दया सागर
अनुच्छेद 370 के बारे में एक भ्रांति गढ़ दी गई थी कि इससे कश्मीरियों को विशेष दर्जा मिलता है। वर्ष 2015 में सरकार संसद में बता चुकी है कि अनुच्छेद- 370 ‘जम्मू और कश्मीर राज्य को अस्थायी प्रावधान’ प्रदान करता है। संविधान में प्रदेश को किसी विशेष दर्जे का उल्लेख नहीं है। परंतु राजनीतिक दल ने इस भ्रांति पर ही अब भी राजनीति करने को उत्सुक हैं।
जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के अध्यक्ष और 17वीं लोकसभा के मौजूदा सदस्य डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने 3 जून 2021 को श्रीनगर में अपनी पार्टी की प्रांतीय समिति के सदस्यों के साथ वर्चुअल बैठक में कहा, ‘हम अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए एक शांतिपूर्ण और संवैधानिक संघर्ष करते रहेंगे। हमारी हमेशा यही प्राथमिकता रहेगी कि राज्य को इसका दर्जा वापस मिले और अनुच्छेद 370 और 35-ए को पुनर्बहाल किया जाए।’ जम्मू-कश्मीर में शांति, समृद्धि और विकास को बढ़ावा देने का विचार तब तक साकार नहीं हो सकता, जब तक लोगों के संवैधानिक अधिकार पुनर्बहाल न हो जाएं। .. हमारी पार्टी के एजेंडे में जम्मू-कश्मीर की अनूठी राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के दायित्व को पूरा करने का मजबूत आश्वासन बरकरार है। …मौजूदा समय में प्रशासनिक जवाबदेही हाशिए पर है और विकास का काम ठप्प पड़ा है। …. 5 अगस्त को तय किए गए उपायों पर हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं है। इससे पहले भी 27 मई को जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से जारी सूचना में पार्टी की कार्यकारिणी समिति की बैठक में पेश किए गए प्रस्ताव के बारे में जिक्र किया गया है कि अनुच्छेद 370, 35-ए जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए मनोवैज्ञानिक और प्रतीकात्मक महत्व रखता है जो कुछ संघीय उप इकाइयों को अक्सर उनकी विशिष्ट पहचान और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अनुसार खास अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद-370 के तहत पूर्व भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर को भारत के संविधान में कभी विशेष दर्जा नहीं दिया गया था।
संवैधानिक प्रावधानों के प्रकाश में उपयुक्त विचार कर अनुच्छेद-370 को निरस्त नहीं, बल्कि संशोधित किया गया है।
अगस्त 2019 आए संसदीय फैसले से जम्मू-कश्मीर के लोगों से कोई विशेष दर्जा नहीं छीना गया।
भारत सरकार ने 11-03-2015 को राज्य सभा में तारांकित प्रश्न 138 के उत्तर में अनुच्छेद 370 से जुड़ी ‘भ्रांति’ को दूर करने के लिए सभी संबंधित बिन्दुओं को स्पष्ट रूप से समझाया।
जिन लोगों को जम्मू-कश्मीर के आम निवासियों की वास्तव में परवाह है, वे अब अनुच्छेद 370 को वोट बैंक के खेल का मोहरा बनाना बंद करें।
बीते वर्षों में नेशनल कॉन्फ्रेंस के शीर्ष नेताओं ने अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर को भारत के विशेष राज्य का दर्जा देने वाले प्रावधान के तौर पर पेश किया है। इसी प्रकार के ‘संकेत’ 29 मई और 3 जून 2021 को आयोजित नेशनल कॉन्फ्रेंस की बैठकों में भी उभरे। अनुच्छेद 370 के संबंध में ऐसी परिभाषा और स्वरूप को देखकर निश्चित रूप से कुछ लोगों पर एक अलग प्रभाव पड़ेगा। वैसे, भारत में ज्यादातर राजनीतिक नेता या अन्य दल उन लोगों की भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश नहीं करते जो मानते हैं कि ‘1947 में कश्मीर के भारत में विलय के समय कश्मीरियों के साथ’ कुछ खास शर्तों पर हुई सहमति के अनुसार अनुच्छेद -370 में भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था, जबकि उस समय तक न तो अनुच्छेद -370 एक विशेष दर्जे से संबंधित धारा थी और न ही वे लोग जम्मू-कश्मीर के बाशिंदे थे जिन्हें विलय का फैसला करना था (यह फैसला राजा को करना था, उन्होंने फैसला तो किया, पर तब तक थोड़ी देर हो चुकी थी।)
11 मार्च 2015 को भी राज्यसभा में सांसद अनिल देसाई के पूछे तारांकित प्रश्न 138 पर गृह राज्य मंत्री हरिभाई परथीभाई चौधरी ने लिखित जवाब दिए थे। प्रश्न इस प्रकार थे-:
*प्रश्न: (क) क्या यह सच है कि अनुच्छेद 370 के तहत संविधान जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देता है; (बी) अगर हां, तो जम्मू और कश्मीर को दी गई वे विशेष रियायतें/सुविधाएं क्या हैं जो अन्य राज्यों को नहीं मिलती हैं; (सी) क्या इसे राज्यों के बीच भेदभाव समझा जाए; और (डी) क्या सरकार जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के बारे में सोच रही है और अगर हां, तो यह प्रक्रिया कब तक पूरी हो जाएगी?
उत्तर: (ए): भारत के संविधान में ‘जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा’ का कोई उल्लेख नहीं है। अनुच्छेद- 370 ‘जम्मू और कश्मीर राज्य को अस्थायी प्रावधान' प्रदान करता है। (बी) से (डी): उपरोक्त तथ्यों के तहत ये प्रश्न बेमानी हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 11-03-2015 के बाद भी नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी के अलावा भारत के अन्य कई राजनीतिक दलों के नेता अक्सर यह कहते दिखे कि अनुच्छेद 370 में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था। इससे ज्यादा हैरानी यह है कि अब भी ऐसे नेता हैं जो कहते हैं कि अनुच्छेद -370 को निरस्त किया गया है, जबकि वास्तव में इसमें संशोधन हुआ है।
जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर के ऐसे लोग जो इस अनुच्छेद की बारीकियों या उसमें लिखी बातों से वाकिफ न हों, यह देखकर हताशा महसूस करते होंगे कि 6 अगस्त 2019 (एस. ओ. 273) को अनुच्छेद -370 में किए गए संशोधन के जरिए उनसे उनका विशेष दर्जा (जो बुनियादी तौर पर कभी था ही नहीं) छीन लिया गया। इस मामले को सही तरीके से संभालने में पूरी सावधानी नहीं बरती गई। आइए जरा नेशनल कॉन्फ्रेंस की मांगों पर विचार करें। परिसीमन आयोग (डीसी) के सहयोगी सदस्यों के रूप में नामित नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन लोकसभा सांसदों ने दिल्ली में 18-02-2021 को आयोग की पहली नियमित बैठक में भाग नहीं लिया। उन्होंने 17 फरवरी 2021 को आयोग को सूचित किया था कि उन्होंने जम्म्-कश्मीर के पुर्नगठन अधिनियम 2019 की संवैधानिक वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है और इसलिए परिसीमन की कार्यवाही रोक देनी चाहिए क्योंकि यह उस अधिनियम के प्रावधानों के तहत आयोजित की जा रही है जिस पर न्यायिक जांच होने वाली है।
जहां तक केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देने की बात है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई अवसरों पर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उचित समय पर यह दर्जा बहाल किया जा सकता है लेकिन यह मामला परिसीमन आयोग के कामकाज या विकास कार्यों के रास्ते का रोड़ा नहीं बनना चाहिए। इतना जरूर है कि अधिनियम 34 के मामले में भी संसद को ही पहल करनी होगी और उसे 2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को संशोधित करना होगा। जहां तक नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से भारत के संविधान में अनुच्छेद-35ए की बहाली की बात है, यह 2019 में जारी संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश-272 को निरस्त या संशोधित करने की मांग है। 5 अगस्त, 2019 को राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड-1 के तहत प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश जारी किया था जिसने 1954 के उस संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश की जगह ली थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस भारतीय संविधान में अनुच्छेद-370 के मूल स्वरूप की बहाली की मांग करती है यानी वह संविधान के अनुच्छेद 370(3) के तहत 6 अगस्त, 2019 को जारी राष्ट्रपति आदेश-273 को निरस्त/संशोधित करने की बात करती है। राष्ट्रपति ने यह आदेश भारतीय संसद की सिफारिश पर जारी किया था और इसे विधि मंत्रालय ने सार्वजनिक करते हुए कहा कि नीचे लिखे अंश को छोड़कर अनुच्छेद 370 के सभी खंड अब लागू नहीं रहेंगे-‘370 – इस संविधान के सभी प्रावधान, समय-समय पर संशोधित, बिना किसी संशोधन या अपवाद के, जम्मू और कश्मीर राज्य पर लागू होंगे, भले ही अनुच्छेद 152 या अनुच्छेद 308 या इस संविधान के किसी अन्य अनुच्छेद या जम्मू और कश्मीर के संविधान के किसी भी प्रावधान या किसी कानून, दस्तावेज, निर्णय, अध्यादेश, आदेश, उप-कानून, नियम, विनियम, अधिसूचना, या भारतीय भूभाग में कानूनी मान्यता प्राप्त किसी प्रथा या व्यवहार, या अनुच्छेद 363 के तहत अथवा अन्यथा हुए किसी भी सनद, संधि या समझौते में इसके विपरीत कुछ भी उल्लेखित हो।’
जहां तक 5 अगस्त, 2019 और 6 अगस्त, 2019 को जारी राष्ट्रपति आदेश में संशोधन की मांग है, वर्ष 2024 से पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस की इच्छा तभी पूरी हो सकती थी जब केंद्र की भाजपानीत सरकार को डर होता कि नेशनल कॉन्फ्रेंस लोकसभा में भाजपा की संख्या घटा सकती है। 2024 के बाद भी यह तभी हो सकता है जब आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को ज्यादा सीटें न मिलें और बहुमत गुपकर घोषणा जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस के दृष्टिकोण का समर्थन करे।
वर्तमान में सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत तो इन दोनों ही स्थितियों की कोई संभावना नहीं दिखती। है। ऐसे किसी भी एजेंडे पर अड़े रहे तो वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस या किसी अन्य ‘कश्मीरी’ राजनीतिक दल को निर्वाचन व्यवस्था की किसी भी प्रक्रिया से बाहर रहना होगा। इसलिए, यह नेशनल कॉन्फ्रेंस और अन्य राजनीतिक दलों के ही हित में होगा कि वे राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ परिसीमन जैसी प्रक्रिया में शामिल हों। अब किसी को भी अनुच्छेद-370 का इस्तेमाल वोट बैंक के लिए नहीं करना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के लोग लंबे समय तक अच्छे प्रशासन से वंचित रहे और अगर 2019 के बाद भी कहीं कोई कमी है, तो ऐसे सवाल मौजूदा सरकार के सामने उठाए जाने चाहिए, बेशक आप किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित हों। ल्ल
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