अरविंद
यांग जुई चीन में बायोटेक्नोलॉजी से जुड़े रिसर्च के दौरान सुरक्षा उपायों से संबंधित कानूनों का मसौदा बनाने वाले विशेषज्ञ समूह के सदस्य थे। इन्होंने एक शोध पत्र लिखा है जिसमें जैव प्रौद्योगिकी शोध से उभरने वाले खतरे और उस पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर विचार किया गया है। दरअसल, इसमें कोरोना वायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराये जाने पर चीन के बचाव की जमीन तैयार की गई है। और तो और, लोकतंत्र शब्द से नफरत करने वाले देश चीन के इस महत्वपूर्ण व्यक्ति ने अपने शोधपत्र में दो बार लोकतंत्र शब्द का भी प्रयोग किया है।
जरा विचार कीजिए, वह कौन सा शब्द होगा जिसपर चीन में अघोषित प्रतिबंध हो! जिसपर कहीं कोई चर्चा-परिचर्चा नहीं हो सकती और जिसे सुनते ही ड्रैगन के नथुने फड़कने लगें! संभवत: ‘लोकतंत्र’ ही वह शब्द है, जिसे चीन अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है। यही वह शब्द था जिसके खौफ में चीन ने थिआनमेन चौक पर निहत्थे छात्रों पर टैंक तक चढ़ा दिया था। लेकिन उसी चीन में अगर कानून बनाने वाला कोई व्यक्ति ‘लोकतंत्र’ शब्द का प्रयोग खुलेआम करे, बार-बार करे, तो! यही माना जाएगा कि या तो उस व्यक्ति ने चीन छोड़ दिया होगा या दिमाग ने उसका साथ छोड़ दिया होगा। लेकिन नहीं। वह चीन में ही है और उसके मानसिक संतुलन में भी कोई गड़बड़ी नहीं। वह चीन की यूनिवर्सिटी में कानून का प्रोफेसर है। तो, भला ये ‘माजरा’ क्या है?
माजरे के सवाल पर आने से पहले एक और सवाल पर विचार करना चाहिए। आज पूरी दुनिया के सामने यही यक्ष प्रश्न है कि ‘वुहान वायरस’ दुर्घटना था या एक स्वाभाविक संक्रमण का मामला, या फिर जान-बूझकर योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल किया गया एक जैविक हथियार? स्वाभाविक संक्रमण के सिद्धांत के इर्द-गिर्द ही मुख्यधारा के विमर्श को रखने की कुछ कथित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की कोशिशें दुनिया में जगह-जगह लग रहे लाशों के ढेर के बीच से निकलकर आ रहे एक के बाद एक तथ्यों के कारण हाशिए पर जा चुकी है। बेशक यह भी जांच का एक कोण हो, लेकिन संभावनाएं तो दो ही विकल्पों पर आ टिकी हैं- एक, यह वुहान की प्रयोगशाला से दुर्घटनावश निकल गया और दो, इसे जान-बूझकर फैलाया गया यानी इसका इस्तेमाल जैविक हथियार के तौर पर हुआ। दोनों ही स्थितियों में निशाने पर कौन? वही अपना साम्राज्यवाद पड़ोसी चीन। अगर कोविड-19 को जैविक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया भी गया हो तो इसे साबित करते अकाट्य साक्ष्य कभी मिल सकेंगे, कहना मुश्किल है। लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य जरूर ड्रैगन को शिकंजे में लेते जा रहे हैं और इसी के तहत अमेरिकी नेतृत्व में दुनिया निर्णायक कदम उठाने की ओर बढ़ रही है।
यांग जुई का तिलस्म
अब वापस आते हैं ‘माजरे’ पर। लोकतंत्र शब्द का बार-बार आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति हैं यांग जुई। यांग चीन की तियानजिन यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में एसोसिएट प्रोफेसर और सेंटर फॉर बायोसेफ्टी रिसर्च एंड स्ट्रैटेजी में सीनियर फेलो हैं। यांग उभरते बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र से जुड़े जोखिमों को कम करने के उपायों पर खास तौर पर काम करते हैं। यांग चीन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के उस विशेषज्ञ समूह के सदस्य थे, जिसने बायोटेक्नोलॉजी से जुड़े रिसर्च के दौरान अपनाए जाने वाले सुरक्षात्मक उपायों से संबंधित कानूनों का मसौदा तैयार किया था। इन्होंने हैंझी यू के साथ मिलकर इसी साल मार्च में एक शोध-पत्र लिखा। हैंझी यू चीन की झीजियांग यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान विभाग में रिसर्च फेलो हैं और वैश्विक प्रशासन और सार्वजनिक नीतियों पर काम करती हैं। हैंझी ने हाल के समय में जैव-तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली चीनी कंपनियों की प्रशासन प्रणाली पर कई शोध-पत्र लिखे हैं। यांग जुई और हैंझी यू ने जो शोध-पत्र लिखा, उसका शीर्षक है- बायोटेक्नोलॉजी एंड सिक्योरिटी थ्रेट्स: नेशनल रेस्पांसेज एंड प्रॉस्पेक्ट्स फॉर इंटरनेशनल कोआॅपरेशन।
ऐसे समय में जब दुनिया ‘वुहान वायरस’ के स्रोत को खोजने में जुटी है, इस तरह के शोध का समय बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है। इसे लिखता है वह व्यक्ति जो बायोटेक्नोलॉजी के शोध करने में लागू कानून को तैयार करने वाली टीम का हिस्सा रहा, यानी वह जो कहेगा उसे प्रामाणिक माना जाना चाहिए। अब यह देखना चाहिए कि वह क्या कहता है और क्यों कहता है। पहले इसकी बात कि वह कहता क्या है।
विमर्श बदलने की कोशिश
इस शोध-पत्र का निचोड़ यही है कि जीनोम संबंधी रिसर्च एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर पूरी इंसानी जात का भविष्य छिपा है। इसके परिणाम आश्चर्यजनक रूप से कल्याणकारी हो सकते हैं और इससे तमाम असाध्य बीमारियों का उपचार हो सकता है। लेकिन इसके खतरे भी हैं और खतरे ऐसे कि मनुष्य के अस्तित्व के लिए ही संकट खड़ा हो जाए। ‘जैव-तकनीकों में सावधानी और विकास अकेले चीन की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है’। इस दृष्टि से परस्पर सहयोग से ‘मजबूती को और मजबूत और कमजोरी को दूर करते हुए’ आगे बढ़ना होगा। इसी में सबकी भलाई है। इस तकनीक का गलत इस्तेमाल न हो, यह केवल चीन की नहीं, पूरी दुनिया की जिम्मेदारी है और इस लिहाज से इस क्षेत्र में हो रहे शोध वगैरह के लिए क्या नियम-कायदे होने चाहिए, क्या सावधानियां बरती जानी चाहिए, किस हद तक और कैसे बढ़ना चाहिए, यह सब तय करने में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल-जुलकर काम करने की जरूरत है। ‘हमें एक-दूसरे से सीखते हुए आगे बढ़ना है और इस तरह दुनिया में जैव-तकनीकी के आधुनिक प्रशासन को विकसित करने में सहयोग करना है।’
इसके साथ ही शोध में यह सवाल भी उठाया गया कि 1918 का इन्फ्लूएंजा वायरस या चेचक का वायरस तो खत्म हो चुका था, फिर यह अचानक कहां से आ गया? संभव है, यह जैविक आतंकवाद या जैविक युद्ध का परिणाम हो।
आखिर माजरा क्या है
अब बात इसकी कि यांग जो कह रहे हैं, क्यों कह रहे हैं। इस पूरे शोधपत्र में जो खतरे गिनाए गए, वैसे ही खतरे से आज पूरी दुनिया जूझ रही है। यह शोध बार-बार और तरह-तरह से यह कह रहा है कि जीन संरचना में बदलाव की तकनीक आज आसानी से उपलब्ध है और इसके क्रांतिकारी सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं लेकिन यह उतना ही खतरनाक भी है और इसलिए पूरी दुनिया को इससे जुड़ी सावधानियां, नियम-कायदे मिलकर बनाने चाहिए और किसी एक देश, जाहिर है चीन, को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। इसके साथ ही शोध जोर देकर कहता है कि अगर सावधानियों का कड़ाई से पालन नहीं किया गया तो प्रयोगशाला से दुर्घटनावश संशोधित जीन संरचना वाला वायरस निकलकर तबाही मचा सकता है।
इस तरह की सफाई की वजह है। कम से कम दुनिया इस नतीजे पर तो पहुंच ही चुकी है कि कोविड-19 प्रयोगशाला में बना। और, इस बात पर आगे-पीछे दुनिया आधिकारिक रूप से एकमत निर्णय सुना भी देगी। फिर जांच होगी कि कहीं इसका इस्तेमाल जैविक हथियार के तौर पर तो नहीं किया गया? इसका जो भी जवाब निकलेगा, उसके समर्थन में परिस्थितिजन्य साक्ष्य ही होगा। लेकिन किसी भी हालत में चीन को कम से कम इस बात का जवाब तो देना ही होगा कि आखिर इतना खतरनाक वायरस प्रयोगशाला से लीक कैसे हो गया। बायोसेफ्टी-4 के सुरक्षा मानकों वाले लैब से किसी भी वायरस का निकलना असंभव होता है तो फिर वहां से कैसे निकला? यह शोधपत्र तब की स्थितियों में चीन के लिए तर्क की जमीन तैयार करने के प्रयास की एक कड़ी जान पड़ता है।
आखिर इस शोधपत्र को वह व्यक्ति तैयार करता है जो चीन में जैव-तकनीक क्षेत्र के लिए कानून बना चुका है। जाहिर है, उससे ज्यादा विश्वसनीय व्यक्ति कौन हो सकता है? और अगर वह बेबाक तरीके से इस तकनीक के खतरे गिना रहा है, साथ में उदाहरण के तौर पर वर्ष 2018 में चीन के युवा शोधकर्ता जियानकू का भी जिक्र करता है जिसने इंसानी भ्रूण के जीनोम में बदलाव करके दुनिया में सनसनी फैला दी थी और तब न तो दुनिया को इस बात की जानकारी थी और न ही चीन की सरकार को। यानी, चीन की व्यवस्था में छेद हो सकती है, जिसे बंद करने की कोशिश तो चीन की ओर से लगातार होती रही, लेकिन इस मामले में दुनिया को मिल-जुलकर काम करना चाहिए।
जुबान पर लोकतंत्र?
अब बात उस निषेधित शब्द- लोकतंत्र- की। यांग ने अपने शोधपत्र में दो जगहों पर लोकतंत्र शब्द का प्रयोग किया। एक जगह वह लिखते हैं, ‘नीतियां तय करने में सभी हितधारकों को शामिल करने की व्यवस्था को और मजबूत करने की जरूरत है। जैव-विज्ञानियों, समाजशास्त्रियों, उद्योग, मीडिया और आम लोगों जैसे सभी हितधारकों के लिए लोकतांत्रिक समीक्षा व्यवस्था विकसित करना भी नीति निर्धारकों के प्रबंधकीय कौशल की परीक्षा है’। इस वाक्य में ‘लोकतांत्रिक’ शब्द की जगह बड़ी आसानी से ‘उचित’, ‘विचारशील’, ‘सहभागितापूर्ण’ जैसे न जाने कितने शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता था। यहां ‘लोकतांत्रिक’ या ‘डेमोक्रेटिक रिव्यू’ का इस्तेमाल कुछ अटपटा ही लगता है। अब आते हैं दूसरी बार इस्तेमाल किए गए इस शब्द पर:
‘इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि इस तरह की लोकतांत्रिक विचार-विमर्श (डेमोक्रेटिक डेलिबरेशन) प्रक्रिया; जिसमें जैव-विज्ञानी, समाजशास्त्री, जनता और उद्योग शामिल हैं; में चीन और अमेरिका की विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भी ध्यान रखना होगा।’
इसमें भी ‘लोकतांत्रिक’ शब्द अटपटे तरीके से ठूंसा गया लगता है। सबसे पहली बात तो यह है कि विचार-विमर्श अपने आप में एक-दूसरे के मत को सुनने-समझने और परस्पर विरोधों को खत्म करने की प्रक्रिया है। इसके ‘लोकतांत्रिक’ होने का भला क्या मतलब? और फिर अगर वहां कोई शब्द डालना भी था तो उसके कई विकल्प हो सकते थे। वैसे ही, जैसे ऊपर कहा गया। फिर लोकतंत्र के नाम से आपे से बाहर हो जाने वाले चीन में कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण विषय पर कोई महत्वपूर्ण बात करते हुए ‘लोकतांत्रिक’ शब्द का इस्तेमाल क्यों करता है? इसलिए कि उसकी निष्पक्षता सिद्ध की जा सके। यह बताया जा सके कि यांग जो कह रहे हैं, उसे सरकारी नहीं, एक विशेषज्ञ की निष्पक्ष टिप्पणी माना जाए।
और अगर उसकी बात मानी जाती है तो कोविड-19 के फैलने में चीन ज्या
दा से ज्यादा एक ऐसी लापरवाही का दोषी हो सकता है जो अनजाने में हुई। और इसी कारण, पूरी दुनिया को जैव-तकनीकों के प्रबंधन के मामले में एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए। तो यह है चीन की घेराबंदी जो बहती हवा का रुख देखकर आने वाले तूफान से अपने घर को बचाने की कोशिश भर है। ल्ल
शोध में जैव-तकनीकों को लेकर कई तरह के खतरों की बात कही गई है। गौर कीजिए:
अनजाने में हुई गलती के कारण कोई दुर्घटना हो सकती है। इस तरह की घटना मानवीय चूक के अलावा किसी तकनीकी गड़बड़ी के कारण भी हो सकती है। इंसान पर परीक्षण से पहले सुरक्षात्मक उपायों का सख्ती से पालन नहीं किया जाना भी इसका एक कारण हो सकता है।
प्रयोगशाला में हुई किसी दुर्घटना का सामाजिक सुरक्षा और मनुष्य के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। यह दुर्घटना वायरस के जीनोम संबंधी प्रयोगशाला परीक्षण, मध्यवर्ती परीक्षण, पर्यावरण में दोबारा इनके छोड़े जाने से लेकर इन्हें अंतिम तौर पर तैयार करने के दौरान हो सकती है।
शोध के विभिन्न चरणों के दौरान जैविक तौर पर संशोधित वायरस वगैरह को जान-बूझकर भी छोड़ा जा सकता है।
जैव-आतंकवाद या जैव-युद्ध जैसी गतिविधियों की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। समाज को नुकसान पहुंचाने की मंशा के साथ इस तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया जा सकता है और इस कारण सुरक्षा को लेकर गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
अभी की जो स्थिति है, उसमें जीन में बदलाव करने की तकनीक के अपने खतरे हैं और इसमें सौ फीसदी सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकती। इससे जिस जीन में बदलाव की कोशिश की जाए, वहां के अलावा अन्य जीन संरचना के लिए भी खतरा उत्पन्न हो सकता है और इसका गंभीर असर हो सकता है।
जीन में बदलाव प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के साथ इस तरह फेरबदल कर बनाए गए वायरस के नए किस्म को आसानी से छिपाया जा सकता है। इनकी तस्करी भी बड़े आराम से हो सकती है। इस तरह प्रयोगशाला में बनाए गए वायरस का इस्तेमाल भी आसान होता है और इससे बहुत ही कम समय में पेड़-पौधों, जानवरों से लेकर इंसानों तक को संक्रमित किया जा सकता है और यह जान पाना बेहद मुश्किल होता है कि जीन में जो बदलाव आया, उसे प्रयोगशाला में कृत्रिम तरीके से तैयार किया गया था या नहीं।
जीन ड्राइव से मनुष्य की प्रजनन क्षमता को घटाया जा सकता है और इस कारण किसी खास समुदाय की जनसंख्या कम करने में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है।
इस तकनीक से कीट-पतंगों को हथियार के तौर पर विकसित कर उनका इस्तेमाल दुश्मन देश में डेंगू बुखार या जीका जैसे वायरस फैलाने में हो सकता है।
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