—राकेश सैन
25 जून, 1989 को मोगा के नेहरू पार्क में लगी संघ की शाखा पर आतंकवादियों ने हमला कर 25 स्वयंसेवकों को शहीद कर दिया था। उद्देश्य था सिखों और हिंदुओं के बीच दूरी पैदा करना, लेकिन स्वयंसेवकों ने उनकी मंशा पूरी नहीं होने दी। आज उस पार्क का नाम शहीदी पार्क हो गया है। वहां एक स्मारक भी बना है, जिसकी नींव श्री भाऊराव देवरस ने रखी थी। स्मारक का उद्घाटन 24 जून, 1990 को श्री रज्जू भैया द्वारा किया गया था।
देश में जब भी जहां भी और किसी भी तरह की राष्ट्रविरोधी गतिविधि होती है तो संघ स्वत: इनके सामने आ खड़ा होता है। पंजाब में डेढ़ दशक तक चले आतंकवाद के दौर में भी संघ ने आतंकवाद को इस तरह नाकों चने चबवाए कि खाकी निक्कर डालने वाला हर व्यक्ति पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले आतंकवादियों का दुश्मन नम्बर वन बन गया और इसी का परिणाम निकला मोगा में 25 जून, 1989 को संघ की शाखा पर हुआ आतंकी हमला, जिसमें 25 स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर देश की एकता-अखण्डता को सम्बल प्रदान किया।
इस घटना के बारे में शहीद स्मारक से जुड़े पदाधिकारी डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि आतंकवादियों ने संघ का ध्वज उतारने के लिए कहा था, पर स्वयंसेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया और उनको रोकने का यत्न किया था, पर किसी की बात न सुनते हुए आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें 25 कीमती जानें गई थीं। इस घटना ने न केवल पंजाब में हिन्दू-सिख एकता को नवजीवन दिया, बल्कि आतंकवाद पर भी गहरी चोट की, क्योंकि घटना के अगले ही दिन उस जगह दोबारा शाखा लगी जिससे आतंकियों के हौसले पस्त हो गए और हिन्दू-सिख एकता जीत गई।
25 जून, 1989 को रोजाना की तरह उस दिन भी जहां नागरिक पार्क में सैर का आनन्द ले रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शाखा भी लगी हुई थी। इस दिन शहर की सभी शाखाएं नेहरू पार्क में एक जगह पर लगी थीं और संघ का एकत्रीकरण था। अचानक आतंकवादियों ने 6.25 पर स्वयंसेवकों पर हमला कर दिया।
निहत्थे दंपति ने आतंकियों को ललकारा
गोलीकाण्ड के बाद छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश और छिन्दर कौर ने बड़े जोश से ललकारा और पकड़ने की कोशिश की पर एके-47 से हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नींद सुला दिया और साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय पास के घरों के पास खेल रहे 2-3 बच्चों में से डेढ़ साल की डिम्पल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया।
दंगा चाहने वाले भी हुए निराश
ये दिन वे थे जब अभी दिल्ली सहित देश के सिख विरोधी दंगों की आग में अभी तपिश जारी थी। आतंकियों ने तो संघ पर हमला कर हिन्दू-सिख एकता में दरार डालने का प्रयास किया ही साथ में कुछ दंगा सन्तोषियों ने भी कहना शुरू कर दिया कि सिखों ने अब लगाया है शेर की पूंछ को हाथ। संघ ने न तो देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने दिया और अगले ही दिन शाखा लगा कर आतंकियों व देशविरोधी ताकतों को संदेश दिया कि हिन्दू-सिख एकता को कोई तोड़ नहीं सकता और न ही सिख पंथ के नाम पर चलने वाला आतंकवाद पंजाबी एकता को तोड़ सकता।
25 जून के अगले दिन संघ के स्वयंसेवक गीत गा रहे थे कि – कौन कहंदा हिन्दू-सिख वक्ख ने, ए भारत मां दी सज्जी-खब्बी अक्ख ने’ अर्थात कौन कहता है कि हिंदू-सिख अलग-अलग हैं, ये तो भारत माता की बाईं और दाईं आंख के समान हैं। संघ के इस गीत को सुन कर आतंकियों ने भी माथा पीट लिया था। अगली ही सुबह जब स्वयंसेवकों की ओर से शाखा का आयोजन किया तो उस दौरान शहीदों की याद को जीवित रखने के लिए शहीदी स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया।
ये लोग हुए थे शहीद— सर्वश्री लेखराज धवन, बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानन्द, अमन कुमार, ओमप्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मुनीश चौहान, जगदीश भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओमप्रकाश और छिन्दर कौर (पति-पत्नी), डिंपल, भगवान दास, पण्डित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार राय सिंह और कुलवन्त सिंह।
घायल होने वाले लोग — प्रेम भूषण, रामलाल आहूजा, राम प्रकाश कांसल, बलवीर कोहली, राज कुमार, संजीव सिंगल, दीनानाथ, हंसराज, गुरबख्श राय गोयल, डॉ. विजय सिंगल, अमृत लाल बांसल, कृष्ण देव अग्रवाल, अजय गुप्ता, विनोद धमीजा, भजन सिंह, विद्या भूषण नागेश्वर राव, पवन गर्ग, गगन बेरी, रामप्रकाश, सतपाल सिंह कालड़ा, करमचन्द और कुछ अन्य।
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