दीपक जैन
पिताजी के मित्र श्री मित्रसेन जो पंजाब संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता थे। उनके ऊपर अत्याचार की कहानियां रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। उनके पजामे के अंदर चूहे छोड़कर पजामा नीचे से बांध दिया गया था और भी उनके ऊपर भयानक अत्याचार किए गए थे। हमें यह लगने लगा कि पता नहीं सभी संघ के लोगों को यह वापिस छोड़ेंगे या जेल में ही तड़पा कर मार देंगे।
26 जून 1975 की प्रातः सबको जानकारी मिली कि गत रात्रि अर्थात 25 जून की रात्रि को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपात काल अर्थात इमरजेंसी लागू कर दी गई है। इंदिरा गांधी रायबरेली संसदीय क्षेत्र से स्वर्गीय राज नारायण जी के विरुद्ध निर्वाचित घोषित हुई थी। चुनावों में अवैध तरीके अपनाए जाने के कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश श्री जगमोहन जी द्वारा इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर दिया गया था। अपनी कुर्सी को बचाने के लिए षडयंत्र पूर्वक संविधान से खिलवाड़ करते हुए इंदिरा गांधी ने आपात काल लागू कर दिया था।
रातों रात अधिकांश विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता तथा सामाजिक कार्यकर्ता, जिनमें सर्वोदय नेता श्री जयप्रकाश नारायण जी सहित श्री अटल जी एवं आडवाणी जी एवं संघ के हज़ारों कार्यकर्ता उसी रात को जेल में डाल दिए गए दिए गए थे, तथा अगले दिन से ही देशभर में गिरफ्तारियां प्रारंभ कर दी गई थी।
26 जून का दिन हमारे लिए भी विशेष व्यस्त दिन था। उसी दिन मेरी बड़ी बहन का संबंध तय करने के लिए दिल्ली से लड़के वाले आ रहे थे। सारा दिन उसी व्यस्तता में निकला लेकिन जो परिवार के ऊपर संकट आने वाला था, उसकी किसी को भनक तक नहीं लगी।
उन दिनों में कॉलेज का विद्यार्थी था, उस दिन थोड़ा अच्छा ज़रूर लगा क्योंकि पुलिस की एक जीप सुबह से घर के बाहर आकर खड़ी हो गई। मुझे लगा कि शायद पिताजी संघ और राजनीति से संबंधित हैं इस कारण से उस दिन पुलिस की ड्यूटी हमारे घर पर लगी। शाम तक रस्मों की अदायगी में परिवार व्यस्त रहा और जैसे ही लड़के वाले विदा हुए पुलिस की गाड़ी घर के अंदर आ गई। घर के अंदर तो कोहराम मच गया क्योंकि वह पिताजी को अरेस्ट करके ले जाना चाह रही थी। उनके पास वारंट, कागज, चिट्ठी कुछ भी नहीं था। परिवार के सब लोग इकट्ठे होकर जिसका जैसा बस चला थानेदार डीएसपी पुलिस राजनीतिक लोग इन सब लोगों से बात कर प्रयास करने लगे कि पुलिस उनको न ले जाए, लेकिन मुख्यमंत्री का आदेश था तो पुलिस को लेकर ही जाना था।
अगले दिन थाने में हम उनके लिए भोजन लेकर गए, पुलिस वालों ने परिवार के लोगों के साथ भी ठीक व्यवहार नहीं किया। फिर दो ढाई महीने तक हमें नहीं पता चला कि पिता जी कौन सी जेल में है। बाद में किसी के माध्यम से हमें पता चला कि वह अंबाला जेल में हैं। ताऊ जी के कुछ मित्र परिचित थे और उन्होंने अंबाला सेशन जज से कहकर हमारी मुलाकात की व्यवस्था कराई। हम कुछ सामान और कपड़े इत्यादि भी पिताजी के लिए ले गए थे। मुलाक़ात के दिन हमारी गाड़ी सारा दिन अंबाला में थी और कई बार सेशन जज के घर और अंबाला सेंट्रल जेल के चक्कर लगे। लेकिन इस कारण से उसी रात को सेशन जज की अंबाला से ट्रांसफर का ऑर्डर आ गया था। अगले दिन जगाधरी पुलिस थाने में वायरलेस मैसेज हमारी कार को जमा करने के लिए आ गया।
शांति भंग की आशंका में दफा 107/ 51 के अंतर्गत पिताजी को गिरफ्तार किया गया था और उन पर आरोप था कि उन्होंने अपनी साइकिल किसी बुजुर्ग के ऊपर चढ़ा दी और उससे मारपीट की। हमने जब हाईकोर्ट में दरखास्त दी की जिस व्यक्ति के पास 5 गाड़ियां घर पर हैं वह साइकिल पर क्यों जाएगा और पुलिस की झूठी कार्रवाई को खारिज किया जाए, तो हाईकोर्ट ने हमारी अर्जी पर संज्ञान लेकर रिहाई का आदेश दिया। लेकिन जेल से निकलते ही ड्योढ़ी से पुलिस ने उनको वापिस मीसा के तहत गिरफ्तार कर फिर से जेल में डाल दिया। मीसा यानी मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट उसमें न कोर्ट, न कचहरी, न गवाही थी, न बयान थे, और किसी को भी पकड़ कर आजन्म सरकार बिना मुकदमे के अंदर बंद कर सकती थी।
कई महीने ऐसे ही चला, हम इधर उधर से जेल की बातें सुनते थे। लेकिन फिर बाद में सरकार ने कुछ कुछ हफ्तों के बाद अनुमति दी कि हम थोड़ी देर के लिए मिल सकते हैं। खाने का सामान भी दे सकते हैं और कपड़े इत्यादि भी दे सकते हैं। इसके ऊपर भी जेल की कड़ी निगरानी रहती थी। देश के अधिकांश नेता जेलों में बंद थे और मुख्यमंत्री बंसीलाल जी की वजह से हरियाणा के ऊपर विशेष ज़िम्मेदारी थी सभी बड़े नेताओं की देखभाल करने की।
चौधरी बंसीलाल उन दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इन्दिरा जी के चहेते और आज्ञाकारी मुख्यमंत्री होने के कारण सभी बड़े लोग हरियाणा में ही क़ैद थे।
जब बरसात और उसके पश्चात सर्दियों का समय आया तो पिताजी को करनाल जेल ट्रांसफर कर दिया गया। करनाल जेल में सर्दी ज़्यादा लगती थी और जब गर्मियों का समय आया तो उनको हिसार जेल में ट्रांसफर कर दिया गया क्योंकि हिसार में भयंकर गर्मी पड़ती थी।
बीच-बीच में हमें समाचार मिलते रहे कि अन्य कार्यकर्ताओं के साथ किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है। पिताजी के मित्र श्री मित्रसेन जी जो पंजाब के संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता थे। उनके ऊपर अत्याचार की कहानियां रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। उनके पजामे के अंदर चूहे छोड़कर पजामा नीचे से बांध दिया गया था और भी उनके ऊपर भयानक अत्याचार किए गए थे। हमें यह लगने लगा कि पता नहीं सभी संघ के लोगों को यह वापिस छोड़ेंगे या जेल में ही तड़पा कर मार देंगे।
उधर परिवार में बहन की शादी की तिथि भी नज़दीक आ गई थी। कई लोगों के कहने सुनने के कारण से मुख्यमंत्री ने 15 दिन की पैरोल दी। 15 दिन की अल्प समय में विवाह की सारी तैयारियां और शादी करके फिर वापिस जेल की ओर रुख करना बहुत पीड़ादायक था। शादी के दौरान अधिकांश परिचित और रिश्तेदार भी हमसे मिलने से और नज़रें मिलाने से बचते रहे। लेकिन मैं तत्कालीन कांग्रेस के सांसद और स्थानीय शुगर मिल के मालिक श्री डीडी पुरी का विशेष उल्लेख करूंगा, जिन्होंने किसी की चिंता न करते हुए और उस वक्त के कठिन हालत में भी साथ निभाया और बारात की आगे बढ़कर अगवानी की।
पिताजी के जेल में होने के कारण व्यापार ठप हो गया था उस समय में सिंडिकेट बैंक में हमारा अकाउंट था। बैंक के चेयरमैन श्री पाई साहब पिताजी के परिचित थे। उनसे दिल्ली जाकर पिताजी मिले और उन्होंने अपने तत्कालीन मैनेजर को हिदायत दी के हमारे व्यापार को जितनी मदद हो सके वह की जाए। कांग्रेसी होने के बावजूद भी उन्होंने सहायता की और जेल की और पिता जी के स्वास्थ्य की जानकारी भी ली।
तब भी भूमिगत तरीके से सभी कार्यकर्ता काम में लगे हुए थे। संघ के तत्कालीन प्रचारक और मेरे मित्र श्री शिवकुमार जी यदा-कदा घर पर परिवार का हालचाल लेने आते रहते थे। लेकिन वह कुर्ता पजामा नहीं पहनते थे केवल पेंट कमीज़ पहनते थे ताकि पहचाने ना जाएं। उन्होंने भूमिगत तरीके से लगभग सभी कार्यकर्ता जो जेल में थे, उनके परिवार से सबसे अपना संपर्क बनाया हुआ था।
हमारे कॉलेज के कई कार्यकर्ता के साथ हम लोग रात के अंधेरे में कई बार पोस्टर लगाने भी निकलते थे। एक बार पुलिस की टीम गश्त पर उसी समय निकली जब हम पोस्टर लगा रहे थे। हमें गंदे नाले में कूद कर अपनी जान बचानी पड़ी।
इस सब बातों को आज 45 वर्ष हो चुके हैं और मैं उस समय कॉलेज विद्यार्थी था। स्मृतियां धुंधली पड़ने लगी हैं इसके लिए यह लेख मैं लिख रहा हूँ। ताकि मेरे साथियों को, और आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रहे के नागरिक स्वतंत्रता की कितनी बड़ी कीमत पिछली पीढ़ियों ने चुकाई है।
एक बात और, अंबाला के एक जैन साहब हमारे परिवार के स्नेही और परिचित थे और उनका मुख्यमंत्री से थोड़ा मेलजोल था उन्होंने एक बार अच्छे से प्रयास करके मुख्यमंत्री को मनाया कि यदि पिता जी माफीनामा लिख देते हैं तो वह उनको रिहा कर देंगे। कुछ समय विचार करने के बाद पिताजी ने कहा यदि मैं माफीनामा लिखता हूं तो शायद मेरी रिहा तो हो जाऊं लेकिन मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा, और बात वही समाप्त हो गई।
व्यापार चौपट हो गया, परिवार बिखर गया। 19 महीने बाद पिताजी चुनावों की घोषणा के पश्चात जेल से रिहा हुए। सब कुछ एक सपने जैसा लगता रहा। मन में यह भाव भी था कि संभवत सरकार उनको चुनाव करा कर फिर जेल में बंद कर देगी। हमारे सभी विपक्षी दल एक साथ इकट्ठा होकर चुनाव लड़े जयप्रकाश नारायण जी एक ऐसा चेहरा थे जो उस समय सर्वमान्य थे, किसी को यह आभास मात्र भी नहीं था इंदिरा जी उस चुनाव में हार जाएंगी।
पिताजी के सभी जेल के साथी चुनकर चुनाव जीत कर आए। पिताजी को भी कई बार उन्होंने आग्रह किया कि आप राजनीति में आइए लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया। हरियाणा में चौधरी देवी लाल और चौधरी ओमप्रकाश चौटाला बार-बार आग्रह करते रहे कि पिताजी सरकार का साथ दें उसमें सम्मिलित हो लेकिन पिताजी ने अस्वीकार कर दिया। जैसे मैं लिख रहा हूं लिखते लिखते भी मेरे ध्यान में अपने अनगिनत साथी और कार्यकर्ता आ रहे हैं, जिन्होंने अनाम रहकर आपातकाल का युद्ध लड़ा।
इमरजेंसी के अंदर जिन्होंने यातनाएं सहन की आज उस पीढ़ी में से बहुत कम लोग जीवित बचे हैं। और हमारी पीढ़ी भी बुजुर्गों में शामिल होने के लिए दरवाज़ा खटखटा रही है।
तब से बाद का पिता जी का समय संघ कार्य में ही निकला। पिता जी को अनेक बार राजनीति में पद और यहां तक कि राज्यपाल बनाने तक की भी सुझाव दिए गए पर उन्होंने अस्वीकार किए, क्योंकि शुरू से ही स्वभाव चकाचौंध से दूर और स्वयं की पब्लिसिटी से दूर रह कर काम करने का था। सरस्वती नदी की खोज और उसके ऊपर शोध में 1983 में डॉ. वाकणकर के अपनी टीम सहित आगमन से लेकर, 2019 तक लगातार एकाग्र होकर उन्होंने सरस्वती के ऊपर कार्य किया। भारत सरकार ने इसको मान्यता प्रदान करते हुए उनको 2019 में पद्म भूषण के पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति ने सम्मानित किया। ऐसे तमाम बलिदान देने वाले और कष्ट सहने वाले कार्यकर्ताओं को मैं नमन करता हूं, और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि यह जो बलिदान का जज्बा है, वह हमारी पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों में जीवित रखें।
( लेख पाञ्चजन्य आर्काइव से लिया गया है।)
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