सुदेश गौड़
राजस्थान में कांग्रेस का लोकतंत्र विरोधी चेहरा फिर सामने आ गया है। गहलोत सरकार ने एक आईएसएस से कथित मारपीट के मामले में जयपुर नगर निगम की मेयर को निलंबित कर दिया है। एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को बिना सुनवाई, बिना पक्ष जाने निलंबित करने का अब तक कोई उदाहरण नहीं मिलता। मेयर पर यह कार्रवाई तब की गई है जब एफआईआर में भी उनका नाम नहीं है।
कांग्रेस ने एक बार फिर लोकतांत्रिक मूल्यों को आघात पहुंचाने के इतिहास की पुनरावृत्ति की है। रणबांकुरों के राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने नगर निगम के निर्वाचित मेयर पर एकतरफा कार्रवाई करते हुए आधी रात को उन्हें निलंबित करके लोकतंत्र को कंलकित कर दिया है। भारतीय लोकतंत्र में पहला मामला है जब किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि के खिलाफ उसका पक्ष सुने बगैर एकतरफा कार्रवाई की गई है। कांग्रेस शासन में लोकतांत्रिक मूल्यों की कल्पना करना वैसा ही है जैसे कौरवों के राज में द्रौपदी की शील रक्षा की अपेक्षा करना। थोड़ा पीछे देखें तो पता चलेगा कि जून माह में कांग्रेस व लोकतंत्र में छत्तीस का आंकड़ा रहने का इतिहास भी है, चाहे जून 1975 हो या जून 2021। मेयर इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की शरण में पहुंच चुकी हैं। अब लोकतंत्र की रक्षा की यह लड़ाई लंबी चलने की उम्मीद दिखती है। जयपुर नगर निगम ग्रेटर के मेयर और तीन पार्षदों को निलंबित करने के बाद प्रदेश की राजनीति में भूकंप सा आ गया है। भाजपा प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला और न्याय की गुहार की। राज्यपाल ने इस मामले में सरकार से रिपोर्ट तलब कर यथोचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
मामला एक कंपनी को भुगतान का
मामले की शुरुआत 4 जून को जयपुर शहर में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण करने वाली बीवीजी कंपनी के भुगतान को लेकर मेयर सौम्या गुर्जर ने निगम कमिश्नर यज्ञमित्रदेव सिंह को अपने चैम्बर में बात करने के लिए बुलाया। वहां पहले से सफाई समिति के चेयरमैन सहित अन्य पार्षद मौजूद थे। इस बैठक में जब हॉट-टॉक हुई तो कमिश्नर बैठक से बाहर जाने लगे। वहां मौजूद कुछ पार्षदों ने दरवाजे पर कमिश्नर को हाथ पकड़कर रोक कर झूमाझटकी की। कमिश्नर ने इस मामले में 3 पार्षदों अजय सिंह चौहान, पारस जैन और शंकर शर्मा के खिलाफ मारपीट का आरोप लगाते हुए जयपुर के ज्योति नगर थाने में मुकदमा दर्ज करवाया। बता दें कि 1989 में राज्य सेवा में आने वाले यज्ञमित्रदेव सिंह 2007 में #IAS बन गए थे।
इतनी त्वरित कार्रवाई क्यों
4 जून देर रात इस मामले में नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने जांच के आदेश दिए और स्वायत्त शासन निदेशालय ने क्षेत्रीय उपनिदेशक को जांच सौंपी। उपनिदेशक ने 5 जून को मेयर को पत्र लिखकर उसी दिन दोपहर 3 बजे तक अपने बयान दर्ज कराने को कहा। मेयर ने पत्र लिखकर इसके लिए समय मांगा। उपनिदेशक ने 6 जून दोपहर 2 बजे तक बयान देने का समय दिया भी। मेयर के निर्धारित समय तक नहीं आने पर देर शाम 6 बजे उपनिदेशक ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी और देर रात 11:30 बजे आदेश जारी कर मेयर को निलंबित कर दिया। प्रथमदृष्ट्या यह कार्यवाही प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के खिलाफ और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। जनता की ओर से चुने गए किसी भी जनप्रतिनिधि को इस तरह से बिना सुनवाई किए हटाना संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है।
मामला उच्च न्यायालय पहुंचा
महापौर और आयुक्त का विवाद अब उच्च न्यायालय पहुंच गया है। इस मामले में निलंबित मेयर डॉ. सौम्या गुर्जर ने कार्रवाई को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में ऑनलाइन याचिका दायर की है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जिस तरह आधी रात को मेरे ऑफिस का तमाम स्टाफ, सुरक्षाकर्मी हटा दिए और निलंबन के आदेश जारी कर जनप्रतिनिधियों को हटा दिया, ये साफ दर्शाता है कि सरकार नहीं चाहती की जनप्रतिनिधि नगर निगम में रहें।
कार्रवाई से विधि विशेषज्ञ भी सहमत नहीं
सरकार के इस निर्णय को विधि विशेषज्ञ भी गलत मान रहे हैं। उनके अनुसार सरकार का यह निर्णय हाईकोर्ट में ठहर नहीं पाएगा, क्योंकि इस मामले में सरकार ने विभागीय जांच तो बैठा दी, लेकिन एकतरफा पक्ष सुनते हुए मेयर और पार्षदों की कोई सुनवाई नहीं की। नियमों के अनुसार सरकार अगर किसी भी जनप्रतिनिधि को शिकायत पर निलंबित करती है तो उससे पहले उस जनप्रतिनिधि को नोटिस जारी करके उसका पक्ष लिखित या मौखिक तौर पर सुना जाता है। इसके बाद आगे की कार्यवाही की जाती है, लेकिन जिस तरह की सूचनाएं आ रही हैं कि मेयर और तीनों पार्षदों का पक्ष सुने बिना ही उनको निलंबित कर दिया। कानून में ये प्रावधान है किसी भी विवाद पर निर्णय से पहले आरोप लगाने वाले और जिन पर आरोप लगा है उन दोनों पक्षों की सुनवाई होती है।
विधि विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट भी ये कहता है कि हर उस व्यक्ति को सुनवाई का एक मौका देना चाहिए, जिसके खिलाफ सरकार या न्यायपालिका कोई कार्यवाही करती है। पक्ष सुने बिना एक तरफा फैसला करके कार्यवाही करना संवैधानिक नहीं है। उन्होंने कहा कि जब मेयर और पार्षदों ने सुनवाई के लिए और समय मांगा तो सरकार को ऐसी भी क्या जल्दी थी कि तुरत-फुरत एक दिन के अंदर ही इतनी बड़ी कार्यवाही कर दी।
मेयर बोलीं – सबकुछ मनगढ़ंत
इधर आयुक्त के आरोपों दावों का खंडन करते हुए मेयर सौम्या गुर्जर ने कहा कि यह सस्ते प्रचार के लिए सिर्फ एक नाटक था। किसी ने आयुक्त के साथ हाथापाई नहीं की। अगर किसी ने कमिश्नर के साथ दुर्व्यवहार किया है, तो वे हमें सबूत दें और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मैंने अपने सभी कर्मचारियों से पूछा है लेकिन सभी ने इस बात से इनकार किया है। मैंने आयुक्त को जनता के सामने आने वाले स्वच्छता मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बुलाया था।
डॉ. सौम्या ने अपनी याचिका में कहा है कि थाने में दर्ज एफआईआर में भी उनका नाम नहीं है, लेकिन फिर भी उनके खिलाफ कार्रवाई की गई। सौम्याम गुर्जर ने अधिवक्ता आशीष शर्मा के जरिए अपनी याचिका ऑनलाइन दायर की है। हालांकि, कोरोना काल और ग्रीष्म अवकाश होने के कारण इस समय उच्च न्यायालय रिट याचिकाएं लिस्ट नहीं कर रहा है। ऐसे में याचिका को लिस्ट करवाने के लिए पहले अदालत से अनुमति लेनी होगी।
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