प्राचीन भारत में लोक कल्याणकारी राज्य
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम धर्म-संस्कृति

प्राचीन भारत में लोक कल्याणकारी राज्य

by WEB DESK
Jul 1, 2021, 03:20 pm IST
in धर्म-संस्कृति, दिल्ली
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

प्रो. भगवती प्रकाश

वैदिक वाङ्मय में वर्तमान के लोककल्याणकारी राज्य और निर्वाचित जनतांत्रिक संस्थाओं के प्रचुर संदर्भ हैं। इसमें राज्याध्यक्ष के निर्वाचन से लेकर राज्याध्यक्ष के कर्तव्य, अधिकार, दंड विधान तक सबका उल्लेख है।
 

विधि द्वारा स्थापित लोक कल्याणकारी राज्यों व निर्वाचित जनतांत्रिक संस्थाओं के प्रचुर सन्दर्भ वैदिक व अन्य संस्कृत वाड्मय में हैं। राष्ट्र प्रमुख या राजा के चुनाव, उसकी लोकहित की शपथ एवं निर्वाचित संस्थानों की चर्चा के बाद यहां राजा के दायित्वों का विवेचन किया जा रहा है।

    प्रजाहित की प्रधानता : राजा के कर्त्तव्यों में प्रजारक्षण, पितृवत प्रजापालन, प्रजाजनों को सम्यक् अवसर प्रदान कर त्रिवर्ग साधन में सक्षम बनाना है। धर्मयुत आचरण से अथोपार्जन कर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अर्थात् धर्म, अर्थ व काम या कामना पूर्ति त्रिवर्ग है। दुष्टों को दण्ड, राष्ट्र रक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग, निष्पक्षता, कोष संवृद्घि भी प्रमुख कर्तव्य हैं। यथा:-
    1    ‘‘तत्प्रजापालनं प्रोक्तं त्रिविधन्यायवेदिभि:। ’’॥ बृहस्पतिस्मृति एवं राजनीति प्रकाश-पृष्ठ 254-5
    2    ‘‘तस्यार्म : प्रजारक्षा-’’॥ नारदस्मृति (प्रकीर्णक 33)
    3    नृपस्यपरमोधर्म: प्रजानां परिपालनम्। दुष्टनिग्रहणं नित्यं-॥ शुक्रनीति 1/14
    4    ‘‘दुष्टस्यदण्ड: सुजनस्यपूजा न्यायेन कोशस्यचसंप्रवृद्घि:। अपक्षपाताऽर्थिषु राष्ट्ररक्षा’’॥ (अत्रिस्मृति 28)
    5    ‘‘दुष्ट दण्ड सतां पूजा धर्मेण    च धनार्जनम्। राष्ट्ररक्षा समत्वं च व्यवहारेषु पञ्चकम्’’॥ (विष्णुर्माेत्तर पुराण 03/327/25-6)

    प्रजाहित में कष्ट सहना: मार्कण्डेय पुराण, कौटिल्य, महाभारत के शान्तिपर्व (69,72,73,) विष्णुधर्मसूत्र के अनुसार राजा का शरीर आमोद-प्रमोद के लिए नहीं वरन् प्रजापालन और भूमण्डल पर धर्म (कानून मर्यादा) की रक्षार्थ क्लेश सहने के लिए बना है।

    श्लोक: राज्ञां शरीरग्रहणं न भोगाय महीपते। क्लेशाय महते पृथ्वी स्वामी परिपालने॥ (मार्कण्डेय पुराण 130/33-4)
    राजा का धर्मरक्षा अर्थात् कानून व व्यवस्था एवं मूल्यों की रक्षा का दायित्व भूमण्डलव्यापी है। इसमें राज्य की सीमा बाधक नहीं होती। उदाहरणत: बालि का वध कर श्रीराम ने कहा कि हम धर्मात्मा राजा भरत की आज्ञा के अधीन पृथ्वी पर विचरण कर रहे हैं और धर्म-रक्षा के अपने राजोचित कर्त्तव्य पालन हेतु दण्ड-स्वरूप तुम्हारा वध किया, क्योंकि तुमने छोटे भाई की पत्नी तारा का हरण कर लिया (वाल्मीकि रामायण, किष्किंधाकाण्ड)। किष्किंधा, अयोध्या से अलग राज्य था पर सम्पूर्ण भूमण्डल से अनीति का उन्मूलन राजोचित कर्तव्य होता है। प्रजा कल्याण: कात्यायनकृत राजनीतिप्रकाश (पृष्ठ 30) के अनुसार ‘‘राजा असहायों का रक्षक, गृहहीनों का आश्रय, पुत्रहीनों का पुत्र व पिताहीनों का पिता है। मनुस्मृति (5/94) की व्याख्या में तिथि के अनुसार विपत्ति व अकाल के समय राजा को अपने कोष से भोजन आदि की व्यवस्था कर प्रजापालन करना चाहिए। वृत्ति अर्थात् रोजगार रहित क्षत्रियों, वैश्यों व शूद्रों को उद्यम (व्यावसायिक वृत्ति) हेतु समयानुकूल सहायता देनी चाहिए (पाण्डुरंग वामन काणे पृ. 603)। ‘‘दक्षिणा वृत्तिसाम्यं (अर्थशास्त्र 1/19) में कौटिल्य ने प्रजा को वृत्ति (रोजगार) से युत करना राजधर्म बतलाया है।
    प्रजाहित से ऊपर कोई कार्य नही: विष्णुधर्मसूत्र व कौटिल्य के अनुसार ‘‘प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है; प्रजाहित में ही राजा का हित है और प्रजा का दु:ख ही राजा का दु:ख है।
    श्लोक-
    1    प्रजासुखं सुखीराजा, तद्दु:खे यश्चदु:खित:-(विष्णुधर्मसूत्र-राजधर्मकाण्ड 3)
    2    प्रजासुखे सुखं राज्ञ:, प्रजानां च हितेहितम्
    (कौटिल्य अर्थशास्त्र 1/19)

    अपनी प्रजा की भरपूर रक्षा करने वाले राजा को तप व यज्ञ करने की आवश्यकता नहीं है। (महाभारत-शान्तिपर्व 69/72-3, अंगिरा व बृहस्पति) कौटिल्य के अनुसार राजा का सदैव क्रियाशील रहना व्रत, अनुशासन पर चलना यज्ञ व निष्पक्षता ही यज्ञ दक्षिणा है (पाण्ड ुरंग वामन 604)
    महाभारत शान्तिपर्व (56/44-46) व नीतिप्रकाशिका (8/2) के अनुसार जैसे गर्भवती स्त्री मनचाहा न कर आरोग्यशास्त्र का पालन करती है, वैसे ही राजा को प्रजासुख के लिए शास्त्रविहित कार्य ही करने चाहिए।

    मन्त्र: यथा हि गर्भिणी हित्वा स्वं प्रियं मनसोऽनुगम -यल्लोक हितम् भवेत् (महाभारत शान्तिपर्व 56/45-46)
    पक्षपातरहित सुशासन : प्राचीन शास्त्रों के अनुसार ‘‘राजा का मुख्य धर्म या कर्त्तव्य ऐसी दशाएं व वातावरण प्रदान करना है कि सभी लोग शान्ति व सुखपूर्वक जीवन यापन एवं अपने-अपने व्यवसाय व वृत्तियों को कर सकें, राजा को सदैव शान्ति, सुव्यवस्था एव सुखों की परिस्थितियां उत्पन्न करने में प्रयत्नशील रहना चाहिए। राजा निष्पक्षतापूर्वक अपने पुत्र व शत्रु सभी को उनके अपराध के अनुरूप पक्षपात रहित रह कर दण्डित करे। (श्लोक राज: स्वार्मा: राजा पुत्रेचशत्रौ च यथा संम धृत:॥ कौटिल्य 3/1) राजा द्वारा निष्पक्षतापूर्वक अपने परिवारजनों को दण्डित करने के उदाहरणों में महारानी अहिल्याबाई द्वारा पुत्र को दण्डित करना व मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह द्वारा पिता के भवन का अधिग्रहण आदि हैं।

    वेतनभोगी जनसेवक: भारत के प्राचीन ग्रन्थों में राजा के अधिकारों व विशेषाधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों पर बल देकर उसे प्रजासेवक कहा गया है। कर्तव्य से विमुख होने पर सिंहासन-च्युत व प्राणदण्ड तक के निर्देश मिलते हैं। गणों या जन समूहों द्वारा राजा का चुनाव होने (अथर्ववेद 3/42/2 व 3/5/6-7) और राजकोष से वेतन ग्रहण करने का भी विधान था। (डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल हिन्दू पलिटी (भाग 2 पृ 136) शास्त्रों में राजा के राज्य का वेतनभोगी सेवक होने का कथन है। कौटिल्य अर्थशास्त्र (10/13) के अनुसार ‘‘सदाचारी राजा को युद्घ के समय सैनिकों को प्रेरित करने हेतु स्पष्ट कहना चाहिए कि ‘‘मैं भी तुम लोगों की भांति वेतनभोगी हूं, इस राज्य का उपभोग मुझे तुम लोगों के साथ ही करना है, और हमें मिलकर इस शत्रु को हराना है। वर्तमान राष्टÑपति व प्रधानमंत्री की भांति प्राचीनकाल में राजा, मन्त्री व सेनापति आदि वेतनभोगी रहे होंगे।

    प्रजासेवक-दास्यत्वे प्रजानां च नृप:-(शुक्रनीति 1/188)
    राजा वेतनभोगी: ‘‘-तस्य विहित: प्रजापालन वेतनम्॥ नारदस्मृति-प्रकीर्णक-48
    ‘‘-शास्त्रानीतेन लिप्सेथा वेतनेम धनागमम्॥ महाभारत शान्तिपर्व -71/10

    राजा का चुनाव:अथर्ववेद के अनुसार भद्र लोग, राज्य के निर्माता वर्ग, सूत, ग्राम प्रमुख, दक्ष शिल्पी, रथकार, धातुकर्मी व विविध श्रेणी-समूह राजा को चुनते थे।
    ये राजानो राजत: सूता ग्रामण्यश्च ये। उपस्तीन् पर्ण मह्यंत्वं सर्वान्ण्चभितो जनान्॥ (अथर्ववेद 3/5/7)
    विविध श्रेणियों व समूहों की निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभाएं (विश:) और राज्य के सभी भागों से आये पंचायत प्रतिनिधि राज्य करने हेतु राजा को चुनते थे यथा:-

    ‘‘त्वां विशो वृणतां राज्याय त्वाभिमा: प्रदिश: प्चदेवी।’’ (अथर्ववेद 3/4/2)
    महाभारत आदिपर्व (44-6) के अनुसार परीक्षित की मृत्यु पर राजधानी के सभी नागरिकों ने एक स्वर से जनमेजय को राजा चुना। राजा रूद्रदामा का सुराष्ट्र के लोगों द्वारा निर्वाचन हुआ व उसने शपथ ली (इपिग्राफिया इण्डिका भाग 8 पृष्ठ 36)। कौटिल्य (11-1) के अनुसार सुराष्ट्र गणराज्य था। पालवंश संस्थापक गोपाल शूद्र का भी निर्वाचन हुआ था।
    चीनी यात्री व्हेनसांग के अनुसार राज्यवर्द्घन की मृत्यु के उपरान्त प्रधानमंत्री भण्डी ने मन्त्रियों, न्यायाधिपतियों व श्रेणी प्रमुखों की सभा कर हर्ष को राजा बनाया (पाण्डुरंग वामन काणे 591)। परमेश्वर वर्मा द्वितीय की मृत्यु पर पल्लव राज्य में भी प्रजा ने राजा चुना (पाण्डुरंग 591)। राजतरगिणी के अनुसार विद्वान दरिद्र यशस्कर को राजा बनाया गया। इस प्रकार प्राचीन काल में राजा का चयन व नियुक्ति योग्यता आधारित होने एवं उसके कठोर दायित्वों के कई सन्दर्भ हैं।    
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के कुलपति हैं)

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने ने बसाया उन्ही के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिलवुमन का झलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने ने बसाया उन्ही के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिलवुमन का झलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies