कोविड के नए स्ट्रेन को इँडियन वैरिएंट बोलने और भारत को विदेश में बदनाम बताने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का भारत विरोधी रुख कोई नया नहीं है। गृह मंत्रालय में अवर सचिव आरवीएस मणि की पुस्तक ने इशरत जहां केस में नरेंद्र मोदी को फंसाने, भगवा आतंकवाद का नैरेटिव गढ़ने में कमलनाथ की भूमिका का पूरा वर्णन किया है।
‘कोविड-19 वायरस के इंडियन वेरिएंट’ और ‘विदेशों में भारत का नाम नहीं, बदनाम है’ जैसे बयान देने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ के बारे में 2018 में गृह मंत्रालय में अवर सचिव आरवीएस मणि ने बड़ी ही विस्फोटक जानकारियां दी थी। मणि ने अपनी पुस्तक व तत्पश्चात विभिन्न वीडियो बातचीत में बताया था कि कैसे कमलनाथ ने भगवा आतंकवाद के नैरेटिव को सेट करने में अहम भूमिका निभाई थी। वे बताते हैं कि बहुचर्चित इशरत जहाँ एनकाउंटर केस में किस तरह से तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने हस्तक्षेप किया था तथा इस बात के लिए दबाव डाला था कि नरेंद्र मोदी को इस केस में किस तरह लपेटा जाए। वे कहते हैं कि भगवा आतंकवाद का हौव्वा खड़ा करने के लिए इन लोगों ने बड़े ही रणनीतिक ढंग से काम किया था।
इशरत केस में मोदी को फंसाने का षड्यंत्रकारी
आरवीएस मणि बताते हैं कि शहरी विकास मंत्रालय में कमलनाथ से उनकी मुलाक़ात हुई थी जहाँ पर उन्होंने इशरत जहाँ एनकाउंटर केस में नरेंद्र मोदी को फँसाने के लिए नैरेटिव में बदलाव करने के लिए कहा था। नरेन्द्र मोदी उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन पर यह भी दबाव डाला गया था कि वे घोषणा करें कि इशरत जहाँ निर्दोष थी ताकि नरेंद्र मोदी को इस मामले में लपेटा जा सके। मणि का दावा है कि कमलनाथ के साथ उस वक़्त दो और अधिकारी भी साथ थे जब उन्होंने ये बात कही थी। पर मणि ने कहा कि जो सच है वो वही बात कहेंगे। वे बताते हैं कि मेरे यह कहने पर तत्कालीन शहरी विकास मंत्री कमलनाथ ने जो बात कही वो सुन कर कोई भी अचंभित हो सकता है। गृह मंत्रालय के तत्कालीन अवर सचिव मणि के अनुसार कमलनाथ ने उन्हें हिक़ारत भरी दृष्टि से देखते हुए घृणित भाषा का उपयोग करते हुए कहा कि ‘बाहर लोग राहुल गांधी का पेशाब पीने के लिए तैयार हैं और आप इतना भी फेवर नहीं कर सकते हो’। इसका जवाब मणि ने वही दिया, जो किसी भी स्वाभिमान और गौरव वाले भारतीय को देना चाहिए। आरवीएस मणि ने कहा, ‘आप लोग मूत्र का स्वाद जानते हैं, आप इसे पी सकते हैं, लेकिन मैं सच्चाई के लिए खड़ा रहूंगा’। यह सुनकर कमलनाथ के साथ मौजूद एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी ने मणि को लताड़ना शुरू कर दिया।
चिदंबरम का भगवा आंतकवाद नैरेटिव
आरवीएस मणि की 2018 में Hindu Terror : Insider Account of Ministry of Home Affairs 2006-2010 के नाम से एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया था कि किस तरह से यूपीए सरकार ने भगवा आतंकवाद का नैरेटिव आगे बढ़ाया था। इस पुस्तक में डॉक्यूमेंट्स और डिटेल्स के आधार पर ये साबित भी किया गया है कि तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भगवा आतंकवाद जैसी शब्दावली गढ़कर शुरुआत की थी।
आपको बता दें कि 2006-2010 तक मणि गृह मंत्रालय के अंतर्गत आंतरिक सुरक्षा विभाग को देख रहे थे। ये वह विभाग है जो देशभर से आने वाले सारे खुफिया इनपुट को एकत्र व विश्लेषण करके आगे की कार्रवाई के लिए संबंधित एजेंसियों के साथ शेयर करता है। गृह मंत्रालय के आंतरिक सुरक्षा विभाग के लिए यह सबसे कठिन दौर था क्योंकि लगातार आतंकी वारदात हो रही थीं।
पाँच माह के समय में मणि द्वारा लिखी गई इस पुस्तक में सबसे ख़ास बात यह है कि तमाम आईएएस और आईपीएस ऑफ़िसर्स और राजनेताओं के नाम खुलकर लिखे गए हैं। यह पुस्तक 14 चैप्टर्स में बँटी हुई है। इसके एक चैप्टर ‘Seeding of Hindu Terror’ में ऐसी अनेक घटनाओं का ज़िक्र है जिससे पता चलता है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार किस तरह से गृह मंत्रालय के अधिकारियों पर दबाव डालकर भगवा आतंकवाद का गलत नैरेटिव सेट करवा रही थी। पुस्तक में एक घटना का ज़िक्र है जिसके बारे में वे लिखते हैं कि तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने मुझे अपने चैम्बर में आतंकवादी घटनाओं के बारे में जानकारी लेने के लिए बुलवाया था। जब मैं वहाँ पहुँचा तो वहाँ दो और लोग मौजूद थे। उसमें से एक कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह थे तथा दूसरा व्यक्ति महाराष्ट्र के आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे थे। मणि लिखते हैं कि मुझे उस समय बहुत ही अटपटा लगा कि गृहमंत्री शिवराज पाटिल निश्चल भाव से शांत बैठे हुए थे जबकि बाक़ी दोनों महानुभाव आतंकवादी घटनाओं के बारे में कुरेद-कुरेद कर मुझसे पूछ रहे थे। उन दोनों ही लोगों ने बातचीत रूपी पूछताछ के दौरान इन घटनाओं में किसी विशेष धार्मिक गुट का नाम न लिये जाने पर नाराज़गी भी जतायी थी। वे बताते हैं कि यह बातचीत जून 2006 की है और तब पहली बार भगवा आतंकवाद का गृह मंत्रालय की फाइलों में वैचारिक बीजारोपण हुआ था।
मुंबई टेरर अटैक के संकेत पहले से थे
मणि ने इस बारे में भी लिखा है कि मुंबई टेरर अटैक के बारे में सुरक्षा संकेत पहले ही मिल गए थे पर उच्च राजनीतिक दबाव के चलते ही उन पर ग़ौर नहीं किया गया और फिर बाद में सुरक्षा एजेंसियों पर ही हमला न रोकने की ज़िम्मेदारी भी मढ़ दी गई। मुंबई हमले के दौरान की घटनाओं पर मणि एक रहस्यमय सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि हमले के समय आंतरिक सुरक्षा विभाग के ज़्यादातर अधिकारी देश के बाहर इधर-उधर थे और देश में उस संकट से निपटने के लिए गृह मंत्री पर्याप्त परिपक्व नहीं थे। वे शंका करते हैं कि शायद ये सब पूर्व नियोजित था ताकि आतंकियों को अपनी रक्षा करने के लिए भरपूर समय मिल सके।
जब पी. चिदंबरम देश के गृह मंत्री बने तब एनआईए के दो प्रमुखों को बग़ैर वांछित प्रक्रियाओं को पूर्ण करें इस महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया गया। इसी कारण एनआईए गृह मंत्री के सबसे पसंदीदा विभागों में था। इसी दौरान भगवा आतंकवाद की शब्दावली गढ़ी व रची गई। इसके लिए ज़रूरी सबूतों को नज़रअंदाज़ करके ऐसे सबूतों पर ज़ोर दिया गया जो भगवा आतंकवाद नैरेटिव को सपोर्ट कर सकें।
दाऊद इब्राहिम के प्रति नरम रुख
The Whispering Rooms नाम वाले चैप्टर में ऐसी अनेक घटनाओं का ज़िक्र है जिस पर अमूमन विश्वास नहीं किया जा सकता है। उस वक़्त के संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि सदन के पटल पर रखने के लिए कुख्यात माफिया दाऊद इब्राहिम के बारे में गृह मंत्रालय से कुछ दस्तावेज़ चाहते थे। यह जानकारी सीबीआई के पास थी। सीबीआई ने उस फ़ाइल पर कोई कार्रवाई नहीं की और समय पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधि के पास जानकारियाँ नहीं पहुँचाई गई क्योंकि तत्कालीन गृह मंत्री ऐसा ही चाहते थे। इस पुस्तक में जो जानकारियां दी गईं हैं वे आम आदमी की आंख खोलने के लिए काफी हैं कि किस तरह से राजनीतिक स्वार्थ के लिए कुछ दल और उनके लोग देशहित को नजरंदाज कर अपने एजेंडे पर ही चलना पसंद करते हैं।
सुदेश गौड़
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