झारखंड में बालू के अवैध खनन से एक दर्जन से भी अधिक नदियां मर चुकी हैं। माफिया, अधिकारी और नेता नियमों की अनदेखी कर बालू की तस्करी करवा कर रहे हैं। पुलों और राजमार्गों के पास से बालू उठाने के कारण सड़कें और पुल भी ढहने लगे हैं आज विश्व पर्यावरण दिवस है। यह अच्छी बात है कि हम प्रतिवर्ष पर्यावरण दिवस मनाते हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि पर्यावरण के प्रति हम लोग बहुत ही लापरवाह हो गए हैं या फिर यह कह सकते हैं कि इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे हैं। इस कारण सदा सलिला नदियां भी अब सूखने लगी हैं। वहीं दूसरी ओर नदियों में जारी बालू के अवैध खनन से करोड़ों रु. की लागत से बने पुल भी भरा—भरा कर ढह रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों झारखंड की राजधानी रांची के पास 13 करोड़ रु. की लागत से कांची नदी पर बना एक पुल ढह गया। इसके लिए भ्रष्टाचार तो एक कारण है ही, लेकिन दूसरा एक बड़ा कारण है बालू का अवैध खनन। खनन माफिया ने पुल के स्तंभ के पास से बालू को उठाकर बेच दिया। इस कारण स्तंभ का आधार कमजोर हुआ और वह ढह गया। एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में ऐसी दर्जनों नदियां हैं, जिनके अस्तित्व पर गंभीर संकट आ चुका है। बोकारो नदी, दामोदर नदी, जुमार नदी, कारो नदी, उत्तर कोयल नदी, कोयल नदी, शंख नदी, अजय नदी, स्वर्णरेखा नदी, कझिया नदी, हरना नदी, सुंदर नदी, लिलझी नदी, गेरुवा नदी आदि नदियों का अस्तित्व ही मिटता जा रहा है। तीन दशक पहले तक जिन नदियों में सालभर पानी रहता था, अब वे सूख चुकी हैं। यहां तक कि जहां बालू होती थी, वहां घास उग आई है। लगता ही नहीं है कि कभी यहां नदी बहती थी। अवैध खनन से बालू माफिया मोटे हो रहे हैं और नदियां सिकुड़ती जा रही हैं। कई तो बिल्कुल मर चुकी हैं। कुछ नदियों में पानी तो है, पर उनमें प्रदूषण ऐसा है कि पानी से बदबू आती है। हाल ही में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से स्वर्णरेखा और खरकई नदी के जल में प्रदूषण की मात्रा की जांच की गई। पता चला कि इन नदियों में घुलनशील अशुद्धियां भारी मात्रा में हैं। जल में ऑक्सीजन का स्तर भी कम है। इस कारण इन नदियों में रहने वाले जीव—जंतुओं का जीवन भी खतरे में है। झारखण्ड में बालू, कोयला और अन्य खनिज पदार्थों के अवैध खनन से पर्यावरण का भारी नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही सरकार को आर्थिक हानि भी हो रही है। राज्यसभा सदस्य और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश कहते हैं कि बालू तस्करी और अवैध उत्खनन ही वर्तमान झामुमो सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। माफिया अवैध रूप से झारखंड की बालू को पश्चिम बंगाल और बिहार भेज रहे हैं। इससे राज्य सरकार को भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि एक तरफ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन केंद्र सरकार से हर बार किसी न किसी चीज के लिए पैसे की मांग करते हैं, मगर राज्य को मिलने वाला करोड़ों रु. का राजस्व माफिया डकार रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि पूरे राज्य में 13 पुल आज भी चिन्हित हैं जो अवैध बालू तस्करों की वजह से कभी भी धराशाई हो सकते हैं। अनुमान है कि खनन माफिया हर वर्ष सरकार को 250—300 करोड़ रुपये का चूना लगा रहे हैं। पिछले एक साल से झारखंड के 472 बालू घाटों में से 447 पर सरकारी तौर-तरीके से बालू उठाव नहीं हो रहा है मगर अवैध रूप से बालू का उठाव कहीं भी नहीं रुका है। बालू खनन के लिए पर्यावरण विभाग की स्वीकृति आवश्यक होती है। इसके लिए राज्य स्तरीय कमेटी (स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी, सिया) और जिला स्तरीय कमेटी (दिया) को खनन की अनुमति देने का अधिकार है। अब राज्य में जिला स्तरीय कमेटी दो साल से निलंबित है और राज्य स्तरीय कमेटी एक साल से अधिक समय तक भंग रहने के बाद एक महीने पहले ही बनी है। लेकिन इस एक महीने में बालू खनन की अनुमति किसी को नहीं दी गई। झारखंड की नदियां बरसाती हैं। बालू भूमिगत जल को संरक्षित करने का काम करती है। पर्यावरणविद् कहते हैं कि नदियों में बालू की संतुलित मात्रा बनी रहनी चाहिए। लेकिन बालू के अवैध खनन से नदियों का अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है। नियमानुसार पुल, राष्ट्रीय राजमार्ग आदि से एक किलोमीटर दूर खनन की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन झारखंड में इस नियम का पालन बिल्कुल नहीं हो रहा है। तीन मीटर की गहराई तक ही खनन किया जा सकता है, लेकिन बालू माफिया कहीं—कहीं तो नदियों में कुआं जैसे गड्ढे कर रहे हैं। नदी के किनारे और खनन क्षेत्र के बीच की दूरी नदी की चौड़ाई का 1/4 भाग होना चाहिए जो कि 7.5 किलोमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। क्या कहते हैं विशेषज्ञ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के अनुसार जून से अक्तूबर की अवधि को बारिश का महीना माना जाता है और इस दौरान नदी से बालू नहीं निकाला जा सकता। बारिश के मौसम में बड़ी मात्रा में नदियों की गोद में बालू संग्रहण की प्रक्रिया शुरू होती है। इसे देखते हुए एनजीटी के आदेश का पालन होना चाहिए। —रितेश कश्यप
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