लालच और मूर्खता – मानव के ये दो स्वभाव ऐसे हैं जिनकी कोई ऊपरी सीमा नहीं होती। बिटकॉइन और इसके जैसी बहुत-सी अन्य क्रिप्टोकरेंसी (कूट मुद्रा) के मामले में हम यही बात सारी दुनिया में घटित होते हुए देख रहे हैं। बहुत-से लोग यह समझते भी हैं कि यह निरी मूर्खता है, लेकिन फिर भी वे इस मूर्खता के कारोबार में शामिल हो रहे हैं बहती गंगा में हाथ धोने के लिए। उन्हें बस यह आशा है कि दुनिया में मूर्खों की कमी नहीं है और उन्हें भविष्य में कोई-न-कोई बड़ा मूर्ख मिल ही जायेगा, जो उनके बिटकॉइन को ज्यादा कीमत देकर खरीद लेगा।
क्या आप विश्वास करेंगे कि सोलहवीं सदी के अंतिम वर्षों में नीदरलैंड में लोग अपनी जमीनें बेच कर और जिंदगी भर की बचत खर्च कर ट्युलिप के फूल खरीदने में लग गये थे! ऐसा क्यों हुआ? बस इसलिए कि तब ये फूल तुर्की से नीदरलैंड में नये आये थे और उनकी खूबसूरती से इन फूलों की कीमतें लगातार बढ़ने लगीं। फिर उनमें सट्टेबाजी शुरू हो गयी। हर कोई बस इसीलिए इन फूलों को खरीदने लगा क्योंकि इनकी कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। एक महीना तो ऐसा गुजरा जब महीने भर में ही इन फूलों की कीमतें 20 गुणा हो गयीं।
जब इन फूलों की कीमत अपने शिखर पर पहुँची थी, तब यह उस समय वहाँ के किसी औसत व्यक्ति की सालाना आमदनी के छह गुणे जितनी हो गयी थी। नीदरलैंड के लोग सोचने लगे थे कि इन फूलों को इकट्ठा करके के विदेशियों को बेच देंगे और मालामाल हो जायेंगे। मूर्खता का यह दौर करीब चार दशकों तक चला और अंततः वर्ष 1637 में ट्युलिप फूलों का बुलबुला फूटा। दुखद यह है कि ऐसे बुलबुले जब फूटते हैं तो अपने जाल में पूरी तरह फँसे लोगों को कंगाल बना देते हैं। आज अगर कोई आपसे कहे कि अपनी छह साल की कमाई देकर ट्यूलिप के फूल खरीद लें, तो आप उसे क्या उत्तर देंगे!
क्या है क्रिप्टोकरेंसी
बिटकॉइन समेत तमाम क्रिप्टोकरेंसी (कूट मुद्राएँ) या वर्चुअल करेंसी (आभासी मुद्राएँ) इंटरनेट की आभासी दुनिया के ऐसे सिक्के हैं, जो दुनिया की किसी टकसाल में नहीं ढलते। बिटकॉइन इनमें सबसे पहला था और अब तक सबसे ज्यादा चलन भी उसी का है। 18 अगस्त 2008 को बिटक्वाइन डॉट ऑर्ग वेबसाइट का पंजीकरण हुआ था। बिटकॉइन नेटवर्क साल 2009 में बना और जनवरी 2009 में सातोशी नाकामोतो नाम के व्यक्ति ने सबसे शुरुआती बिटकॉइन सिक्कों का ‘खनन’ किया। बिटकॉइन नेटवर्क में नये सिक्के बनने को ‘खनन’ (माइनिंग) का नाम दिया गया है। पर किसी को नहीं पता कि सातोशी नाकामोतो नाम का वास्तव में कोई एक व्यक्ति है भी या यह केवल नकली नाम है। बिटकॉइन नेटवर्क बनाने वाले व्यक्ति या समूह के बारे में किसी को नहीं पता।
जब यह शुरू हुआ तो इसके एक सिक्के की वास्तव में कोई कीमत ही नहीं थी। क्रिप्टोग्राफी यानी कूटभाषा के शौकीनों के बीच महज शौकिया तौर पर इनका लेन-देन शुरू हुआ। मार्च 2010 में ही बिटकॉइनमार्केट डॉट कॉम नाम से इन सिक्कों की खरीद-बिक्री के लिए एक एक्सचेंज बना, जो अब सक्रिय नहीं है। इंटरनेट पर उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक इस एक्सचेंज पर मार्च 2010 में एक बिटकॉइन की कीमत महज 0.003 डॉलर थी। पहली बार यह फरवरी 2011 से अप्रैल 2011 के दौरान एक डॉलर के ऊपर गया था। मगर 20 अक्टूबर 2017 को एक बिटकॉइन की कीमत पहली बार 6,000 डॉलर को पार कर गयी। इस साल 13 मार्च को इसकी कीमत 60,000 डॉलर की हो गयी और 14 अप्रैल को 64,778 डॉलर के चरम तक पहुँच गयी।
पर ऐसा नहीं है कि बिटकॉइन की कीमत बस ऊपर ही चढ़ती रहती है। दुनिया में सबसे ज्यादा कीमतों की उठापटक शायद इसी में होती है। यह 64,778 के चरम को छूने के बाद अभी 19 मई को 30,262 डॉलर पर आ गया था। अभी यह 36,000-37,000 के बीच घूम रहा है।
क्रिप्टोकरेंसी कारोबार पर नजर रखने वाली वेबसाइट कॉइनमार्केटकैप डॉट कॉम पर 2017 में दुनिया भर की एक हजार से ज्यादा क्रिप्टोकरेंसी दर्ज थीं, जिनकी संख्या अब 5,400 से अधिक हो गयी है। इस समय बिटकॉइन के बाद जिन क्रिप्टोकरेंसी को लोकप्रियता मिली है, उनमें इथीरियम, बाइनेंस कॉइन, डोगेकॉइन, कार्डानो, टीथर, एक्सआरपी, इंटरनेट कंप्यूटर, पोल्काडॉट, बिटकॉइन कैश सबसे प्रमुख हैं। इनमें से हर क्रिप्टोकरेंसी के जनक बिटकॉइन के जनक की तरह अज्ञात नहीं हैं। उनके पीछे के व्यक्तियों या कंपनियों की जानकारी सार्वजनिक है। डॉगेकॉइन को तो एक मजाक की तरह शुरू किया गया था और इसीलिए इस आभासी सिक्के में एक कुत्ते का चित्र बना है! पर दुनिया दीवानी हो कर यह सब कुछ खरीद-बेच रही है!
क्या है भारत की नीति?
अभी 31 मई को आरबीआई ने क्रिप्टोकरेंसी पर एक स्पष्टीकरण जारी किया है, जिसे मीडिया में क्रिप्टो-निवेशकों के लिए भारी राहत की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। पर इस स्पष्टीकरण में आरबीआई ने केवल यही कहा है कि बैंक एवं अन्य संस्थाएँ अपने ग्राहकों को सचेत करने के लिए उसके अप्रैल 2018 के परिपत्र का उल्लेख नहीं कर सकती हैं। कारण यह है कि आरबीआई के इस परिपत्र को सर्वोच्च न्यायालय ने 4 मार्च 2020 को अपने निर्णय में रद्द कर दिया था। इसका यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि क्रिप्टोकरेंसी को लेकर आरबीआई या भारत सरकार का रुख नरम हो गया है।
भारत सरकार ने कभी भी इनको मान्यता देने या इनको लेकर सकारात्मक रुख रखने की बात नहीं की है। आरबीआई ने लगातार इनको लेकर चेतावनियाँ ही जारी की हैं और निवेशकों को बार-बार सचेत किया कि आप इनसे दूर रहें। लेकिन कभी सरकार या आरबीआई ने इन पर साफ रोक नहीं लगायी। आरबीआई ने पहला ठोस कदम 2018 में उठाया, जब इसने सर्कुलर निकाल कर बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं को साफ तौर पर कहा कि वे क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन संबंधी सुविधाएँ देने से दूर रहें।
इस फैसले के चलते भारत में उस समय तक खुले तमाम क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज अचानक बंद हो गये। फिर उन्होंने अपनी एक संस्था के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की और सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2020 में आरबीआई के सर्कुलर को निरस्त कर दिया। कुल मिला कर वहाँ मसला यह था कि आरबीआई को इस तरह की रोक लगाने का अधिकार नहीं है। लेकिन एक कानून पारित कर निजी क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगाना पूरी तरह संसद के विधायी अधिकार क्षेत्र में आता है। दरअसल पिछले साल मार्च में जब सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश आया, उसके बाद ही इस तरह के कानून की जरूरत महसूस हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने आरबीआई के सर्कुलर को निरस्त किया, क्योंकि अभी ऐसा कोई कानून ही नहीं है जो निजी किप्टोकरेंसी को अवैध घोषित करता हो।
अब भारत सरकार इसी कानूनी छेद को भरने के लिए क्रिप्टोकरेंसी पर नया कानून बनाने जा रही है। वर्चुअल करेंसी या क्रिप्टोकरेंसी के बारे में कानून बनाने के लिए एक कैबिनेट नोट की तैयारी अंतिम चरण पर है, यह जानकारी 15 मार्च को स्वयं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक कार्यक्रम में दी। पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 15 मार्च के कथन को लेकर भी ऐसे कयास लगाये गये कि संभवतः सरकार पूरी रोक नहीं लगाने जा रही। वित्त मंत्री ने खिड़की खुली रखने और सारे विकल्प समाप्त नहीं करने की बात कही, जिसका यह मतलब निकाला गया कि शायद पूरी तरह से रोक नहीं लगायी जायेगी।
पर वित्त मंत्री के कथन को शब्दशः देखना चाहिए। उन्होंने कहा था, “हम थोड़ी-सी खिड़की खुली रखेंगे, जिससे लोग ब्लॉकचेन, बिटकॉइन या आप इसे जो भी कहना चाहें – क्रिप्टोकरेंसी को लेकर प्रयोग/परीक्षण कर सकें, और जो फिनटेक ऐसे परीक्षणों पर निर्भर करते हैं, उनके लिए वह खिड़की उपलब्ध होगी।”
थोड़ी-सी खिड़की खुली रखने का मतलब ही यह है कि काफी कुछ रोका जाने वाला है। क्या रोका जाने वाला है, उसकी चर्चा पहले ही खबरों में है कि क्रिप्टोकरेंसी रखने, किसी और को देने, उसकी माइनिंग करने, जारी करने आदि पर रोक होगी। यानी आप खुद अपनी नयी क्रिप्टोकरेंसी जारी करना चाहें तो यह गैर-कानूनी होगा। भारत में कोई कंपनी, व्यक्ति या संस्था कहे कि हम अपनी क्रिप्टोकरेंसी ला रहे हैं, तो उसकी अनुमति नहीं होगी।
जब यह कैबिनेट नोट आ जायेगा तो बहुत सारी चीजें साफ होंगी और जब विधेयक सामने आयेगा तो सब बिल्कुल साफ होगा कि सरकार क्या करना चाहती है। लेकिन फिलहाल वित्त मंत्री के बयान और उससे पहले के सरकारी रुख सेसरकार की जो मंशा समझ में आती है, उसमें बहुत स्पष्ट है कि बहुत सीमित दायरा ही खुला छोड़ा जायेगा, ताकि जो लोग अपने तकनीकी प्रयोगों के लिए इन क्रिप्टोकरेंसी का कहीं इस्तेमाल करना चाहें तो वे कर पायेंगे।
जो खिड़की थोड़ी-सी खुली रखी जायेगी, वह सट्टेबाजों के लिए या उन लोगों के लिए नहीं खुली रहेगी जो लालच में आकर बिटकॉइन के पीछे अंधी दौड़ लगा रहे हैं। जब वित्त मंत्री कहती हैं कि हम थोड़ी-सी खिड़की खुली रखेंगे, तो इसका मतलब ही यही है कि बाकी सारा धंधा बंद होने वाला है। थोड़ी-सी खिड़की खुली रखने का मतलब है कि मुख्य दरवाजा बंद किया जायेगा।
इससे पहले 30 नवंबर 2017 को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिटकॉइन के बारे में पूछे एक सवाल के जवाब में कहा था कि भारत सरकार बिटकॉइन को एक वैध मुद्रा के रूप में मान्यता नहीं देती है।जेटली ने 1 फरवरी 2018 के बजट भाषण में और अधिक स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार अवैध गतिविधियों के वित्तपोषण या भुगतान प्रणाली के एक हिस्से के रूप में क्रिप्टो-करेंसी के इस्तेमाल को खत्म करने के लिए सभी तरह के कदम उठायेगी। जेटली के इस बजट भाषण से केवल दो दिन के अंदर बिटकॉइन का भाव करीब 25% टूट गया था। आरबीआई ने भी बिटकॉइन सहित विभिन्न आभासी मुद्राओं को किसी केंद्रीय बैंक या मौद्रिक प्राधिकरण से अधिकृत नहीं होने का जिक्र करते हुए इनकी खरीद-बिक्री या इनके जरिये लेन-देन में कानूनी और वित्तीय दोनों तरह के जोखिम होने की चेतावनी काफी पहले से दे ही रखी है।
भारत सरकार के इस स्पष्ट मत के बाद भी क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन को रोकने वाले स्पष्ट कानून के अभाव में देश में इनका कारोबार फलने-फूलने लगा है। इनके कई एक्सचेंज भी चलने लगे हैं। आरबीआई के अप्रैल 2018 के परिपत्र के बाद ऐसे एक्सचेंज अचानक बंद हो गये थे, मगर सर्वोच्च न्यायालय के मार्च 2020 के आदेश के बाद ऐसे कुछ एक्सचेंज फिर चलने लगे हैं। जनमत को प्रभावित करने के लिए ऐसे कुछ एक्सचेंज मीडिया में क्रिप्टोकरेंसी पर आधारित सामग्री (कंटेंट) को प्रायोजित भी करनेलगे हैं।
सरकार की ओर कानून बनने में देरी के बीच यह आशंका भी बनती है कि क्रिप्टोकरेंसी के पीछे जिन लोगों का भारी स्वार्थ निहित है, वे परदे के पीछे से लॉबिंग भी कर रहे होंगे। पर सरकार को ऐसे तमाम दबावों को नकार कर बहुत जल्दी ऐसा स्पष्ट कानून बनाना चाहिए, जिससे भारत के लोग लालच के इस जाल में फँसने से बचें। भारत सरकार अगर कानून नहीं भी बनायेगी तो अंततः यह बुलबुला कभी-न-कभी फूटेगा ही। यदि सरकार ने देश में क्रिप्टोकरेंसी के लेनदेन को वैध बनाने का रास्ता खोला, तो इस बुलबुले के फूटने के समय देश के लाखों लोगों की लुटिया डूब सकती है। यह बुलबुला फूटने पर भारत के लोग इसकी चपेट में नहीं आयें, इसका ध्यान भारत सरकार को रखना ही होगा।
क्रिप्टोकरेंसी के समर्थक कहते हैं कि आज तो दुनिया बदल गयी है, जिस भी चीज से लोग एक-दूसरे से लेन-देन करने लगें, उस चीज की कीमत और मान्यता है। वे कहते हैं कि दुनिया बदल रही है, तकनीक का जमाना है, इसलिए सरकारें इसको रोक नहीं सकती हैं। लेकिन ऐसी मुद्राओं को कोई संप्रभु सरकार मान्यता नहीं दे सकती है। राजतंत्र के जमाने से ही किसी राजा का सिक्का चलने का मतलब होता था कि उसका राज चल रहा है। आज के दौर में भी एक सरकार ही नोट छाप सकती है, किसी आम व्यक्ति को या किसी निजी संस्था या कंपनी को यह अधिकार मिल ही नहीं सकता है। मुद्रा के साथ संप्रभुता जुड़ी है।
क्या आपको लगता है कि भारत, अमेरिका, रूस, चीन और तमाम दूसरे देशों की सरकारें अगले एक-दो दशकों में प्रभावहीन हो जायेंगी, देशों की सीमाएँ अर्थहीन हो जायेंगी, धरती का हर मनुष्य इन संप्रभु सरकारों और उनके बनाये कानूनों के बंधनों से स्वतंत्र होकर एक वैश्विक नागरिक के रूप में स्वच्छंद जीवन बिताने लगेगा? अगर आप ऐसी कल्पना करते हैं, तो जरूर आप यह भी कल्पना कर सकते हैं कि बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राएँ ही रुपये, डॉलर, रूबल, युआन, पाउंड वगैरह का स्थान ले लेंगी। तब लोग फल-सब्जी से लेकर खेत-मकान और शेयर वगैरह सब कुछ इन्हीं मुद्राओं से खरीदने-बेचने तक अपने सारे लेन-देन इन्हीं आभासी मुद्राओं के माध्यम से करने लगेंगे। लेकिन आपको भी पता है कि यह केवल एक कल्पना ही होगी।
-राजीव रंजन झा
(लेखक आर्थिक पत्रिका निवेश मंथन के संपादक हैं।)
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