रितेश कश्यप
झारखंड सरकार योग, आयुर्वेद, सिद्धा आदि भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों को चपरासी से भी कम वेतन दे रही है। इन चिकित्सकों का कहना है कि राज्य सरकार इन चिकित्सा पद्धतियों को ही खत्म करना चाहती है, इसलिए वह उन्हें परेशान कर रही है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि वर्तमान झारखंड सरकार पूरी तरह चर्च के इशारे पर चल रही है और हम सबको पता है कि चर्च इन दिनों भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के विरोध में झंडा उठाए घूम रहा है
झारखंड मेें आयुष के चिकित्सकों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। इनसे एक एमबीबीएस डॉक्टर की तरह काम तो लिया जा रहा है, लेकिन वेतन एक चपरासी से भी कम दिया जा रहा है। कोरोना काल में आयुष के चिकित्सकों ने भी अपनी जान हथेली पर रखकर लोगों की सेवा की पर सरकार इन लोगों को कोरोना योद्धा भी नहीं मान रही है। इसलिए इन लोगों को कोरोना योद्धा के रूप में जो सुविधाएं मिलनी चाहिएं, वे भी नहीं मिल रही हैं। बता दें कि इस समय झारखंड में 650 आयुष चिकित्सक अनुबंध के आधार पर कार्यरत हैं। यह भी नियम के विरुद्ध है। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा है कि अगर राज्य में किसी भी पद पर रिक्तियां हैं तो उन्हें अनुबंध के आधार पर नहीं रखा जा सकता है। ऐसे पद पर सीधी नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। लेकिन झारखंड में सर्वोच्च न्यायालय की बात भी नहीं चल रही है। आयुष चिकित्सकों के जितने भी पद स्वीकृत हैं, वे सभी भरे नहीं गए हैं और जिन लोगों को नियुक्त भी किया गया है, उन्हें अनुबंध पर रखा गया है और समय पर पैसा भी नहीं दिया जा रहा है।
कई आयुष चिकित्सकों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि झारखंड सरकार चर्च के इशारे पर काम कर रही है और उसी के कहने पर योग, आयुर्वेद, सिद्धा, यूनानी के चिकित्सकों को हतोत्साहित कर रही है। आयुष के चिकित्सकों का यह भी कहना है कि चर्च योग और आयुर्वेद के प्रति समाज में नफरत भी फैला रहा है।
आयुष एसोसिएशन ऑफ झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिग्विजय भारद्वाज कहते हैं, ”झारखंड सरकार आयुष चिकित्सा पद्धति को ही समाप्त कर देना चाहती है।” उन्होंने यह भी कहा,
”2019 के चुनाव प्रचार के दौरान हेमंत सोरेन ने कहा था कि अगर उनकी सरकार आती है तो अनुबंध के सभी कर्मचारियों की सीधी भर्ती कर ली जाएगी। मगर अब तक ऐसा नहीं हो पाया। सरकार बनते ही हेमंत सोरेन अपने वादों से मुकर गए।” एसोसिएशन के मीडिया प्रभारी डॉ. ऋतुराज सिंह का कहना है, “बिहार से झारखंड अलग होने के बाद अब तक आयुष चिकित्सकों की स्थाई बहाली नहीं हुई है। रिक्तियां होने के बाद भी अनुबंध के आधार चिकित्सकों को बहाल किया गया है। झारखंड में आयुष चिकित्सकों का सम्मान करना तो दूर उन्हें बिहार के आयुष चिकित्सकों के मुकाबले एक तिहाई वेतन पर काम करना पड़ रहा है।”
इन चिकित्सकों की हालत को देखते हुए कुछ समय पहले झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि आयुष चिकित्सकों को एलोपैथ के चिकित्सकों की तरह ही सारी सुविधाएं दें। इसके बावजूद राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। झारखण्ड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सह भाजपा विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी आयुष चिकित्सकों के समर्थन में आ गए हैं। उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए चंद्रवंशी ने 2019 में इन चिकित्सकों के संबंध में बिहार सरकार से नियमावली देने का निवेदन किया था, ताकि इनकी समस्याओं का निदान किया जा सके। इसके कुछ दिन बाद ही सरकार बदल गई और इनकी समस्या जस की तस बनी हुई है।
डॉ. भारद्वाज ने झारखंड के स्वास्थ्य विभाग की पोल खोलने वाली बात भी बताई। उन्होंने खुलासा किया कि राज्य के अनेक अस्पतालों में आयुष के चिकित्सकों को एलोपैथ के चिकित्सकों की जगह काम करने के लिए बाध्य किया जाता है। यानी जिन लोगों ने आयुर्वेद, यूनानी या होम्योपैथ की पढ़ाई की है, उनसे एलापैथ पद्धति से इलाज करने को कहा जाता है। यह तो जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।
बता दें कि भारत में आयुर्वेद, होम्योपैथ, योग, सिद्धा और यूनानी चिकित्सा पद्धति आयुष विभाग के अंतर्गत आती है। जिस तरह से एलोपैथ चिकित्सा की पढ़ाई की जाती है उसी तरह से आयुष चिकित्सक भी पढ़ाई करते हैं। जिस तरह से भारत के सभी सरकारी चिकित्सालयों में एलोपैथ के डॉक्टर की नियुक्ति होती है उसी तरह से आयुष के चिकित्सक भी बहाल होते हैं। इसके बावजूद ऐसा भेदभाव किया जा रहा है।
झारखण्ड में एलोपैथी डॉक्टर भी हैं परेशान
ऐसा नहीं है कि झारखंड सरकार सिर्फ आयुष चिकित्सकों के साथ ही भेदभाव कर रही है। झारखंड में लगभग 250 एलोपैथिक डॉक्टर पिछले 6 महीने से वेतन के इंतजार में बैठे हैं। कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए झारखंड सरकार ने राज्य के सभी स्वास्थ्य कर्मचारियों और डॉक्टरों को प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की थी। यह राशि जब देने की बात आई तब झारखंड सरकार ने एक नया नियम लागू कर दिया कि जो डॉक्टर या कर्मचारी कोविड-19 वार्ड में कार्यरत थे सिर्फ उन्हीं को प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। इस खबर के बाद झारखंड के सभी डॉक्टरों में सरकार के खिलाफ आक्रोश दिखाई दे रहा है। एक नवनियुक्त डॉक्टर ने कहा कि आपदा का माहौल खत्म होते ही राज्य के कई डॉक्टर झारखंड सरकार को अपना इस्तीफा सौंपने वाले हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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