अरुण कुमार सिंह
उत्तर प्रदेश में सहारनपुर जिले का बेहट कस्बा मुस्लिम—बहुल है। यहां इन दिनों जिहादी तत्व और कुछ कांग्रेसी भी कह रहे हैं कि प्रदेश में सरकार बदलते ही हिंदुओं से बदला लिया जाएगा। हिंदू दुकानदार के आवेदन पर एक नल को प्रशासन ने उखाड़ दिया है, जिसे जिहादी तत्वों ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है और सेकुलर नेता राजनीति चमकाने के लिए इसे हवा दे रहे हैं
गत दिनों सहारनपुर में जो कुछ हुआ, वह यह बताने के लिए काफी है कि जहां भी मुस्लिमों की आबादी अधिक है, वहां वे हिंदुओं को परेशान इसलिए करते हैं कि ताकि हिंदू अपने मकान और दुकान सस्ते में बेचकर और कहीं चले जाएं या फिर उनकी संपत्ति पर किसी मुसलमान का कब्जा हो जाए। सहारनपुर के बेहट कस्बे के मनिहारन मुहल्ले में कुछ ऐसा ही हो रहा है। कस्बे में 75 प्रतिशत मुसलमान और 25 प्रतिशत हिंदू हैं। उल्लेखनीय है कि मनिहारन मुहल्ले में डॉ. मुरारी झा, गिरधारी झा और त्रिपुरारी झा, इन तीन भाइयों का संयुक्त परिवार रहता है। इस परिवार को सेकुलर और मुस्लिम नेताओं की शह पर कुछ जिहादी तत्व धमकी दे रहे हैं कि मुहल्ला खाली कर दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा।
यह धमकी झा परिवार की दुकान के बाहर लगे एक नल को स्थानीय प्रशासन द्वारा उखाड़ने के बाद मिल रही है। उल्लेखनीय है कि झा परिवार के बहुत प्रयास करने के बाद गत 6 जून को प्रशासन ने उस नल के उपरी हिस्से को काटकर हटा दिया है। इसके बाद कांग्रेस के दो विधायक नरेश सैनी और मसूद अख्तर तथा नगर पालिका अध्यक्ष अब्दुल रहमान कुरैशी फिर से उसी जगह नल लगवाने की मांग के साथ धरने पर बैठ गए।
स्थानीय हिंदुओं का कहना है कि ऐसा उन लोगों ने केवल मुसलमानों को खुश करने के लिए किया। बता दें कि झा परिवार ने उस दुकान को 2013 में खरीदा था, लेकिन उस नल के कारण वे लोग उस दुकान से कोई कारोबार नहीं कर पा रहे थे। 2013 में वह दुकान बिल्कुल खंडहर थी। बाद में झा परिवार ने दुकान को नए सिरे से बनवाया और कपड़े का कारोबार करने का विचार किया, लेकिन सबसे बड़ा बाधक था वह नल। स्थानीय मुसलमान बकरी, मुर्गा आदि काटकर उसी नल के पानी से धोते थे। इस कारण वहां गंदगी बनी रहती थी। हिंदुओं का कहना है कि उस नल के पास ही और भी नल हैं, लेकिन मुसलमान जानबूझकर उसी नल के पास मांस धोया करते थे। इसके अलावा दिनभर वहां कोई नहाता रहता था, तो कोई कपड़े साफ करता रहता था। इसलिए वह दुकान खुल नहीं पाती थी। अगर खुलती भी थी तो कोई ग्राहक नहीं आता था। इस कारण वह दुकान काफी दिनों से बंद है।
गिरधारी झा ने बताया कि 9 सितंबर, 2020 को स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष कुरैशी को एक आवेदन देकर उनसे निवेदन किया गया कि वहां नल रहने के कारण कोई कारोबार नहीं हो रहा है। इसलिए आप उस नल को वहां से हटवा दें। गिरधारी के अनुसार कुरैशी आवेदन देखकर ही भड़क गए और अपमानित कर अपने कार्यालय से उन्हें बाहर जाने को कहा। आरोप है कि कुछ दिनों बाद नगरपालिका अध्यक्ष ने झा परिवार से कहा, ''नल जहां है, वहीं रहेगा, तुम्हें जो करना है, कर लो।'' झा परिवार का कहना है कि उन्होंने ऐसा इसलिए कहा कि हम लोग किसी मुसलमान को दुकान और मकान बेचकर कहीं और चले जाएं।
इसके बावजूद झा परिवार रुका नहीं। उन्होंने 14 जनवरी, 2021 को सहारनपुर के उप जिलाधिकारी (एसडीएम) के पास नल को हटाने के लिए आवेदन दिया। एसडीएम ने नायब तहसीलदार, पटवारी और पुलिस के माध्यम से भी पूरी स्थिति की जानकारी ली। नायब तहसीलदार और पटवारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि वह नल गलत जगह पर है। इससे रास्ता भी बाधित होता है। इसलिए इसे हटाने में कोई दिक्कत नहीं है। उसी रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन ने 6 जून को नल को कटवा दिया। इसके बाद तो कांग्रेस के नेताओं, भीम आर्मी के समर्थकों और कुछ जिहादी तत्वों ने जमकर हंगामा मचाया। इन लोगों का कहना था कि प्रशासन 24 घंटे के अंदर नल को उसी जगह पर लगवाए, नहीं तो हालात बिगड़ सकते हैं।
उनके धरने की खबर मिलते ही बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने भी प्रशासन पर दबाव डालने के लिए कोतवाली का घेराव कर दिया। बजरंग दल के वरिष्ठ कार्यकर्ता विकास त्यागी ने प्रशासन को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की कि वह नल फिर से वहां न लगाया जाए। दोनों पक्षों की बात सुनकर प्रशासन ने कहा कि नल पहले के स्थान से सात—आठ मीटर दूर लगाया जाएगा।
फिलहाल यह मामला शांत तो हो गया है, लेकिन बेहट के जिहादी तत्व वहां के हिंदुओं, खासकर झा परिवार को धमकी दे रहे हैं कि राज्य में सरकार बदलते ही बदला लिया जाएगा। इससे झा परिवार डर गया है और बेहट छोड़कर और कहीं जाने का विचार कर रहा है।
झा परिवार मूलत: मधुबनी (बिहार) का रहने वाला है। गिरधारी के पिता जीवकांत झा सहारनपुर स्थित कपड़े की एक मिल में काम करते थे। मिल बंद होने के कारण 1989 में वे बेहट के एक मंदिर में पुजारी हो गए। 1986 में एक दुर्घटना के कारण जीवकांत के देहांत के समय उनके तीनों बेटे छोटे ही थे। उनकी पत्नी रेणु देवी ने बच्चों को मुश्किल से पाला—पोसा। बच्चे बड़े हुए तो कुछ कमाने लगे और उसी कमाई से 2013 में दुकान खरीदी, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी दुकान पर जिहादियों की नजर लगी हुई है।
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