पश्चिम बंगाल की हिंसा में मुख्य रूप से निशाने पर अनुसूचित जाति के लोग रहे हैं। इसलिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने पिछले दिनों हिंसाग्रस्त कई क्षेत्रों का दौरा कर पीड़ितों के दु:ख-दर्द को सुना। 2 जून को नई दिल्ली के खान मार्केट स्थित राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के कार्यालय में अरुण कुमार सिंह ने पश्चिम बंगाल की हिंसा के संदर्भ में विजय सांपला से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
हाल ही में आप पश्चिम बंगाल का दौरा करके लौटे हैं। वहां किस तरह के हालात हैं?
पश्चिम बंगाल के हालात बहुत ही खराब हैं। मैंने देश में इस तरह की स्थिति और कहीं नहीं देखी है। हमारे बड़े-बुजुर्ग भारत बंटवारे के समय होने वाले अत्याचारों के बारे में बताया करते थे। उनकी बातें सुनकर सोचता था कि कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ, ऐसा अत्याचार कैसे कर सकता है? लेकिन जब मैं बंगाल में हिंसा पीड़ित लोगों से मिला, तो 1947 में हुए अत्याचार की घटनाएं याद आने लगीं। लोगों ने जो बताया, उसके आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पश्चिम बंगाल में 1947 से भी बदतर स्थिति है। गांव के गांव उजाड़ दिए गए हैं। राज्य सरकार की शह पर हिंदुओं, खासकर अनुसूचित जाति के लोगों, को मारा जा रहा है।
आपने कहा कि विशेषकर अनुसूचित जाति के लोगों को मारा गया। इसके क्या कारण हो सकते हैं?
मैं जहां तक समझ पा रहा हूं इसका मुख्य कारण है इस वर्ग का भाजपा की ओर जाना। उल्लेखनीय है कि पहले यह वर्ग तृणमूल कांग्रेस के साथ रहता था। कुछ समय से यह वर्ग भाजपा का समर्थक हो गया है। अब तृणमूल को लग रहा है कि उससे एक बड़ा वोट बैंक दूर हो रहा है। बस, इसलिए तृणमूल के समर्थकों ने उन पर हमले शुरू कर दिए, जो अभी भी चल रहे हैं। हालांकि जहां भी मैं गया, वहां के प्रशासन से कहा कि अब आगे कुछ हुआ तो आयोग चुप नहीं रहेगा। इसके बाद उन क्षेत्रों में कोई घटना नहीं हुई है।
आप कितने जिलों में गए और कितने लोगों से मिले?
मैंने वर्धमान और दक्षिण 24 परगना जिलों का दौरा किया। सभी लोगों से मिलना तो संभव नहीं होता है, पर जहां भी लगा कि कुछ ज्यादा ही हालत खराब है, वहां मैं गया। लोगों में दहशत ऐसी है कि कुछ बताने से परहेज करते हैं। वर्धमान में कई ऐसे पीड़ित मिले, जो कहने लगे कि आपके सामने तो ये लोग कुछ नहीं करेंगे, लेकिन आपके जाने के बाद इनसे कौन बचाएगा? खैर, बहुत समझाने के बाद कुछ लोगों ने अपनी आपबीती बताई। वर्धमान में एक महिला ने बताया कि उसके घर को चार बार तोड़ा गया। पहली बार जब हमला हुआ तो वह महिला पुलिस के पास गई, लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया। हमलावरों को जब पता चला कि वह महिला पुलिस के पास गई है, तो वे फिर से लौटकर आए और घर पर टूट पड़े। इस तरह तीन बार हुआ और अंत में हमलावरों ने पुलिस के सामने ही उस महिला को भी पीटा और उसके घर को पूरी तरह से तोड़ दिया।
पुलिस मूकदर्शक बनी रही। पुलिस और सरकार का काम है किसी प्रकार की हिंसा को रोकना, लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है। ऐसी सरकारी गुंडागर्दी शायद और कहीं नहीं दिखेगी। वर्धमान में 672 लोगों ने अपने घर छोड़ दिए हैं। यह स्थिति शहरी इलाकों की है। ग्रामीण क्षेत्रों में क्या स्थिति होगी, यह तो बाहर भी नहीं आती है।
अब तक आयोग के पास कितनी शिकायतें आई हैं?
मेरे जाने से पहले ही पश्चिम बंगाल से आयोग को 1,627 शिकायतें मिली थीं। वहां से लौटने के बाद इन शिकायतों की संख्या 3,000 हो गई है। अभी भी प्रतिदिन शिकायतें मिल रही हैं। यानी यह संख्या और बढ़ने वाली है।
अब तक की शिकायतों पर आयोग ने क्या कार्रवाई की है?
देखिए, शिकायतों पर कार्रवाई करने की एक प्रक्रिया है। सबसे पहले आयोग यह जांचता है कि जो भी शिकायतें मिली हैं, उनमें कोई फर्जी तो नहीं है। इस पर काम चल रहा है। उम्मीद है कि यह जल्दी ही पूरा हो जाएगा और आयोग पीड़ित परिवारों के पुनर्वास के लिए सरकार के जरिए काम करेगा। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं किए गए हैं। जब मामला ही दर्ज नहीं होगा तो उस पर कार्रवाई कैसे होगी। इसलिए आयोग मामले दर्ज करवाने का भी काम कर रहा है। आयोग यह भी कोशिश कर रहा है जिन लोगों के घर तोड़ दिए गए हैं, उन्हें सरकारी पैसे से पक्का मकान मिले। ऐसे जो भी कार्रवाई होगी, वह स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के जरिए ही होगी। इसलिए मैंने संबंधित अधिकारियों से बात भी की है। वे लोग जो कार्रवाई करेंगे, उसकी रपट आयोग को भी भेजेंगे।
टिप्पणियाँ