तमिलनाडु में सत्ता में आते ही एम.के स्टालिन की अगुवाई वाली डीएमके सरकार ने हिंदू विरोधी नीतियों पर काम शुरू कर दिया है। सत्ता में आते ही डीएमके ने दोहरी चाल चली है। उसने राज्य के हिंदू मंदिरों में गैर-ब्राह्मण पुजारियों को नियुक्त करने की घोषणा की है।
तमिलनाडु में सत्ता में आते ही एम.के स्टालिन की अगुवाई वाली डीएमके सरकार ने हिंदू विरोधी नीतियों पर काम शुरू कर दिया है। सत्ता में आते ही डीएमके ने दोहरी चाल चली है। उसने राज्य के हिंदू मंदिरों में गैर-ब्राह्मण पुजारियों को नियुक्त करने की घोषणा की है। ऐसा करके वह हिंदू समाज को बांटना चाहती है। साथ ही, स्टालिन सरकार मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। उधर, राज्य के धर्मार्थ मामलों के मंत्री पी.के. शेखर बाबू ने साफ तौर पर कहा है कि मंत्रालय के अधीन आने वाले मंदिरों में पूजा-अर्चना तमिल में होगी। भाजपा ने द्रमुक सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। पार्टी का कहना है कि द्रमुक हिंदू समाज को बांटने की नीति पर चल रही है।
राज्य के 36,000 मंदिरों पर नजर
स्टालिन सरकार ने मंदिरों में अगले 100 दिन में 200 गैर-ब्राह्मण पुजारियों को नियुक्त करने की घोषणा की है। इसके लिए सरकार बाकायदा ‘शैव अर्चक’ नाम से एक पाठ्यक्रम भी शुरू करने जा रही है, जिसे पूरा करने के बाद कोई भी राज्य के प्रमख मंदिरों में पुजारी बन सकता है। यह पाठ्यक्रम 100 दिनों का होगा। धर्मार्थ मामलों के मंत्री शेखर बाबू ने कहा है कि मंदिरों पूजा तमिल में होगी। साथ ही, कहा कि गैर-ब्राह्मण, जिन्होंने आगम के अनुसार एक वर्षीय जूनियर शैव अर्चक पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है, उन्हें 100 दिनों के भीतर पुजारी बना दिया जाएगा। मुख्यमंत्री का काम बोलेगा। उनके इस फैसले से सभी को खुशी होगी। दरअसल, तमिलनाडु में 36,000 मंदिर हैं, जो तमिलनाडु हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल इंडोमेंट डिपार्टमेंट (एचआर एंड सीई) के अंतर्गत आते हैं। गैर-ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्तियां इन्हीं मंदिरों में की जाएगी। राज्य सरकार जल्द ही ऐसे पुजारियों की सूची जारी करने वाली है। पहले चरण में 70 से 100 गैर-ब्राह्मण पुजारियों की सूची जारी की जाएगी।
चर्च या मस्जिद पर नियंत्रण क्यों नहीं?
स्टालिन सरकार की इस घोषणा को भाजपा ने हिंदू विरोध से प्रेरित बताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता नारायणन तिरुपति ने कहा कि राज्य के मंदिरों में हजारों साल से गैर-ब्राह्मण पुजारी हैं। वहीं, प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष के.टी. राघवन कहते हैं कि सरकार चाहती है कि मंत्र तमिल में बोले जाएं। ऐसा कैसे हो सकता है? डीएमके राजनीतिक फायदे के लिए हिंदुओं के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रही है। पार्टी का कहना है कि द्रमुक की स्थापना ही हिंदू विरोध वाली विचारधारा पर हुई है। राज्य सरकार क्या मस्जिद या चर्च को अपने नियंत्रण में लेगी? इस पर डीएमके सांसद एम.के. कनिमोझी का कहना है कि भाजपा खुद को हिंदुओं की रक्षक बताती है, लेकिन वह समाज के एक वर्ग के साथ ही क्यों खड़ी है?
सैकड़ों साल पुरानी परंपरा पर खतरा
तमिलनाडु के मंदिरों में पूजा-अर्चना की एक अलग परंपरा है, जो सैकड़ों साल चली आ रही है। ब्राह्मण पुजारी संघ के प्रतिनिधि एन. श्रीनिवासन ने प्रस्तावित पाठ्यक्रम पर सवाल उठाते हुए कहा कि 100 दिन की पढ़ाई करके कोई पुजारी कैसे बन सकता है? यह तो मंदिरों में चली आ रही सदियों पुरानी परंपरा का अपमान है। तमिल विद्वान वी. नजराजन का कहना है कि ग्रैर-ब्राह्मण पुजारी राज्य के धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा रहे हैं। ये लोग शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के प्राचीन मंदिरों में अपनी भागीदारी चाहते हैं, लेकिन उन मंदिरों में दशकों से ब्राह्मण पुजारी पूजा की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। दूसरी जातियों के लिए इसे खोलने के कई परिणाम होंगे।
50 साल से यही कर रही डीएमके
1970 में एम. करुणानिधि के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार ने राज्य के मंदिरों में पुजारियों के वंशानुगत उत्तराधिकार की प्रथा को समाप्त कर दिया। लेकिन 1972 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। बाद में 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन ने महाराजन आयोग गठित किया था, जिसने सभी जातियों के लोगों को प्रशिक्षण के बाद पुजारी नियुक्त करने की सिफारिश की थी।
कानून में संशोधन भी किया
25 साल बाद डीएमके सरकार ने 2006 में गैर-ब्राह्मणों को अर्चक के रूप में नियुक्त करने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम में संशोधन किया और 2007 में एक साल का पाठ्यक्रम भी शुरू किया। लेकिन इन दोनों कदमों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। एम. करुणानिधि की सरकार ने तमिलनाडु के एचआर एंड सीई के 6 मंदिरों में यह पाठ्यक्रम शुरू किया था। 206 लोगों ने इसकी पढ़ाई की। इसके बाद 2011 में जब अन्नाद्रमुक की सरकार सत्ता में आई तो उसने पुजारियों के लिए पाठ्यक्रम को बंद करा दिया। 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी जातियों के सदस्यों को पुजारी नियुक्त करने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा।
2018 में पहला गैर-ब्राह्मण पुजारी नियुक्त
इसके बाद 2018 में पहली बार अन्नाद्रमुक सरकार ने मदुरै जिले के तल्लाकुलम स्थित अय्यपन मंदिर में गैर-ब्राह्मण पुजारी मरीमाची की नियुक्ति की। इसके दो साल बाद त्यागराजन को नागमलाई पुदुक्कोट्टई के सिद्धि विनायक मंदिर में नियुक्त किया गया। नियुक्ति पाने वाले उन्हीं 206 लोगों में से हैं, जिन्होंने पहली बार इस पाठ्यक्रम की पढ़ाई की थी।
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