मृदुल त्यागी
झूठ, फरेब, मक्कारी, घोटाले, राष्ट्र विरोध, हिंदू द्रोह के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हाथ अब 12 राज्यों के हजारों लोगों की मौत के खून से रंगे हैं.
झूठ, फरेब, मक्कारी, घोटाले, राष्ट्र विरोध, हिंदू द्रोह के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के हाथ अब 12 राज्यों के हजारों लोगों की मौत के खून से रंगे हैं. कोरोना आपदा प्रबंधन में विफल अरविंद केजरीवाल ने दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन के लिए जबरदस्त शोर-मचाया, जरूरत से चार गुना ज्यादा ऑक्सीजन की मांग रखी. उस समय पूरे देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा था. अरविंद केजरीवाल ने ड्रामेबाजी करके जरूरत की चार गुना ऑक्सीजन हासिल कर ली। नतीजतन 12 राज्यों में ऑक्सीजन का भारी संकट खड़ा हो गया. यह सनसनीखेज निष्कर्ष सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त ऑक्सीजन ऑडिट टीम की जांच में सामने आया है. यह सार्वजनिक तथ्य है कि दूसरी लहर में अधिकतर मौत ऑक्सीजन की किल्लत के कारण हुईं. नतीजा ये कि सोशल मीडिया पर इस समय अरविंद केजरीवाल को हजारों मौत का जिम्मेदार ठहराते हुए गिरफ्तारी की मांग ट्रेंड कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित ऑडिट टीम ने ये रिपोर्ट सौंप दी है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के ऑक्सीजन मांग के दावों की जांच के लिए ये टीम गठित की थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट में बड़ी भारी गड़बड़ी सामने आई है. बेड कैपेसिटी के आधार पर फार्मूला तय है. इसके मुताबिक दिल्ली को 289 मीट्रिक टन गैस की जरूरत थी. लेकिन दिल्ली सरकार अपनी मांग को बढ़ाती रही और 1140 मीट्रिक टन गैस की खपत का दावा किया. यह जरूरत से चार गुना ज्यादा था. पेट्रोलियम एंड ऑक्सीजन सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन ने टीम को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पास जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन थी. इसके चलते भारी जरूरत वाले दूसरे राज्यों की मेडिकल ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हुई. अगर दिल्ली की ये मांग लगातार पूरी की जाती रहती तो 12 राज्य ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर ऑक्सीजन का संकट पैदा हो जाता.
मसला ऑक्सीजन का कभी था ही नहीं. मसला था केजरीवाल की विफलता का. कोरोना की पहली लहर हो या दूसरी. केजरीवाल देश के सबसे विफल मुख्यमंत्री साबित हुए. प्रति दस लाख आबादी पर मृत्यु दर के मामले में भी वह टॉपर हैं. जिस समय दिल्ली की जनता सरकार की बदइंतजामी के कारण धक्के खा रही थी, जान गवां रही थी, उस समय केजरीवाल ने अपना आजमाया हुआ पैंतरा चला. यह पैंतरा है, हर दिक्कत, हर विफलता की गेंद केंद्र के पाले में धकेलकर आरोपों का खेल खेलो. लेकिन इस बार खेल का मैदान उन्होंने गलत चुना. मामला सिर्फ अखबारी बयानबाजी का नहीं था. हलफनामे थे, सुप्रीम कोर्ट था और उसके पास असीमित अधिकार. जब केजरीवाल की मांग बढ़ते हुए एक हजार मीट्रिक टन को पार कर गई, तब सुप्रीम कोर्ट को भी बात खटक गई. हद उस समय हो गई, जब दिल्ली सरकार ऑक्सीजन के लिए टैंकर तक का इंतजाम न कर पाई.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने भी पांच मई को आम आदमी पार्टी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. साथ ही, उसने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाए. उस समय भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि तय फार्मूले के अनुसार दिल्ली को 414 मीट्रिक टन ऑक्सीजन से ज्यादा की जरूरत है ही नहीं. तो दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन ऑडिट का विरोध करना शुरू कर दिया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता में एक टीम बना दी. सुप्रीम कोर्ट ने इस टीम को निर्देश दिया कि वह पता लगाएं कि मुंबई में जब दूसरी लहर चरम पर थी तब सिर्फ 275 मिट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी. उस वक्त मुंबई में 95 हजार कोविड मरीज थे. ऐसे में दिल्ली को पीक टाइम में 95 हजार मरीज के लिए 900 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत कैसे पड़ गई.
केजरीवाल को उसी समय पता चल गया था कि उनकी पोल खुल चुकी है. इसी का नतीजा था कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने 13 मई को कहा था कि अब दिल्ली के पास अतिरिक्त ऑक्सीजन है, जिसे दूसरे राज्यों को दिया जा सकता है. दिल्ली सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा था कि उसके पास अतिरिक्त ऑक्सीजन है और इसे दूसरे राज्यों को भी दिया जा सकता है. अब सामने आई रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि दिल्ली सरकार का दावा था कि 183 अस्पतालों को 1,140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी थी.जबकि इन्हीं अस्पतालों ने बताया कि उन्हें सिर्फ 209 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी.
समिति की इस रिपोर्ट के बाद सोशल मीडिया पर अरविंद केजरीवाल की जमकर थू-थू हो रही है. ट्विटर पर तो लोग सीधे-सीधे केजरीवाल को 12 राज्यों में हजारों मौत का जिम्मेदार बता रहे हैं. कई ट्विट में कहा गया है कि अगर केजरीवाल सुप्रीम कोर्ट तक जाकर ऑक्सीजन की राजनीति न करते, अन्य राज्यों में ऐसा संकट खत्म नहीं होता. हैशटैग के साथ अरेस्ट केजरीवाल ट्रेंड हो रहा है. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी उम्मीद जताई कि पूरे भारत में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित करने के लिए जिम्मेदारी तय की जाएगी. भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि यह अकल्पनीय है कि दिल्ली सरकार और केजरीवाल ने कोविड के पीक के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई का राजनीतिकरण किया. यह घटिया राजनीति है. कमेटी ने जो डेटा पेश किया है, वह चौंकाने वाला है.
हमेशा की तरह अरविंद केजरीवाल मुंह छिपाए घूम रहे हैं. उनके संकट कालीन प्रवक्ता मनीष सिसोदिया सामने आए हैं. उन्होंने तो ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया. उनकी दलीलें सुनिए. क्या सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी कोई रिपोर्ट जारी की है. क्या भाजपा मुख्यालय में इस तरह काल्पनिक रिपोर्ट तैयार हो रही हैं. उन्होंने चुनौती दी कि भाजपा नेता इस रिपोर्ट को जारी करें. हालांकि उनके इस हमलावर रुख में डर छिपा है. क्योंकि अभी तो यह रिपोर्ट जमा भर हुई है. इस रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. और यकीन मानिए, केजरीवाल सरकार ऐसे सवालों से दो-चार होने वाली है, जो आज तक उससे नहीं पूछे गए.
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