आलोक गोस्वामी
अफगानिस्तान के चैनल टोलो न्यूज से बात करते हुए कुरैशी ने तालिबान को हिंसा का जिम्मेदार मानने की बजाय, आदत के अनुसार भारत पर उठाई उंगली
एक बार नहीं, सैकड़ों बार यह बात साबित हो चुकी है कि पाकिस्तान की सियासत और सियासतदान अपने 'कैप्टन' इमरान नियाजी खान सरीखे सियासी नौसिखियों जैसा बर्ताव करते हैं। कोरे बयानवीर इन पाकिस्तानी सियासतदानों को दुनियावी सियासत का न उतना तजुर्बा है, न तौर—तरीके ही मालूम हैं। एफएटीएफ के रडार पर लगातार बने और कर्ज में बाल—बाल तक गिरवी रख चुके पाकिस्तान का जिहादी तंजीमों को पैसा मुहैया कराना न सिर्फ जारी है, बल्कि उनको हिफाजत वाली पनाहगाह भी देने में उसे बड़ा फख्र महसूस होता है। सालों तक अल कायदा सरगना बिन लादेन को एबटाबाद में छुपाए रखने वाले मुल्क के नेता कैमरों के सामने बिन लादेन के नाम से ऐसे उचकते थे जैसे उसका नाम ही पहली बार सुन रहे हों। पड़ोसी मुल्क के इसी बचकाने बर्ताव का पूरा फायदा उठा रहा है शातिर विस्तारवादी चीन। पैसे से मदद की आड़ में वहां हर भारत विरोधी कदम बेहिचक उठाने की चीन की हिमाकत ऐसे ही नहीं हुई है।
कुरैशी के ही मुल्क के सांसद रहे पश्तून एक्टिविस्ट अफ्रसियाब खट्टक ने उनके साक्षात्कार पर बेबाकी से टिप्पणी की। उन्होंने कहा, तालिबान को विदेश मंत्री की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी, क्योंकि उनके पास कुरैशी जो हैं, विदेश मंत्री के नाते। उधर अफगानिस्तान से भी एक टिप्पणी आई वहां के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर हमदुल्लाह मोहिब की। हमदुल्लाह का कहना है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री अनजान, कम जानकारी वाले और तालिबान के सहयोगी हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान ने जिहाद और शरिया के नाम पर जो कत्लेआम मचाया हुआ है, उसे दुनिया देख ही रही है। कट्टर मंसूबों को अंजाम देने के लिए उसे भी खाद—पानी पाकिस्तान से ही मिल रहा है, यह तथ्य विशेषज्ञ रपटों में एक नहीं, अनेक बार सामने आया है। तालिबानियों के पाकिस्तान के सरहदी पहाड़ी इलाकों में हिफाजती खोहों में ठिकाने बनाए होने के खुलासे भी कई बार हुए हैं। लेकिन लादेन की तरह अगर तालिबान के बारे में भी पाकिस्तानी सियासतदान मासूम बने रहें, तो उनकी मंशा पर क्या कहा जाए! यही वजह है कि पाकिस्तान हाफिज सईद, मसूद अजहर और सलाहुद्दीन जैसे आतंकी सरगनाओं का जिक्र आते ही मासूमियत ओढ़ लेता है।
कुरैशी की समझ का स्तर
मुल्क के विदेश मंत्री का ओहदा पाए शाह महमूद कुरैशी ने कई मौकों पर अपने बयानों से इस्लामी मुल्क को शर्मनाक हालात में पहुंचाया है। पिछले दिनों सीएनएन चैनल पर उनकी नस्लवादी टिप्पणी पर महिला एंकर की नाराजगी का वीडियो खूब वायरल हुआ ही था। ऐसे अधपके बयान पूरी बेशर्मी के साथ देने में माहिर हो चुके कुरैशी ने एक बार फिर अपनी सियासी और वैश्विक जिहाद की समझ का गिरता स्तर जताया है एक साक्षात्कार में।
गत 17 जून को अफगानिस्तान के समाचार चैनल टोलो न्यूज से बात करके हुए, शाह महमूद कुरैशी ने अफगानिस्तान में चल रही तालिबानी हिंसा में तालिबान को बेकसूर ठहराया है। लेकिन अगली ही सांस में, अपने कट्टर मजहबी एजेंडे के तहत यह कहना नहीं भूले कि ये तो भारत है जो अफगनिस्तान की धरती से आतंकवादी गतिविधियां चला रहा है। कुरैशी से जब अफगानिस्तान में हिंसक कार्रवाइयों के बारे में पूछा गया तो उलट प्रश्न करते हुए उन्होंने पूछा कि इन हिंसक कार्रवाइयों के पीछे जिम्मेदार कौन है? उन्होंने सवाल पूछने वाले से ही कहा कि 'अगर इन हिंसक वारदातों के लिए आप फिर से तालिबान को कसूर देना चाहते हैं तो यह एक तरह से कुछ ज्यादा ही हो जाएगा। वहां हिंसा फैलाने वाले और भी कई तत्व हैं।'
भारत के संदर्भ में कुरैशी का कहना है, “अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी हद से ज्यादा है। अफगानिस्तान एक संप्रभुता वाला मुल्क है, जिसके अपने रिश्ते हैं, कारोबार है। लेकिन भारत अफगानिस्तान की धरती को हमारे (पाकिस्तान) खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।'' इस सवाल पर कि भारत कैसे अफगानिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है तो कुरैशी ने तपाक से कहा, ''अफगानिस्तान की धरती से दहशतगर्दी को अंजाम देकर। अफगानिस्तान की जमीन से भारत, पाकिस्तान में शांति और स्थायित्व को नुकसान पहुंचा रहा है।''
लेकिन अफगानिस्तानी पत्रकार भी कहां मानने वाला था। उस पत्रकार, लोतफुल्लाह नजफिजादा ने कुरैशी से चुटकी ली,''अफगानिस्तान में भारत के कितने कोंसुलेट हैं?'' बस इस सवाल पर अपनी आदत के अनुसार, उखड़ गए पाकिस्तानी विदेश मंत्री। बोले,''आधिकारिक तौर पर तो चार हैं, पर असल में कितने हैं, ये आप ही बताएं।''
इसमें शक नहीं कि कुरैशी वही जबान बोल रहे थे, जो उनके मुल्क की सियासत, फौज, दहशतगर्द और 'कैप्टन' बोलते हैं। वे अक्सर ऐसी बेबुनियाद बात फैलाया करते हैं कि अफगानिस्तान में भारत के कई कोंसुलेट हैं। पर सभी जानते हैं कि असल में ये चार ही हैं, हेरात, जलालाबाद, कंधार और मजारे-शरीफ में।
बहरहाल, बात सिर्फ कुरैशी के साक्षात्कार में बड़बोलेपन पर ही खत्म नहीं होती। कुरैशी के ही मुल्क के सांसद रहे पश्तून एक्टिविस्ट अफ्रसियाब खट्टक ने उनके साक्षात्कार पर बेबाकी से टिप्पणी की। उन्होंने कहा, तालिबान को विदेश मंत्री की जरूरत कभी नहीं पड़ेगी, क्योंकि उनके पास कुरैशी जो हैं, विदेश मंत्री के नाते। उधर अफगानिस्तान से भी एक टिप्पणी आई वहां के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर हमदुल्लाह मोहिब की। हमदुल्लाह का कहना है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री अनजान, कम जानकारी वाले और तालिबान के सहयोगी हैं।
चिंता की बात है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी का यह बयान ऐसे समय आया है जब अफगानिस्तान के ही सुरक्षा अधिकारी कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में जारी हिंसा में 3 और 4 जून, दो दिन में ही 119 लोगों की मौत हुई है, इनमें से 102 अफगानी सुरक्षाकर्मी हैं। लेकिन उधर, अफगानी रक्षा मंत्रालय का कहना है कि उनके सुरक्षाबलों की दहशतगर्दी के खिलाफ कार्रवाई में इन दो दिनों, 3 और 4 जून को ही क्रमश: 183 और 181 तालिबानी जिहादी मारे गए थे।
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