पाकिस्तान की सरकार चुनाव में व्यापक सुधारों के नाम पर इलेक्शन एक्ट में जो संशोधन लाना चाह रही है, उनका पुरजोर विरोध प्रारंभ हो गया है। और यह विरोध न केवल विपक्षी राजनैतिक दल कर रहे हैं, बल्कि पाकिस्तान के इलेक्शन कमीशन (ईसीपी) ने इन्हें संविधान के विरुद्ध बताया है। उल्लेखनीय है कि सरकार की ओर से इलेक्शन (अमेंडमेंट) बिल 2020 को 16 अक्टूबर, 2020 को नेशनल असेंबली में पेश किया गया था और विपक्ष के विरोध के बीच 8 जून को नेशनल असेंबली की संसदीय मामलों पर स्थायी समिति ने इसे मंजूरी दे दी है। सरकार की ओर से बार—बार कहा जा रहा है कि उसका मंतव्य पाकिस्तान में सभी स्तरों पर निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने का है, जबकि वास्तविकता यह है कि इस बहाने सरकार इलेक्शन कमीशन की शक्तियों और अधिकारों को कम करते हुए इस प्रक्रिया में अपना हस्तक्षेप बढ़ाना चाहती है।
प्रस्तुत बिल में क्या है ?
बिल में प्रस्तावित प्रमुख परिवर्तनों में ईसीपी को जहां अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना शामिल है, परन्तु इसके एवज में उसके सबसे महत्वपूर्ण शक्तियों को समाप्त करने का प्रयास इस बिल में किया गया है। इसमें जहां कुछ इसी तरह के लुभावने प्रावधान किये गये हैं, जो दिखाते हैं कि सरकार चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए कटिबद्ध है। नए सुधारों के तहत परिसीमन सूचियों पर आपत्ति की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकेगी। चुनाव को निष्पक्ष बनाने के लिए यह व्यवस्था भी रखी गई है कि मतदान अधिकारियों/ कर्मचारियों की नियुक्ति के 15 दिनों के भीतर उनकी नियुक्ति को चुनौती दी जा सकेगी। विपक्षी दलों का मानना कि यह अनावश्यक रूप से निर्वाचन प्रक्रिया को धीमा कर देगा। नेशनल असेंबली के उम्मीदवारों के लिए नामांकन शुल्क 30,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये और प्रांतीय विधानसभा उम्मीदवारों के लिए 20,000 रुपये से बढ़ाकर 30,000 रुपये किये जाने का प्रावधान भी इन संशोधनों में शामिल है। विधानसभा की पहली बैठक के 60 दिनों के भीतर शपथ नहीं लेने पर निर्वाचित उम्मीदवार की सीटों का स्वत: रिक्त हो जाना; खुले मतपत्र के तहत सीनेट चुनावों के लिए मतदान, विदेश में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों के लिए मतदान का अधिकार और चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग इस संशोधन विधेयक के अन्य प्रावधानों में शामिल हैं।
इलेक्शन कमीशन का विरोध !
जहां एक ओर यह संशोधन विधेयक पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर निर्वाचन सम्बन्धी सुधारों की बात करता है, पर इसमें कई जगह सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अन्य संस्थाओं खासकर इलेक्शन कमीशन के अधिकारों का अतिक्रमण किया है। पाकिस्तान के इलेक्शन कमीशन (ईसीपी) ने संघीय सरकार को एक पत्र द्वारा सूचित किया है कि नेशनल असेंबली द्वारा अनुमोदित चुनाव संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधान संविधान के बिल्कुल विपरीत हैं।
विधेयक में कुछ संशोधनों को पूर्णत: असंवैधानिक घोषित करते हुए, ईसीपी ने कहा कि मतदाता सूची तैयार करने और उनकी समीक्षा करने का अधिकार जो प्रस्तावित विधेयक में इलेक्शन कमीशन से छीन कर आंतरिक मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली, नेशनल डाटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (एनएडीआरए) जैसी संस्था को दे दिया जाना है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 219 के तहत इलेक्शन कमीशन का मूल कर्तव्य है और अनुच्छेद 222 के तहत इन शक्तियों को न तो समाप्त किया जा सकता है और न ही कम किया जा सकता है। इसके साथ ही प्रस्तावित संशोधन विधेयक की धारा 17 के तहत यह सुझाव दिया गया था कि निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण जनसंख्या के बजाय मतदाताओं की संख्या के आधार पर किया जाना चाहिए। यह पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 51(5) का स्पष्ट उल्लंघन है जो कहता है कि नेशनल असेम्बली में सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर ही किया जाना चाहिए।
इमरान खान की सरकार सीनेट के चुनावों में अपनी पार्टी के सीनेटरों की खरीद फरोख्त से परेशान रही है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए उसने सीनेट चुनाव में गुप्त के बजाय खुले मतपत्र से मतदान कराने के लिए इस विधेयक में प्रावधान किया है। जबकि ईसीपी का मानना है कि यह पूर्णत: असंवैधानिक है। इससे पूर्व इसी तरह का संशोधन का प्रावधान चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 122 में प्रस्तावित किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
विदेशों में अपनी लोकप्रियता की धारणा के चलते, इमरान खान ने विदेश में रहने वाले पाकिस्तानियों को मताधिकार देने का प्रस्ताव किया है, जिसके सबंध में ईसीपी का कहना है कि इन्हें वोट का अधिकार तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक संसद द्वारा विभिन्न व्यावहारिक पहलुओं के संबंध में आवश्यक कानून नहीं बना दिए जाते।
ईवीएम के उपयोग के बारे ईसीपी का तर्क है कि इन्हें तब तक नहीं अपनाया जा सकता जब तक यह निर्धारित नहीं हो जाता कि ये मशीनें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में पर्याप्त रूप से सक्षम हैं और वे पाकिस्तान के गर्म मौसम, बिजली की लगातार कटौती आदि की स्थिति में काम कर सकती हैं; और इनसे वोटों की सटीकता, गोपनीयता और पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की जा सकती है। कमीशन का मानना है कि बिना उचित परीक्षण के इन मशीनों के साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है ?
ईसीपी ने नए विधेयक के एक और प्रावधान पर आपत्ति दर्ज कराई है, जिसमें कहा गया है कि आरक्षित सीटों पर उम्मीदवारों की प्राथमिकता का क्रम जो राजनीतिक दलों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, उसे मतदान के पश्चात तीन दिनों तक बदलने की सुविधा प्राप्त होगी। परन्तु ईसीपी का मानना है कि इससे मतदान के चौदह दिन बाद परिणाम घोषित करना असंभव हो जाएगा जो कि संविधान के अनुच्छेद 224 के अनुसार अनिवार्यता है। इसके साथ ही ईसीपी ने एक तकनीकी बिंदु पर प्रश्न उठाया है। ईसीपी के अनुसार जब कोई मतदाता आम चुनाव के दौरान अपना वोट डालता है, तो उसके द्वारा डाले गए वोट का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों निहितार्थ होते हैं। वोट का प्रत्यक्ष परिणाम उसके उम्मीदवार की सफलता के रूप में तुरंत प्राप्त होता है, लेकिन अप्रत्यक्ष परिणाम वास्तव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर आरक्षित सीटों पर परिणाम के निर्धारण में सहायक होता है। निहितार्थ यह है कि यदि चुनाव के बाद आरक्षित सीटों की सूची में परिवर्तन किया जाता है, तो यह मतदाता की पसंद के अप्रत्यक्ष निहितार्थ को प्रतिबिंबित नहीं करेगा। और इस प्रकार मतदाता के साथ छल की स्थिति होगी, जहां राजनीतिक दल वोट मिलने के बाद उम्मीदवारों की वरीयता के साथ छेड़छाड़ करने में स्वतंत्र होंगे।
इस विधेयक में एक प्रावधान यह भी है कि एक राजनीतिक दल की सूची शामिल होने के लिए वर्तमान में आवश्यक दो हजार के बजाय कम से कम दस हजार सदस्यों की सूची मांगी जा रही है। इस प्रावधान से छोटे प्रांतों, कमजोर समूहों और कम आबादी वाले क्षेत्रों में काम करने वाले दलों को राजनैतिक प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
प्रस्तुत विधेयक देश में चुनाव सुधार के बजाय, अगले दो सालों में होने वाले चुनाव में इमरान खान और उनकी तहरीक ए इन्साफ पार्टी को दोबारा किस तरह सत्ता में वापसी कर सकें, इसका उपाय मात्र बन कर रह गए हैं। निर्वाचन सूचियां बनाने और उनमें संशोधन के अधिकार एनएडीआरए जैसी संस्था को दे देने से पाकिस्तान में किस तरह का सुधार आने की उम्मीद है ? सेना की शह पर इमरान खान संवैधानिक संस्थाओं को धमकाने पर उतर आये हैं। खासकर मार्च 2021 के बाद से यह विवाद और भी उग्र रूप धारण कर चुका है, जब सीनेट के चुनावों में विपक्षी दलों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के उम्मीदवार और पूर्व प्रधान मंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के उम्मीदवार अब्दुल हफीज शेख को हरा दिया। इस समय निश्चित ही पाकिस्तान को निर्वाचन संबंधी सुधारों की आवश्यकता है, जिससे इस देश का लड़खड़ाता लोकतंत्र सुदृढ़ हो सके, परन्तु वर्तमान सुधारों में लोकतंत्र की परवाह दिखाई नहीं देती।
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