पुरानी विधानसभा के लिए कश्मीर घाटी से 46 विधायक चुने जाते थे, जबकि जम्मू क्षेत्र में केवल 37 ही विधायक होते थे। नए परिसीमन के कारण जम्मू क्षेत्र में सात सीटें बढ़ सकती हैं यानी कुल 44 सीटें होंगी। घाटी के नेताओं को परेशानी इस बात की हो रही है कि यदि हिंदू—बहुल जम्मू क्षेत्र में सीटें बढ़ गईं तो विधानसभा में कश्मीर घाटी का दबदबा नहीं रह पाएगा।
गत 24 जून को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू—कश्मीर के आठ राजनीतिक दलों के 14 नेताओं के साथ बैठक की। इसमें एक बात साफ कर दी गई कि विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होने के बाद राज्य में चुनाव कराए जाएंगे। बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट कर कहा, ''हमारी प्राथमिकता यह है कि जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत किया जाए। इसके लिए परिसीमन तेजी से कराए जाने की आवश्यकता है, ताकि चुनाव हो सकें और जम्मू-कश्मीर को चुनी हुई सरकार मिल सके। इससे विकास में भी तेजी आ सकेगी।'' लेकिन बैठक के बाद कश्मीर घाटी के नेताओं ने कहा कि परिसीमन की कोई जरूरत ही नहीं है। आखिर परिसीमन का विरोध घाटी के नेेता क्यों कर रहे हैं! उन्हें लग रहा है कि परिसीमन हो जाने से विधानसभा में कश्मीर घाटी का प्रभुत्व कम हो जाएगा। इसका परिणाम होगा कि आने वाले दिनों में घाटी का कोई नेता शायद मुख्यमंत्री नहीं बन पाएगा। यही डर घाटी के नेताओं को सता रहा है।
बता दें कि 5 अगस्त, 2019 को राज्य के पुनर्गठन से पहले जम्मू—कश्मीर विधानसभा में कुल 111 विधानसभा सीटें थीं। इनमें से 46 कश्मीर घाटी में और 37 सीटें जम्मू क्षेत्र में थीं। वहीं लद्दाख में 4 सीटें आती थीं। अब लद्दाख में एक भी सीट नहीं रहेगी। वहां का प्रशासन उप राज्यपाल के अधीन रहेगा। इसके अलावा 24 सीटें पाक अधिक्रांत कश्मीर यानी पीओके के लिए आरक्षित थीं। अब लद्दाख की चार सीटें नहीं रहने से 107 सीेटें बची हैं। कश्मीर घाटी में अब केवल मुसलमान ही हैं और जम्मू क्षेत्र हिंदू—बहुल है। क्षेत्रफल की दृष्टि से कश्मीर घाटी से ज्यादा बड़ा जम्मू क्षेत्र है।
इसके बावजूद जम्मू क्षेत्र में कम और कश्मीर घाटी में अधिक सीेटें हैं। इसलिए भाजपा जैसी कुछ पार्टियां इस असंतुलन को खत्म करने की मांग कर रही हैं। अब कहा जा रहा है कि परिसीमन के बाद जम्मू—कश्मीर विधानसभा में सात सीेटें बढ़ जाएंगी। यानी कुल 114 सीटें होंगी। इनमें से पीओके की 24 सीटों में चुनाव कराना संभाव नहीं है। इसलिए आने वाले समय में जम्मू—कश्मीर विधानसभा में 90 सीटों के परिणाम के आधार पर ही कोई पार्टी सरकार बना सकती है। घाटी के नेताओं को डर लग रहा है कि यदि जम्मू क्षेत्र में विधानसभा की सीेटें बढ़ गईं तो उन्हें कोई नहीं पूछेगा। इसलिए वे लोग परिसीमन का विरोध कर रहे हैं।
क्या होता है परिसीमन!
जनसंख्या के आधार पर समय-समय पर विधानसभा और लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाता है। इसके अंतर्गत विधानसभा और लोकसभा सीटों के क्षेत्र का पुनर्गठन होता है। आबादी और क्षेत्रफल के अनुसार यह होता है। यह काम परिसीमन आयोग करता है और उसके फैसले को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसे जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के आधार पर किया जाता है।
जम्मू-कश्मीर की लोकसभा सीटों का परिसीमन तो होता रहा है, लेकिन विधानसभा सीटों का परिसीमन अंतिम बार 1995 में हुआ था। अनुच्छेद 370 की आड़ में घाटी के नेता परिसीमन नहीं होने देते थे। यहां तक कि राज्य सरकार ने एक प्रस्ताव पारित कर निर्णय लिया था कि राज्य में विधानसभा की सीटों का परिसीमन 2026 तक नहीं हो सकता है। 370 के हटने के बाद उनका यह निर्णय निरस्त हो गया है। इसलिए केंद्र सरकार अब परिसीमन करा रही है। यही उनकी परेशानी है।
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