आशीष कुमार 'अंशु'
दिल्ली वाले अपने सवालों को लेकर केजरीवाल को तलाश रहे हैं। जबकि केजरीवाल गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब में व्यस्त हैं। अब 2025 तक केजरीवाल को दिल्ली से क्या काम ?
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर दिल्ली की सरकार दो दिनों से अनर्गल आरोप लगा रही थी। अब उनके पास कहने के लिए कुछ बचा नहीं। उनके आरोपों में संघ विरोधी इको सिस्टम वाली मीडिया के लिए दो दिनों की खुराक थी। अब सारे आरोपों की हवा धीरे—धीरे निकल रही है, जब सिलसिलेवार ढंग से एक—एक आरोप का जवाब आ रहा है। सवाल उल्टा आम आदमी पार्टी से पूछा जाना चाहिए कि उसे इतनी जल्दी क्या थी प्रेस कांफ्रेन्स करने की। एक बार श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अधिकारियों से ही जमीन के संबंध में अपनी शंकाओं के साथ मिल आते। लेकिन वे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर सवाल उठाकर इस पुण्य कार्य में बाधा उत्पन्न करने का प्रयास तो नहीं कर रहे ? जब निर्माण कार्य के लिए समर्पण अभियान चल रहा था, उस समय भी आम आदमी पार्टी और दूसरे दलों के लोग तमाम तरह की अड़चन डाल रहे थे कि अभियान सफल ना होने पाए। जबकि परिणाम इसका उल्टा निकला। अभियान इतना सफल हुआ कि ट्रस्ट को आग्रह करना पड़ा कि सहयोग पर विराम दें, क्योंकि ट्रस्ट को तय लक्ष्य से कहीं अधिक धन राशि प्राप्त हो चुकी है।
कहा तो यह भी जा सकता है कि केजरीवाल के लोग दिल्ली वालों का ध्यान ना भटकाते तो उन्हें दिल्ली के सवालों का जवाब नहीं देना पड़ जाता। चाहें वह बस खरीद में पैसों की हेरा-फेरी का संदेह हो या फिर राशन के नाम पर दिल्ली वालों को धोखे में रखने का मामला। दिल्ली सरकार कभी जवाब देने की स्थिति में नजर नहीं आती।
लो फ्लोर बसों की खरीद में हेरा-फेरी
केजरीवाल सरकार ने इसी साल जनवरी में दो कंपनियों को एक हजार लो फ्लोर बसें खरीदने के लिए ऑर्डर दिया था। अब तक कंपनियों ने बसे उपलब्ध नहीं कराई हैं, लेकिन बस खरीद पर फेरा-फेरी के आरोप लग रहे हैं। यह संदेह और पुख्ता तब हुआ जब मामले की जांच के लिए दिल्ली पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने केजरीवाल सरकार से अनुमति मांगी, लेकिन सरकार की ओर से कोई अनुमति नहीं दी गई। यदि बस खरीद में किसी प्रकार घोटाला नहीं है तो केजरीवाल सरकार जांच से क्यों भाग रही है ? उसे मंजूरी दे देनी चाहिए। बस खरीद मामले में आरोप है कि बस की कीमत से अधिक राशि अगले तीन सालों में इसके रख रखाव पर खर्च की जानी है। जबकि नियम से बसों की देख-रेख की अगले तीन साल की सारी जिम्मेदारी बस बेचने वाली कंपनियों को उठानी चाहिए थी। केजरीवाल की सरकार इस सारे मामले को ठंडे बस्ते में डालकर चुप-चाप बसों की खरीद कर लेना चाहती थी, लेकिन भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। गुप्ता ने उपराज्यपाल अनिल बैजल को पत्र लिखकर जांच के लिए आग्रह किया है। पत्र में गुप्ता ने दावा किया है कि बसों की खरीद को लेकर वित्तीय गड़बड़ी का पता चला है। यह गड़बड़ी भी पत्र के अनुसार परिवहन विभाग की अंदरूनी जांच में ही सामने आई है। अब उपराज्यपाल जल्दी से एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को जांच की अनुमति दे दें तो दिल्ली वाले भी बस घोटाले का सच जान पाएं।
वित्तीय गड़बड़ी पर केजरीवाल नहीं दे रहे जवाब
केजरीवाल सरकार द्वारा जनवरी में 890 करोड़ रुपये में एक हजार लो फ्लोर बसों की खरीद के लिए आर्डर दिए गए। इनमें से 700 बसों का आर्डर जेबीएम आटो लिमिटेड और 300 बसों का टाटा कंपनी को दिया गया। जैसा कि विजेन्द्र गुप्ता बताते हैं कि बसों की खरीद के लिए कंपनियों से जो अनुबंध किया गया था, उसमें तीन वर्षों या 2.10 लाख किलोमीटर चलने तक इसके रखरखाव की जिम्मेदारी शामिल थी। यह सब कंपनियों को दिए जाने वाले 890 करोड़ में ही शामिल था।
यह वाला अनुबंध होने के बावजूद बसों के रखरखाव के लिए एक दूसरा टेंडर निकाल कर इन्हीं बस कंपनियों को अलग से प्रतिवर्ष 350 करोड़ रुपये दे दिया गया और उसमें तीन साल की वारंटी की अवधि को भी शामिल कर लिया गया। पुराने अनुबंध के बावजूद दूसरा टेंडर निकालने की बात किसी के लिए भी समझ से परे हो सकती है। इस दूसरे टेंडर का मतलब है कि रखरखाव के लिए पहले दिन से ही दिल्ली सरकार द्वारा भुगतान किया जाना है।
इस पूरे मामले की जांच परिवहन विभाग द्वारा भी कराई गई है। विजेंद्र गुप्ता का दावा है कि विभाग के जांच में भी वित्तीय गड़बड़ियां सामने आईं है। जब केजरीवाल सरकार को अपने ऊपर लग रहे वित्तीय गड़बड़ियों का जवाब देना था, उन सवालों से मुंह छुपाकर केजरीवाल के लोग श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर सवाल उठाने निकल पड़े लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में केजरीवाल कब तक मुंह छुपाते रहेंगे। उन्हें आज नहीं तो कल जवाब देना ही होगा।
वन नेशन-वन राशन कार्ड योजना
केजरीवाल की सरकार वन नेशन-वन राशन के नाम पर भी दिल्ली वालों को धोखा ही दे रही है। केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में केजरीवाल की पोल खोलते हुए बताया कि वन नेशन-वन राशन कार्ड योजना लागू करने के नाम पर पूरी दिल्ली को केजरीवाल गुमराह कर रहे हैं। दिल्ली में यह योजना सिर्फ एक सर्किल में लागू हुई है। जब तक पूरी दिल्ली में यह योजना लागू नहीं हो जाती, तब तक इसे लागू नहीं माना जा सकता। केजरीवाल के लोग इस बात को अब तक साबित नहीं कर पाए हैं कि यह योजना पूरी दिल्ली में लागू है। आगे उन्हें यह बताना होगा कि कैसे पूरी दिल्ली में लागू हुए बिना वन नेशन—वन राशन योजना चलने का दावा कैसे करते रहे हैं। दिल्ली सरकार की मुश्किले इस मामले में इसलिए भी बढ़ सकती हैं क्योंकि पिछली तारीख पर उनके वकील ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर यह बात स्वीकार की है कि दिल्ली में वन नेशन—वन राशन योजना लागू है।
दिल्ली में योजना का क्या है हाल
वन नेशन—वन राशन योजना दिल्ली सरकार के अनुसार राजधानी में लागू है। जबकि सच्चाई यह है कि सिर्फ सर्किल 63 सीमापुरी में ही यह योजना लागू की गई है। इस सर्किल में करीब 42 इलेक्ट्रानिक प्वाइंट आफ सेल (इपीओएस) मशीनों से राशन दिया जा रहा है। इतनी बड़ी दिल्ली में सिर्फ 42 इपीओएस मशीनों से राशन दिए जाने को क्या हम पूरे राज्य में योजना का लागू होना कह सकते हैं ? इसे योजना का लागू होना नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि योजना तब लागू मानी जाएगी जब सभी सर्किलों की राशन दुकानों पर यह लागू हो। जब 2000 से अधिक इपीओएस मशीनों के माध्यम से पूरी दिल्ली में वितरण का काम चल रहा हो। फिलहाल ऐसा होता तो नहीं दिख रहा। लेकिन केजरीवाल इस समय अयोध्या, पंजाब, गुजरात में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें दिल्ली की फिक्र ही कहां है?
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