गत दिनों एक वेबिनार में देश के कुछ प्रतिष्ठित पुलिस अधिकारियों ने एक सुर से मांग की कि पुलिस में सुधार की प्रक्रिया तेज हो। यह समय की मांग है, अन्यथा लोकतंत्र नहीं बचेगा।
पुलिस सुधारों की मांग देश में लंबे समय से होती रही है। 1977 में पुलिस सुधारों पर बने धर्मवीर की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय पुलिस आयोग से लेकर 2006 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश तक कई आयोग और पुलिस अधिकारियों की रिपोर्ट के माध्यम से देश में पुलिस व्यवस्था में सुधार की मांग समय-समय पर उठती रही है।
2006 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 7 मुख्य निर्देशों के आधार पर पूरे देश में पुलिस सुधारों को लागू करने का आदेश दिया था।
यह आदेश उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी प्रकाश सिंह की एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था, लेकिन 15 साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अधिकतर राज्यों ने आंशिक रूप से ही इन सुधारों को लागू किया है।
हाल ही महाराष्ट्र में पुलिस द्वारा अवैध वसूली, बंगाल में पुलिस का राजनीतिकरण, केरल में पुलिस की यूनियनबाजी की घटनाओं ने एक बार फिर पुलिस सुधारों की ज़रूरत को महसूस किया है।
इसी विषय को लेकर एक वेबिनार का आयोजन हाल ही में किया गया, जिसे ‘राजेंद्र पुनेठा मेमोरियल फाउंडेशन’ ने पुलिस के प्रतिष्ठित थिंक टैंक ‘इंडियन पुलिस फाउंडेशन’ के सहयोग से आयोजित किया।
इसे श्री प्रकाश सिंह, मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सत्यपाल सिंह, उत्तर प्रदेश पुलिस के एडीजी श्री राजीव कृष्ण और पूर्व डीएसपी केके गौतम ने एक सुर में पुलिस सुधारों को तुरंत लागू किए जाने की मांग की।
श्री प्रकाश सिंह ने कहा कि यदि पुलिस सुधारों को पूरी तरह से अमल में नहीं लाया गया तो भविष्य में देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है, क्योंकि तमाम सरकारें अपने—अपने हिसाब से पुलिस का इस्तेमाल करती हैं और यह किसी भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
श्री सत्यपाल सिंह ने कहा कि पुलिस सुधार लोकतंत्र का मूल है। उन्होंने महत्वपूर्ण बात कही कि देश में पुलिस सुधार में सबसे बड़ा रोड़ा आइएएस लॉबी है जो नहीं चाहती कि पुलिस आधुनिक हो। उन्होंने पुलिस की छवि और सम्मान को लौटाए जाने की वकालत की और कहा कि जब तक राजनेता और प्रशासनिक तंत्र पुलिस को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेगा तब तक सुधार संभव नहीं है। श्री राजीव कृष्ण ने पुलिस की जांच और कानून—व्यवस्था को अलग-अलग करने की वकालत करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2020 से ही इस को अमल में लाने की शुरुआत कर दी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 1400 सब इंस्पेक्टरों की भर्ती किए जाने को सिद्धांतिक मंजूरी दे दी है। उन्होंने माना कि कुछ चुनौतियां हैं लेकिन यही एक रास्ता पुलिस की बेहतरी का है।
श्री केके गौतम ने पुलिस विभाग के कनिष्ठ अधिकारियों की हालत के लिए वरिष्ठ अधिकारियों से सहयोग की अपील की। उन्होंने कहा कि जब तक उच्च अधिकारियों और कनिष्ठ अधिकारियों के बीच में तालमेल नहीं होगा, पुलिस बेहतर तरीके से काम नहीं कर सकती है ।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार श्री दिनेश गौतम ने किया, जबकि आभार लोकसभा टीवी के वरिष्ठ एंकर अनुराग पुनेठा ने व्यक्त किया।
—वेब डेस्क
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