आर.के. सिन्हा
24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली बैठक के लिए जम्मू-कश्मीर के 14 नेताओं को आमंत्रित किया है, जिसमें तत्कालीन राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। लेकिन कांग्रेस ने सरकार के उपर्युक्त कदम उठाने से पहले ही अपनी एक अलग सी शरारतपूर्ण लाइन लेनी चालू कर दी।
जम्मू-कश्मीर में सर्वांगीण विकास में तेजी लाने के लिए नरेन्द्र मोदी की सरकार सक्रिय हो चुकी है। मोदी के विश्वस्त सहयोगी उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा दिन-रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं। केंद्र सरकार सबको विश्वास में लेकर ही आगे बढ़ना चाहती है। इसका प्रमाण है कि सरकार ने दिल्ली में 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली बैठक के लिए जम्मू-कश्मीर के 14 नेताओं को आमंत्रित भी किया है, जिसमें तत्कालीन राज्य के चार पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। लेकिन कांग्रेस ने सरकार के उपर्युक्त कदम उठाने से पहले ही अपनी एक अलग सी शरारतपूर्ण लाइन लेनी चालू कर दी। कांग्रेस के नेता और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह ने घोषणा कर दी कि जब केन्द्र में उनकी सरकार आएगी तो वे संविधान के अनुच्छेद 370 को पुनः बहाल कर देंगे। उन्होंने कहा कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। हमें इस मसले पर फिर से विचार करना होगा। हालाँकि जब कानून पास हुआ था तो राज्य सभा में मैं भी बैठा था और मेरे सामने माननीय दिग्विजय सिंह जी भी बैठे थे। जब कानून बहुमत से पास हुआ था, तब तो दिग्गी राजा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था कि बिल को पास करने में किस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ ? गौर करें कि जब सरकार की तरफ से जम्मू-कश्मीर के नेताओं को आमंत्रित किया गया तो कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला कहने लगे कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दो।
सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस चाहती क्या है ? उसके शिखर नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी बताएं कि क्या वे दिग्विजय सिंह की राय के साथ हैं या नहीं ? अर्थात क्या कांग्रेस चाहती है कि जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त, 2020 से पहले की व्यवस्था लागू हो ? प्रधानमंत्री की जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ होने वाली बैठक से पहले ही कांग्रेस कहने लगी कि राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देना जरूरी है। कांग्रेस चीख-चीखकर कह रही है कि धारा 370 को खत्म करना लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों पर सीधा हमला है। इसके साथ ही कांग्रेस चाहती है कि संविधान के अनुच्छेद 370 की बहाली हो ताकि ये कांग्रेसी और इसके मित्र दल पहले की तरह लूट कर सकें और मौज काट सकें। जो मांग और जिस भाषा में दिग्विजय सिंह कर रहे हैं, वही तो पाकिस्तान भी बोलता है। चीन भी यही तो चाहता है। ये दोनों देश चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली हो, ताकि वह पहले की तरह मनमानी कर सकें। चीन कहता रहा है कि जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म करना अवैध और अमान्य है। वह भारत के आंतरिक मामले में दखल देने से बाज नहीं आता। चीन ने भारत के धारा 370 को हटाने के कदम को 'अस्वीकार्य' करार दिया था। अगर बात पाकिस्तान की करें तो उसका तो चैन खत्म हो गया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने संसद का संयुक्त सत्र बुलाया। संयुक्त सत्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के फैसले को संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाला कदम बताया। बहरहाल, इमरान खान को गंभीरता से लेने का कोई मतलब नहीं है। वे तो बेगैरत इंसान साबित हो चुके हैं। वे ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी को शहीद बताते हैं। इससे समझा जा सकता है कि वह आतंकवाद फैलाने वालों के साथ खड़े हैं। उन्हें तो भारत से हर सभंव मदद मिलती थी, जब वे अपनी मां के नाम पर लाहौर में कैंसर अस्पताल बनवा रहे थे। भारत के उद्योगपति और फिल्मी सितारे उन्हें दिल खोलकर करोड़ों रुपये का धन देते थे। पर उन्होंने उस एहसान को भी कभी याद नहीं रखा। वे एहसान फरामोश हैं।
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा तो देर-सवेर मिल ही जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इसी तरह का देश को भरोसा दिया है। पर अब अनुच्छेद 370 की बहाली तो असंभव है। सरकार को उसे निरस्त इसलिए करना पड़ा था, क्योंकि यह तो सारे देश की चाहत थी। इस बिन्दु पर सारा देश एक साथ खड़ा है। आखिर अनुच्छेद 370 में क्या खास बात है जिसकी मांग कांग्रेस तथा कश्मीरी नेता करते हैं ? क्या ये सच नहीं है कि अनुच्छेद 370 राज्य को भारत से जोड़ने में विफल रहा था ? कांग्रेस की बेशर्मी को देखिए कि वह जम्मू-कश्मीर को लेकर अनेक तरह की मागें कर रही है। पर उसकी तऱफ से कश्मीरी पंडितों के राज्य में पुनर्वास के मसले पर कभी कोई मांग नहीं होती ? क्या कश्मीरी पंडित भारतीय नहीं हैं ? क्या कश्मीरी पंडितों के हक में बोलना कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ है ? अपने को अल्पसंख्यकों का हितैषी बताने वाली कांग्रेस जम्मू-कश्मीर के अल्पसंख्यकों को अल्पसंख्यक नहीं मानती। कौन नहीं जानता कि अनुच्छेद 370 से ही कश्मीर में अलगाववाद बढ़ा था। क्यों वहां पर आजतक कभी अल्पसंख्यक आयोग नहीं बना ? क्या वहां पर हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख नहीं रहते ? अनुच्छेद 370 से राज्य के अल्पसंख्यकों के साथ घोर अन्याय हुआ। क्यों अनुच्छेद 370 के दौर में वहां पर सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों से संबंध रखने वालों को आरक्षण नहीं मिला ? इन सवालों के जवाब कांग्रेस, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती को देने ही होंगे।
कांग्रेस के अलावा जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दल भी अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग कर रहे हैं। क्या इन्हें पता नहीं है कि इसी अनुच्छेद 370 के कारण अब तक राज्य में बाल विवाह निरोधक कानून लागू नहीं हुआ। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग तक गठित नहीं हुआ। यकीन मानिए शिक्षा का अधिकार देश की संसद ने दिया था पर जम्मू-कश्मीर के बच्चों को यह अधिकार नहीं था। क्योंकि, वहां अनुच्छेद 370 लागू था। और तो और वहां इसी धारा 370 के कारण आरटीआई एक्ट तक लागू नहीं हो पाया। आखिर किस मुंह से ये यह सब धारा 370 फिर से चाहते हैं ? एक बात जान लें अब जम्मू-कश्मीर में खून-खराबे और देश विरोधी गतिविधियों का दौर तो अब पीछे छूट चुका है। वहां पर सेना के जवानों पर पत्थर फेंकने वालों के लिए भी अब कोई जगह ही नहीं बची है। अब जम्मू से लेकर कश्मीर की वादियों में अमन की बयार बहेगी। वहां की जनता भी अब देश की मुख्यधारा से मिलना चाहती है। राज्य को इस समय चाहिए निजी क्षेत्र का भारी भरकम निवेश। राज्य में जब निवेश होगा तभी तो नौजवानों को रोजगार के अवसर मिलने लगेंगे। राज्य के नौजवानों के लिए रोजगार सृजित करना सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही राज्य में इस तरह के अनुकूल हालात तो बनाने ही होंगे ताकि देश-विदेश के फिल्म निर्माता भी यहां पर आएं शूटिंग के लिए। अच्छी बात ये है कि राज्य के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा स्वयं ही फिल्म निर्माताओं से मिल रहे हैं ताकि वे कोरोना काल के बाद राज्य में शूटिंग के लिए आने लगें। आतंकवाद के स्याह दौर के कारण जम्मू-कश्मीर में फिल्मों की शूटिंग बहुत पहले से ही लगभग बंद सी हो गई थी। अब जम्मू-कश्मीर देश के शेष राज्यों की तरह से चलेगा-आगे बढ़ेगा। वहां पर आतंकवाद, अराजकता और अव्यवस्था फैलाने वाली शक्तियों को कुचलने के लिए देश तैयार है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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