मीडिया के एक वर्ग का कांग्रेस के प्रति निष्ठा व भ्रम फैलाने के प्रयास को लोग समझते हैं
सेंट्रल विस्टा को लेकर कांग्रेस की टूलकिट की पोल भले खुल चुकी हो, लेकिन मीडिया इस पर पूरी निष्ठा से अमल कर रहा है। लगातार ऐसे लेख छप रहे हैं, जिससे भ्रम फैलाया जा सके। टाइम्स आॅफ इंडिया ने दावा किया कि ‘प्रधानमंत्री का आवास’ का निर्माण अगस्त से शुरू हो जाएगा, जबकि उसके लिए अभी निविदाएं ही आमंत्रित नहीं की गई हैं। यह सर्वविदित है, लेकिन मीडिया का एक वर्ग बड़ी सफाई से अफवाहों को हवा दे रहा है। उन्हें पता है कि अगले दिन छोटा सा स्पष्टीकरण छाप देने से काम चल जाएगा। टूलकिट के आदेशानुसार विदेशी मीडिया भी अपना काम कर रहा है। ब्रिटिश अखबार गार्जियन में छपवाया गया कि नई संसद का निर्माण इसलिए किया जा रहा है ताकि भारत में मुगलों की निशानियां खत्म की जा सकें। क्या दिल्ली का लुटियंस जोन मुगलों ने बनाया था? न्यायिक रास्ते से अड़ंगा डालने के सारे प्रयास विफल होने के बाद कांग्रेस ने अब इस परियोजना के सांप्रदायिकरण का तरीका अपनाया है। कांग्रेस के इस झूठ पर उत्तर देने के लिए केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने जो प्रेस वार्ता की, उसे भी मीडिया में वैसा स्थान नहीं दिया गया, जैसा राहुल गांधी के मिथ्या बयानों को दिया जा रहा है।
अमेरिकी वैक्सीन के लिए मीडिया का भ्रमजाल फैलता जा रहा है। नीति आयोग के स्पष्टीकरण के बाद भी उन्हीं झूठों को दोहराना जारी है। ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने चीन की वैक्सीन खरीदने की मांग करते हुए लेख छापा। ‘द प्रिंट’ और ‘इकोनॉमिक टाइम्स’ ने छापा कि चीन में रोजाना एक करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। लेकिन इसका खंडन वहां से आ रहे ढेरों वीडियो ने कर दिया। यह जानकारी भी आई कि बहरीन ने जो चीनी वैक्सीन लगाई, वह अप्रभावी है। लेकिन चीन की वकालत करने वाले समाचार संस्थानों ने इसे तूल नहीं दिया। चीन के टीकाकरण का महिमामंडन भी कांग्रेस के टूलकिट का ही हिस्सा लगता है। इंडिया टुडे के पत्रकार राहुल कंवल ने एक कार्यक्रम में नगालैंड को भारत के बाहर बताया। बाद में भूल मान ली। प्रश्न है कि कांग्रेसी इकोसिस्टम वाले मीडिया संस्थान उत्तर-पूर्वी राज्यों को लेकर बार-बार ऐसी ‘भूल’ क्यों करते हैं? यह लंबी अवधि की किसी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें उत्तर-पूर्व के लोगों में अलगाव की भावना डालने का प्रयास मीडिया के माध्यम से होता रहता है।
उधर, एक महिला पत्रकार से छेड़खानी के आरोपी विनोद दुआ राष्ट्रद्र्रोह के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय से छूट गए। उन्होंने पिछले वर्ष लॉकडाउन के समय लोगों को उकसाया था कि वे केंद्र सरकार के विरुद्ध सड़कों पर उतरें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में विनोद दुआ जैसे तत्व लगातार बच हैं। लेकिन जनता के सामने उनका वास्तविक चरित्र खुलता जा रहा है। वैसे ही, जैसे बलात्कार के आरोपी तरुण तेजपाल के मामले में हो रहा है। गोवा की निचली अदालत का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित मानदंडों का सीधा उल्लंघन है। क्या यह सब बिना किसी दबाव के हुआ होगा?
बंगाल में तृणमूल प्रायोजित हिंसा जारी है। एक सूची आई है जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं के सामाजिक बहिष्कार का आदेश दिया गया है। ये समाचार कभी मुख्यधारा मीडिया तक नहीं पहुंच पाते। मीडिया बंगाल हिंसा पर तब बोलेगा, जब केंद्र्र कोई कार्रवाई करे। फिर इसे राजनीतिक दांव-पेंच का मुद्दा बनाकर प्रस्तुत किया जाएगा। यही स्थिति दिल्ली की एक मस्जिद में पानी भरने गई एक बच्ची से मौलवी द्वारा बलात्कार देखने को मिली। बच्ची मुसलमान थी इसलिए मीडिया ने इसे दबा दिया। कुछ सप्ताह पहले यही मीडिया गाजिÞयाबाद में डासना के मंदिर में एक मुस्लिम लड़के को थप्पड़ मारने पर आसमान सिर पर उठाए हुए था। यह पक्षपात नहीं, धार्मिक घृणा का मामला है, जो जो अधिकांश मीडिया संस्थानों की संपादकीय नीति का हिस्सा है।
अलीगढ़ के टप्पल में मस्जिद के सामने से बारात निकलने पर दो समुदायों के बीच तनाव पैदा हुआ। बारात जाटव परिवार की थी, जो हिंदू अनुसूचित जाति में आते हैं। ‘हिंदुस्तान’ समेत कुछ अखबारों में समाचार छपा, लेकिन कहीं नहीं बताया कि बारात लेकर जा रहे लोग ‘दलित’ थे। इसके बजाय उन्हें ‘बहुसंख्यक समुदाय’ का बताया। प्रश्न है कि यही झगड़ा यदि दो हिंदू परिवारों के बीच होता तो क्या मीडिया ऐसी ही ‘संवेदनशीलता’ वाली रिपोर्टिंग करता? समाचार की भाषा से लगता है मानो बारात पर हमले को सही ठहराया गया है। ल्ल
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