पश्चिम बंगाल की हिंसा को लेकर देश में उसी तरह का सन्नाटा है, जिस तरह 1989-90 में जम्मू-कश्मीर से हिंदुओं के पलायन करते समय था। देखते ही देखते लगभग 4,00,000 कश्मीरी हिंदू शरणार्थी बन गए थे और आज भी वे शरणार्थी ही हैं। पश्चिम बंगाल में भी हिंदू शरणार्थी बनने लगे हैं, लेकिन शेष भारत के अधिकतर हिंदू बेफिक्र हैं। जो हिंदू उनकी बात करते हैं, उन्हें या तो भाजपाई कहा जाता है या फिर आरएसएस का आदमी। दूसरी ओर एकजुट जिहादी तत्व सत्तालोलुप नेताओं के सहारे पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश की राह पर धकेल चुके हैं
पश्चिम बंगाल में 2 मई को चुनाव परिणाम आने के साथ ही जिहादी तत्वों और तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने जो मार-काट शुरू की थी, वह थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा है, जब बंगाल के किसी न किसी हिस्से में हिंदुओं को निशाना न बनाया जा रहा हो। यही कारण है कि अब भी हजारों लोग अपने घरों से दूर कहीं किराए के मकान में या फिर किसी शिविर में रह रहे हैं। इन दिनों एक शिविर में रहने वाले बिश्वजीत मंडल और उनके गांव वालों के साथ जो हुआ है, वह बहुत ही शर्मनाक और चिंतनीय है। गांव पाथीखाली, थाना जीवनतला, जिला दक्षिण 24 परगना के रहने वाले बिश्वजीत कहते हैं, ‘‘ गत 4 मई को हजारों की भीड़, जिसमें अधिकतर मुसलमान थे, ने हमारे गांव पर हमला कर दिया। पहले लोगों को पीटा गया। इसके बाद गांव के सभी 100 घरों में लूटपाट की गई। फिर पक्के मकानों को जेसीबी मशीन से तोड़ा गया। इसमें मेरा भी तीन मंजिल का घर शामिल है।’’ क्यों हमला किया गया, इस पर वे कहते हैं, ‘‘विधानसभा चुनाव में गांव वालों ने भाजपा का समर्थन किया था। इस कारण तृणमूल के विधायक शौकत मुल्ला के उकसावे पर मुसलमान हिंदुओं पर टूट पड़े।’’ हमले के दौरान जो भाग सके, वे भाग गए और जो पकड़े गए, उनकी बुरी तरह पिटाई की गई।
गांव छोड़कर जाने वालों में से अधिकतर अभी भी अपने घर नहीं लौटे हैं। बिश्वजीत भी इन दिनों अपने परिवार के आठ सदस्यों के साथ कोलकाता में रह रहे हैं। लोगों की मदद से किसी तरह खाना मिल जाता है। छोटे बच्चों को दूध चाहिए, वह नसीब नहीं हो रहा है। घर क्यों नहीं लौट रहे हैं, इस पर वे कहते हैं, ‘‘तृणमूल कांग्रेस के लोग कहते हैं कि तुमने भाजपा के लिए काम करके बहुत बड़ा अपराध कर दिया है। इसका दंड भुगतना होगा। यदि घर आना चाहते हो तो 2,00,000 रु. दो। ऐसा नहीं करने पर तुम्हें गांव नहीं आने दिया जाएगा।’’
उल्लेखनीय है कि बिश्वजीत एलआईसी के एजेंट हैं और चुनाव में भाजपा के बूथ एजेंट बने थे। इन दिनों वे कुछ काम भी नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए वे कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। अब उनके पास न घर है, न खाने के लिए अन्न है और न ही रोजगार। वे कहते हैं, ‘‘पश्चिम बंगाल में ऐसा ही होता रहा तो आने वाले समय में यहां वैचारिक विरोधियों, खासकर हिंदुओं का रहना कठिन हो जाएगा। शेष भारत के लोग बंगाल की हिंसा पर खुलकर बोलें।’’
एक अन्य पीड़ित कालिदास बाउरी तो बिश्वजीत से कुछ आगे की बात करते हैं। वे कहते हैं, ‘‘कुछ नेताओं की वजह से पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के साथ वही हो रहा है, जो बांग्लादेश में होता है। वहां हिंदुओं को मारा जा रहा है, उनके घरों को जलाया जा रहा है। यही सब तो बंगाल के हिंदुओं के साथ भी हो रहा है।’’
कालिदास गांव पोग्राम, थाना हाउसग्राम, जिला पूर्व वर्धमान के रहने वाले हैं। पोग्राम गांव पर 4 मई की सुबह लगभग 11 बजे मुसलमानों ने हमला किया। गांव वालों ने तीन बार हमलावरों को खदेड़ दिया। इसके बाद आसपास के 10 गांवों के मुसलमान हथियारों के साथ गाड़ियों में लद-लद कर आए और गांव को चारों ओर से घेरकर हमला कर दिया। घरों में जो भी सामान मिला उसे हमलावर ले गए। जाते-जाते उन्होंने 200 घरों को भी ढहा दिया। गांव के हिंदू बहुत मुश्किल से जान बचा कर भाग गए। कालिदास कहते हैं, ‘‘आसपास के गांवों की मस्जिदों से कुछ देर-देर बाद एलान किया जाता था कि इलाके से हिंदुओं को मारकर भगाओ, क्योंकि इन लोगों ने भाजपा का समर्थन किया है।’’
गांव से भागे लोगों में ज्यादातर अब भी अपने घर नहीं लौटे हैं। कालिदास जैसे कुछ ही लोग एकाध दिन पहले ही गांव आए हैं। ये लोग अपने उजड़े हुए घरों को देखकर बेहद दु:खी हैं। कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने इन लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की है। अभी तक सरकार का कोई प्रतिनिधि भी गांव में नहीं आया है, कुछ मदद मिलने की बात ही छोड़ दीजिए।
दक्षिण 24 परगना जिले के बिंदाखाली थाना के अंतर्गत पड़ने वाले गांव बरईपुर का भी यही हाल है। यहां के भी सभी लोग गांव से बाहर रह रहे हैं। ग्रामीण तापस सरदार कहते हैं, ‘‘ चार मई को दिन चढ़ने के साथ ही तृणमूल के गुंडों ने गांव पर हमला कर दिया। देखते ही देखते 150 घरों को लूट लिया गया और बहुत सारे मकानों को ढहा दिया गया। अब भी गांव के लोग वापस आने की हिम्मत नहीं कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि हमें हिंदू होने की सजा दी जा रही है। शुरू में कई दिनों तक हम लोगों को खाना तक नहीं मिला। अब भी दूसरे के भरोसे ही खाना मिल रहा है। क्या यह हिंदू-बहुल भारत है? यदि है, तो फिर हिंदुओं के साथ ही ऐसा अत्याचार क्यों? हम लोगों ने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा, फिर यह सब क्यों?’’
बरईपुर के अणुब्रत मंडल भी इन दिनों गांव से बाहर रहने को मजबूर हैं। 2 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद ही ही इन पर हमला किया गया। अणुब्रत कहते हैं, ‘‘जिन लोगों पर भी भाजपा समर्थक होने का शक था, उन पर हमला किया गया। ऐसे लोग गांव छोड़ चुके हैं। अब उनकी जमीन, दुकान, मकान पर तृणमूल के समर्थक कब्जा कर रहे हैं। जो लोग उनकी शर्तें मान रहे हैं, केवल उन्हें ही गांव में घुसने दिया जा रहा है। उनकी पहली शर्त है कि हर व्यक्ति 20,000 रु. दे और दो दिन के अंदर मुकदमा वासप लो।’’ उन्होंने यह भी बताया कि लॉकडाउन के बहाने गांवों में न तो मीडिया वालों को जाने दिया गया और न ही और किसी सामाजिक कार्यकर्ता को। इसका पूरा लाभ तृणमूल के समर्थकों ने उठाया है। वे लोग अभी भी भाजपा के समर्थकों पर हमले कर रहे हैं।
ये तो कुछ उदाहरण भर हैं। जिहादी और तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने इस तरह के हजारों लोगों को केवल इसलिए मार कर भगाया है कि उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का समर्थन नहीं किया है। लेकिन आश्चर्य यह है कि इस मामले पर कोई सेकुलर नेता कुछ नहीं बोल रहा है। ऐसे नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि यदि किसी भाजपा-शासित राज्य में विपक्षी दल के कार्यकर्ता और नेताओं के साथ ऐसा होता तो क्या वे चुप रहते? वे जवाब शायद ही दें, लेकिन उनका क्या जबाव होगा, यह हम सबको पता है।
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