संभवत: 1 जुलाई को चीन तिब्बत क्षेत्र के दुसरे प्रमुख रेलमार्ग को शुरू करने जा रहा है| यह रेल मार्ग ल्हासा को 435 किलोमीटर पूर्व में स्थित निंग्ची से जोड़ेगा | अत्यधिक ऊंचाई पर बना यह रेल मार्ग 6 वर्ष की अवधि में 37 अरब युआन (5.7 अरब डॉलर) में बन कर तैयार हुआ, यह तिब्बत का पहला और सर्वाधिक तीव्र रेलमार्ग है, जिस पर वह तीव्रगामी फुक्सिंग ट्रेन का सञ्चालन करेगा| उल्लेखनीय है कि तिब्बत का पहला रेलमार्ग किंघाई प्रांत की राजधानी ज़िनिंग से गोलमुड के बीच 815 किमी लम्बे मार्ग का विस्तार है, जो 1984 में बन कर पूरा हो गया था। गोलमुड और ल्हासा के बीच 1,142 किमी लम्बा मार्ग 1 जुलाई 2006 को सञ्चालन में आ गया था| इस क्षेत्र में जहाँ भूस्खलन आम बात है, तापमान अक्सर शून्य से नीचे रहता हो ऑक्सीजन की कमी और समुद्र तल से लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह रेलवे निसंदेह अभियांत्रिकी कौशल का नमूना है| अभी यह परियोजना पूर्ण नहीं हुई है और इस पर काम जारी है जो 2030 में पूरा होना प्रस्तावित है, तब यह रेल मार्ग ल्हासा को पूर्वी प्रांत सिचुआन की राजधानी चेंगडु से जोड़ेगा| अपनी अधिकतम गति 160किलोमीटर प्रति घंटा से ल्हासा से चेंगडू की यात्रा में सिर्फ 12 घंटे लगेंगे, जो वर्तमान में सड़क मार्ग से की जाने वाली यात्रा में लगने वाले औसत समय का मात्र एक तिहाई है।
तिब्बत के शोषण का उपकरण
परन्तु यह रेलमार्ग न केवल तिब्बत बल्कि इस क्षेत्र में चीन की सामरिक स्थिति को मजबूत बनाने के मंतव्य के साथ मूर्त रूप में लाया गया है| तिब्बत के निवासियों का मानना है कि यह रेलमार्ग चीन के निहित स्वार्थों की पूर्ती की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है| ज्ञातव्य है कि चीन अपने जातीय अल्पसंख्यक क्षेत्रों में कठोर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अनेक हथकंडे इस्तेमाल करता है| खासकर अपने पूर्वी क्षेत्रों जैसे शिनजियांग और तिब्बत में व्याप्त असंतोष को जहाँ एक ओर बलपूर्वक दबाया गया और इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इन क्षेत्रों के मूल जातीय समुदायों को उनके ही घर में अल्पसंख्यक बना देने पर आमादा है| इस रेल परियोजना का उद्देश्य भी तिब्बत क्षेत्र में हान आबादी, जिसे वह तिब्बत पर 1959 में किये गए कब्जे के समय से लगातार बढ़ावा देता आया है, के विस्तार को सुगम बनाना भी है। जैसा कि उसके आंकड़े बताते हैं कि किंघाई से जुड़ने के बाद तिब्बत क्षेत्र में पर्यटन सम्बन्धी गतिविधियों में भारी विस्तार आया है| आंकड़ों के अनुसार जहाँ 2005 में तिब्बत में पर्यटकों की आमद 20 लाख से भी कम थी जो 2018 तक बढ़कर 3.3 करोड़ हो गई । और यह सारा का सारा चीन का आंतरिक पर्यटन ही है और विदेशी पर्यटकों की संख्या इसका मात्र 0.7% ही है। चीन की सरकार का लक्ष्य 2025 तक इस संख्या को बढाकर 6.1 करोड़ प्रतिवर्ष तक पहुँचाने का है। उल्लेखनीय कि यह संख्या तिब्बत के निवासियों की संख्या का लगभग 17 गुना है। तिब्बतियों का मानना है कि इस प्रसार के द्वारा चीन उनकी भाषा जातीय पहचान और संस्कृति को योजनाबद्ध तरीके से समाप्त करता जा रहा है। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हान चीनी प्रवासियों की आमद, जिसमे छोटे व्यापारी और दुकानदार भी शामिल हैं, इस पर्यटन उद्योग में उछाल का फायदा उठा रहे हैं| ऐसी गतिविधियों ने इस क्षेत्र में जातीय तनाव को बढ़ावा दिया है|
भारत की सुरक्षा पर प्रभाव
जहाँ एक ओर यह रेलवे तिब्बत की सामाजिक सांस्कृतिक और राजनैतिक अस्मिता के लिए ख़तरा बन गई है वहीँ इसने भारत के लिए सुरक्षा के लिए भी चिंता पैदा की हैं| चेंगडू-ल्हासा रेलवे लाइन भारत के चीन के साथ सीमावर्ती संवेदनशील क्षेत्रो के निकट से गुजरती है| पिछले कुछ समय से चीन के साथ लगातार तनाव की स्थिति के चलते सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह चीन को चीन-भारतीय सीमा तक “रणनीतिक सामग्री की डिलीवरी” बहुत हद तक मदद करेगी| दक्षिणपूर्वी तिब्बत में स्थित निंग्ची जो वर्तमान में इस रेलवे का टर्मिनस शहर है, भारत चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा से 10 मील से भी कम दूरी पर स्थित है, जो अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग जिले में तूतिंग सेक्टर के बिलकुल उत्तर में स्थित है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में एलएसी पर चीन और भारत के बीच सीमा संघर्ष की स्थिति में, नई रेलवे लाइन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को सैनिकों और अन्य सामरिक आपूर्ति को सीधे अग्रिम पंक्ति तक लाने में सक्षम बना देगी। इसके साथ ही निंग्ची जो कि मूल रूप से एक सैन्य छावनी वाला शहर है जहाँ पीएलए की 52 वीं और 53 वीं माउंटेन इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ-साथ तिब्बत के चार दोहरे उपयोग वाले हवाई अड्डों में से एक स्थित है। बीजिंग ने सामरिक महत्व के इस सीमावर्ती शहर को शेष चीन के साथ जोड़ने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण सहित अन्य पर्याप्त संसाधन तैयार किए हैं। इससे पहले 2017 में ल्हासा और निंगची के बीच 254 मील का राजमार्ग तैयार किया जा चुका है। और इस ट्रेन के प्रारंभ हो जाने से ल्हासा से निंगची के बीच की यात्रा मात्र तीन घंटे की रह जायेगी । चीन, सड़क और रेलमार्ग के साथ साथ यहाँ का सैन्य बुनियादी ढांचा भी मजबूत कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में हवाई अड्डे और हेलीपैड को उन्नत किया गया है।
1949 में कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता में आने बाद से चीन के गैर जिम्मेदार व्यवहार उसकी विश्वसनीयता को गंभीरता से प्रभावित किया है| तनाव की स्थितियों से अलग जब भारत और चीन के बीच स्थितियों को सामान्य बनाये रखने के लिए वार्ताएं चल रही होती हैं, उस दरम्यान भी चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सामरिक महत्व के निर्माण जारी रखता है| लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि यह 2021 है, न कि 1962। आज भारतीय सेना किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैनात और तैयार है। जहाँ एक ओर भारत को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर और अधिक तैय्यारियों की आवश्यकता तो है ही, वहीँ इस क्षेत्र में विवाद के समाधान की कुंजी भारत के कूटनीतिक रूप से प्रभावी होने के साथ साथ दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर में भारत के सामरिक रूप से शक्तिशाली होने में निहित है|
एस वर्मा
टिप्पणियाँ