प्रो. रमाशंकर दूबे
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा गत 20 मई, 2021 को विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षण व अधिगम के लिए एक मिश्रित प्रणाली की घोषणा की गई है। इसके अनुसार किसी भी पाठ्यक्रम में 40 फीसदी भाग तक ऑनलाइन तथा शेष 60 फीसदी भाग ऑफलाइन मोड में पढ़ाने का प्रावधान है। यह एक समसामयिक, समीचीन एवं स्वागतयोग्य कदम है, क्योंकि यह मिश्रित प्रणाली छात्रों में सीखने के कौशल को बढ़ाने तथा उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अधिक सुलभ कराने में प्रभावी साबित होगी।
नई तकनीकों के लगातार उद्भव के कारण अपने आस-पास की दुनिया के प्रति हमारी धारणाओं में बदलाव आया है। डिजिटल तकनीकों के समावेश ने पारंपरिक रूप से कक्षाओं में आमने-सामने की शिक्षण पद्धति के स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे में विकास, विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी तथा मोबाइल फोन, लैपटॉप जैसे उपकरणों के बहुतायत उपयोग से आज उच्च गुणवत्तायुक्त सीखने की सामग्री ऑनलाइन माध्यम से किसी भी समय, कहीं भी, किसी भाषा में आसानी से पहुंचाई जा सकती है।
अधिगम (सीखना) एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें समय के साथ-साथ तकनीकी विकास के अनुरूप बदलाव होता है। भारत हजारों वर्षों से समृद्ध ज्ञान-परंपरा तथा शिक्षण-अधिगम का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है तथा प्राचीन भारत में 'गुरूकुल' का शिक्षण-अधिगम प्रारूप गुरु द्वारा मौखिक शिक्षण प्रदान करने और छात्र द्वारा उस पाठ को ध्यानपूर्वक स्मरण करते हुए पूर्ण रूप से हृदयंगम करने की प्रक्रिया पर आधारित था। समय के बीतने के साथ-साथ आज जैसे विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई, जहां पारंपरिक रूप से ‘चाक-टॉक’ मोड में आमने-सामने होकर शिक्षा दी जाती है और शिक्षक कक्षाओं में भौतिक रूप से छात्रों के समक्ष उपस्थित होकर शिक्षा प्रदान करते हैं।
कोविड-19 की महामारी ने हमें डिजिटल रूप से शिक्षित होने के लिए सुअवसर उपलब्ध कराया है। हमने अनेकानेक वेबिनार के आयोजन किये, ऑनलाइन संगोष्ठियों और कार्यक्रमों में भाग लिया, हम अधिगम के विभिन्न डिजिटली मंचों पर काम करने के अभ्यस्त हो गए और इस तरह ऑनलाइन शिक्षण प्रदान करने हेतु हमें डिजिटली उपकरणों की शक्ति का एहसास हुआ।ऑनलाइन लर्निंग की समग्र प्रक्रिया में शिक्षकों और छात्रों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित हुई है।मिश्रित शिक्षण प्रणाली में कक्षा में उपस्थित होकर आमने-सामने के माध्यम से दी गयी शिक्षा तथा डिजिटली अधिगम मंचों और उपकरणों के माध्यम से दी गयी ऑनलाइन शिक्षा का संयोजन शामिल है।विगत वर्षों में डिजिटल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आयी क्रांति से अब यह संभव हो सका है कि हम टेक्स्ट, चित्रों, ऑडियो, वीडियो, पावर प्वाइंट प्रस्तुति, आर्ट, एनीमेशन, 3 डी का भरपूर उपयोग करते हुए छात्र केन्द्रित गुणवत्तापूर्ण रोचक शिक्षण-अधिगम सामग्री का निर्माण कर सकते हैं जिसको आवश्यकतानुसार परिवर्तित और विकसित किया जा सकता है।
मल्टी मीडिया के उपकरणों की मदद से बहुत ही सरस, दिलचस्प, उच्च गुणवत्ता वाली ऐसी पाठ्य सामग्री का निर्माण अब संभव है, जो लक्षित छात्रों की आवश्यकता और रुचि के ठीक अनुकूल हों। इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में स्थित व्याख्यान, आमने-सामने की शिक्षा के विपरीत, सीखने वाले के लिए सदा सुलभ तथा उसकी पहुँच के अन्दर रहते हैं, जिससे कि सीखने वाला इनका कभी भी बार-बार उपयोग कर सकता है, अवधारणाओं की बेहतर समझ बना सकता है और अच्छी तरह से पाठ को याद कर सकता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के कुशल उपयोग से, बहुत ही रोचक, सामग्री-समृद्ध,परस्पर-संवादात्
मक, ध्यान केन्द्रित तथा प्रेरक ऐसी पाठ्य सामग्री विकसित की जा सकती है, जो विविध प्रकार से सीखने वाले तथा भिन्न समझ रखने वाले छात्रों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। ऐसी पाठ्य सामग्री से सीखने वालों में अति-उत्साह पैदा होता है जिससे सीखने का पूर्ण परिवेश ही बदल जाता है, क्योंकि यह सीखने की प्रक्रिया छात्र-केंद्रित रहती है और यहाँ शिक्षक की भूमिका ज्ञान-प्रदाता की जगह सुविधा प्रदान करने वाले या पथ प्रदर्शक की हो जाती है।
आमने-सामने की शिक्षण पद्धति में कभी-कभी छात्र की समझ का सही रूप से आकलन कर पाना तथा उसे वांछित अवधारणाओं को समझा पाना शिक्षक के लिए मुश्किल हो जाता है, लेकिन मिश्रित अधिगम प्रणाली से शिक्षक छात्र के ज्ञान का वास्तविक आकलन कर सकता है और उसे इक्षित ई-सामग्री सुलभ करा सकता है जिससे छात्र अवधारणाओं की बारीकियों को ज्यादा कुशलता के साथ समझ सकता है। मिश्रित अधिगम प्रणाली में ई-पाठ्य सामग्री के आकर्षक होने के कारण सीखने वालों में अधिक रुचि उत्पन्न होती है, जिससे शिक्षा की सुलभता एवं पहुँच बढ़ती है। छात्रों को ज्यादा संतुष्टि मिलने से ज्यादा अधिगम-आधारित परिणाम की उम्मीद की जा सकती है। किसी भी पाठ को डिजिटल प्रोद्योगिकी के समुचित उपयोग से रुचिकर एवं पारस्परिक संवादात्मक बनाया जा सकता है जिससे सीखने वाले को वस्तुतः समयानुकूल अनूठा अनुभव प्राप्त हो सके। कभी-कभी आमने–सामने की शिक्षण पद्धति में ब्याख्यान, व्यक्तब्य बहुत लम्बे, नीरस एवं उबाऊ हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में मज़ेदार और प्रभावी ई-पाठ्यक्रम सीखने वालों में उत्साह भरते हैं और सकारात्मकता का संचार करते हैं।
मिश्रित अधिगम प्रणाली में शिक्षक और छात्र के बीच परस्पर संवाद करने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है, जिससे छात्र केवल आमने–सामने या ऑनलाइन पद्धति की तुलना में ज्ञान और कौशल से ज्यादा सशक्त हो सकते हैं। जब शिक्षक और छात्र आपस में एक—दूसरे के साथ ज्यादा व्यस्त रहते हैं तो छात्र के लिए शिक्षक के साथ संवाद करते हुए इक्षित विषय में गहन ज्ञान प्राप्त करने की संभावना बढ़ जाती है। मिश्रित प्रणाली में शिक्षक को छात्र के साथ व्यक्तिगत संवाद के लिए ज्यादा समय मिलता है, क्योंकि ऑनलाइन माध्यम से छात्र के पास अधिगम की सामग्री पहुँच जाने से आमने–सामने होकर कक्षाओं में पढने-पढ़ाने वाले समय की अवधि की बचत हो जाती है। इस समय का उपयोग सीखने वाले छात्र की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षार्थी-केंद्रित गतिविधियों में किया जा सकता है। इससे छात्रों से ज्यादा संवाद हो पाता है जिससे छात्र एक बेहतर तरीके से शिक्षक से सलाह और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षण विधियों के मिश्रण से ज्यादा से ज्यादा छात्र अपने पाठ्य विषयों को आसानी से ग्रहण कर सकते हैं, समझ सकते हैं। इससे धीमी गति से सीखने वाले बच्चों पर तनाव कम होगा जिनके लिए आमने-सामने होकर कक्षा में शिक्षा प्राप्त करना चुनौती भरा होता है। इसके विपरीत तीव्र गति से सीखने वाले छात्र ई-सामग्री के समृद्ध होने के कारण ज्यादा संतुष्टि का अनुभव करेंगे।
जब छात्रों को ऑनलाइन टूल पर काम करने की आदत हो जाती है, तो वे बेहतर तरीके से आपस में सहयोग और संवाद कर सकते हैं। ऑनलाइन माध्यम में सीखने से छात्र अधिक जिम्मेदार और सचेत हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें ऑनलाइन माध्यम से ही निश्चित समयसीमा के अंतर्गत विभिन्न असाइनमेंट को समयबद्ध ढंग से पूरा कर लेना होताहै। छात्र अपने समय का नियोजन सही ढंग से कर पाते हैं। इससे छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है और स्वायत्तता पैदा होती है।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा गत वर्ष जारी की गयी शिक्षानीति ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020’ में भी छात्रों में सीख को बढ़ाने, समाज में शिक्षा की अधिकाधिक पहुँच बनाने, 100 प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करने और समाज में व्याप्त विभिन्न चुनौतियों के समाधान के लिए शिक्षण और अधिगम में प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इस शिक्षा नीति में डिजिटल-बुनियादी ढांचे के बृहद विकास और शिक्षकों को उच्च गुणवत्ता वाले ई-लर्निंग सामग्री तैयार करने हेतु सशक्त करने की बात कही गयी है। यह दर्शाता है कि आगे आने वाले दिनों में शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा डिजिटल प्रोद्योगिकी और डिजिटल सामग्री का उपयोग होगा। यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 के उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में मिश्रित शिक्षा प्रणाली के माध्यम से भारत के स्वदेशी ज्ञान को डिजिटल पाठ्यक्रम–सामग्री के रूप में अन्तरराष्ट्रीय फलक पर पहुँचाया जा सकता है तथा इसे पूरी दुनिया में कहीं से भी निरंतर उपयोग में लाया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक और प्रगतिशील शिक्षा नीति है, ऑनलाइन शिक्षण को बढ़ावा देने हेतु शिक्षा के हर क्षेत्र में प्रोद्योगिकी के महत्वपूर्ण समावेश के प्रति संकल्पित दिखती है। इसके अनुसार सरकार के द्वारा एक स्वायत्त निकाय ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ की स्थापना का प्रावधान है जिसके द्वारा देश के सभी शिक्षण संस्थाओं को डिजिटल प्रौद्योगिकी से सशक्त किया जा सकेगा, जिससे ई-सामग्री निर्माण के लिए क्षमता विकसित हो सकेगी। इस फोरम के द्वारा सभी शिक्षण संस्थाओं में परस्पर सहयोग के आधार पर उच्च गुणवत्ता वाली ई-सामग्री का निर्माण हो सकेगा तथा इन सामग्री का लाभ सभी जरूरतमंद संस्थाएं ले सकेंगी। ज्यादा से ज्यादा आभासी प्रयोगशालाओं का भी निर्माण होगा जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित छात्र भी प्रायोगिक प्रशिक्षण ले सकेंगे। भविष्योन्मुखी यह शिक्षा नीति पूरे देश के हर छात्र को ऑनलाइन सीखने तथा आभासी कक्षाओं तक उसकी पहुँच बनाने की दिशा में संकल्पित दिखती है। जिस तरह से अधिकतर क्षेत्र तेजी के साथ डिजिटल मंचों के उपयोग की तरफ बढ़ रहे हैं, समसामयिक विषयों जैसे आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, बिग डाटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग का अध्ययन आज के समय की आवश्यकता है जिसे ऑनलाइन लर्निंग के द्वारा पूरा किया जा सकता है। जाहिर है, शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत सभी शिक्षकों की यह महत्वपूर्ण भूमिका होगी कि वे समय के बदलाव साथ अपने को ढालते हुए मल्टीमीडिया टूल्स का उपयोग करते हुए रोचक ई-सामग्री तैयार करने की दिशा में अपने को प्रवीण बनायें।
मिश्रित शिक्षण-अधिगम प्रणाली, जिसमें आमने-सामने होकर कक्षा के अन्दर अधिगम तथा ऑनलाइन माध्यम से इक्षित गुणवत्ता वाली पाठ्य-सामग्री के साथ अधिगम की प्रक्रिया शामिल है, आज की आवश्यकता के अनुरूप प्रतीत होती है। इस प्रणाली के माध्यम से वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 की अवधारणाओं को पूरा किया जा सकेगा, जिससे छात्रों में गहन सोंच, सृजनशीलता और समस्या को सुलझाने हेतु कौशल का विकास हो सके तथा ऐसे सर्वांगीण रूप से विकसित छात्रों का सृजन हो सके जो इक्कीसवी सदी की राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हों।
संक्षेप में यूँ कहें कि मिश्रित शिक्षा प्रणाली शिक्षार्थियों को उनकी ही सोच और जरूरत के अनुसार केवल उनके अधिगम में ही मदद नहीं करती है, बल्कि सभी पाठ्यक्रम के सहभागी शिक्षार्थियों में एक साथ काम करने और चर्चा मेंश्न भी पैदा करती है। सीखने की जिज्ञासा प्रतिभागियों को उनके पाठ्यक्रम की वैज्ञानिक उपलब्धि की ओर ले जाएगी और उन्हें नए ज्ञान के सृजन करने में सक्षम बना पाएगी। इस प्रकार मिश्रित शिक्षा शिक्षार्थियों और शिक्षकों के बीच एक सहयोगी दृष्टिकोण के माध्यम से 'आत्मनिर्भरभारत' की ओर ले जाने वाले स्वप्न को साकार कर पाने में सक्षम होगी। इसके अतिरिक्त, मिश्रित प्रणाली छात्रों में सीखने के स्वामित्व को बढ़ावा देने में मदद करेगी, उनमें परस्पर सहयोग बढ़ाएगी और सीखने के प्रति रुचि पैदा करेगी। समयबद्ध तरीके में एक किफायती तरीके से सीखने की प्रक्रिया वर्तमान समय की आवश्यकता है। उच्च शिक्षा के परिदृश्य में मिश्रित शिक्षा डिजिटल इंडिया के ध्वजवाहक के रूप में स्पष्ट तौर पर सकारात्मक दूरगामी परिणाम लाएगी, जिससे भारत अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त, शिक्षित और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए पुन: विश्वगुरु के रूप में अपने को स्थापित कर पाएगा।
(लेखक गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गाँधीनगर के कुलपति हैं)
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