष्ट रूप से मेरे निर्णय को प्रभावित करने का प्रयास था। न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा कि पाँच लाख की यह कॉस्ट बार काउंसिल ऑफ़ वेस्ट बंगाल के खाते में दो सप्ताह के अंदर जमा की जाए तथा इसका उपयोग कोविड-19 से प्रभावित अधिवक्ताओं के परिवार के कल्याण के लिए किया जाए।
ममता बनर्जी ने न्यायाधीश नियुक्त होने से पहले अधिवक्ता के तौर पर मेरे (जस्टिस चंदा के) कार्यकाल के भारतीय जनता पार्टी से जुड़ाव को देखते हुए आशंका प्रकट की थी कि उन्हें न्याय न मिल सकेगा। 24 जून को प्रकरण की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता डॉक्टर एएम सिंघवी ने बनर्जी की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि यह कॉन्फ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट का क्लियर केस है। उन्होंने कहा कि जस्टिस चंदा के भाजपा के साथ नज़दीकी, व्यक्तिगत, पेशेवर, आर्थिक व वैचारिक रिश्ते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता डॉक्टर सिंघवी ने यह भी कहा था कि जस्टिस चंदा को पूर्णकालिक न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति की पुष्टि की जानी है और ममता बनर्जी ने उनको पूर्णकालिक जज के तौर पर नियुक्त किए जाने पर आपत्ति और आशंका जतायी थी। जस्टिस चंदा ने कहा कि सुनवाई के दौरान ही इन सब बातों को लेकर एक तरह से मीडिया ट्रायल चालू हो गया था। यदि मैं इस दौरान अपने को इस केस से अलग करता हूँ तो ऐसा लगेगा कि मैं मीडिया ट्रायल के दबाव में आ गया हूँ। तब सिंघवी ने कहा था की न्यायिक प्रक्रिया में पब्लिक ओपीनियन का बहुत ज़्यादा महत्व नहीं होता है।
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